बागी आत्मा 1 रचना काल-1970-71 उपन्यास रामगोपाल भावुक सम्पर्क- कमलेश्वर कोलोनी (डबरा) भवभूतिनगर जि0 ग्वालियर ;म0 प्र0 475110 मो09425715707, , 8770554097 एक सुबह की किरणों ने सारी दुनियाँ को तो रात्री की अचेतन अवस्था से चेतन अवस्था में ला दिया, पर माधव के जीवन का दीपक बुझ चुका है। सुबह के सूर्य की किरणों के साथ तो वह नहीं बल्कि उसकी मृत्यु षैया उठी है। ज्यों ज्यों उसकी अन्तिम यात्रा श्मशान के निकट आती जा रही है
Full Novel
बागी आत्मा 1
बागी आत्मा 1 रचना काल-1970-71 उपन्यास रामगोपाल भावुक सम्पर्क- कमलेश्वर कोलोनी (डबरा) भवभूतिनगर जि0 ग्वालियर ;म0 प्र0 475110 मो09425715707, , 8770554097 एक सुबह की किरणों ने सारी दुनियाँ को तो रात्री की अचेतन अवस्था से चेतन अवस्था में ला दिया, पर माधव के जीवन का दीपक बुझ चुका है। सुबह के सूर्य की किरणों के साथ तो वह नहीं बल्कि उसकी मृत्यु षैया उठी है। ज्यों ज्यों उसकी अन्तिम यात्रा श्मशान के निकट आती जा रही है ...Read More
बागी आत्मा 2
बागी आत्मा 2 दो दस वर्ष पूर्व...... वही मकान वही जगह, जहाँ माधव ने अन्तिम साँस ली थी। माधव का पिता विस्तर पर पड़ा पड़ा कराह रहा है। उसके कराहने बातावरण दर्दभरा हो गया हैं। रात का सन्नाटा छाया हुआ है। उसे दम दिलासा देने वाला कोई नहीं है। माधव सोच में है कि वह अपने पिताजी की जान कैसे बचाये? पास में एक पैसा भी नहीं है जो कुछ था वह भी पिताजी की लम्बी बीमारी में स्वाह हो गया। चार माह से तो कोई दिन ऐसा नहीं गया जिस दिन बिना दवा के काम ...Read More
बागी आत्मा 3
बागी आत्मा 3 तीन के लगभग साढ़े बारह बज चुके थे। रात का सन्नाटा छाया हुआ था। तारों की रोशनी में रास्ता चलने में परेशानी नहीं हो रही थी। तभी लोगों की भाग-दौड़ की आवाज सुनाई पड़ने लगी। माधव सोचने लगा-कहीं डकैत तो नहीं हैं तभी रात में ये हलचल, ये संकेत की आवाजें सुनाई पड़ रहीं हैं। इस कस्बे में ऐसयी बारदातों का यह चौथा पाँचवा नम्बर है। माधव सारी स्थिति समझ गया। उसके मस्तिष्क में आया, क्या राव वीरेन्द्रसिंह खण्हर वाली गोशाला में इसी बात की मीटिंग हो रही थी। अब सब बातें जो ...Read More
बागी आत्मा 4
बागी आत्मा 4 चार जब से पुलिस माधव को लेकर गई थी, माधव के पिता की तबियत और अधिक खराब हो गई थी। लेकिन भागवती, माधव की चाची की सेवा एवं सान्तवना से उसके स्वास्थ्य में कुछ सुधार हुआ। जब मायाराम घबड़ा जाता तो भागवती मायाराम को सांत्वना देती हुई कहती- ‘अरे लाला ऐसे घबड़ाओगे तो तुम अच्छे ही नहीं हो पाओगे फिर उसके केस की देखभाल कौन करेगा ? उसे कौन बचायेगा।’ यही विचार मायाराम को स्वस्थ बनाने की कोशिश कर रहा था। डॉक्टर भी अपना फर्ज पूरा कर रहा था, फिर भी उसे चलने-फिरने लायक ...Read More
बागी आत्मा 5
बागी आत्मा 5 पांच समय अपनी गति से चलता है। शेश संसार के सभी कार्य समय के साथ घटते, बढ़ते रहते है। शिशु पौधा समय के साथ पनपता है। यौवन को प्राप्त होता है। उस समय उसकी सुन्दरता दर्शनीय होती है। आशा यौवन की ऊची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी। पूर्णिमां के चांद की चांदनी चारों ओर बिखेरने लगी थी। माधव को उस विशय पर सोचने में आनन्द आता था। आशा की बातों पर ध्यान आते ही वह स्वप्न लोक में खो जाता था। उससे शादी कैसे होगी ? यह चिन्ता उसके मन में समा ...Read More
