विश्वासघात

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नन्दपुर गाँव___ ओ..बेला की माँ !जरा सम्भालों तो अपने लाल को देखो तो बस,रोए ही जा रहा है, दयाशंकर ने अपनी पत्नी मंगला से कहा।। आती हूँ जी! तुम्हारा ही तो काम कर रही थीं, तुम्हारे रास्ते के लिए कुछ सूखा नाश्ता बना रही थी जो दो चार दिन चल सकें,तुम बाहर गाँव जाते हो जी !तो मुझे यहाँ खटका सा लगा रहता ,कभी दस दिन में लौटते हो तो कभी पन्द्रह दिन में और मैं यहाँ बच्चों को लिए पड़ी रहती हूँ और फिर इस गाँव में और आस पास के गाँवों में डकैतों का कितना खतरा बढ़ गया है, अब तो कभी कभार दिनदहाड़े भी आ जाते हैं और कुछ ना मिलने पर लोगों का कत्ल करके भाग जाते हैं, तुम वहाँ बाहर गाँव अपनी टोली के साथ जाते हो तो मन में एक डर सा बैठा रहता है कि बस तुम सही सलामत रहो, मंगला बोली।।

Full Novel

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विश्वासघात--भाग(१)

नन्दपुर गाँव___ ओ..बेला की माँ !जरा सम्भालों तो अपने लाल को देखो तो बस,रोए ही जा रहा है, दयाशंकर अपनी पत्नी मंगला से कहा।। आती हूँ जी! तुम्हारा ही तो काम कर रही थीं, तुम्हारे रास्ते के लिए कुछ सूखा नाश्ता बना रही थी जो दो चार दिन चल सकें,तुम बाहर गाँव जाते हो जी !तो मुझे यहाँ खटका सा लगा रहता ,कभी दस दिन में लौटते हो तो कभी पन्द्रह दिन में और मैं यहाँ बच्चों को लिए पड़ी रहती हूँ और फिर इस गाँव में और आस पास के गाँवों में डकैतों का कितना खतरा बढ़ ...Read More

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विश्वासघात-भाग(२)

दयाशंकर ने डरते हुए पूछा___ कौन है भाई? तभी दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई___ मैं हूँ शक्तिसिंह!दरवाज़ा खोलों मेरे छोटे भाई और उसकी पत्नी को डाकुओं ने मार डाला है,मैं जैसे तैसे अपने दस साल के भतीजे को बचाकर यहाँ आ पहुँचा कि किसी भी कोठरी में इसे छुपा दूँगा,कम से कम मेरे खानदान का इकलौता चिराग बचा है, वो ना बुझ पाएं,अगर तुम इसे इस कोठरी में छुपाने की जगह दे दोगे तो बहुत कृपा होगी,जिन्द़गी भर तुम्हारा एहसान मानूँगा,शक्तिसिंह बोलें।। अरे,दयाशंकर भइया जल्दी से दरवाज़ा खोल दो,बच्चे की जान को खतरा है, लीला बोली।। हाँ,लीला ...Read More

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विश्वासघात--भाग(३)

उधर कृष्णनगर गाँव में___ आइए मालिक! इस बार बहुत दिनों के बाद आपका शहर से गाँव आना ने पूछा।। अब क्या बताऊँ? तुम से तो कुछ भी छुपा नहीं है, तुम्हें तो मेरी हालत के बारें में सब मालूम है, उस रात जब डाकुओं ने मेरे पेट मे खंजर भोंका तो मुझे लगा कि अब मैं अपने भतीजे विजयेन्द्र प्रताप को खो दूँगा लेकिन भला हो लीला का और दयाशंकर का जो वो दोनों मेरे भतीजे को बचाकर ले भागे और मैं वहाँ काफ़ी देर तक ऐसे ही तड़पता रहा फिर भगवान ने तुम्हें मेरा रक्षक बनाकर भेंज ...Read More

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विश्वासघात--भाग(४)

