आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 1. रानी प्रतिदिन अपनी बेटी लाली को अपनी आपबीती कहानी का एक छोटा अंश सुनाती थी और बीच-बीच में उस अंश से सम्बन्धित कई प्रश्न पूछकर उसकी स्मरण शक्ति तथा बौद्धिक क्षमताओं का विकास कर रही थी । कई बार कहानी का कोई पात्र किसी छोटी-मोटी समस्या या गम्भीर विपत्ति में फँसता, तो रानी कहानी से अलग लाली से उस समस्या से निकलने के अन्य संभावित विकल्प ढूँढने के लिए कहती और स्वयं भी ऐसी समस्याओं से निकलने के रास्ते सुझाने में लाली की सहायता करती थी । माँ की कहानियों में नाटकीय संघर्ष
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आधी दुनिया का पूरा सच - 1
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 1. रानी प्रतिदिन अपनी बेटी लाली को अपनी आपबीती कहानी का एक छोटा सुनाती थी और बीच-बीच में उस अंश से सम्बन्धित कई प्रश्न पूछकर उसकी स्मरण शक्ति तथा बौद्धिक क्षमताओं का विकास कर रही थी । कई बार कहानी का कोई पात्र किसी छोटी-मोटी समस्या या गम्भीर विपत्ति में फँसता, तो रानी कहानी से अलग लाली से उस समस्या से निकलने के अन्य संभावित विकल्प ढूँढने के लिए कहती और स्वयं भी ऐसी समस्याओं से निकलने के रास्ते सुझाने में लाली की सहायता करती थी । माँ की कहानियों में नाटकीय संघर्ष ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 2
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 2. अंकल की गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी । ज्यों-ज्यों गाड़ी आगे बढ़ थी, रानी के हृदय में यह विश्वास प्रबल होता जा रहा था कि "माँ मुझे लेने के लिए अवश्य आएगी और मुझे स्कूल के गेट पर खड़ा न पाकर माँ मुझे ढूंढने के लिए स्कूल के अंदर जाएगी। वहाँ भी मुझे न पाकर माँ बहुत परेशान हो जाएगी !" माँ को गंभीर चोटें लगी हैं ! या बेटी को स्कूल में न पाकर कर परेशान होगी ! दोनों ही स्थितियों का विचार करके रानी के चेहरे पर चिंता और घबराहट ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 3
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 3. तीसरे दिन शाम को रानी ने अपनी बाल-बुद्धि से सोची गई युक्ति क्रियारूप देने का दृढ़ निश्चय किया। चूँकि रानी कई दिनों तक वहाँ रहते हुए वहाँ पर होने वाले अधिकांश क्रिया-कलापों से संबंधित अनुमान कर चुकी थी, इसलिए अपनी सफलता के लिए वह पर्याप्त आशान्वित भी थी । अब उसके समक्ष योजनानुसार साहस और सावधानीपूर्वक अपनी युक्तियों को क्रियान्वित करने की चुनौती थी । अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार शाम को भोजन लेकर आने वाले व्यक्ति की आहट सुनकर रानी सावधान होकर दरवाजे के निकट दीवार से चिपककर खड़ी हो ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 4
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 4. रानी को लेकर युवती और उसके पति के बीच बहस छिड़ गई । पति- पत्नी दोनों ही संवेदनशील थे । दोनों ही बच्ची की सहायता करना चाहते थे, किन्तु पति का तर्क था - "किसी अनजान बच्ची को हम अपने घर नहीं रख सकते हैं ! हमें पुलिस को सूचना देनी चाहिए ! बच्ची को सुरक्षित उसके परिजनों तक पहुँचाना पुलिस की ड्यूटी है !" "हम इतने संवेदनाहीन नहीं हो सकते कि इस नन्ही-सी बच्ची को यह कहकर असहाय हालत में छोड़ दें कि यह पुलिस की ड्यूटी है !" युवती ने ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 5
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 5. तीन दिन तक रानी उसी आश्रम में रही । इन तीन दिनों वह अपने घर जाने के लिए प्रार्थना करती रही, लेकिन वहाँ जाना जितना सरल था, निकलना उतना ही कठिन था । रानी ने अपनी प्रार्थना वहाँ की परिचारिका से लेकर वार्डेन और बडे अधिकारियों तक पहुँचायी, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। अधिकारियों की अनुमति के बिना उसका वहाँ से निकल पाना संभव नहीं था और वहाँ से अकेले जाने की अनुमति देने के लिए कोई अधिकारी तैयार नहीं था । चौथे दिन दोपहर के समय रानी ने देखा, एक ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 6
