महाकवि भवभूति भारतीय साहित्य एवं संस्कृति की अमर विभूति हैं। उनका साहित्यिक अवदान न केवल एक कवि एवं नाटकार के रूप में वरन् एक महान प्रेरक के रूप में भी हमारे स्वर्णिम इतिहास का अविस्मरणीय अध्याय है। भवभूति अपने युग के एक कुशल कल्पनाकार, समाजशिल्पी, प्रयोगधर्मी रंगकर्मी एवं उत्कृष्ट नाटककार हैं। अपने समय के एक क्रान्तधर्मी युगदृष्टा की तरह उन्होंने एक सम्पूर्ण युग जिया। राजाश्रय परम्परा में उनका विश्वास न था, उन्होंने अपने नाटकों का सृजन एवं उनका मंचन जनता के बीच शुरू किया। जनहृदय के साथ अपनी पीड़ा का तादात्म्य स्थापित कर उन्होंने करुणरस को जो ऊँचाईयाँ प्रदान की, उसकी अनुकृति साहित्य-जगत् में अन्यत्र कम ही देखने को मिलती है। भवभूति की जीवनगाथा को उपन्यास के ताने-बाने में बुनकर श्री रामगोपाल भावुक ने अपनी कल्पना शक्ति की छटा का श्रेष्ठ परिचय प्रस्तुत किया है। भावुक ने भवभूति के समय को यहाँ साकार कर दिया, जो पात्र और चरित्र कथानक की विकास-यात्रा से यहाँ जुड़ते चले गये हैं। वे कागज की सतह पर सजीव हो उठे हैं।
Full Novel
महाकवि भवभूति - 1
महाकवि भवभूति उपन्यास लेखक रामगोपाल भावुक 000 संपर्क000 संपर्कः कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला गवालियर (म0प्र0) पिन- 475110 मोबा- 09425715707जपूंतप तंउहवचंस 5/हउंपण्बवउ सम्पादकीय भारतीय साहित्य वाड़्मय की विश्व फलक पर अपनी एक पृथक् पहचान है, जिसमें संस्कृत-साहित्य एवं मनीषियों को विलोपित कर दिया जाए, तो इसका उद्गम स्रोत खोज पाना असंभव हो जाएगा। संस्कृत-साहित्य की विविध विधाओं नाट्य, काव्य, पद्य, गद्य, चम्पू, रूपक, प्रहसन, भाण आदि की विस्तृत परम्परा तथा विपुल साहित्य भण्डार प्राप्य है। इनमें भी खयतनामा हस्ताक्षरों का नाम लिया जाए, तो हमें अत्यन्त गर्व होता है कि इनकी एक ...Read More
महाकवि भवभूति - 2
युगदृष्टा पद्मावती सिन्धु और पारा नदी के संगम के पूर्वोत्तर की पद्मावती नगरी का यह एक ऐसा स्थल है ,जो भारतवर्ष के राजमार्ग से जुड़ा हुआ है। इसीलिये यहाँ आने-जाने वालों का जमघट बना रहता है। इस स्थल पर हमेंशा कुछ राहगीर विरमाते मिल जायेंगे। जन सामान्य को इस नगर से कोई संदेश कहीं भी भेजना हो तो इस स्थल पर कोई न कोई ऐसा सूत्र मिल जायेगा कि आप वहाँ से संतुष्ट होकर ही लौटेंगे। यों लम्बे समय से सन्देश भेजने की परम्परा इस स्थल से जुड़ गई है। उसी स्थल पर ग्रीष्म की ...Read More
महाकवि भवभूति - 3
महाकवि भवभूति 3 भवभूति उवाच जब-जब मेरा चित्त उद्धिग्न होता है, मुझे सिन्धु नदी के उसी शिलाखण्ड पर विराम मिलता है। फिर रात बिस्तर पर लेटते ही उन्हीं विचारों में खोया रहा- आज मुझे अपने वचपन की याद आ रही है। मैं भवभूति के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध होता जारहा हूँ। मेरे बाबाजी भटट गोपाल इसी तरह सम्पूर्ण विदर्भ प्रान्त में अपनी विद्वता के लिये जाने जाते थे। मैं अपनी जन्मभूमि में श्रीकण्ठ के नाम से चर्चित होता जा रहा था। मेरे बाबाजी ने शायद मेरे सुरीले स्वर को पहचान कर मेरा नाम श्रीकण्ठ रखा था। मेरे ...Read More
