यह उपन्यास प्रसिद्ध लेखिका वासंती की लिखी हुई है। इस उपन्यास में यह बताया गया है कि हम सब अपने चेहरों को वैसे का वैसा दूसरों के सामने नहीं दिखाते पर उसके ऊपर एक मुखौटा लाल लेते हैं। कैसे मुखौटा कौन सा मुखौटा कब डालते हैं? यह सब जानने के लिए आपको तो यह उपन्यास पढ़कर मालूम करना पड़ेगा। यह पुरानी पीढ़ी बीच की पीढ़ी और आधुनिक लड़कियों और औरतों में परिवर्तन को दिखाया गया है।
Full Novel
मुखौटा - 1
मुखौटा तमिल मूल लेखिका वासंती का परिचय 26.7.1941 मैसूर में जन्मी वासंती शादी हो कर पति के साथ भारत विभिन्न राज्यों में रही हुई है। इनकी उपन्यास 'आकाश के मकान'पर यूनेस्को के सरकार ने पुरस्कृत किया है। इसके अलावा इस उपन्यास का अंग्रेजी, चेक, जर्मन, हिंदी, आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। पंजाब साहित्य अकादमी ने और उत्तर प्रदेश के साहित्य अकादमी ने इन्हें सम्मानित किया है। विभिन्न देशों में आपको भारत के प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। इन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा उपन्यास और कहानी संग्रह तमिल और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे हैं। अभी भी निरंतर लिख रही हैं। ...Read More
मुखौटा - 2
मुखौटा अध्याय 2 "मैं किसी से तुम्हारी जान पहचान कराती हूं।" "अभी मैं शांति से हूं । मेरी शांति पसंद नहीं क्या सुभद्रा ? जरा बताना तो मेरे चेहरे पर हंसी नहीं है क्या ?" "यह तुम्हारा अपना पहना हुआ मुखौटा है। अपने को धोखा देने के लिए हंसती हो।" अब तो यह याद करके भी अचंभा होता है। मेरी पूर्वजों के जींस से यह हंसी मुझे मिली हुई है। सुंदरी बुआ की हंसी। सुंदरी बुआ की आयु अम्मा के बराबर ही होगी । सुंदर, अति सुंदर ! साथ ही उतना ही मीठा गाने वाली महिला। शादियों में नाचते ...Read More
मुखौटा - 3
मुखौटा अध्याय 3 नानी होती तो वह 'कहीं जाकर मरो' श्राप देती। मैं मौन होकर उसे चुपचाप जाते हुए लाइब्रेरी के अंदर घुस गई। "मुझे एक्साइटमेंट चाहिए। हुंह ! " सुंदरी बुआ नाचने जाने के लिए सज-धज कर तैयार रहती । शायद इसीलिए, मुझे कई बार लगता है कि क्या उससे बदला लेने के लिए ही उसका आदमी मरा ? जब तक वे जिंदा रहे उसकी सुंदरता, उसकी योग्यता और उत्साह को वे दबा नहीं सके। उसे एक कोने में पटकने की एक मूर्खतापूर्ण सोच ने ही उन्हें मार डाला। सुंदरी बुआ और रोहिणी में कोई साम्यता नहीं। मिलान करके ...Read More
मुखौटा - 4
मुखौटा अध्याय 4 "सब आराम से कर लेंगे, कोई जल्दी नहीं है । राज खुल कर सबके सामने आ उसको किताब सब निकाल कर देने को बोलना। तीन दिन तक स्कूल नहीं जा सकोगी।“ "क्यों?" "जो बोला है उसे मानो मालिनी", अम्मा बड़े बेमन से बोली। फिर अड़ोस-पड़ोस में देखकर धीमी आवाज में बोली; "यदि घाघरे में दाग लग जाए तो ? सब को पता नहीं चलना चाहिए ! वह शर्म की बात होती है!" "यह क्यों ऐसे आया ?" मैं आश्चर्यचकित थी । "यह सभी लड़कियों को आता है री मेरी मां। तुम्हें कुछ जल्दी आ गया है।" ...Read More
मुखौटा - 5.