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 6. रानी अपनी भूख से व्याकुल होने पर भी मौन बैठी थी । साथी बच्चों की पीड़ा को समझते हुए उसने सुझाव दिया - "चलो, रसोई में चल कर देखते हैं ! वहाँ कुछ-ना-कुछ तो खाने को मिल ही जाएगा !" प्रतिक्रियास्वरूप सभी बच्चों ने एक साथ फुसफुसाते होते हुए स्वर में कहा - "नहीं ! वहाँ खाने को कुछ मिलेगा या नहीं, पता नहीं ! ... पर पकड़े गए, तो बहुत मार पड़ेगी !" "कल हम पुलिस अंकल को बताएँगे कि ये सब बच्चों को पीटते हैं और भूखा भी रखते हैं ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 7
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 7. लगभग आधा घंटा की यात्रा के बाद गाड़ी एक झुग्गी नुमा घर सामने रुकी । झुग्गी के बाहर अंडे के छिलकों का ढेर चूसी हुई हड्डियों के साथ पढ़ा था। रानी पर अभी अपनी मजबूत पकड़ रखते हुए स्त्री गाड़ी से नीचे उतर पड़ी। रानी भी अपनी इच्छा के विरुद्ध महिला के साथ गाड़ी से उतरी और महिला की मजबूत पकड़ में ही झुग्गीनुमा घर में प्रवेश किया। झुग्गी के अंदर विचित्र-सी दुर्गंध भरी हुई थी । रानी ने दुर्गंध से बचाव करने हेतु अपनी नाक बंद करते हुए महिला से कहा- ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 8
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 8. रानी अौर साँवली पर दिन-रात हर क्षण माई की कठोर दृष्टि का रहता था । माई की अनुपस्थिति में इस कार्यभार का निर्वहन झुग्गी में उपस्थित वयस्क लड़की मुंदरी करती थी, जो झुग्गी के मध्य भाग में उन्हीं के साथ रहती थी । उसके ऊपर माई का विशेष स्नेह था । प्रतिदिन संध्या समय में माई उसको विशेष स्वादिष्ट मिष्ठान देकर प्यार से पुकार कर कहती थी - "मुंदरी ! ले बेटी खा ले !" मुंदरी बड़े गर्व के साथ आगे बढ़कर मिठाई स्वीकारती और साँवली-रानी चुपचाप इस दृश्य को देखती रहती। ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 9
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 9. हृदय में भय और विवशता तथा चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान लेकर आज का झुग्गी के उस प्रतिबंधित भाग में प्रवेश हुआ था, जिसमें झाँकना भी आज से कुछ दिन पहले तक उसके लिए वर्जित था। इधर साँवली को लेकर रानी का मन:मस्तिष्क भिन्न-भिन्न प्रकार की होनी-अनहोनी आशंकाओं से भर रहा था । रात गहराने लगी थी, किन्तु रानी की आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। रानी की आँखों से नींद खली उड़ते देखकर माई ने उसको अपने पास झुग्गी के बाहरी खुले भाग में बुला लिया था, जहाँ बैठकर माई सिगरेट ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 10
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 10. कुछ दूर पैदल चलकर रानी मुख्य सड़क पर आ गयी, लेकिन रात होने के कारण उसे बस या यातायात का अन्य कोई सार्वजनिक साधन नहीं मिल सका। साहस करके उसने स्टेशन तक पैदल चलने का निर्णय लिया और जैसा कि नर्स ने बताया था, स्टेशन की दिशा में पैदल चल दी। पिछले कई दिनों की बीमारी से दुर्बल होने के कारण रानी के शरीर में चलने की शक्ति नहीं थी, लेकिन माई से मुक्ति की आकांक्षा में उसके कदम बढ़ते चले गयै । तीन-चार किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद रेलवे स्टेशन-परिसर ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 11
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 11. रानी आशंकित और भयभीत तो पहले से ही थी, पाँच सितारा होटल ऊँचे शानदार भवन को देखकर उसके कदम ठिठककर वहीं रुक गये । वह आगे नहीं बढ़ सकी। उसके अंत: से अब एक ही मूक स्वर बार-बार उठ रहा था - "अनाथ आश्रम और माई की झुग्गी में से निकलना ही मेरे लिए बहुत दुष्कर था, यहाँ फँस गयी, तो इस शीशमहल से निकलना कितना कठिन होगा ! यहाँ से निकलना तो असंभव हो जाएगा !" रानी के कदम ठिठकते देखकर वार्डन ने डाँटते हुए कहा - "जल्दी-जल्दी कदम उठाओ, नेताजी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 12
