बड़े बाबू का प्यार

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भाग 1/16: हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन..... “बड़े-बाबू.....ओ बड़े-बाबू.....दरवाज़ा खोलिए, कब से घंटी बजा रहे हैं”, मंदार दरवाज़ा पीटते हुए बोला|थोड़ी देर में दरवाज़ा खुला और दिवाकर झांकते हुए बोले, “अरे मंदार, तुम यहाँ, इतनी रात.....?”मंदार दरवाज़ा धकेल कर अन्दर आते हुए बोला, “अरे हटिए बड़े-बाबू, सारा सवाल दरवाज़े पर ही कीजिएगा क्या....कब से दरवाज़ा पीट रहे हैं| वैसे जनमदिन की फिर से शुभ-कामना, हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....” दिवाकर ने सिटकनी चढ़ाई और अपना हाथ तौलिये में पोछते हुए बोले, “अरे वो कपड़े धो रहा था तो घंटी की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी....आओ बैठो|”दिवाकर न्यू इंडिया इन्श्योरेन्स में

Full Novel

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 1 16: हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....

भाग 1/16: हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन..... “बड़े-बाबू.....ओ बड़े-बाबू.....दरवाज़ा खोलिए, कब से घंटी बजा रहे हैं”, मंदार दरवाज़ा पीटते बोला|थोड़ी देर में दरवाज़ा खुला और दिवाकर झांकते हुए बोले, “अरे मंदार, तुम यहाँ, इतनी रात.....?”मंदार दरवाज़ा धकेल कर अन्दर आते हुए बोला, “अरे हटिए बड़े-बाबू, सारा सवाल दरवाज़े पर ही कीजिएगा क्या....कब से दरवाज़ा पीट रहे हैं| वैसे जनमदिन की फिर से शुभ-कामना, हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....” दिवाकर ने सिटकनी चढ़ाई और अपना हाथ तौलिये में पोछते हुए बोले, “अरे वो कपड़े धो रहा था तो घंटी की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी....आओ बैठो|”दिवाकर न्यू इंडिया इन्श्योरेन्स में ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 2 14: मज़ाक है क्या...

भाग 2/14: मज़ाक है क्या...अब तक दिवाकर खुलने लगे थे, तो बोले, “ऐसी बात नहीं है, जब हम ग्रेजुएशन जयपुर थे तो....”| “बस!!” मंदार बीच में ही बात कटते हुए बोला| “बस, हम जानते थे, ये देखिए, हम पूरी व्यवस्था से आए हैं| अरे बड़े-बाबू का जनमदिन है मज़ाक है क्या.....ये बताइए, रम चल जाएगी ना...वरना कुछ और ले कर आएं|”“अरे ये सब क्या है मंदार...बहुत साल हो गए....इसकी क्या ज़रुरत थी|” दिवाकर संकोचते हुए बोले|“कुछ नहीं बड़े-बाबू, अपने घर से इतना दूर रह रहे हैं, वो भी अकेले....अरे जनमदिन है आपका....आज तो बनती है..मना मत कीजिएगा|” मंदार जोर ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 3 14: गम का साथी रम...

भाग 3/14: गम का साथी रम...कमरे में पहुँचते-पहुँचते मंदार भी अपना ग्लास खाली कर चुका था, अभी मामला बराबरी था, तीन –तीन|उधर मंदार कमरे में बैठा मोबाइल पर इमोशनल मैसेज टाइप करने लगा, अभी पंद्रह सेकंड भी नहीं बीते होंगे मैसेज भेजे कि तपाक से जवाब आ गया| लगा जैसे उधर डॉली भी मैसेज का इंतज़ार में ही बैठी थी| फिर क्या मंदार मैसेज भेजता और पलटते ही जवाब आ जाता, सिलसिला खीचने लगा|“अरे ग्लास खाली है मंदार....क्या हुआ? कहाँ खो गए?” दिवाकर कमरे में दाखिल होते हुए बोले| हाथ में एक प्लेट थी जिसमे कुछ कच्चे और कुछ ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 4 14: तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई..... शिकवा, तो नहीं....

