एक बूँद इश्क (1) बहुत ही खूबसूरत अहसास है उसमें खो जाना। एक तरफ हरे-हरे पत्तों की वन्दनवार से सजी, लहराती, घुमावदार, संकरी सड़कें तो दूसरी ओर गहरी खाई से जल कलरव का गूँजता कोलाहल एक बार को दिल कँपा ही देता है। पथरीले पहाड़ों का सीना फाड़ कर मुस्कुराते फूलों के झुंड जब सरसराती हवा से लहलहाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे वह पर्यटकों के स्वागत में संगीत की धुन पर थिरक रहे हों। उस पर अचानक बादलों का भीग कर आसमान पर छा जाना और अपने ही स्याह टुकड़ों पर रीझ कर बरस पड़ना, केवल तन ही
Full Novel
एक बूँद इश्क - 1
एक बूँद इश्क (1) बहुत ही खूबसूरत अहसास है उसमें खो जाना। एक तरफ हरे-हरे पत्तों की वन्दनवार से लहराती, घुमावदार, संकरी सड़कें तो दूसरी ओर गहरी खाई से जल कलरव का गूँजता कोलाहल एक बार को दिल कँपा ही देता है। पथरीले पहाड़ों का सीना फाड़ कर मुस्कुराते फूलों के झुंड जब सरसराती हवा से लहलहाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे वह पर्यटकों के स्वागत में संगीत की धुन पर थिरक रहे हों। उस पर अचानक बादलों का भीग कर आसमान पर छा जाना और अपने ही स्याह टुकड़ों पर रीझ कर बरस पड़ना, केवल तन ही ...Read More
एक बूँद इश्क - 2
एक बूँद इश्क (2) रिजार्ट का वेटर बड़े ही सलीके से कॉफी रख गया है और साथ में नाश्ते आर्डर भी ले गया है। चूंकि रिजार्ट बहुत अलग-थलग और पुराना है इसलिये इसमें कस्टमर ज्यादा नही होते अलवत्ता खाने, नाश्ते का आर्डर लेकर ही तैयार किया जाता है। अभी रीमा ने कॉफी की चन्द चुस्कियाँ ही लीं थीं कि उन्हीं तस्वीरों ने फिर से धमाचौकड़ी मचानी शुरु कर दी है। वह बंद तो पहले भी नही हुई थी हाँ रीमा ने जरुर खुद को फुसलाने के लिये उधर से ध्यान हटाया था। अचानक कंपन इतना तेज हुआ कि हाथ ...Read More
एक बूँद इश्क - 3
एक बूँद इश्क (3) चिड़ियों की चहचहाट से रीमा की नींद खुल गयी है। आसमान पर चाँदी की परत है जो काले बादलों से कलछा सी गयी है और बरसने के लिये गरज रही है। मौसम में एक धुँध है। जिसे देख कर मोर भी कुहुक रहा है। एक तरफ पीहू-पीहू की आवाज़ से लुभा रहा है तो दूसरी तरफ पक्षीयों की चहचहाहट खुशी के कणों को एकत्र कर रही है....दोनों एक दूसरें से प्रतियोगितामें लगे हैं..एक में शहद की मिठास है तो दूसरे में चाश्नी की, एक की सुर साधना सदियों से प्रशिक्षित किसी साधक की लगती है ...Read More
एक बूँद इश्क - 4
एक बूँद इश्क (4) गणेश ने अपनी साँसों को रोक लिया और बस एकटक उसे ही देखे जा रहा उसे समझ नही आ रहा कि वह इस वक्त क्या करे? ये मेमशाव शाधारण औरत नही लगतीं, जरूर कोई बड़ी बात है। लेकिन अब हम कैशे पता करें? हे जागेश्वर बाबा! आप ही कोई राश्ता निकालो।" "आइये मेमशाव वहाँ कोई नही है" गणेश ने हौले से कहा है। नदी की कल-कल की आवाज़ आनी शुरु हो गयी है। उसकी भीगी हवा की फुहार तन-मन सब-का-सब भिगो रही है। गणेश की पुकार जागेश्वर बाबा ने सुन ली है और रीमा पत्थर ...Read More