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 12. रानी जहाँ बैठी थी, बिना हिले-डुले निष्क्रिय और भाव शून्य मुद्रा में पर बैठी रही । एक क्षण पश्चात् उसके कानों में बालिका-गृह की उसी परिचारिका का पूर्व परिचित आदेशात्मक स्वर सुनाई पड़ा, जिसने पिछली रात रानी को नेता जी से मिलने के लिए कपड़े लाकर दिए थे - "चल उठ ! वार्डन साहब ने बुलाया है ! "मुझे कहीं नहीं जाना है !" रानी ने निराश-उदास लहजे में उत्तर दिया। "कहीं नहीं जाना है ? यह होटल तेरे बाप का है क्या ? जहाँ तू जब तक चाहे रहेगी ! जल्दी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 13
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 13. ब्यूटी के दिए हुए कपड़े पहनते ही रानी के मनःमस्तिष्क में एक कल्पना ने आकार लिया और उसके मुँह से निकल पड़ा - "इस मैडम ने इतने छोटे कपड़े क्यूँ पहनाये हैं मुझे ?" कहते-कहते रानी की आँखों में आँसू बहने लगे । तभी कमरे में आकाश नाम के एक पुरुष ने प्रवेश किया और रानी को अपनी बाँहों में भरकर बोला - "कल रात नेताजी के साथ खूब मजा आया ?" रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अपना विरोध दर्ज कराते हुए उसकी बाँहों से छूटने के का भरसक प्रयत्न ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 14
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 14. चोटिल शरीर पर प्रतिदिन प्रताड़ना सहते हुए रानी की पीड़ा और घृणा कम नहीं हो सकती थी, किन्तु किसी प्रकार के इलाज या दवाइयों के बिना भी उसका शरीर स्वतः ही धीरे-धीरे अपनी क्षतिपूर्ति कर रहा था । वह बिस्तर से उठने और चलने फिरने लगी थी । लगभग एक माह पश्चात् शरीर की चोट काफी हद तक ठीक होने के बावजूद रानी को अचानक चक्कर आने लगा। खाने-पीने से भी अरुचि होने लगी । कुछ भी खाते-पीते ही उलटियाँ होकर सारा खाया-पिया बाहर निकल आता। सारा दिन उबकाइयों में और उल्टियाँ ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 15
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 15. कुछ समय बाद पुजारी जी कोठरी में वापिस आये और रानी से - "बिटिया, मुझे पूछना तो नहीं चाहिए, पर पूछे बिना मन नहीं मानता ! तू अकेली इतने सवेरे यहाँ इस हालत में ... ? तेरे माता पिता ... ? कोई कष्ट ना हो तो मुझे बता देना ? मैं सुरक्षित तुझे तेरे घर पहुँचा दूँगा ! बहुत बुरा समय आ गया है, बहन-बेटी का अकेली चलना किसी संकट से कम नहीं है !" पुजारी जी के अंतिम शब्दों ने 'कोई कष्ट ना हो तो मुझे बता देना' रानी का मर्म ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 16
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 16. चालीस दिन तक मध्य प्रदेश में रहकर रानी के माता-पिता को खोज में असफल पुजारी जी रानी को साथ लेकर वापस दिल्ली लौटने के लिए शाम चार बजे पंजाब मेल में बैठ गये । उस समय रानी का हृदय निराशा के घोर अंधकार में डूबा था तथा आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। उसको कहीं से आशा की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ रही थी। रेल चल चुकी थी। ज्यों-ज्यों रेल गति पकड़ रही थी, मध्यप्रदेश का सब कुछ पीछे छूट रहा था। रुंधे गले से रानी ने खिड़की से ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 17
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 17. अगले दिन उसने समय पर बिस्तर छोड़ दिया और नित्य कर्मों से होकर मन्दिर की सफाई में पुजारी जी का हाथ बँटाने लगी। पुजारी जी ने देखा कि रानी का चेहरा निस्तेज तथा आँखों में चिंता का समुद्र उमड़ रहा था। उसकी ऐसी दशा देखकर पुजारी जी ने उसको स्नेहपूर्वक ले जाकर कोठरी में बिस्तर पर लिटा दिया और बोले - "बिटिया, स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण कोई कार्य नहीं होता ! मन ठीक नहीं है, तो यहाँ आराम कर ! कोई और परेशानी है, तो मुझे बोल ! अपने काका को नहीं ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 18
