बात बस इतनी सी थी

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माता-पिता की इकलौती संतान के रूप में कुल को आबाद रखने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढोता हुआ मैं अपने जीवन के चालीस बसंत पार कर चुका था, किंतु अभी तक मुझे अपने लिए अपने मन कोई रानी नहीं मिल सकी थी । उधर बुढ़ापे की चौखट पर खड़े हुए माता-पिता का अत्यधिक दबाव था कि मैं जल्दी-से-जल्दी शादी संपन्न करके उनकी वंश बेल को आगे बढ़ाऊँ और उनके सेवा-निवृत्त जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने के लिए उन्हें एक जीता-जागता खिलौना भेंट कर दूँ ! लेकिन इस मेरे लिए यह इतना सरल नहीं था, जितना मेरे माता-पिता समझते थे ।

Full Novel

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बात बस इतनी सी थी - 1

बात बस इतनी सी थी 1 माता-पिता की इकलौती संतान के रूप में कुल को आबाद रखने की जिम्मेदारी कंधों पर ढोता हुआ मैं अपने जीवन के चालीस बसंत पार कर चुका था, किंतु अभी तक मुझे अपने लिए अपने मन कोई रानी नहीं मिल सकी थी । उधर बुढ़ापे की चौखट पर खड़े हुए माता-पिता का अत्यधिक दबाव था कि मैं जल्दी-से-जल्दी शादी संपन्न करके उनकी वंश बेल को आगे बढ़ाऊँ और उनके सेवा-निवृत्त जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करने के लिए उन्हें एक जीता-जागता खिलौना भेंट कर दूँ ! लेकिन इस मेरे लिए यह इतना सरल नहीं था, ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 2

बात बस इतनी सी थी 2 अगले दिन मिस मंजरी लंच टाइम में मेरे केबिन में आयी । लेकिन वह खाली हाथ नहीं थी । उसके हाथों में लंच बॉक्स था । आते ही उसने लंच बॉक्स मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा - "घर का बना हुआ है, खा लेना !" कहते हुए वह मेरे केबिन से बाहर निकल गयी । मैंने उसके हाथ से लंच बॉक्स लेते हुए उसका व्यवहार देखकर उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की थी और उसकी तरफ आश्चर्य तथा प्रश्नात्मक मुद्रा में देखा था, लेकिन मेरी ओर देखे बिना ही वह सीधे ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 3

बात बस इतनी सी थी 3 जब मैं वहाँ से वापिस लौटा, तब मंजरी अपने केबिन में नहीं थी मैं खुद से ही पूछने लगा - "कहाँ गयी होगी ? क्यों गयी होगी ? कहीं मेरे व्यवहार से नाराज होकर तो नहीं गयी होगी ?" शाम तक बहुत व्यग्रतापूर्वक मैं अपने प्रश्नों में उलझता रहा । अन्ततः, जब ऑफिस छोड़ने का समय हुआ, मेरी नजर मेज पर करीने से रखे हुए एक कागज पर पड़ी, जिस पर लिखा था - "कल अपनी माता जी को साथ लेकर मेरे मम्मी-पापा से मिलने के लिए मेरे घर पर आ जाना !" ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 4

बात बस इतनी सी थी 4 मंजरी की माँ ने जब देखा कि पुरोहित के मत का समर्थन करते मंजरी के पिता खुद ही अपनी बेटी के पक्ष को कमजोर कर रहे हैं, तब वह आगे आकर बोली - "ठीक ही तो कह रही है बेटी ! क्या ऐसी तर्कहीन और विवेकहीन परंपराओं का अंधा अनुकरण करना जरूरी है, जिनका अर्थ और महत्व समाज भूल चुका है ! समाज की अर्थहीन जंजीरों को तोड़कर एक बेटी अपने अस्तित्व को महत्व दे रही है, तो इसमें गलत क्या है ? शरीर से स्वस्थ, बुद्धि और विवेक से संपन्न और संवेदनशील ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 5