मुखौटा अध्याय 5 "आप सिर क्यों मुंडाती हो ? क्यों रंगीन साड़ी नहीं पहनती हो ? आपने माथे पर क्यों नहीं लगाई ? गहने क्यों नहीं पहनती हो ? आप थाली में क्यों नहीं खाती हो ?" एक दिन हमारे पूछने पर नानी मां ने बहुत पिटाई की । "छोटी बच्ची हो तो बच्ची जैसे ही रहो, ज्यादा बड़ी बनने की कोशिश मत करो !" "बच्चों को क्या पता है ? उनको क्यों मारती हो ?" उस रात बड़ी मां का मेरे पास आना, मुझे चिपका कर लेटना मुझे याद आ रहा है। चंद्रमा की चांदनी की रोशनी में जो ...Read More
मुखौटा - 6
मुखौटा अध्याय 6 टिकट लेकर जब हम थिएटर में घुसे तो देखा पिक्चर शुरू होने में अभी देरी थी। यहाँ-वहां युवक और युवतियां झुण्ड बनाकर खड़े बातों में मशगुल थे. किसी ने नलिनी को देखकर हाथ हिलाया। "अभी आती हूं दीदी, तुम अंदर जाकर बैठो।" कहकर उसने एक टिकट मुझे पकड़ा कर ये गई वो गई । मैं थिएटर के अंदर चली गई। अपनी सीट ढूंढ कर बैठते समय मेरे पैर ठिठक गए । मेरी अगली सीट पर से कृष्णन की धीमी आवाज़ मेरे कानों से टकराई, "हेलो मालिनी" ! मेरा शरीर जैसे लोहा बनकर कस गया। खून मेरे ...Read More
मुखौटा - 7
मुखौटा अध्याय 7 "दीदी, कौन आ रहा है देखो !" नलिनी बड़े उत्साह से बोली। मैं अपने विचारों को कर उस तरफ देखने लगी। दुरैई आ रहा था । उसके साथ कोई और भी था। हम लोगों को देखकर हाथ हिलाता हुआ मुस्कुराता पास आ गया। "हेलो !" बोला। "छुट्टी एंजॉय कर रहे हो क्या? नलिनी के कंधे को धीरे से थपथपाया, छोटी साली कैसी है?" बड़े अपनेपन से बोला । "बड़ी होती जा रही है।" कहकर मैं हंसी। फिर जैसे कुछ याद आया, दुरई ने अपने दोस्त से हमारा परिचय कराया। "श्रीकांत, सैन फ्रांसिस्को में रहता है। छुट्टियों ...Read More
मुखौटा - 8
मुखौटा अध्याय 8 "सख्त मतलब ?" "उश्श..! थोड़ा धीरे बात कर! वे सुन न लें।" "सुन ले तो ?" परेशान होकर मुझे देखा। "उनको, सासु मां को, जोर से बात जोर से बातें करना, जोर से हँसना पसंद नहीं।" सासू मां से, पति से उसके डर के बारे में मैं नहीं समझ सकी। पीहर वाले उनके घर जाएं तो वह स्वयं कॉफी बना कर नहीं लेकर आती है। सासु मां यदि देने को बोलें तो ही अपने को कॉफी मिलेगी। यहाँ कोई समस्या तो नहीं, उससे पूछ भी नहीं सकते। उन्होंने उसे कभी पीहर भेजा ही नहीं। उनके घर में ...Read More
मुखौटा - 9
मुखौटा अध्याय 9 ‘तुम्हारी नानी तुम्हारे अंदर से बार-बार झांकती हैं।‘ यह अहंकार नहीं तो और क्या? लड़कियों का अपना आत्मसम्मान होता है, यह सोच ना होना अहंकार नहीं तो और क्या ? जन्म जन्मांतर से एक पर्दे के होने का ही अहंकार है। 'छेड़छाड़ करना यह मेरा खेल है। तुम किस हद तक इस पर्दे में रहती हो इसे देखना मेरा आनंद है।‘ ऐसा एक क्रूर आदमी होने का गर्व है कृष्णन में । मेरे अम्मा के एक मामी थी। उसका नाम मुझे याद नहीं। हमंम्गा थी। देखने में वह साधारण थी। परंतु, वह हमेशा सारे गहने पहने ...Read More
मुखौटा - 10
मुखौटा अध्याय 10 “व्हाट अ प्लेजेंट सरप्राइज !", बड़े उत्साह से कृष्णन बोला। हम दोनों को बारी-बारी से देख से बोला, "यू लुक ब्यूटीफुल ! एक टीनएजर लड़की जैसे लग रही हो, जिसकी शादी भी नहीं हुई हो !" "तुम एक खराब ब्लास्टर हो !", कहकर रोहिणी हंसी। उसके गाल पर कनपटी तक शर्म से गर्म लहू दौड़ गया था । मैं आश्चर्य से उसको देखती रही। "तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था रोहिणी", कृष्णन शरारत से बोला। "बेकार मत बोल", रोहिणी बोली। उनके बात करने में जो घनिष्ठता दिखी, उसने मुझे आश्चर्य में डाला। मुझे लगा मेरे ...Read More