बागी आत्मा 6
बागी आत्मा 6 छः राव वीरेन्द्र सिंह द्वारा एक सेठ की लड़की सरला के साथ, बलात्कार करने वाली बात, गांव भर में चर्चा का विशय बन चुकी थी। । सभी इस समस्या पर गम्भीर रूप से विचार कर रहे थे। जब यह बात माधव ने सुनी तो लगा यह सब उसकी आशा के साथ घटित हुआ है। नहीं-नहीं, वह आशा के साथ ऐसा नहीं कर सकता है। क्यों नहीं कर सकता है ? उसकी दाढ़ लपकी हुई है। इस सब के बाद सारा गांव चुप है। सभी कायर हैं किसी में भी साहस नहीं है। सभी जान ...Read More
बागी आत्मा 7
बागी आत्मा 7 सात माधव चार-पांच दिन तक तो योंही इधर-उधर भटकता रहा, खाना जैसा मिला, जिससे मिला छीना और खाया। जीवन का यह पहला अवसर था। जब एक महिला को अपने पति के लिए भोजन ले जा रही थी। उससे छीनकर खाना खाना पड़ा,और करता भी क्या ? अब तो जीवन जीने के लिए यही विकल्प रह गया था। उसे इन दिनों लगने लगा, कि उसे पुलिस के सामने जाकर स्वयं हाजिर होना ही पड़ेगा, क्योंकि इस प्रकार भूख और प्यास के कारण तो वह वैसे ही दम तोड़ देगा। इससे तो उस जेल में ही ...Read More
बागी आत्मा 8
बागी आत्मा 8 आठ प्रिय आशा- मैं यह नहीं जानता था कि चिर-मिलन के स्वप्नों में जुदाई की घड़ियां भी होती हैं। आप लोग हर बात में मुझे ही दोशी मानेंगे। पर सच मानो आशामैंने उसकी हत्या जान बूझकर नहीं की। उसकी बन्दूक उठ़ा लेने का मेरा मात्र इरादा था। देवीयोग से ठीक वक्त पर वह दरवाजे पर आ गया। मैं अपने ऊपर होने वाले हमले को टालना चाहता था। बन्दूक का ट्रिगर दब गया। खून की प्यासी गोली ने अपनी प्यास बुझाली ं ं ं फिर तो मुझे वहां से भागने की पड़ी। ...Read More
बागी आत्मा 9
बागी आत्मा 9 नौ जंगलों के ये लोग दिन में आराम करते हैं रात सैर-सपाटे, लूट-खसोट में गुजारते हैं। इनकी रात अमानवीय कृत्य करने के लिए, जश्न मनाने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए रहती है। जंगल की शरण पाने वाल,े इन्हीं सब बातों में अपना गौरव अनुभव करते हैं। यहां के वातावरण में सूनापन होता है। इसमें भी लोग मौज करते हैं। किसी के बच्चे किसी की पत्नी, संयोगवश मिलने आ जाती हैं। तो उनके ठहरने के लिए जंगलों से घिरे गावों की शरण लेना पड़ती है। कभी-कभी ठहरने की व्यवस्था तम्बू ...Read More
बागी आत्मा 10
बागी आत्मा 10 दस माधव की गैंग की संख्या दस हो गई थी। दो आदमियों तो उसने ठिये पर छोड़ दिया था बाकी आठ आदमियों को अपने साथ ले जा रहा था। आज घोड़ों की व्यवस्था हो गई थी। आशा ने जब घोड़े देखे तो दंग रह गई। सभी अलग अलग घोड़ों पर सवार थे। आशा सोचने लगी- आज ये जाने कितनों का सुहाग सूना करेंगे। यह बात वह माधव से कहना चाहती थी पर उसकी यह बात दिल की दिल में रह गयी। सभी लोग चले गये। एक घोड़ा ठिये पर रह गया। बस वहां रखा ...Read More
बागी आत्मा 11