बात बस इतनी सी थी 5 मंजरी ने महसूस किया कि पापा का उसके लिए प्यार ही उसके पापा सबसे बड़ी कमजोरी है ! उसने यह भी महसूस किया कि यदि उसके पिता को अपने मान-सम्मान की रक्षा के साथ बेटी के सुख का निश्चय हो जाए, तो उसके पापा उसका समर्थन जरूर करेंगे ! उसने एक बार अपने मन-ही-मन में दोहराया - "शक्ति को ही समर्थन मिलता है ! मुझे एक बार अपनी शक्ति इन सबको दिखानी ही होगी ! यह कहा जा सकता है कि इस समय शक्ति के लिए समर्थन जरूरी है और समर्थन के लिए ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 6

बात बस इतनी सी थी 6 प्रोजेक्टर के पर्दे पर चल रही फिल्म में मंजरी के पिता का वाक्य होते ही मंडप में मंजरी की आवाज गूंज उठी - "यह तो बस ट्रेलर है ! पिक्चर तो अभी बाकी है !" कहते हुए मंजरी ने अपनी उंगली लैपटॉप पर घुमाई और एक क्लिक में पर्दे पर से फिल्म गायब हो गई । फिल्म को देखकर मेरा सिर चकराने लगा था । मैं कभी इस बात पर भरोसा नहीं सकता था कि मेरी माता जी, जो अपने बेटे की शादी के लिए दिन-रात तड़पती रहती थी, वह उसी बेटे की ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 7

बात बस इतनी सी थी 7 अपने मम्मी-पापा से आशीर्वाद लेने के बाद मंजरी मुझे साथ लेकर मेरी माता की ओर बढ़ी । मेरी माता जी के चरण स्पर्श करने के लिए हम दोनों एक साथ नीचे झुके, पर मेरी माता जी ने अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा था और दूसरे हाथ में अब भी उन्होंने कसकर ब्रीफकेस पकड़ा हुआ था । मंजरी ने कई बार मेरी माता जी से आग्रह किया - "मम्मी जी, आपके आशीर्वाद के बिना हमारी शादी संपन्न नहीं हो सकती है ! मैं अपनी नयी जिंदगी शुरू करने से पहले आपका आशीर्वाद ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 8

बात बस इतनी सी थी 8 परम्परा और रीति-रिवाजों के अनुसार अगले दिन मंजरी पग-फेरे की रस्म पूरी करने लिए करने के लिए अपनी मम्मी के घर लौट गयी । उसके तीसरे दिन गौने की रस्म पूरी होनी थी उस के अनुसार मैं मंजरी की मम्मी के घर जाकर उसको वापिस ले आया था। इस बार मंजरी एक सप्ताह तक मेरे और मेरे परिवार के साथ रही । इस एक सप्ताह के दोरान हर रोज रात को हम दोनों एक कमरे में एक ही बिस्तर पर साथ-साथ सोये । लेकिन मंजरी इस बार भी हर रात कोई ना कोई ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 9

बात बस इतनी सी थी 9 लगभग तीन महीने बीतने के बाद एक दिन मेरे मोबाइल पर एक अज्ञात से कॉल आयी । मेरे कॉल रिसीव करने पर उधर से एक लड़की बोली - "हैलो ! जीजू नमस्ते ! मैं रंजना बोल रही हूँ !" "नमस्ते !" मैंने अभिवादन स्वीकार किया और चुप हो गया । हालांकि में रंजना नाम की किसी लड़की को नहीं जानता था और उस लड़की की आवाज मेरे लिए एकदम अपरिचित थी । फिर भी उसके 'जीजू' संबोधन से मैंने यह अनुमान अवश्य लगा लिया था कि निश्चित ही यह मंजरी की कोई नाते- ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 10