वो कहते हैं कि ना,समय किसी के लिए नहीं रूकता,वो तो निरन्तर अपनी चाल से चलता रहता है और ही सबसे बलवान होता है, उसके आगें कभी किसी की नहीं चलती,सब अपनी अपनी पुरानी बातें भूलकर अपनी जिन्द़गी में आगें बढ़ गए, पन्द्रह सालों के बाद सबकी जिन्दगियों ने एक नया मोड़ ले लिया था____ आज मैं बहुत खुश हूँ बेला! कि तुम डाँक्टर बन गई,जमींदार शक्तिसिंह बोले।। बाबा! ये तो सब आपकी मेहरबानियों का नतीजा है, आप ने उस दिन मुझे डाकू से बचाया और अपने साथ शहर ले गए, मुझे पढ़ा लिखाकर इस काब़िल बना दिया ...Read More

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विश्वासघात--भाग(५)

पन्द्रह अगस्त का जलसा खत्म होनें के बाद डाँक्टर महेश्वरी, मास्टर साहब को खोज रहीं थीं ताकि अब उनसे की इजाजत ले सकें और जब वे नहीं दिखें तो वो जाने लगी तभी पीछे से मास्टर साहब ने आवाज लगाई____ अरे,डाक्टरनी साहिबा! आप मुझसे बिना मिलें जा रहीं हैं, मैं थोड़ा काम में लग गया था,कुछ लड्डू बच रहे तो सोचा आँगनवाड़ी में बँटवाने के लिए बोल दूँ और आप यहाँ चल दी,विजयेन्द्र बोला।। हाँ,मुझे लगा कि शायद आप को फुरसत नहीं है, इसलिए जा रही थी,डाक्टर महेश्वरी बोली।। चलिए, मुझे भी तो वहीं तक जाना हैं, ...Read More

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विश्वासघात--भाग(६)

शाम का समय था___ क्यों रे प्रदीप ! मंदिर चलेगा,संदीप ने पूछा।। ना भइया! मै सोच रहा कि खाना बनाने के बाद पढ़ने बैठ जाऊँ, इम्तिहान आने वाले हैं, आप का मन है तो आप चले जाओ,प्रदीप बोला।। अच्छा, ठीक है तो मैं हो आता हूँ मंदिर,ऐसा कहकर संदीप मंदिर चला आया ,उसने भगवान के दर्शन किए प्रसाद लिया और मंदिर के बाहर आया , देखा तो वहाँ कुछ चिल्लमचिल्ली मचीं हुई है, भीड़ के बीच में घुसकर उसने देखा कि मंदिर के पुरोहित जी एक बूटपाँलिश वाले को जोर से डाँट रहे थे और बूटपाँलिश वाले ...Read More

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विश्वासघात--भाग(७)

शाम का वक्त था..... डाक्टर महेश्वरी अपने दवाखाने में कुछ उदास सी बैठी थी,तभी विजयेन्द्र उसके पास पहुँचा और को उदास देखकर पूछ बैठा..... क्या हुआ डाक्टरनी साहिबा! कुछ उदास सी मालूम होतीं हैं? क्या मैं आपकी उदासी का कारण जान सकता हूँ, विजयेन्द्र ने पूछा।। कुछ नहीं मास्टर साहब बहुत दिन हो गए हैं ,बाबा का कोई ख़त नहीं आया,जो ख़त मैने उन्हें भेजा था उसका जवाब भी उन्होंने नहीं दिया,मन घबरा रहा है कि कहीं उनकी तबियत खराब ना हो,महेश्वरी बोली।। तो कल डाकखाने चलकर टेलीफोन करके पूछ लीजिए कि क्या बात है? विजयेन्द्र बोला।। ...Read More

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विश्वासघात--भाग(८)