भाग 4/14: तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई..... शिकवा, तो नहीं....“बड़े-बाबू? क्या बात है.....आज से पहले तो कभी नहीं.....” मंदार में बोला, फिर जेब से सिगरेट का पैकेट निकाल एक सिगरेट उसने दिवाकर की ओर बढ़ा दी|दिवाकर ने ग्लास खाली की और ग्लास मेज़ पर रख सिगरेट जलाते हुए बोले, “बनाओ अगला....आज तो फिर वही दिन जीने को दिल कर रहा है....वैसे थैंक्स मंदार....तुम न होते तो शायद ये यादों का पिटारा कभी खुलता ही नहीं|”मंदार ने झट अपनी सिगरेट जलाई और सिगरेट मुहं में रखते हुए दोनों की ग्लास तैयार करने लगा|“फिर क्या मंजन मिला?..... बड़े-बाबू....” मंदार चुटकी लेते ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 5 14: पुराने यार

भाग 5/14: पुराने यारअब तक दिवाकर पूरे सुरूर में आ चुके थे, बोले, “अबे कहाँ चल दिए...पूरा खाना बन है....शाम जवाँ हैं ....हमारे अन्दर आग लगा कर कहाँ चल दिए, वैसे भी कल सन्डे है मंदार....चुपचाप पेग बनाओ...हमारा जन्मदिन अभी ख़त्म नहीं हुआ है|”वैसे मंदार का जाने का मूड भी न था, वो तो पत्नी को दिया वादा था सो निकल रहा था पर जब कहानी इतने अच्छे मोड़ पर हो और रात पूरी बची हो तो कौन हिलता है भला| मंदार मुस्कराते हुए वापस सोफे पर आया, बोतल उठाई और पेग बनाने लगा|छठा पेग तैयार था और टेबल ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 6 14: ग्यारह बीस की बस

भाग 6/14: ग्यारह बीस की बस“अरे वाह बड़े-बाबू, दस साल में तो याद न आई....आज हमने बात करा दी हम पर ही नाराज़गी....”मंदार चुटकी लेटे हुए बोला|थोड़ी देर न जाने मोबाइल में क्या ढूढ़ता रहा फिर एक कागज़ पर एक नम्बर नोट करने के बाद मंदार ने अपना ग्लास उठाया और सिगरेट जला कर बाहर गैलरी में चला गया|उधर दिवाकर पुरानी यादों में खोए रहे, न खाने की सुध थी न पीने की...जलती सिगरेट वैसी की वैसी राख में तब्दील हो गई....शराब का नशा ज़ोरों पर था और प्यार का नशा उससे कहीं ऊपर|दस-पंद्रह मिनट बाद मंदार सिगरेट बुझाता ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 7 14: तब भी था...आज भी..

भाग 7/14: तब भी था...आज भी..बातों –बातों में कब नींद लग गई पता ही न चला....छह –सात ग्लास का कम होता है क्या? कंडक्टर ने जब पाली उतरने की आवाज़ लगाई तब जा कर कहीं नींद खुली|ठंडक का दिन और भोर के पांच बजे का समय, दिवाकर का मन तो किया कि एक सिगरेट और चाय पी ली जाए पर मंदार के पैरों में तो मानों मोटर फिट हो गई हो, चाह रहा था बस कैसे भी कर के ससुराल पहुँच जाए और अपनी बीवी से मिल ले|पिछली रात इतने नशे में भी मंदार का दिमाग अच्छा चला था, ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 8 14:प्यार का पंचनामा 

भाग 8/14:प्यार का पंचनामा मुर्दाघर की एक बेंच पर बेसुध सा बैठा मंदार अपनी पूरी कहानी सुना चुका था| होने को थी और मंदार का नशा पूरी तरह उतर चुका था….बगल में सब इंस्पेक्टर महिपाल चौधरी और सामने खड़ा हवालदार मनोज यादव मंदार की कहानी सुन चुके थे, पूरी रात तफशीश हुई थी|महिपाल चौधरी मनोज से पूछता है, “बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी क्या?”मनोज हां में सर हिलाता है और बोलता है, “सर आधा घंटा और लगेगा..रिपोर्ट 3-4 बजे तक मिल जाएगी”महिपाल सर झटक कर नींद भगाता है और वापस मंदार की ओर मुड़ता है, “हाँ भाई, क़त्ल की ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 9 14: सुराग 

भाग 9/14: सुराग नहाया धोया मनोज तय समय पर राजा पार्क चौराहे पर एक चाय की दुकान पर चाय रहा होता है| थोड़ी देर में ऑटो वाले को पैसा देता महिपाल नज़र आता है| तेज़ी से चलता महिपाल मनोज के पास आता है और बोलता है, “सॉरी यार लेट हो गया…चल अन्दर चलते हैं”इन्श्योरेन्स ऑफिस का रिसेप्शन, रिसेप्शन पर अधेड़ उम्र का सिक्यूरिटी गार्ड बैठा रजिस्टर में कुछ लिख रहा होता है| ऑफिस स्टाफ आते जाते है, फिंगर सेंसर पर पंच करते है फिर रजिस्टर में कुछ लिखते रहते है| उधर किनारे लॉबी में कुछ लड़के – लड़कियां सिगरेट पी ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 10 14: जनरल इंक्वारी