बात बस इतनी सी थी 10 अंत में न चाहते हुए भी मैंने मंजरी की कॉल रिसीव कर ली कॉल रिसीव होते ही वह मेरी और मेरे परिवार की कुशलक्षेम जानने की औपचारिकता पूरी किये बिना ही बोली - "चंदन, तुम्हें रंजना ने कॉल की थी ?" "हाँ, की थी !" मैंने बहुत ही बेरुखी और लापरवाही से उत्तर दिया । "क्या कहा था उसने तुमसे ?" मंजरी ने दूसरा प्रश्न किया । "वही सब, जो आपने उससे कहलवाया था !" मैंने उसी लापरवाही से उत्तर दिया । "चंदन, मैं सच कहती हूँ, मैंने रंजना से कुछ नहीं कहलवाया ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 11

बात बस इतनी सी थी 11. अगले दिन मैं निर्धारित समय से पहले एयरपोर्ट पर पहुँच गया । मंजरी से बाहर आई, तो मैंने बाँहें फैलाकर उसका स्वागत किया । एयरपोर्ट पर ही एक कॉफी हाउस में जाकर हम दोनों ने कॉफी पी । उसके बाद मैं मंजरी को घर लेकर आया । घर पर मेरी माता जी ने भी अपनी बहू का स्वागत स्थानीय परंपरा के अनुसार और बहुत प्यार से किया । उन्होंने रात में अपने हाथ से मंजरी की पसंद के कई प्रकार के व्यंजन बनाए और अपने हाथों से मंजरी के लिए परोसे, ताकि मंजरी ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 12

बात बस इतनी सी थी 12. माता जी और मंजरी को लेकर सोचते-सोचते मेरी नजर एक बार फिर खाने प्लेट से जा टकराई । मैंने मंजरी से कहा - "यह खाना कब तक यूँ ही रखा रहेगा, खा क्यों नहीं लेती हो ?" "भूख नहीं है मुझे !" "भूख नहीं है, तो बनाया क्यों था ?" "तुम्हें भूख लगी होगी, इसलिए बनाया था !" मंजरी का जवाब सुनकर मैं चादर ओढ़कर लेट गया और घर की कलह को बढ़ने से रोकने का कुछ उपाय सोचने लगा । मैं नहीं चाहता था, मेरी माता जी और मंजरी दोनों एक ही ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 13

बात बस इतनी सी थी 13. उस दिन मैं पिछले दिन की तरह चाय-नाश्ता और दोपहर या रात के के मुद्दे में अपनी जिंदगी को उलझाना नहीं चाहता था, इसलिए पूजा-अनुष्ठान सम्पन्न होने के तुरंत बाद चाय पिये बिना और नाश्ता किये बिना ही मैं ऑफिस जाने के लिए घर से निकल गया ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 14

बात बस इतनी सी थी 14. सुबह उठकर मैंने अपनी दिनचर्या का पालन वैसे ही किया, जैसे पिछले एक से करता आ रहा था । मैं सुबह जल्दी उठा, नहा-धोकर मंजरी के साथ पूजा-अनुष्ठान संपन्न किया और बिना कुछ खाए पिए ही ऑफिस के लिए निकल गया । दोपहर के लगभग दो बजे मेरी माता जी ने मुझे कॉल करके बताया - "हैलो ! चंदन बेटा ! सुबह तुम्हारे जाने के तुरंत बाद ही मंजरी अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ जाने के लिए कहकर घर से निकल गई थी । वह अभी तक लौटकर नहीं आई है और उसके ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 15

बात बस इतनी सी थी 15. सुबह आँखें खुली, तो माता जी अकेली ही घर की सफाई में लगी थी । मंजरी नहा-धोकर पूजा की तैयारी कर रही थी । मेरे उठते ही माता जी ने छत पर लटक रहे पंखे और अलमारी के ऊपर रखे कुछ सामानों की ओर इशारा करके कहा - "चंदन बेटा ! तुझे थोड़ी फुर्सत हो, तो इस पंखे की और इन सामानों की सफाई करने मे मेरी थोड़ी-सी सहायता कर दे ! इतनी ऊँचाई तक मेरा हाथ नहीं पहुँचता और स्टूल पर चढ़ने में अब मन घबराता है !" उसी समय मंजरी ने ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 16