एक बूँद इश्क - 5
एक बूँद इश्क (5) शंकर ने जल्दी से रीमा को खाट पर लिटाया और पानी का लोटा लेकर गणेश तरफ दौड़ पड़ा। जाते-जाते काबेरी को बता गया- "इनका ख्याल रखना हम आते हैं अभी।" "काबेरी शंकर की दूसरी पत्नी है। पहली पत्नी तो दुधमुँहे बच्चे को छोड़ कर चल बसी थी। तब से लेकर काबेरी ने ही उसको और अपने तीन बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया था। चारों बच्चों में कभी कोई भेदभाव नही बरता गया। बल्कि बिन माँ का संतोष पिछले पाँच बरसों से शहर में पढ़ाई कर रहा है। कहने का तात्पर्य काबेरी बड़े दिल ...Read More
एक बूँद इश्क - 6
एक बूँद इश्क (6) उस मसाले वाली चाय को पीकर उसे बहुत अच्छा फील हो रहा है ठंड भी कम लग रही है, दूसरे काबेरी ने आते ही कमरें में अँगीठी दहका दी थी, जिसमें लाल-लाल अंगारे अभी भी सुलग रहे हैं। उसकी ताप में अलग ही गरमाहट है जो उसने कभी अपने एयर कंडीशनर में भी महसूस नही की। खाने में काबेरी ने मंडवा की रोटी और फाणु ये एक प्रकार की पहाड़ी दाल है जो यहाँ का प्रिय भोजन है, पकाया है। पहाड़ों के दाल, मसाले जो बिल्कुल अलग होते हैं आम-तौर पर इनका दिल्ली में मिलना ...Read More
एक बूँद इश्क - 7
एक बूँद इश्क (7) उसे चिन्ता है कल परेश आ जायेगा और वह वापस दिल्ली लौट जायेगी। इन नये का क्या जो अभी-अभी ही बने हैं? पनपने से पहले ही मुरझा न जायेगें? और फिर कौन जाने कब दोबारा आना हो? लेकिन अब परेश को लौटाना संभव भी नही है। ख्यालों को तिनका-तिनका संजोती रीमा ने तय कर लिया कि आज जी भर जियेगी। काबेरी के परिवार की आत्मियता और उसकी खुश्बू से मन को महकायेगी। गणेश और शंकर से बातों की अंताक्षरी खेलेगी। गणेश ने दो दिन की छुटटी ले ही रखी है सो समय का आभाव भी ...Read More
एक बूँद इश्क - 8
एक बूँद इश्क (8) "करीब पाँच बरस की रही होगी। तान्या नाम था उसका। एकदम गुडिया सी मासूम, मोटी-मोटी चेहरे पर शरारत और गोल मटोल सी, बस रंग शावँला था उशका कृष्णा की तरह। बतूनी तो इतनी कि बश पूछो मत?" गणेश बोलते-बोलते खो गया है। जैसे वह उस सुख के अहसास को ताजा कर रहा हो। करीब पन्द्रह दिन रूके थे वो लोग। रोज तान्या हमारे शाथ खेलने आ जाती, खूब उधम मचाती..कभी कन्धें पर चढ़ती तो कभी मेरा चश्मा उतार कर भाग जाती। चकरघन्नी की तरह घुमाती तब जाकर चश्मा मिलता हमारा...मेमशाव, एक नम्बर की शैतान लड़की ...Read More
एक बूँद इश्क - 9
एक बूँद इश्क (9) परेश ने रिजार्ट के पार्किंग में गाड़ी लगा दी है। सफर लम्बा था और अकेले की बजह से ऊबाऊ भी। इतनी लम्बी ड्राइविंग के बाद वह बहुत खुद को थका हुआ महसूस कर रहा है। हलाकिं गलती उसकी ही है दिल्ली से कोसानी तक सिंगल हैंड गाड़ी चलाना कोई समझदारी की बात नही है। बड़ी बात तो यह है कि वह अपने विजनेस के बिजी शैडयूल को छोड़ कर यहाँ आया है। मगर यह फैसला भी उसी का है। व्यक्ति जो फैसले स्वयं लेता है उससे संतुष्ट भी रहता है और शिकायत भी नही करता। ...Read More
