लिखी हुई इबारत ( लघुकथा संग्रह )

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1 - चुनौती जूनागढ़ रियासत में जबसे वार्षिक गायन प्रतियोगिता की घोषणा हुई थी संगीत प्रेमियों में हलचल मच गई थी। उस्ताद ज़ाकिर खान और पंडित ललित शास्त्री दोनों ही बेजोड़ गायक थे। परन्तु उनमे गहरी प्रतिद्वन्दिता थी। रास्ट्रीय संगीत आयोजन के लिए दोनों पूरे दम खम के साथ रियाज़ में जुट गए , वे दोनों ही अपने हुनर की धाक जमाने को बेकरार थे। अक्सर दोनो के चेले चपाटों के बीच सिर फुटव्वल की नौबत आ जाती। खान साहब के शागिर्द अपने उस्ताद को बेहतर बताते तो शास्त्री जी के चेले अपने गुरु को। खान साहब जब अलाप लेते तो लोग

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लिखी हुई इबारत ( लघुकथा संग्रह )

1 - चुनौती जूनागढ़ रियासत में जबसे वार्षिक गायन प्रतियोगिता घोषणा हुई थी संगीत प्रेमियों में हलचल मच गई थी। उस्ताद ज़ाकिर खान और पंडित ललित शास्त्री दोनों ही बेजोड़ गायक थे। परन्तु उनमे गहरी प्रतिद्वन्दिता थी। रास्ट्रीय संगीत आयोजन के लिए दोनों पूरे दम खम के साथ रियाज़ में जुट गए , वे दोनों ही अपने हुनर की धाक जमाने को बेकरार थे। अक्सर दोनो के चेले चपाटों के बीच सिर फुटव्वल की नौबत आ जाती। खान साहब के शागिर्द अपने उस्ताद को बेहतर बताते तो शास्त्री जी के चेले अपने गुरु को। खान साहब जब अलाप लेते तो लोग ...Read More

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लिखी हुई इबारत -2

मिठाई रात को सोने से पहले परेश ने घर के दरवाजों का निरीक्षण किया। आश्वस्त होकर अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ा ही था कि तभी सदा के नास्तिक बाबूजी को उसने चुपके से पूजाघर से निकलते देखा। "बाबूजी, इतनी रात को ... ?" उसकी उत्सुकता जाग गई,और उसका पुलिसिया मन शंकित हो उठा। वह चुपके से उनके पीछे चल पड़ा। वे दबे पाँव अपने कमरे में चले गए, फिर उन्होंने अपना छिपाया हुआ हाथ माँ के आगे कर दिया " लो तुम्हारे लिये लड्डू लाया हूँ, खा लो। " " ये कहाँ से लाए आप ?" " पूजा घर से ।" उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा। " ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 3

मुफ़्त शिविर छोटे-छोटे बच्चे,दो वक़्त की रोटी जुटाने की बिटिया की जान पर मंडराता खतरा देखकर परमेसर सिहर उठा। अंततः उसने अपनी एक किडनी देकर बेटी के जीवन को बचाने का संकल्प कर लिया। " तुम तो पहले ही अपनी एक किडनी निकलवा चुके हो,तो अब क्या मजाक करने आये हो यहाँ ?" डॉक्टर ने रुष्ट होकर कहा। " जे का बोल रै हैं डागदर साब,हम भला काहे अपनी किटनी निकलवाएंगे। ऊ तो हमार बिटिया की जान पर बन आई है।छोटे-छोटे लरिका हैं ऊ के सो हमन नै सोची की ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 4

लिखी हुई इबारत बड़ी बेसब्री से बेटे की पसन्द देखने का इंतज़ार डॉक्टर शिल्पा उस लड़की को देखकर चौंक गई। " ये क्या , शिशिर को यही मिली थी ?" सात वर्ष पहले किसी सम्बन्धी की ज़बरदस्ती का शिकार होकर गर्भवती हुई उस किशोरी को उसी ने तो छुटकारा दिलाया था उस मुसीबत से। " ठीक है माना कि लड़की की कोई गलती नहीं थी, पर मेरा ही बेटा क्यों ?" रसोई में आकर वह बड़बड़ाई।उसका मन कसैला हो उठा था। " क्या सारे समाज सुधार का ठेका हमने ही ले रखा है ?" " एक्सक्यूज़ मी । " पृष्ठ से उभरे स्वर को ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 5

9 - दंड गाड़ी से उतरकर , बहुत आत्म विश्वास के साथ धीरज ने अपना चेहरा मोबाइल की स्क्रीन में देखा। नोटों से भरे हुए सूटकेस को हल्के से थपथपाया।आज एक और तथाकथित ईमानदार अधिकारी के ईमान को खरीदने के संकल्प के साथ उसके होंठों पर एक स्मित खेल गई। " सर! शहर में एक नई अधिकारी आई है। उसने हमारे होटल की अवैध रूप से बनी चार मंज़िलों को गिरा देने का आदेश जारी कर दिया है।” सुबह ही उसके मैनेजर ने उसे सूचित किया था।" इतना घबरा क्यों रहे हो वर्मा? कुछ पैसों की ज़रूरत होगी बेचारी को।" उसने मामले ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 6

11 -आईना " हमारे बबुआ की तो एक ही डिमांड की लड़की सुंदर हो ।" एक गुलाब जामुन मुँह में भरते हुए लड़के की माँ ने कहा। " तो हमारी साक्षी कौन सी कम है, देखिये न, कैसे तीखे नाक नक्श हैं ।" उसकी तेज तर्रार सखी रीमा बोल पड़ी। " हाँ वो तो ठीक है, पर रंग थोडा दबा हुआ है। फोटो से तो लगा था की खूब गोरी चिट्टी होगी ।" उन्होंने बात काटते हुए कहा। नाश्ते की प्लेटें तेजी से रिक्त होती जा रही थीं " हमारा बबुआ पचास से ऊपर लड़कियाँ फेल कर चुका है। लगा था शायद इस ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 7

श्वान चरित आज अरसे बाद पंचायत बैठी थी और कई वर्षों ऐसी कोई घटना हुई थी, जिस पर, सभी के बीच व्याप्त आक्रोश को महसूस किया जा सकता था। कोलाहल के बीच मुखिया के पदार्पण के साथ ही गुर्राने के स्वर में और बढ़ोत्तरी हो गई। आसन ग्रहण करने के पश्चात मुखिया ने हाथ उठाकर सबको शांत होने का इशारा किया। सभा मे एकदम से शांति छा गयी।तभी धकियाते हुए ' टॉमी ' को लाया गया। " पंचायत की कार्यवाही आरम्भ की जाए। " मुखिया का गम्भीर स्वर गूँजा। ...Read More

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लिखी हुई इबारत - 8

दंश बाबूजी ने बहुत उमंग व आतुरता से दरवाजे पर लगा घण्टी का बटन दबाया। सोच रहे थे, उन्हें अचानक सामने देखकर बिटिया कितनी खुश होगी। कितना समय हो गया उससे मिले। कुछ देर बाद लड़खड़ाते हुए जमाई बाबू ने दरवाजा खोला। मुँह से एक तेज बदबूदार भभका निकला। उसके हाथ में शायद कोई आभूषण था। प्रणाम की मुद्रा में जुड़े उनके हाथ यूं ही रह गए। “बाबू जी आप!” बेटी पर निगाह पड़ी तो कलेजा मुँह ...Read More