बात बस इतनी सी थी 16. अगले दिन मेरी माता जी गाँव में चली गई । गाँव में हमारा घर था, जिसमें मेरे एक ताऊ जी रहते थे । माता जी को स्टेशन पर छोड़ने के बाद मैं घर वापिस लौटा, तो उनकी अनुपस्थिति में मुझे वह घर बिल्कुल वीरान खंडहर-सा लग रहा था । यह सोच-सोचकर कि आज तक मैं अपनी माँ को दुःख और अपमान के सिवा कुछ नहीं दे सका, मैं ग्लानि में डूबकर अंदर ही अंदर कहीं गलने और टूटने लगा था । लेकिन इस दलदल से निकलने का मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 17

बात बस इतनी सी थी 17. मंजरी की बातों से मुझे उस पर हँसी भी आ रही थी, गुस्सा आ रहा था और प्यार भी आ रहा था । इसके साथ ही उसकी सोच पर दया भी आ रही थी कि इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी वह न तर्कसंगत सोच सकती है न तथ्यात्मक ! न तो उसको मेरा सच बोलना रास आता है और न ही मेरे झूठ बोलने पर उसको चैन आता है । उसकी अपनी ही सबसे न्यारी एक छोटी-सी दुनिया है, जिसमें वह अकेली विचरती रहती है ! न वह अपनी विचारों की उस छोटी-सी संकरी ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 18

बात बस इतनी सी थी 18. मंजरी को गये हुए जब लगभग आठ महीने बीत चुके थे, एक दिन मोबाइल पर मंजरी के मौसेरे भाई अंकुर की कॉल आई । मुझे लगा, शायद मंजरी का भाई होने के नाते उसने मंजरी के बारे में बात करने के लिए कॉल की है । लेकिन मैं गलत सोच रहा था । दरअसल अंकुर ने मुझे अपने बेटे के जन्मदिन की पार्टी में डिनर पर आमंत्रित करने के लिए कॉल किया था । अंकुर के निमंत्रण को मैंने मंजरी से मेरी मुलाकात होने के एक अच्छे अवसर के रूप में देखा । ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 19

बात बस इतनी सी थी 19. रात काफी हो चुकी थी और सड़क सुनसान थी । उस समय स्ट्रीट भी नहीं चल रही थी, इसलिए सुनसान-अंधेरी रात थोड़ी डरावनी हो चली थी । फिर भी, मैं बेफिक्र-सा होकर मंजरी के बारे में सोचता हुआ गाड़ी चलाता जा रहा था । तभी अचानक मेरी गाड़ी के आगे एक युवक को आता हुआ देखकर मैंने जल्दी से ब्रेक मारा और गाड़ी एक झटके के साथ रुक गयी । मैंने भगवान का धन्यवाद किया कि मंजरी को छोड़कर मेरा ध्यान सही समय पर सड़क पर लौट आया था । समय पर ब्रेक ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 20

बात बस इतनी सी थी 20. हम दोनों रात में देर रात तक जागकर बातें करते रहे ।इसी वजह सुबह हमारी नींद जल्दी नहीं खुल सकी । हम दोनों ही देर तक सोते रहे थे । सूरज सिर के ऊपर चढ़ आने पर कमल को चाचा जी ने जगा दिया, इसलिए वह मुझसे कुछेक मिनट पहले उठ गया था । जब मेरी नींद टूटी, तब तक नौ बज चुके थे । मेरी नींद टूटते ही कमल ने मुझसे कहा - "जल्दी उठकर फ्रेश हो ले ! नाश्ता तैयार हो चुका है !" " मै जल्दी से उठकर दैनिक कार्यों ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 21