भाग 10/14: जनरल इंक्वारीकरीब दो-तीन घंटे बाद महिपाल और मनोज थाने के बाहर चाय की दुकान पर खड़े चाय रहे होते हैं, तभी मंदार आता दिखता है|“मंदार! इधर!” मनोज जोर से आवाज़ देता है|मंदार सधे क़दमों से चाय की दुकान तक आता है|“चाय पिओगे, मंदार?” मनोज पूछता हैमंदार मना कर देता है और जेब से सिगरेट निकाल कर जलाता है|“तुम्हारे बड़े- बाबू ने खुदखुशी कर ली है..” मनोज मंदार से बोलता है|मंदार चौंक कर मनोज को देखता है, “तो… इसका मतलब….”“इसका मतलब उन दोनों की मौत के जिम्मेदार तुम हो!” महिपाल सधे शब्दों में मंदार से बोलता है| फिर ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 11 14: वज़ह 

भाग 11/14: वज़ह दिवाकर के पिता बोलते है, “अरे वो कुछ नहीं….एक बार वो लड़की…क्या नाम था…हाँ डॉली….हाँ उसको कर दिवाकर और दिलीप में झगड़ा हो गया था…दिलीप भी डॉली को पसंद करता था लेकिन उसने बोला किसी को नहीं था….वो तो एक बार पता नहीं कैसे दिवाकर को पता चल गया और बात बढ़ गई थी….हालांकि बाद में सब ठीक हो गया था…छोटी सी बात थी|”महिपाल और मनोज ऐसे सुन रहे थे मानों उन्हें कुछ खटक रहा हो|तभी दिवाकर की माँ बोली, “और एक बात…लेकिन दिलीप और दिवाकर में अभी हाल ही में बात भी हुई थी….इतने सालों बाद…दिवाकर ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 12 14: मेवाती लॉज 

भाग 12/14: मेवाती लॉज थोड़ी देर बाद महिपाल और मनोज एक साधारण से रेस्टोरेंट में बैठे खाना खा रहे है| तभी महिपाल का फ़ोन बजता है|“जी सर!…ओके सर!…मानसरोवर मेट्रो स्टेशन….मेवाती लॉज…ओके सर…बस अभी निकल रहे है सर….जी सर….जय हिन्द!” महिपाल अपने अधिकारी से फ़ोन पर बात करते हुए कहता है|मनोज खाना खाते हुए पूछता है, “क्या हुआ सर….कोई नया कलेश….”महिपाल बोलता है, “अरे अपनी जिंदगी में सुकून कहाँ…चल फटा फट ख़तम कर…सुसाइड केस है..तफ्तीश करनी है….” थोड़ा रुक कर बोलता है, “एक काम कर टीम वही बुला ले…फोरंसिक को भी बोल दे..एड्रेस व्हाट्सएप कर रहा हूँ.” महिपाल मेसेज टाइप करते ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 13 14: बरसात की वो शाम 

भाग 13/14: बरसात की वो शाम महिपाल और मनोज की बाइक सरकारी अस्पताल के अन्दर जाती है और दोनों अस्पताल के मुर्दा घर के पास पहुचते है, बाइक लगाने के बाद मनोज कोई फ़ोन करता है फिर हाथ हिला कर इशारा करता है दूर दिलीप की पत्नी बॉडी के लिए वहां इन्तेजार कर रही होती है|महिपाल मनोज को इशारा करता है, मनोज जाता है और दिलीप की पत्नी को भीड़ से दूर महिपाल के पास ले आता है| महिपाल पहले सांत्वना देता है फिर बोलता है, “आप दिवाकर को जानती थी?”जी सुना तो था पर कभी मिली नहीं थी…हफ्ते भर ...Read More

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बड़े बाबू का प्यार - आखिरी भाग 14 14: शह और मात 

आखिरी भाग 14/14: शह और मात एक साधारण सी तीन मंजिला बिल्डिंग के बाहर बाइक रुकती है, दोनों बिल्डिंग देखते है फिर महिपाल गेट पर चौकीदार से बात करता है। महिपाल को बाइक लगा कर अंदर आने का इशारा करता है फिर दोनों सीढ़ी चढ़ने लगते हैं| सीढ़ी चढ़ते- चढ़ते मनोज महिपाल से पूछता है, “सर कुछ बोलोगे? कहाँ ले कर आए हो…किसका घर है?”अब तक दोनों पहली मंजिल के एक दरवाज़े पर होते हैं, महिपाल घंटी बजाता है और मुस्कराते हुए मनोज से बोलता है, “कातिल के घर!”मनोज चौक जाता है|दरवाज़ा खुलता है और अन्दर से एक लड़की निकलती ...Read More