पिछले करीब डेढ़ बरस कुछ ठीक बीते थे। खाने-पीने रोज की ज़रूरतों की चीजें ज़्यादा आसानी से मिल जा रही थीं। हम दोनों बहनों, भाई की स्कूल की फीस भी आसा0नी से जाने लगी थी। इसके साथ ही एक और बात हो रही थी कि मेरी पढ़ाई अब डिस्टर्ब होने लगी थी। क्योंकि अब मेरा थोड़ा बहुत नहीं कई-कई घंटे, दिन हो या रात फ़ोन पर बातें करते बीतता था। रात चाहे दस बजे हों या ग्यारह-बारह या फिर दो मेरे मोबाइल की घंटी बजती रहती थी। मैं आने वाली इन कॉल्स को चाह कर भी इग्नोर नहीं कर सकती थी। क्योंकि आखिर इन्हीं कॉल्स के कारण ही तो डेढ़ बरस से दिन अच्छे बीतने लगे थे। तो आखिर इनको इग्नोर करके अच्छे बीतते दिनों को खराब क्यों करती और कैसे करती। इसलिए घंटी किसी भी समय बजे मैं उस कॉल को लपक कर रिसीव करती। मेरे इस काम में रुकावट न आए इस गरज से घर के बाकी लोगों से अपने को अलग-थलग कर लिया था। खाना सबसे अलग खाने लगी थी। यहां तक कि बाथरूम में भी मोबाइल अपने से अलग न करती।
Full Novel
मैं, मैसेज और तज़ीन - 1
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग एक पिछले करीब डेढ़ बरस कुछ ठीक बीते थे। खाने-पीने रोज ज़रूरतों की चीजें ज़्यादा आसानी से मिल जा रही थीं। हम दोनों बहनों, भाई की स्कूल की फीस भी आसा0नी से जाने लगी थी। इसके साथ ही एक और बात हो रही थी कि मेरी पढ़ाई अब डिस्टर्ब होने लगी थी। क्योंकि अब मेरा थोड़ा बहुत नहीं कई-कई घंटे, दिन हो या रात फ़ोन पर बातें करते बीतता था। रात चाहे दस बजे हों या ग्यारह-बारह या फिर दो मेरे मोबाइल की घंटी बजती रहती थी। मैं आने वाली इन ...Read More
मैं, मैसेज और तज़ीन - 2
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 2 नेहा की बातों के कारण मैं उस दिन देर तक नहीं सकी थी। वैसी बातें मैंने पहली बार की थीं। तमाम बातें पहली बार सुनी थीं। उसकी बेलाग बातों में से जहां कुछ शर्म पैदा कर रही थीं, वहीं कुछ बातें रोमांचित कर रही थीं। अजीब सा तनाव पैदा कर रही थीं। बहुत देर से सोने के कारण सवेरे मां की आवाज़ पर उठ तो गई लेकिन आंखें दिन भर कड़वाती रहीं। दिन भर शाम को पापा डाटेंगे यह सोच-सोच कर भी परेशान होती रही। पढ़ाई में दिनभर मन नहीं ...Read More
मैं, मैसेज और तज़ीन - 3
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग -3 नग़मा की इन सारी बातों को मैंने तब सच समझा लेकिन आज जब चैटिंग की दुनिया का ककहरा ही नहीं उसकी नस-नस जान चुकी हूं तो यही समझती हूं कि उसकी सारी कहानियां झूठ का पुलिंदा थीं। बाकी भी यही करती थीं। महज अपने कस्टमर को बांधे रखने के लिए। मैं भी बंधी रही उसकी बातों में तब तक जब तक कि पहले की तरह बैलेंस खत्म होने के कारण फ़ोन कट नहीं गया। जब बैलेंस खत्म हो गया तो एक बार मैं फिर घबड़ाई की कल फिर पापा कहेंगे ...Read More
मैं, मैसेज और तज़ीन - 4
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग -4 उसकी इस बात से मेरी धड़कन बढ़ गई कि कहीं न कर दे। लेकिन तभी वह बोली ‘ठीक है मैनेज करती हूं। तुम लोग यहीं रुको मैं दस मिनट में आती हूं।’ यह कहते हुए उसने हैंगर पर से जींस और बदन पर से ट्राऊजर उतारा फिर जींस पहनकर चली गई। मेरी आंखों में उसके इस अंदाज पर थोड़ा आश्चर्य देखकर काव्या बोली ‘हे! तापसी इतना परेशान क्यों हो रही है। उसे ऐसे क्यों देख रही थी। उसने कपड़े ही तो चेंज किए थे।’ मेरे बोलने से पहले ही नमिता ...Read More
मैं, मैसेज और तज़ीन - 5
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग -5 मेरे सामने जितनी बड़ी समस्या थी बात करने की उतनी बड़ी समस्या थी मोबाइल को चार्ज रखने की। जब तक बात करती चार्जिंग में लगाए ही रहती थी। मेरे लिए केवल एक बात अच्छी थी कि मेरे दोनों भाई-बहन सोने में बड़े उस्ताद हैं। घोड़ा बेचकर सोते हैं। सुबह उठाने पर ही उठते हैं। मैं इसका फायदा उठाती थी। चैटिंग का यह सिलसिला चल निकला। रात ग्यारह से तीन साढ़े तीन बजे तक बात करती थी। कॉलेज जाती तो भी चैटिंग के लिए वक़्त निकाल लेती। मेरी पढ़ाई-लिखाई यह चैटिंग ...Read More
मैं, मैसेज और तज़ीन - 6 - अंतिम भाग
मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग -6 मैंने पूछा ‘आप पहुंच गए ?’ तो वह बड़ा खुश बोला ‘हां।’ उसे खुशी इस बात की भी थी कि वह एक और कदम मेरे करीब आ गया। मेरा नंबर अब उसके मोबाइल में था। उसने तुरंत पूछा ‘कहां हो तुम ?’ मैंने तुरंत कहा ‘बस पांच मिनट में पहुंच रही हूं।’ वह एकदम उतावला हो उठा कि बताओ कहां हो मैं आ कर ले लेता हूं। मैंने कहा ‘नहीं बस पहुंच ही गई।’ फिर फ़ोन काटकर देखने लगी उसे ध्यान से कि वह वही है जिसे रिंग किया। उसका ...Read More