बात बस इतनी सी थी 21. बातों ही बातों में कमल ने दिन में कई बार मुझसे मेरी शादीशुदा के बारे में पूछा था और मैं हर बार उसके प्रश्न को टालता रहा था । एक रात और एक दिन कमल के परिवार के साथ गुजारने के बाद जब मैंने अपने घर वापिस लौटने के बारे में सोचकर उनसे विदा माँगी, तो चाचा जी ने यानि कमल के पापा जी ने मुझसे कहा - "चंदन, बेटा ! जाने से पहले तो यह बता, तू यहाँ अकेला क्यों आया ? तुझे बच्चों को साथ लेकर आना चाहिए था ! अकेले ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 22

बात बस इतनी सी थी 22. घरेलू हिंसा के तहत चल रहा हमारा केस दोनों को साद-साथ रहकर एक-दूसरे समझने की नसीहत देकर कुछ महीने के लिए फाइलों में दबकर बन्द हो गया था । सामने वाले की शर्तों पर उसके साथ सामंजस्य करके जीना हम दोनों में से किसी के भी स्वभाव में शामिल नहीं था । इसलिए हम दोनों के साथ-साथ रहने की संभावना तो बहुत पहले ही खत्म हो चुकी थी । फिर भी, कोर्ट की नसीहत को मानते हुए यदि हम दोनों साथ-साथ रहने की कोई गुंजाइश तलाशने की कोशिश भी करते, तो रही-सही वह ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 23

बात बस इतनी सी थी 23. इस बार केस जल्दी नंबर पर आ गया था और तारीख भी जल्दी-जल्दी लगी थी । छः-सात तारीखों के बाद ही बहस शुरू हो गई थी । मंजरी ने इस केस में मेरी माता जी को कटघरे में खड़ा करने की पूरी योजना बनायी हुई थी । उसके पास सबूत के रूप में जो वीडियो था, उस वीडियो में मेरी माता जी मंजरी के पापा से दहेज में अस्सी लाख रुपये लेते हुए दिखायी पड़ रही थी, इसलिए मंजरी मेरी माता जी को भी कोर्ट में घसीटना चाहती थी । वह सोचती थी ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 24

बात बस इतनी सी थी 24. पिछले दो वर्षों में माता जी ने मेरी वजह से जितना अकेलापन भोगा मैं किसी भी तरह उसकी भरपाई करना चाहता था । लेकिन मुजफ्फरपुर से रोज पटना आना-जाना सम्भव नहीं था । दूसरी ओर पटना में माता जी को रखना भी संभव नहीं था, क्योंकि पटना में अपना फ्लैट मैं पहले ही बेच चुका था । पटना में माता जी को किराए के फ्लैट में रखना भी मेरे लिए किसी मुसीबत से कम नहीं था । माता जी के पटना में रहने पर उन्हें यह पता चलने से किसी भी हालत में ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 25

बात बस इतनी सी थी 25. इसी तरह चैन और सुकून से मेरे दो सप्ताह बीत गये । दो बीतने के बाद रविवार के दिन माता जी ने मुझसे कहा - "चंदन, बेटा ! आज तेरी छुट्टी है ! चल आज अपने फ्लैट की साफ-सफाई कर आएँ !" "माता जी ! असल में छुट्टु नहीं है, सिर्फ कहने-भर को छुट्टी है ! कंपनी में अभी एक नया प्रोजेक्ट आया है, इसलिए काम बहुत बढ़ गया है । नया-नया प्रोजेक्ट है, तो अभी काम भी सीखकर-समझकर करना पड़ता है !" मैंने बहाना करके कहा । "ठीक है ! तुझे फुरसत ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 26