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 18. रानी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दिये बिना उठकर चुपचाप पुजारी जी पीछे-पीछे चल दी । लगभग एक घंटा पश्चात् वे दोनों एक अन्य अस्पताल में पहुँचे और वहाँ जाकर उस महिला चिकित्सक से मिले, जिससे मिलने के लिए पहली डॉक्टर ने परामर्श दिया था। पुजारी जी ने उस डॉक्टर को रानी की मानसिक और सामाजिक स्थिति से अवगत कराते हुए उससे भी सहायता माँगी, कहा - "डॉक्टर साहिबा, किसी दुष्कर्मी के पाप का फल भुगतने के लिए कम आयु की मेरी अविवाहित बेटी को माँ न बनना पड़े, ऐसा उपचार कर ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 19
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 19 जब मन्दिर के प्रांगण में कार आकर रुकी और उसमें से अर्द्धचेतन को कार से उतारा गया, तो वहाँ पर पास पड़ोस से कई लोग आकर खड़े हो गये । उस समय वहाँ पर खड़े सभी स्त्री-पुरुषों की जासूसी निगाहें पुजारी जी पर टिकी थी और उनके होंठों पर उनकी छिद्रान्वेषी सोच के मिश्रण से उत्पन्न एक ही प्रश्न था - "क्या हुआ है इस लड़की को ?" पुजारी जी ने किसी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। उन्होंने चुपचाप रानी को कार से उतारा और उसको सहारा देते हुए लेकर अपनी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 20
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 20. पुजारी जी के साथ रानी क्रमशः रिक्शा-बस-रिक्शा में यात्रा करते हुए लगभग घंटा पश्चात् जिस गंतव्य स्थान पर पहुँची, वह एक छोटा-सा अस्पताल था । पुजारी जी ने अस्पताल के भवन में अपने साथ प्रवेश करने का संकेत किया, तो रानी ने पुजारी जी की ओर एक बार प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। पुजारी जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चुपचाप चलते रहे । रिसेप्शन टेबल के निकट पहुँचकर पुजारी जी ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा - "डॉक्टर मैडम हैं ?" "डॉक्टर वंदना है ! लेकिन, इस समय उनसे मिलने के लिए इमरजेंसी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 21
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 21. एकाधिक योग्य एवं अनुभवी स्त्री-रोग-विशेषज्ञ के परामर्श से सहमत होते हुए अन्त पुजारी जी ने यही निर्णय लिया कि अब वे रानी का गर्भपात कराने के लिए किसी डॉक्टर से नहीं मिलेंगे, बल्कि उसके हितार्थ उसकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसके प्रसव तक यहाँ से दूर किसी अन्य स्थान पर सर्वथा अपरिचित समाज में जा रहेंगे। अपने निर्णय के साथ पुजारी जी रात आठ बजे मंदिर में लौट आये । पुजारी जी मन्दिर में लौटे, तो रानी ने शिकायत के लहजे में कहा - "काका, आप कहाँ चले ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 22
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 22. मन्दिर के प्रांगण से निकल कर छिपती-छिपाती चलते-चलते पर्याप्त दूरी तय करने पश्चात् रानी सड़क के किनारे एक टीन शेड के नीचे बैठ गयी । धूप तेज थी और वह चलते-चलते थक चुकी थी, इसलिए कुछ देर उसी टीन शेड के नीचे विश्राम करना चाहती थी । लेकिन, कुछ ही क्षणोंपरांत उसने देखा, एक पुलिस जीप उसी दिशा में बढ़ी आ रही है, जहाँ वह बैठी थी । जीप को देखते ही रानी भयभीत हो उठी और शरीर में बची अल्प शक्ति के सहारे पुलिस जीप की विपरीत दिशा में चलने लगी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 23
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 23. दुकान पर चाय-भोजन की तलाश में धीरे-धीरे ग्राहकों का आना आरम्भ हो था ।दुकान के स्तर के अनुरूप वहाँ पर आने वाले सभी ग्राहक दुर्बल आय-वर्ग से संबंध रखने वाले थे। दुकान की स्वामिनी स्त्री ने ग्राहकों की माँग के अनुसार चाय और भोजन बनाना आरम्भ कर दिया। रानी से ग्राहकों को चाय-भोजन परोसने से लेकर उनके जूठे बर्तन धोने तक का कार्य कराया और पारिश्रमिक के रूप में उसको यथोचित समय पर भरपेट भोजन दिया। आश्रय के साथ भोजन पाकर रानी सन्तुष्ट थी और इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दे रही ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 24