और उधर संदीप और प्रदीप के कमरे पर___ क्या हुआ भइया! आप अभी तक गए नहीं है,प्रदीप पूछा।। हाँ,आज जरा कचहरी जाना है, सर ने बुलाया था कि जरा कचहरी आकर देख जाना कि मुकदमे की सुनवाई कैसे होती है क्योंकि ज्यादा दिन नहीं रह गए है, बस दो चार महीने के बाद ही तुम पूरे वकील बन जाओगें,इसलिए आज काँलेज जा पाना नहीं हो पाएगा, संदीप बोला।। अच्छा तो ये बात है,प्रदीप बोला।। हाँ,प्रदीप! मैं भी चाहता हूँ कि जल्द से जल्द वकालत की डिग्री मेरे हाथ में हो और वकील के लिब़ास में माँ ...Read More

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विश्वासघात--भाग(९)

दयाशंकर की बात सुनकर जमींदार शक्तिसिंह कुछ सोच समझकर बोले____ अगर ये वो नटराज है तो इससे टकराना तो आसान ना होगा,क्योंकि ये तो अब बहुत बड़ा आदमी बन गया है, ना जाने कितने नेता और पुलिसवाले इसकी मुट्ठी में होंगें, इससें टकराने के लिए पहले हमें खुद को मजबूत करना होगा,तब जाकर हम इससे टकराने का सोच सकते हैं।। आप बिल्कुल ठीक कह रहें हैं,जमींदार साहब! दयाशंकर बोला।। नटराज से टकराने के लिए किसी शातिर और दिमागदार वकील की जुरूरत है,जो नटराज के मुँह से ही उसके जुर्म उगलवा पाएं और ऐसा वकील ढ़ूढ़ने में वक्त ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१०)

साधना ने अपनी बेटी मधु से कहा कि पढ़ाई में ध्यान लगाएंगी तो काम आएगा,ये क्या किसी से जरा बहस हो गई तो तू उससे बदला लेने पर आमादा है, अच्छे घर की लड़कियों के ऐसे लक्षण नहीं होते,जैसे की तेरे हैं, तेरे बाप ने तुझे बहुत छूट दे रखी है इसलिए तेरे दिमाग़ साँतवें आसमान पर हैं,जिन्दगी ऐसे नहीं चलती जैसे कि तू चलाना चाहती है, फिर से कहती हूँ, सुधर जा !छोड़ दे ये लक्षण,नहीं तो कल को कुछ बुरा हुआ तो ये मत कहना कि माँ ने आगाह नहीं किया था और इतना कहकर साधना चली ...Read More

11

विश्वासघात--भाग(११)

शाम हुई ,मधु के जन्मदिन के लिए प्रदीप फूलों का गुलदस्ता लेकर सुनहरी चौक पहुँच गया और मधु सहेली वीना की मोटर का इंतज़ार करने लगा,कुछ देर के बाद मधु की सहेली वीना अपनी मोटर लेकर आ पहुँची और दोनों उसमें बैठकर फार्महाउस निकल गए, पहुँचते पहुँचते अँधेरा भी हो आया था,फार्महाउस के बँगले से कुछ दूर ही वीना ने मोटर रोक दी और बोली,यहाँ से बँगले तक पैदल ही जाना पड़ता है, वहाँ मोटर खड़ी करने की जगह नहीं है।। प्रदीप बोला,ठीक है ! लेकिन यहाँ इतना सुनसान सा क्यों लग रहा है, सालगिरह के जश्न जैसी ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१२)

लीला और विजय की खबर सुनकर शक्तिसिंह जी की आँखों से आँसू बह निकलें, उनका मन व्याकुल हो उठा नन्हें को देखने के लिए और उन्होंने प्रदीप से पूछा कि तुम कब मिले बेला से। जी रक्षाबंधन वाले दिन,मै और संदीप भइया बाजार घूमने गए थे,तभी उनका पर्स एक चोर ले कर भागकर रहा था,हम दोनों ने ही तो उस चोर को पकड़ा था,प्रदीप बोला।। अच्छा! तो इसका मतलब़ जब उस दिन हम सब बेला के साथ मंदिर गए थे तो हमारी मुलाकात वकील साहब से हुई थी,इसका मतलब़ है जो हमें मंदिर में मिला था वो ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१३)