बात बस इतनी सी थी 26. लगभग दो महीने बाद मेरी कंपनी में एक और नये प्रोजेक्ट पर काम हुआ । इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कंपनी में पुराने एंपलॉइस पर्याप्त नहीं थे । पुराने एंप्लॉइस के ऊपर काम का दबाव बढ़ाने के बावजूद भी कंपनी का काम समय पर पूरा नहीं हो पा रहा था, इसलिए कंपनी ने कुछ नये एंप्लाइज की नियुक्ति की थी । नये एंप्लाइज की नियुक्ति के अगले दिन मैं ऑफिस पहुँचा, तो अपने केबिन की ओर जाते हुए मुझे मेरे सामने वाले केबिन में एक महिला एंप्लॉय को देखकर कुछ संदेह-सा ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 27

बात बस इतनी सी थी 27. घर लौटकर मैंने माता जी को ऑफिस में रखे हुए प्रॉपर्टी पेपर से सारी बातें बतायी । माता जी बोली - "तू बहुत सीधा है, बेटा ! मंजरी इतनी सीधी नहीं है, जितनी सीधी तू उसको समझ रहा है और जितनी सीधी वह दिखती है !" इन दो सालों में मैं यह समझ चुका था कि मंजरी वास्तव में इतनी सीधी तो नहीं है, जितनी सीधी बनने और दिखने की वह कोशिश करती है । लेकिन हमारे जिस फ्लैट को मैं बेच चुका था, उसी फ्लैट की वापिस माता जी के नाम पर ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 28

बात बस इतनी सी थी 28. वीडियो के पहले दृश्य में मेरी माता जी बोल रही थी और उनके मंजरी के साथ उसके मम्मी-पापा चुप बैठे हुए उन्हें सुन रहे थे । माता जी कह रही थी - "यह आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि मैं तो सिर्फ यह चाहती थी कि मेरे बेटे की शादी उसकी मन-पसंद लड़की के साथ हो जाए, जिसको वह चाहता है और उसका घर बस जाए ! मैंने कभी आपसे दहेज नहीं माँगा था ! आप खुद अपनी मर्जी से अपनी बेटी की खुशी के लिए उसको दिल्ली में एक फ्लैट खरीदकर ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 29

बात बस इतनी सी थी 29. जिस दिन मैं लखनऊ पहुँचा, उसी दिन रात को डिनर की टेबल पर मुलाकात मेरे हमउम्र मधुर नाम के एक युवक से हुई । अपने स्वभाव से मधुर मेरे काफी करीब था, इसलिए पहली ही मुलाकात में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे और दूसरी मुलाकात में हमारे दोस्ती इतनी घनिष्ठ हो गई कि मधुर ने मुझे होटल का कमरा छोड़कर उसके फ्लैट में उसके साथ रहने का प्रस्ताव दे दिया । हालांकि जिस होटल में मैं रह रहा था, वह फाइव स्टार होटल था । वहाँ पर लग्जरी लाइफ जीने की ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 30

बात बस इतनी सी थी 30. तेरह दिन तक मैं उसकी जिंदगी के राजमहल की एक-एक खिड़की पर झाँकता भटकता फिरता रहा, लेकिन मुझे ऐसा कहीं कोई सुराग या ऐसा कोई रास्ता नहीं मिला, जहाँ से मैं उसकी जिंदगी के अंधेरे कोने का दर्शन कर सकूँ या जहाँ खड़ा होकर मैं उस नाम को सुन सकूँ, जो उसके दिल में बजने वाले तरानों में गूँजता है । चौदहवें दिन शाम को ऑफिस से लौटने के बाद मधुर ने मेरी जिज्ञासा को समझकर या मुझे अपना दोस्त मानकर खुद ही मेरे लिए अपनी उस जिंदगी के अंधेरे कोने की तरफ ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 31

बात बस इतनी सी थी 31. कई बार तो मंजरी मेरी किसी बात पर विचार किये बिना और कुछ बिना ही केवल मेरा विरोध करने के लिए मेरे विपक्ष में खड़ी हो जाती थी । दरअसल मंजरी इस गलतफहमी का शिकार हो गयी थी कि कंपनी को सिर्फ और सिर्फ वही अकेली चला रही है और मैं कंपनी की तरक्की के लिए उसके निर्णयों में बाधा बन रहा हूँ ! अपनी इसी गलतफहमी का शिकार होकर एक दिन मंजरी ने कंपनी की ऑनरशिप को अपने नाम पर ट्रांसफर करने की माँग कर डाली । उसकी इस माँग के पीछे ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 32