महाकवि भवभूति - 4
महाकवि भवभूति 4 कांतिमय गुरुकुल विद्याविहार भोर का तारा उदय हुआ। भवभूति अपने साथियों के साथ नवचौकिया (नौचंकी) के पास स्नान करने पहँुच जाते। इसी स्थान पर जल ऊपर से नीचे गिरता है। धुआंधार का मनोरम दृश्य देखकर सहृदय जन भाव विभोर हुये बिना नहीं रह सकते। वर्षा के मौसम मैं यहाँ खड़े होकर इन्द्रधनुष के दर्शन भी किए जा सकते हैं। ऐसे मनोहारी दृश्य का आनन्द लेने के बाद सभी भगवान कालप्रियनाथ के मंदिर पहुँच जाते। वे धारणा-ध्यान की साधना में लग जाते। इस तरह मंदिर के गर्भगृह में उनका यह कार्य दो-तीन घड़ी तक ...Read More
महाकवि भवभूति - 5
महाकवि भवभूति 5 अपना वैभव कहती पद्मावती सूर्य के उगते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ठीक उसी तरह जब हमारा चित्त प्रकाशित हो उठता है, तब चेतना उत्कृष्ट होकर जन-जन का उपकार करने लगती है। इस तरह जाने क्या-क्या सोचते हुये महाकवि भवभूति की पत्नी दुर्गा मछलियों को चुँगा डालने से निवृत्त होकर घर चल दीं। पथ में बबूल के पेड़ की उथली छाया में सुमंगला चीटियों को मिष्ठान से भरपूर आटा डाल रही थीं। दुर्गा पास जाकर उनका ध्यान भंग करते हुये बोली- ‘सुमंगला दीदी, आप तो प्रातः से साँय तक इसी ...Read More
महाकवि भवभूति - 6
महाकवि भवभूति 6 उत्तररामचरितम् या प्रायश्चित......... आदमी के मन में कोई नया काम करने की उमंग उठे, समझ लो नये सृजन का बीजारोपण हो रहा है। उस वक्त एक नशा सा चढ़ने लगाता है। एक तड़प मन को बेचैन करने लगती है। ऐसी स्थिति में हम मन की व्यथा उड़ेलने के लिये व्यग्र हो उठते हैैं। उस वक्त किसी से अपनी बात कहकर अथवा लिखकर मन की तरंग को शान्त करने का प्रयास करते हैं। आज भवभूति ऐसे ही विचारों में खेाये हुये थे। सीता की अग्नि परीक्षा वाला प्रसंग मैं महावीरचरितम् में प्रस्तुत कर चुका हूँ। ...Read More
महाकवि भवभूति - 7
महाकवि भवभूति 7 अतीत का झरोखा मालतीमाधवम् शोभयात्रा में समग्र जीवन की झांकी संयुक्तरूप से एकरस होकर मुखरित हो उठती है। विविधता में एकता के दर्शन का आनन्द शोभायात्रा से मिलता है। किसी लेखक अथवा रचनाकार को अपने सृजन पर पुनर्विचार अवश्य ही करना चाहिये। मेरा आग्रह है कि वे अपने लेखन पर एक बार पुनर्दृष्टि डालकर देखें और यह सुनिश्चित कर लें कि वर्तमान में उसमें कही बातों का मूल्य यथावत हैं या नहीं। क्या वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका लेखन उतना ही सटीक है, जितना कि लेखनकाल में था। सही सोचकर भवभूति अपने नाटक मालतीमाधवम् पर पुनर्विचार ...Read More
महाकवि भवभूति - 8