प्रदीप का मधु पर हाथ उठाना देख,साधना चुप ना रह सकी और उसने प्रदीप के पास आकर कहा___ मैं मधु की माँ हूँ और प्रदीप! तुम मधु को बिल्कुल गलत समझ रहें।। नहीं, आण्टी !मैं उसे अब बिल्कुल ठीक समझा हूँ,पहले गलत समझा था,मैं नहीं जानता था कि वो एक नम्बर की मक्कार और धोखेबाज है,नहीं तो मैं उसकी बातों में कभी ना आता,प्रदीप ने जवाब दिया।। प्रदीप बेटा! पहले तुम मेरी बात सुन लो,फिर उसके बाद वही करना जो तुम्हारा मन करें,साधना ने कहा।। ठीक है आण्टी! कहिए,जो आप कहना चाहतीं हैं,प्रदीप बोला।। उसने जो तुम्हारे ...Read More

14

विश्वासघात--भाग(१४)

शक्तिसिंह जी को लीला का शुष्क व्यवहार पसंद नहीं आया,एक तो इतनो सालों बाद मिलती है और जब भी है तो ऐसा ही शुष्क व्यवहार करती है,शक्तिसिंह जी ने मन में सोचा।। तब तक सब लौट आएं और भीतर आकर सब खाने पीने की तैयारी में लग गए,तब दया ने इशारों में शक्तिसिंह जी से पूछा कि जीजी से कोई बात हुई,शक्तिसिंह जी ने भी इशारें में कहा हुई तो लेकिन ना के बराबर।। सबने चाय पी फिर खाने की बारी थी,इतने दिनों बाद सबके साथ बैठकर खाने का स्वाद और भी बढ़ गया साथ मेँ खूब ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१५)

दूसरे दिन प्रदीप को मधु फिर से काँलेज में दिखीं और प्रदीप से उससे फिर से बात करने की की और बोला चलों कुछ देर कैंटीन में चलकर बैंठतें हैं,लेकिन मधु ने इनक़ार कर दिया बोली,कुछ जुरूरी काम है,प्रदीप , मधु की बात सुनकर झुँझला गया और गुस्से से बोला___ उस थप्पड़ का बदला तुम मुझसे ऐसे लोगीं।। मै कोई बदला नहीं ले रही हूँ,मैं तो चाहती हूँ कि तुम मुझ जैसी लड़की से दूर रहो,मधु बोली।। लेकिन क्यों दूर रहूँ?बताओगी जरा! प्रदीप न पूछा।। क्योंकि मैं तुम्हारी दोस्ती के काब़िल नहीं हूँ,तुमने मुझ पर भरोसा किया ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१६)

शक्तिसिंह और संदीप जैसे ही घर पहुँचे, उन्होंने सारा वाक्या लीला और कुसुम को सुनाया,सब खूब हँसें।। बरखुरदार! बहुत बचें,अगर मोनिका डाँन्स के लिए ले जाती तो बेटा रेट्रो डान्स कैसे करते?शक्तिसिंह जी बोलें।। अरे,अंकल ! बहुत बचाया आपने,संदीप बोला।। अच्छा! अब दोनों जाकर हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल लो,मैं खाना लगाती हूँ, वैसे भी काफ़ी देर हो गई हैं, बाक़ी बातें बाद में करना,लीला बोली।। हाँ,बेटा संदीप! पहले खाना खाते हैं, क्लब में तो सिवाय दारू के कुछ था ही नहीं, शक्तिसिंह जी बोले।। सही कहा अंकल आपने,अच्छा मैं कपड़े बदलकर आता हूँ, संदीप बोला।। ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१७)