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 24. प्रात:काल स्त्री का चिर-परिचित मृदु-मधुर स्वर सुनकर रानी की नींद टूटी, तो आश्चर्य से चौंक कर उठ बैठी - आंटी, आप ! इतनी सुबह ! फिर अंटी कहा तूने ! मौसी बोलने में जीभ जलती है तेरी ? नहीं मौसी, मैं भूल गयी थी ! पर आज आप इतनी जल्दी यहाँ ? क्यूँ ? मैं यहाँ जल्दी नहीं आ सकती ! मौसी, मेरा यह मतलब नहीं था ! पता है मुझे तेरा मतलब ! चल खड़ी हो ! दुकान पर नहीं चलना है ? चलना है, मौसी ! यह कहते हुए रानी ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 25
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 25. एक दिन रानी प्रात: उठी, तो मौसी उसको अपने आस-पास कहीं दिखायी पड़ी। घंटों तक वह मौसी के आने की प्रतीक्षा करती रही। वह प्रतीक्षा करते-करते थक गयी, किन्तु मौसी नहीं आयी । भूख भी लग आयी थी। मौसी के बताए अनुसार रानी को अनुभूति हो रही थी कि भूख उसको नही, बल्कि उसके गर्भस्थ शिशु को लगी है, इसलिए वह बार-बार अपने पेट पर हाथ रखकर मन-ही-मन कह उठती - "मैं तो दिन-भर भूखी रह सकती हूँ ! पर तू अभी बहुत छोटा है न, इसलिए तुझे अभी भूख सहन करने ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 26
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 26. रानी को चन्दू की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उस समय की घटना याद हो आयी, जब उसने पहली बार चन्दू और नन्दू कौ देखा था । उस दिन वह मौसी की दुकान में बर्तन धो रही थी और अचानक उसका ध्यान उन अभद्र-अश्लील शब्दों पर जा टिका था, जो उसको लक्ष्य करके कहे जा रहे थे । अब रानी के मनःमस्तिष्क में बार-बार एक ही प्रश्न उठ रहा था कि जिनको मौसी ने नितान्त अपरिचित राह चलते बिगडैल आवारा लड़कों की भाँति हरामी ! कुत्ते ! आदि गालियाँ ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 27
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 27. बातें करते-करते टिकट-घर पर पहुँचकर चन्दू और नन्दू रानी से बोले - तू यहाँ आराम कर ! सवेरे हम लोग आकर तेरी चाय की दुकान शुरू करवा देंगे !" रानी ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया । रानी की ओर से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में कुछ क्षणों तक वहाँ खड़े रहने के पश्चात् चन्दू और नन्दू चले गये । रानी की दृष्टि अपने आस-पास से गुजरते हुए लोगों की भीड़ पर टिकी थी, किन्तु वह समय भाव-शुन्य पत्थर की मूर्ति बनी हुई थी । इस हाल में ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 28
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 28. प्रसव के एक सप्ताह पश्चात् रानी को अस्पताल से छुट्टी दे दी । अस्पताल से छुट्टी होने के बाद अपने घर जाना रानी के भाग्य में नहीं था । अब उसके पास रहने के लिए निवास स्थान के नाम पर केवल फ्लाईओवर के नीचे का वह स्थान था, जहाँ वह पिछले लगभग एक माह से रह रही थी । अतः अपने नवजात शिशु को लेकर रानी पुन: फ्लाईओवर के नीचे अपने अस्थायी आवास पर लौट आयी। दिसम्बर की ठंड में प्रसूता को नवजात शिशु के साथ फ्लाईओवर के नीचे रहते हुए देखकर ...Read More
आधी दुनिया का पूरा सच - 29 - अंतिम भाग
आधी दुनिया का पूरा सच (उपन्यास) 29. लाली ने शिकायत करते हुए रानी से कहा - "हर दम तेरे साथ रहती हूँ ! थोड़ी देर के लिए भी तू मुझे चन्दू-नन्दू के साथ नहीं जाने देती है ! बच्चों के साथ स्कूल भी नहीं भेजेगी !" लाली की शिकायत सुनते ही उसका उत्तर देने की बजाय रानी की आँखें नम हो जाती थी । एक दिन लाली हठ करके बैठ गयी - "सारे दिन बस तेरे साथ बैठी रहूँ ? बच्चों के साथ भी ना खेलूँ ? चन्दू-नन्दू के साथ ना जाऊँ ? क्यूँ ? जब तक मेरी बात ...Read More