बात बस इतनी सी थी 32. पूरा एक महीना बीतने के बाद जब मैं लखनऊ से लौटकर पटना के पहुँचा, तब मैंने मेरा स्वागत करने के लिए मंजरी सहित मेरे कई सहकर्मियों को हाथों में फूल मालाएँ और बुके लेकर मेन गेट पर एक साथ खड़े पाया । यूँ तो अबसे पहले भी मैं एक-एक दो-दो महीने के लिए कंपनी की ओर से आउट ऑफ स्टेशन जाता रहता था, लेकिन मेरा ऐसा स्वागत पहली बार हो रहा था । मेरा अनुमान था कि यह सब मंजरी के कहने पर हुआ था । शायद उसने मुझे इस दौरान काफी मिस ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 33

बात बस इतनी सी थी 33. तीन महीने बाद बारह मार्च के दिन कंपनी के एमडी की ओर से बड़े शानदार फार्म हाउस में पार्टी का आयोजन किया गया, जिसमें हमारे ऑफिस के ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी आमंत्रित थे । बॉस की पार्टी में जाना जरूरी था । न जाने का कोई कारण भी नहीं था । छः साल पहले इसी दिन मेरी और मंजरी की शादी संपन्न हुई थी । तभी से यानि कि शादी के बाद से आज तक न जाने क्योंन मुझे वह दिन अपनी जिंदगी का सबसे मनहूस दिन लगता रहा था । इसलिए उस दिन किसी ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 34

बात बस इतनी सी थी 34. मंजरी उठकर चलने ही वाली थी, तभी मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी मधुर की कॉल थी । मैं मंजरी के सामने मधुर से बात नहीं करना चाहता था । न ही मधुर से बात करने के लिए मंजरी को केबिन में अकेली छोड़कर बाहर जाना चाहता था । इसलिए मैंने उसकी कॉल काट दी । लेकिन तब तक मंजरी मेरे मोबाइल पर कॉल करने वाले का नाम देख चुकी थी और उसको यह पता चल चुका था कि मधुर ने कॉल की थी । मेरे कॉल काटते ही मंजरी ने मुझसे पूछा ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 35

बात बस इतनी सी थी 35. कुछ दिनों बाद कंपनी की तरफ से मार्केटिंग के एक महत्वपूर्ण काम के मुझे और मंजरी को एक साथ तीन दिन के टूर पर लखनऊ जाने का आदेश मिला । मुझे और मंजरी को इस आदेश का पालन करते हुए लखनऊ जाने में कोई आपत्ति नहीं थी । हालांकि हम दोनों ही अपने मन-ही-मन में खुश थे कि कंपनी के काम के बहाने हम दोनों को एक साथ रहने का मौका मिल रहा था । लेकिन हम दोनों में से किसी ने भी अपने दिल की उस खुशी को अपने चेहरे पर नहीं ...Read More

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बात बस इतनी सी थी - 36 - अंतिम भाग

बात बस इतनी सी थी 36. मंजरी के जाते ही मधुर मुझसे बोला - "चंदन डियर ! आज की रात बदरंग हो चुकी है ! लेकिन इसके लिए तू मुझे गाली मत देना ! मैं पहले ही सॉरी बोल देता हूँ !" "क्या पागलों जैसी बातें करता है ?" "तुझे मेरी बातें पागलों जैसी क्यों लग रही है ?" "पहली बात तो यह है कि तुझे सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैंने उसके साथ रात नहीं, केवल अपना दिन रंगीन बनाने की सोची थी । और अब दिन गुजर चुका है !" "दूसरी बात ?" मधुर ने ...Read More