जब सबने सुना कि साधना बुझी बुझी सी रहती है तो ये सुनकर किसी को अच्छा नहीं लगा,रात को लीला और शक्तिसिंह जी अपने कमरें थे तब उनके बीच कुछ बातें हुई तब लीला से शक्तिसिंह जी बोले____ इसका मतलब़ है वो डिटेक्टिव सही कह रहा था कि साधना बहन को उस घर में बहुत कष्ट है,वो बेचारी इतनी सीधी सादी,कितना भक्तिभाव है उनके मन में,बेचारी की ऐसी दशा हो रही है,इतना क्यों सह रही है बेचारी!उस नटराज के ख़िलाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठाती।। आप नहीं समझेगें जी! वो एक औरत है और औरत हमेशा ये सोचती ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१८)

साधना और मधु की मोटर शक्तिसिंह जी के बँगलें के सामने रूकी,दोनों माँ बेटी ने ड्राइवर से कहा कि दरबान से पूछकर आओ कि ये शक्तिसिंह जी का ही बँगला है क्योंकि लीला बहन ने जो पता बताया था,उसी पते पर हम लोग आएं हैं____ जी,मालकिन! अभी पूछकर आता हूँ,ड्राइवर ने कहा।। ड्राइवर मोटर से उतरा और उसने दरबान से पूछा कि ये शक्तिसिंह जी का बँगला है,दरबान ने कहा हाँ! आप सही पते पर आएं हैं,ड्राइवर ने साधना से कहा कि मालकिन यही उनका बँगला है।। दोनों माँ बेटी मोटर से उतरीं और ड्राइवर से मोटर पार्किंग ...Read More

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विश्वासघात--भाग(१९)

दूसरे दिन प्रदीप को कालेज मे मधु दिखी,मधु का रूपरंग पूरी तरह से बदला हुआ था,उसने आज सादी सी साड़ी पहन रखी थी और लम्बे बालों की चोटी बना रखी थी,हाथों में कुछ किताबें थीं,बस एकदम सादे तरीके से आज वो काँलेज आई थी।। प्रदीप ने देखा तो दूर से ही आवाज़ दी__ मधु...मधु जरा ठहरो तो।। मधु ,प्रदीप की आवाज़ सुनकर रूक गई और प्रदीप उसके पास पहुँचा,उसने जैसे ही मधु को देखा तो बोला___ आज भी साड़ी,सो ब्यूटीफुल!! जी किसी ने फ़रमाया था कि साड़ी पहना करो तो हमें थोड़ा रह़म आ गया उन पर,मधु बोली।। ...Read More

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विश्वासघात--भाग(२०)

दूसरे दिन कुसुम की रिहर्सल शुरु हुई,बुआ बनने के लिए,नकली विग मँगाई गई,एक चश्मा मँगाया गया और एक सफ़ेद भी मँगाई गई,जिसे पहनकर कुसुम तैयार हुई,अब समय था अभिनय का,कुसुम कोशिश तो कर रही थी लेकिन उससे कहीं ना कहीं गड़बढ़ हो ही जाती,उनके पास समय भी ज्यादा नहीं बचा था क्योंकि शाम को नटराज के यहाँ डिनर पर जाना था।। जैसे तैसे कुसुम ने बूढ़ो वाले हाव भाव सीख ही लिए,उसे थोड़ा खड़ूस भी दिखना था,जो उससे हो नहीं पा रहा था,संदीप बोला____ बस,तुम इतना रहने दो,वहाँ ज्यादा बोलना नहीं ,मुँह बंद रखना।। तो तुम अकेले ही ...Read More

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विश्वासघात--भाग(२१)

लीला बुआ आज ही कह रहीं थीं कि अब समय आ गया है कि साधना आण्टी और मधु को सच..सच बता देना चाहिए,संदीप बोला।। तो क्या उन दोनों को सच्चाई मालूम होने पर वो हमलोंगों का साथ देंगीं,प्रदीप ने पूछा।। साधना आण्टी का जैसा आचरण है उससे तो मुझे लगता है कि वो हमलोंगों का साथ जुरूर देंगीं और अब तो मधु के व्यवहार में भी काफ़ी बदलाव आ गया है शायद ये सब तेरी मौहब्बत का असर है तो वो शायद हम लोगों का साथ देने के लिए राज़ी हो जाए,संदीप बोला।। तो अब आगें की योजना किस ...Read More

