चाँद के पार एक चाबी

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चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 1 जब वह मुझे पहली बार मिला था, तब हमारी दुनिया में मोबाइल का आगमन नहीं हुआ था। जब वह दूसरी बार मिला, तब हमारी जिन्दगियों में मोबाइल हवा, धूप,, पानी की तरह शामिल हो चुका था। पहली बार जब वह मुझे मिला था, तो हम दोनों के बीच एक चिट्ठीभर परिचय था। उसने सुदूर एक कस्बा होते गांव से मुझे अंतर्देशीय पत्र लिख भेजा था, जिसमें उसने अपने बारे में जितना अस्फुट-सा कुछ लिखा था, उससे ज्यादा उसने मेरी कहानी के बारे में लिखा था। कह सकते हैं, उसने उस पत्र में

Full Novel

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चाँद के पार एक चाबी - 1

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 1 जब वह मुझे पहली बार मिला था, तब हमारी दुनिया में का आगमन नहीं हुआ था। जब वह दूसरी बार मिला, तब हमारी जिन्दगियों में मोबाइल हवा, धूप,, पानी की तरह शामिल हो चुका था। पहली बार जब वह मुझे मिला था, तो हम दोनों के बीच एक चिट्ठीभर परिचय था। उसने सुदूर एक कस्बा होते गांव से मुझे अंतर्देशीय पत्र लिख भेजा था, जिसमें उसने अपने बारे में जितना अस्फुट-सा कुछ लिखा था, उससे ज्यादा उसने मेरी कहानी के बारे में लिखा था। कह सकते हैं, उसने उस पत्र में ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 2

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 2 इस बार तो मैं सचमुच अन्दर तक हिल गया। मेरे सामने ऐसा यथार्थ था, जो मेरे तमाम लिखे-पढ़े को मुुंह चिढ़ा रहा था। यह किताबों से परे, पफैंटेसी से बाहर, सांघातिक अनुभव था, मेरे उफपर घड़ों पानी डालता हुआ। ‘नहीं पिंटू, इसकी कोई जरूरत नहीं हैं।’ मैने उसे बरजने के लिए एक-एक शब्द पर जोर दिया, ताकि वह इस आग्रह से उबर जाय। कप ट्रे में रखकर उसने मुझे कृतज्ञ भाव से देखा और पिफर जैसे उसके अंदर खदबदाती बेचैनी बेसाख्ता बाहर निकल आई, ‘सर, गांव में आज भी कुछ नहीं ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 3

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 3 वह हाई स्कूल, जहां से पिन्टू कुमार ने मैट्रिक किया था अब वह उत्क्रमित होकर इंटर हो गया था, इसी नेशनल हाईवे पर था, जिसके चारों ओर बाउंड्री बन गई थी और सामने एक बड़ा-सा गेट भी बन गया था, जिसके उफपर नीले रंग से स्कूल का नाम लिखा था- उत्क्रमित राजकीय उच्च मध्य विद्यालय, ढिबरी। इस स्कूल के इंटरमीडिएट हो जाने की सूचना से पिन्टू कुमार के अंदर एक गहरी हूक उठी थी और आगे की पढ़ाई न कर पाने का मलाल हमेशा के लिए घर कर गया था। उसने ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 4

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 4 ‘ओह, तो ये बोलिए न!’ पिन्टू इस बार सचमुच मुस्कराया। तारा मुस्कराई नहीं। लेकिन उसके मुखमंडल पर व्याप्त चंचलता गजब ढा रही थी। पिन्टू ने मोबाइल का कवर खोला। पफोरसेप से कुछ चेक किया, पिफर बोला, ‘टाइम लगेगा। मोबाइल छोड़ जाइए तो बना देंगे।’ ‘ठीक है। चार बजे तक बना दीजिएगा।’ स्वयं ही मियाद तय करती तारा कुमारी पलटी और सड़क किनारे खड़ी अपनी साइकिल की ओर बढ़ गई। पिन्टू अवाक तारा कुमारी को देखता रहा। सपफेद सलवार, ब्लू कुर्ता, सपफेद चुन्नी में चपल चंचला तारा कुमारी अपनी दो चोटियों को ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 5

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 5 पिन्टू के पास कुल जमा-पूंजी सौ का यही नोट था और वह दिगंबर मिश्रा को दे दे, ऐसा सोचना ही कष्टकर था। तब? कहां से लाये वह सौ रुपए? ठीक इसी वक्त उसकी छठी इंद्री जागृत हुई और उसने अंधेरे में तीर दाग दिया,‘ए बाबा, लाइए न सौ रुपया उधर1 एकाध् दिन में दे देंगे।’ पिन्टू के लहजे में निहोरा था। रमेश पांडे ने मन ही मन मजा लेते हुए चुटकी ली,‘स्साला, कहां तो दारू पिला रहा था, कहां उधर मांगे लगा। तुमरा कौनो भरोसा ना है।’ ‘बताइए, दीजिएगा कि नहीं?’ ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 6

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 6 ‘इसका बाप अपने आपको बड़का बाभन बूझता है। सरयूपारी। क्या तो का बिआह सरयूपारिये में करेगा!’ रमेश पांडे ने पिच्च से खैनी के साथ ही जैसे तिताई भी थूकी, ‘बाभनो सब में कम घोर-मट्ठा नहीं है।’ पिन्टू का चेहरा स्याह पड़ गया। वह जो उसके अंदर जादू-सा जगा रहा था, तिरोहित होता-सा जान पड़ा। उसने कांउटर कसकर पकड़ लिया। पैर जमीन पर जमाया, गोकि खुद को जमीन पर लाने की कोशिश कर रहा हो। सायास खिंच गई चुप्पी के इस पार पिन्टू था, तो उस पार रमेश पांडे थे। भारी मन ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 7

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 7 पिन्टू की इच्छा हुई, पूछे, ‘देर न होती तो कुछ देर रुकती क्या?’ तारा कुमारी जा चुकी थी। प्रश्न प्रश्न ही रह गया था। खुद से प्रश्न करते, खुद ही उत्तर देते पिन्टू का मन किसी काम में नहीं लग रहा था। यहां तक कि कोई किताब उठाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी। बस दो दूनी चार आंखें, आंखों में तिर-तिर जातीं और वह आंखें मूंदकर उस सिहरन को महसूस करता। इसी मनःस्थिति के बीच ही रजवा की आवाज आयी, ‘भइया हो, मुखिया जी आपको बुला रहे हैं।’ पिन्टू ...Read More

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चाँद के पार एक चाबी - 8 - अंतिम भाग

चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 8 मां अध्कच्ची नींद से अकबकाकर उठी। पिन्टू ने मां को देखा। की आंखों में दहशत थी। इस दहशत ने उसे भी गिरफ्रत में ले लिया। दरवाजे पर पिफर ध्म्म-ध्म्म हुई। वह उठा। लपककर दरवाजे तक आया। दूसरी ओर से कोई चीखा, ‘खोलता है दरवाज ...Read More