महाकवि भवभूति 8 सूत्र-संकेत की भाषा राजा महाराजाओं के उल्लेखनीय विशिष्ट कार्य ही इतिहास नहीं होते। जनजीवन से जुड़े अघ्याय भी इतिहास की परीधि में आते हैं। इन दिनांे एक प्रश्न मेरे चित्त् को झकझोरता रहता है कि भवभूति के समय में व्यापार व्यवस्था किस प्रकार की रही होगी ? इस प्रश्न को हल करने के लिये याद आने लगते हैं बंजारा जाति के लोग। उन दिनों घुमन्तु (यायावर) प्रवृत्ति के व्यापारियों को लोग बंजारे ही कहा करते थे। प्राचीनकाल से ही व्यापार करने के लिये बंजारे अपने पशुओं पर माल लादकर देशाटन किया करते थे। ...Read More
महाकवि भवभूति - 9
महाकवि भवभूति 9 रचनाधर्मिता के आइने में रंगकर्म जब-जब हम किसी को सीख देने की आवश्यकता अनुभव करते हैं तब-तब हमारे समक्ष यह प्र्रश्न आकर खड़ा हो जाता है कि हम किन शब्दों का उपयोग करें, जिससे उस बात के महत्व को समझ कर वह व्यक्ति चरित्रवान बन जाये। यही सोचते हुये दुर्गा अनुभव कर रहीं थी , आज जब गण्ेश घर आया उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उससे यह सब देखा न गया तो वह उसके कक्ष के दरवाजे पर जाकर बोली- ‘घर में तुम्हारा इस तरह आना शेाभा नहीं देता।’ गण्ेाश उनके पास आकर ...Read More
महाकवि भवभूति - 10
महाकवि भवभूति 10 महाकवि भवभूति और महाराजा यशोवर्मा जब जब चिन्तन नीति-अनीति का विश्लेषण करने के लिये प्रवाहित होता है तब तब चेतना निर्णायक भूमिका का निर्वाह करने में गर्व का अनुभव करती है। आज भवभूति का चिन्तन, रचनाधर्मिता से पृथक होकर वर्तमान के इर्द-गिर्द ताने-बाने बुनने में लगा था। पद्मावती नरेश वसुभूति को अपनी शक्ति पर अगाध विश्वास हो गया तो उन्होंने गणपतियों के वर्चस्व को पूरी तरह नकार दिया और सेनापति के स्थान पर विक्रमवर्मा को नियुक्त कर दिया। यूँ तो गणपति पहले से ही शासन व्यवस्था से दूर हो गये थे लेकिन इस व्यवस्था ...Read More
महाकवि भवभूति - 11
महाकवि भवभूति 11 भवभूति के कालप्रियनाथ्र दुर्गा आज पहली बार पार्वतीनन्दन जी के घर जा रही थी। चित्त में द्वन्द्व चल रहा था- कहीं मेरा विवाह पार्वतीनन्दन के साथ हो गया होता तो- अरे! हट, यह कैसे संभव था? चाहे प्राण ही चले जाते, मैं वहांँ एक पल भी नहीं रह सकती थी। आज उसी देहरी पर अपनी याचना लेकर जा रही हूँ। यही सोचते हुये दुर्गा ने उनका दरवाजा खटकाया। दरवाजा पावर्तीनन्दन ने ही खोला। दुर्गा को सामने देखकर आश्चर्य चकित रह गये। मुँह से शब्द निकले- अरे आप! दुर्गा जी।’ दुर्गा ने संक्षेप में उत्तर दिया-‘ ...Read More
महाकवि भवभूति - 12
महाकवि भवभूति 12 दर्शकदीर्धा से महावीरचरितम् पद्मावती नगरी में नाट्यमंच की सजावट देखते ही बनती थी। मृण्मूर्तियें से उसकी सजावट युग-युगों की कहानी कह रही थी। पत्थर पर उकेरी गईं प्रतिमायें अपनी अलग ही कहानी प्रदर्शित कर रही थीं। नाग राजाओं के इष्ट देवों की मृण्मूर्तियों से इसे सजाया गया था। भगवान विष्णु की मृण्मूर्ति अपनी अलग ही कथा कहती प्रतीत हो रही थी। शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय तथा मणिभद्र की मूर्तियाँ इतिहास का अपना अलग ही मंतव्य दे रही थीं। आगन्तुक अपने-अपने स्थान पर उपस्थित हो गये। नगर के राजा वसुभूति भी मंच पर विराजमान हो ...Read More