मुखौटा - 11
मुखौटा अध्याय 11 'मैं हत्यारिन हूं' ऐसा मेरी मां अपने शब्दों से व्यक्त कर रही है, मेरे कोमल मन आघात हुआ। उस आघात की याद आज भी मेरे मन में वैसा का वैसा ही है। मेरे पिताजी जब बिस्तर पकड़ लिए थे मेरी मां ने ही उनकी एक छोटे बच्चे की जैसे देखभाल की. मुझे लगा जैसे कमजोर क्षणों में मुझसे जो एक बात कही दी उसका प्रायश्चित ढूंढ रही है । संपूर्णता को प्राप्त कर लिया जैसी एक भावना के साथ बैठी सुभद्रा को देख मुझे आश्चर्य हुआ। इसको लगता है कि इसका इसके पति के साथ जो ...Read More
मुखौटा - 12
मुखौटा अध्याय 12 "आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की ?", अचानक मैंने पूछ लिया। "आपके साथ भी कोई हुआ?", लगता है मेरी अक्ल सचमुच में मेरे बस में नहीं है । वह स्वाभाविक ढंग से हंसा। "नहीं, इतने दिन शादी करना है जैसा लगा ही नहीं । रिसर्च प्रोजेक्ट में बहुत ही डूबा हुआ था। अम्मा जब तक थी बेचारी बोलती रहती, ‘एक बार आकर शादी करके चले जा।‘, मैं आ ही नहीं पाया।" "अभी अम्मा नहीं है क्या ?" "नहीं है। उन्हें गए पांच साल हो गए। उसके बाद इंडिया आने का यह उद्देश्य भी कम हो ...Read More
मुखौटा - 13
मुखौटा अध्याय 13 नलिनी आज सुबह से ही कहीं गई हुई है। लक्ष्मी को जल्दी काम खत्म करने को कर मैं उत्तर स्वामी पहाड़ी पर जाने के लिए रवाना हुई। वहां के पुजारी मुझे पहचान कर हंसे। "आप अकेले ही आए हो क्या?", पूछे। उनका पूछने का मतलब था कि अभी तक तुम्हारी शादी नहीं हुई ! उस पर ध्यान न देकर मैंने कहा, "हां"। भीड़ में यहां के नॉर्थ इंडियंस भी थे। पर्दा लगा कर मुरूगन का अलंकार हो रहा था। (कोई तमिल भजन) ‘तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो’, यह किसी ने गाना शुरू किया। बहुत ही ...Read More
मुखौटा - 14
मुखौटा अध्याय 14 अप्रत्यक्ष रूप से उसने आज्ञा दी ‘तुम नहीं बोलोगी।‘ कृष्णन 4 दिन में अमेरिका चला हमारा संबंध सीरियस वाला नहीं है। हम दोनों के परिवारिक जीवन इससे बाधित नहीं होंगे । लगा जैसे यह करीब-करीब सुभद्रा जैसी बात कर रही है । परंतु, सुभद्रा जैसे सिद्धांत बताना इसको नहीं मालूम। कृष्णन का फैलाया जाल है यह। यह प्रेम के लिए तड़प गई है ऐसा उसे अंदाजा है। ‘यह शरीर जो है सिर्फ एक कपड़ा है, इसको कोई महत्व नहीं देना चाहिए’ ऐसे तत्व की उसने बातें की होगी, इसकी सुंदरता की तारीफ करके। मन में चल रहे ...Read More
मुखौटा - 15 - अंतिम भाग
मुखौटा अध्याय 15 हम सबको वहां देख "व्हाट ए प्लेजन्ट सरप्राइज !" कृष्णन बोला। मैं जानती थी वह जानबूझकर है । "मीट माय वाइफ !", उसने बड़ी अदा से अपनी पत्नी उषा का हम सबसे परिचय कराया। मेरे आशानुरूप ही उषा एकदम किसी गुड़िया जैसी थी। कृष्णन रोहिणी की तारीफ़ में "यू लुक ब्यूटीफुल" बोल रहा था। दुरैई संकोच भरी नज़रों से मुझे देखा। जैसे कह रहा हो ‘मैंने नहीं बुलाया’। "हम आपके साथ बैठे सकते हैं क्या?", आकर्षक शैली में कृष्णन बोला। "ओ श्योर, प्लीज !", दूसरा कोई चारा ना देख दुरई बोला। कृष्णन, रोहिणी और नलिनी के बीच ...Read More