संजय रास्ता पूछता हुआ देवीपुरा की तरफ जा रहा था। सड़क पर देवीपुरा का बोर्ड देखकर समझ गया कि देवीपुरा पास ही है। उसने बोर्ड मेंदिखाई दिशा में मोटरसाइकिल मोड़ दी। कुछ घर नज़र आने लगे थे। रास्ते चलती महिला से उसने पूछा" जोगी कानदास कहाँ रहते हैं?""बस थोड़ा आगे दाहिनी तरफ उनकी झोंपडी दिख जाएगी।"संजय झोंपडी में पहुँचा। वहां जोगी कानदास अपनी झोंपडी को ठीक करने में लगे हुए थे"जय भोले नाथ""बम बम भोले। बेटा यहाँ के तो नहीं लग रहे, कहाँ से आये हो?""यहीं का हूँ। दूर आपने पहुँचाया। मैं हरसी का बेटा संजय।"कानदास सुनकर घबरा गये। उसे
Full Novel
नकटी - भाग 1
बसंत और हरसी अपने जीवन में बहुत खुश थे लेकिन कुछ अपनों को ही उनकी ख़ुशी बर्दाश्त न थी और उनके खिलाफ षड़यंत्र रचते रहते थे और एक दिन वे लोग सफल भी हो गए ...Read More
नकटी - भाग-2
हरसी की हँसती खेलती जिंदगी में एक भूचाल आ गया। बसंत की हत्या का दुःख तो था ही अब लोग और भी हावी हो गए थे और उसका सब कुछ लूट लेना चाहते थे वह जीना नहीं चाहती थी लेकिन एक ऐसा कारण था कि मर भी नहीं सकती थी ...Read More
नकटी - भाग-3
जीप हरसी को लेकर शहर महेश के घर पहुँची। महेश और उसकी माँ वहाँ पहले से तैयार थे। हरसी वे सीधे हॉस्पिटल लेकर गये। महेश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के बावजूद भी उसने हरसी को बड़ी बहन मानकर बहुत सेवा की।हरसी को सात दिन में छुट्टी मिल गयी लेकिन उसके चेहरे पर ख़रोंच और नाक कटने के निशान रह गये थे। महेश ने महेश की सब्जी की दुकान थी। हरसी धीरे धीरे घर के कामों में हाथ बटाने लगी। घर के बाद वह महेश के साथ दुकान पर भी जाने लगी। महेश ने उसको बहुत मना ...Read More
नकटी - भाग-4
सुबह सुबह ग्यारह बजे का समय था। चरण फाईनेंस के ब्रांच मैनेजर गुप्ता जी ऑफिस की फाइलें निपटाने व्यस्त थे। किसी ने दरवाजा खटखटाया। गुप्ता जी ने गर्दन ऊँची की वहाँ एक लड़की खड़ी थी। “अरे कंचन, आओ आओ।“ “गुड मॉंर्निग अंकल” कंचन ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कहा। गुप्ता जी ने पूछा "तुम्हारे पापा ने इस ऑफिस में लम्बी नौकरी की है। कैसे हैं आज कल?” "जी अच्छे हैं, आपको बहुत याद करते हैं।“ कंचन फिर रुक कर बोली "अंकल मैं एक व्यक्तिगत काम से आपके पास आयी हूँ।" "कहो बेटी , कुछ लोन चाहिए?" “नहीं अंकल, अंकल ...Read More
नकटी - भाग-5
शाम को संजय कंचन के साथ घूम रहा था। “कैसा रहा तुम्हारा दिन?” “तुम क्या सोचती हो?” “ये डिफाल्टर ही ढीठ किस्म के लोग होते हैं ।“ “अरे नहीं। बड़े ही सोफस्टिकेटेड लोग हैं । पिछली बार शायद समझ नहीं पाए। इस बार मैं गया और उनको इज्जत दे कर बात की तो वे मान गये। प्रतीक ने चैक दे दिया है। मनीष कल जमा करवा देगा।“ “क्या बात है गुरू! फिर तो तुम्हे मेरी जरूरत ही नहीं रहेगी।“ “ऐसा हुआ है कभी कि ज़िन्दगी को साँसों की जरुरत ना रहे“ संजय ने उसकी नज़रों में झांकते हुए कहा । ...Read More
नकटी - भाग-6
जोगी कानदास टाँग सहलाते हुए वर्तमान में आया और बोला "केदार, विक्रम नवल तो ये मान बैठे थे कि अब नहीं बचेगी।" कानदास और संजय की आँखों से आँसू नहीं रुक रहे थे गुस्से में आंखे लाल हो गई थी। संजय ने मुट्ठी में मिट्टी भर कर कहा कहा "मेरी माँ ने इतने दुःख सहे इसका कभी जिक्र तक नहीं किया। मैं लापरवाह कभी उसके चेहरे और शरीर के निशानों से अंदाज़ा नहीं लगा सका। कभी पूछा भी तो माँ ने टाल दिया। जोगी जी माँ ने ऐसा क्यों किया।" "वह अपने बसंत की निशानी के एक खरोंच भी ...Read More
नकटी - भाग-7 (अंतिम)
सुबह हुई तो हरसी और संजय अपने खेतों की ओर गये। वहाँ केदार पहले से मौजूद था। उसे पहले अंदाजा हो गया था कि हरसी और संजय सुबह सुबह खेतों की तरफ़ ज़रूर आएंगे। हरसी को देखते ही केदार बोला "अरे हरसी, तुम। कब आई?" हरसी ने मुँह फेर लिया। संजय ने कहा "प्रणाम ताऊ जी।" "सदा प्रसन्न रहो बेटा, क्या नाम है तुम्हारा?" "संजय।" "किसी चीज़ की जरूरत हो तो बता देना। थके हुए हो। सुबह सुबह घूमने आने की कहाँ जरूरत थी।" "घूमने नहीं ताऊ जी, यहाँ अपनी जमीन देखने आये हैं।" संजय ने कहा। "तुम्हारी कहाँ? ये तो ...Read More