महाकवि भवभूति - 13
महाकवि भवभूति 13 भवभूति का कन्नौज प्रस्थान श्रेष्ठः परमहंसानां महर्षीणां यथाडि.गराः। यथाथर््ानामा भगवान् यस्य ज्ञाननिधिर्गुरुः।। यह प्रसिद्ध श्लोक ध्यान में आते ही महाराज यशोवर्मा सोचने लगे- महाकवि भवभूति गुरुदेव ज्ञाननिधि के शिष्य हैं। आज यह विद्याविहार उन्हीं के कारण सम्पूर्ण देश में शिक्षा का केन्द्र बना हुआ है। विद्याविहार के मंच पर कालप्रियनाथ के यात्रा उत्सव में महावीरचरितम् के मंचन से सिद्ध है कि यहाँ नागवंश के समय से ही यह परम्परा रही है। जिस दिन से यात्रोत्सव शुरू हुआ होगा, यह मंच भी उसी समय निर्मित किया गया होगा। इसका अर्थ है यह मंच इसी मंदिर का समकालीन ...Read More
महाकवि भवभूति - 14
महाकवि भवभूति 14 भावनाओं पर प्रहार शम्बूकवध कन्नौज पहंचकर राजकवि वाक्पतिराज अगवानी की। वाक्पतिराज तो उम्र में बहुत छोटे थे, पर भवभूति अपने स्वभाव के अनुसार उन्हें मित्र का दर्जा देने लगे थे। धीरे-धीरे उनसे मित्रता का भाव दृढ होता जा रहा था। भवभूति एक ऐसे पड़ाव पर आकर ठहर गये थे, जहाँ उनका चित्त कहीं भी नहीं टिक रहा था। इन दिनों मन बहलाने के लिये विचारों के गहरे सागर में डुबकियाँ लगाने का प्रयास कर रहे थे। इसी समय वाक्पतिराज ने दरवाजा खटखटाया। भवभूति ऊँचे स्वर में बोले- ‘चले आओ यहाँ तो हर ...Read More
महाकवि भवभूति - 15
महाकवि भवभूति 15 संवेदनाओं का संदेशवाहक संदेश से जीवन में समग्रता बनी रहती है। जीवन के विकास में संदेश की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य में इसका मूल्य और अधिक बढ़ जाता है। संदेश वाहक पद्मावती नगरी को देखने की उत्कण्ठा लिये कन्नौज से रवाना हो गया। उन सभी बातों को सहेजकर रखने लगा जो उसने पद्मावती के बारे में सुन रखी थी। महाराज यशोवर्मा अपनी राज्यसभा में पद्मावती की प्रशंसा करते हुये तृप्त नहीं होते। प्रकृति के सुरम्य दृश्य पद्मावती की धरती ने अपने अन्तस् में छुपा रखे हैं। उन्हें देखने का आज यह अवसर ...Read More
महाकवि भवभूति - 16 - अंतिम भाग
महाकवि भवभूति 16 वानप्रस्थ आश्रम का पड़ाव कश्मीर कश्मीर का प्रश्न आते ही पद्मावती के लोग कश्मीर के बारे में सोचने लगे - आश्चर्य की बात यह है कि किस तरह लोग वहाँ बर्फ से ढके घरों मंे रहते होंगे। जब बर्फ जम जाती होगी तो लोग किस तरह उस पर चलतें-फिरते होेंगे। सुना है वहाँ बहुत ही अधिक सर्दी पड़ती है। इतनी विकराल सर्दी में क्या जीवन अस्त-व्यस्त नहीं हो जाता होगा? ऐसे मौसम में हमारे महाकवि वहाँ कैसे रह पायेंगे? वहाँ के लोग तो रहने के अभ्यस्त हैं। इन्हें तो वहाँ का नया-नया अनुभव होगा। दिनभर लोगों ...Read More