बागी आत्मा 11 ग्यारह माधव ने जब से आशा को विदा किया था । गरीबों को सताना छोड दिया था। वह सोचनं लगा-‘ बे-मतलब गरीबों को परेशान भी क्यों किया जाये। उन पर रखा क्या है ? जो उन्हें कश्ट दिया जाये। माधव ने अपने दल के सिद्धान्त बदल डाले थे। गनीमत यह कि माधव की बातों से दल के सभी लोग सहमत हो गये थे। बडे़-बडे़ सेठ साहूकारों के दरवाजों पर दस्तकें दी जाने लगीं। गरीबों में यह बात तेजी से फैलती जा रही थी कि माधव गरीबों को नहीं सताता। गरीब और मध्यम वर्ग के ...Read More
बागी आत्मा 12
बागी आत्मा 12 बारह पुलिस से मुठभेड़ के बाद माधव ने सभी बागियों के यहां कुशलता की सूचना भिजवा दी थी। लेकिन माधव अपने घर यह सूचना नहीं भेज पाया था। अखबारों में बड़े-बड़े अक्षरों में यह खबर छप चुकी थी। ‘आशा को भी यह खबर लग ही गई होगी। चिन्ता मंे होगी। मैं ‘कैसा हूँ ?‘ यह बात माधव के मन में आयी तो माधव घर जाने को व्याकुल हो उठा। मधव बोला -‘वीरू मैं चाहता हूँ सारा दल मेरे घर की तरफ चले। मैं अपने घर पर कुशलता की अभी खबर भी नहीं भेज पाया। ...Read More
बागी आत्मा 13
बागी आत्मा 13 तेरह माधव अपने दल में पहुंचा गया। सभी ने उसे बहुत दिनों बागी की ड्रेस में देखा तो एकदम माधव की जय का नारा गूंज गया। माधव बोला -‘जय तो ईश्वर की बोलना चाहिये। जिसने हम सभी से एक ऐसा काम करवा लिया है जिससे किसी के जीवन रक्षा हो सकेगी।‘ बहादुर बोले बिना न रहा -‘आप ठीक कहते हैं सरदार।‘ ‘सभी का सहयोग सराहनीय रहा। भाई से अधिक सहयोग आप लोगों का मिला। काश ! भाई होता तो शायद उसका भी इतना सहयोग न मिल पाता।‘ बात सुनकर सभी चुप ...Read More
बागी आत्मा 14
बागी आत्मा 14 चौदह सीमायें सुख देती हैं। सुख देने के लिए निर्धारित की जाती गरीबी और अमीरी की भी सीमा होती है। गरीबी सीमा से नीचे सोचनीय विशय बन जाती है। इसी प्रकार अमीरी सीमा से ऊपर अमीरी भी सोचने का विशय है। कहीं अमृत लुट रहा है, कहीं जहर दिया जा रहा है। एक ओर आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आदमी का प्रयत्न दूसरी ओर ऐशो आराम के लिए तड़फन। दोनों की संवेदनाओं में फर्क है। यही सब सोचते हुए माधव और उदय बीहड़ों में बढ़ते चले जा रहे थे। दोनों खुश थे। ...Read More
बागी आत्मा 15
बागी आत्मा 15 पन्द्रह सारे दिन उदयभान खन्दक में पड़ा रहा। इतने बड़े जीवन में उसे कभी दुःख नहीं हुआ था। वह तो दूसरों को दुःख देता था। पर आज उसे स्पश्ट अनुभव हो रहा था कि दुःख क्या होता है ? मां के रहस्यमय जीवन ने उसे निश्ठुर बना दिया था। मां के मरने के बाद मां का दुःख भी नहीं हुआ बल्कि यह मां के साथ समाज ने जो कुकृत्य दिये थे उसका बदला लेने को बेचैन हो उठाा था। आज स्थिति बिलकुल विपरीत थी। जीवन में रहस्यमय ढंग से एक भाई से मुलाकात हुई। कुछ ...Read More
बागी आत्मा 16 अन्त
बागी आत्मा 16 सोलह आत्मसमर्पण के सम्बन्ध में चर्चा अपना प्रभाव जमाने लगी थी। आशा भाग दौड़ सफल होती दिख रही थी। आशा मुख्यमंन्त्री जी से मिली। अपनी बात को उनके सामने रखा। सभी ओर से उसे अनुकूल उत्तर मिले। रेडियो पर प्रतिदिन शाम की न्यूज में विद्युत गति से यह बात फैल गई। अखबारों में तरह-तरह की चर्चायें आने लगीं। सरकार की ओर से शीघ्र ही आत्मसमर्पण की तारीख घोशित कर दी गई। कोई भी अखबार में एक लेख प्रकाशित हुआ उसका सार इस प्रकार है। चम्बल नदी जो 205 मील लम्बी, इस क्षेत्र में ...Read More