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विश्वासघात--भाग(२२)

दूसरे दिन साधना और मधु दोपहर के खाने पर लीला के घर पहुँचे और उसने सारा वृत्तांत साधना को सुनाया,ये सुनकर साधना को एक झटका सा लगा कि उसका पति एक नामीगिरामी स्मगलर है और व्यापार की आड़ में वो ऐसे धन्धे करता है,देश के साथ इतनी बड़ी धोखेबाजी कर रहा है और इस की गवाही देने के लिए संदीप ने मंजरी और अरूण को भी बुला लिया था।। तब मंजरी ने भी कहा___ जी,मिसेज सिंघानिया! मैं जूली बनकर उनके साथ काम करती हूँ लेकिन मैं एक सरकारी जासूस हूँ और मेरा असली नाम मंजरी है।। अरूण ...Read More

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विश्वासघात--भाग(२३)

उधर गाँव में, माँ! बहुत दिन हो गए,मैनें बाबा को टेलीफोनकरके ख़बर नहीं पूछी और जब लीला बुआ भी गईं हैं,तब से उनसे भी मुलाकात नही हो पाई,लगता सब बहुत ही मशरूफ हैं,इसलिए मैं सोच रही हूँ कि डाकखाने जाकर टेलीफोन करके सबकी ख़बर पूछ आऊँ,बेला ने मंगला से कहा।। हाँ...हाँ..क्यों नहीं बिटिया! और लगता है सब नाटक में ज्यादा ही ब्यस्त हो गए हैं तभी तो संदीप और प्रदीप का बहुत दिनों से कोई ख़त नहीं आया,मंगला ने बेला से कहा।। ठीक है तो मैं आज ही विजय के संग डाकखाने जाकर टेलीफोन पर सबका हाल ...Read More

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विश्वासघात--भाग(२४)

साधना डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा चुकी थी,नटराज तैयार होकर आया और नाश्ता करने बैठ गया,उसने आधा नाश्ता खतम किया था कि टेलीफोन की घंटी बज पड़ी___ साधना जैसे ही टेलीफोन का रिसीवर उठाने को हुई तो नटराज बोला___ ठहरो! मैं उठाता हूँ।। नटराज की जैसे ही टेलीफोन पर बात खतम हुई,उसने पानी पिया और वाँश बेसिन में हाथ धोकर साधना से बिना कुछ कहें नीचे गया,गैराज से मोटर निकाली और फिर से कहीं चला गया,नटराज का ऐसा रवैया देखकर साधना हैरत में पड़ गई और उसने शक्तिसिंह के घर पर टेलीफोन करके सबकुछ बता दिया।। ...Read More

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विश्वासघात--(अन्तिम भाग)

इधर इन्सपेक्टर अरूण और प्रदीप कुछ देर में नटराज के फार्महाउस जा पहुँचे,उन्होंने मोटरसाइकिल दूर ही खड़ी कर दी मोटरसाइकिल की आवाज़ से किसी को श़क ना हो जाए और दोनों पैदल ही फार्महाउस के पास आ गए,तभी अरूण बोला____ प्रदीप! हमें सामने के दरवाजे नहीं जाना चाहिए,नहीं तो उन लोगों को श़क हो जाएगा और हमें ये भी तो पता नहीं है कि कितने आदमी हैं वहाँ? आप सही कह रहें हैं अरुण भइया! हम लोग खिड़की से चलते हैं,मैं इस तरफ वाली खिड़की से भीतर घुसता हूँ और आप फार्महाउस के पीछे वाली खिड़की से घुसिए,प्रदीप बोला।। ...Read More