एक बूँद इश्क - 10
एक बूँद इश्क (10) "डिनर में क्या लोगे परेश? रीमा ने काफी पीते हुये पूछा।" "तोरई की दाल और विद स्वीट डिश काउंटर पर नोट करवा दिया था डार्लिग" कहते हुये परेश ने रीमा को एक बार फिर से अपनी गिरफ्त में कस लिया। अचानक इतना प्यार देख कर रीमा आश्चर्यचकित है- "क्या बात है परेश? आज सूरज पश्चिम से निकला है क्या? इतना प्रेम तो कभी न देखा? हनीमून पर भी नही?" जवाब में परेश मुस्कुरा दिया- "जिन्दगी में हर चीज पहली बार ही होती है। समय पर जाग जाना एक सफल इन्सान के लिये फायदेमंद होता है।" ...Read More
एक बूँद इश्क - 11
एक बूँद इश्क (11) क्या मैं जाने से पहले काबेरी काकी और शंकर दादा से नही मिल पाऊँगी? कितना आयेगें सब मुझे? और गणेश दादा? वह तो कितना अपने हो गये हैं? सबसे दूर हो जाना कितना मुश्किल लग रहा है? इन अनकहे पलों का क्या? जो न तो परेश समझेगा और न ही कोई और? मेरी और परेश की परिभाषा को परीक्षा में बदला जाये तो कितनी भिन्न होगी? दूर-दूर तक एक-दूसरे से कोई मेल नही। ईश्वर भी विपरीत व्यक्तित्व को उम्र भर एक ही रस्सी से बाँध कर तमाशा देखता है। ख्यालों के ताने-वानें में घिरी वह ...Read More
एक बूँद इश्क - 12
एक बूँद इश्क (12) उसका बेपरवाह उन्माद जोर-जोर से गरज रहा है। परेश हड़बड़ा कर उठ बैठा है- "रीमा...रीमा.....क्या है तुम्हें???" गणेश बुरी तरह घबरा गया है उसी के लाये तोहफे की बजह से रीमा की हालत बिगड़ी है। वह खुद को अपराधी मान कर काँप रहा है, नदी वाली घटना बिल्कुल ऐसी ही थी। बस इतना शुक्र था आज वह अकेला नही है। परेश ने गणेश को पानी देने का इशारा किया। तब तक रीमा बेसुध होकर परेश की बाँहों में झूल चुकी है। सहारा देकर बैड पर लिटा दिया। गणेश लगातार पानी के छीटें मार रहा है ...Read More
एक बूँद इश्क - 13
एक बूँद इश्क (13) कुशाग्र के क्लीनिक पर परेश और रीमा समय से आ गये हैं। वैसे तो ऑफिस कोई जरुरी फोन सुबह ही आ गया था और उसे दस बजे पहुँचना भी था मगर इस बाबत उसने घर में किसी को कुछ नही बताया है सो उसे यहाँ लेकर आना उसी की जिम्मेदारी है। वह जानता है बात का बतंगड बनते देर नही लगती, ऐसी हालत में रीमा का घर में रहना मुहाल हो सकता है। दूसरे इस वक्त उसे भावात्मक सहारे की जरुरत है। हलाकिं रीमा रात भर चैन से सोई इस बीच उसने कोसानी का कोई ...Read More
एक बूँद इश्क - 14
एक बूँद इश्क (14) परेश की भाभी शुचिता वैसे तो पूरा ध्यान रख रही है रीमा का, लेकिन एक जिज्ञासु है उस भेद को जानने का जो उसके लिये बहुमूल्य खजाना हो सकता है। बेशक हैड ऑफ दी फैमिली तो माँ ही रहेगीं जब तक वो हैं..मगर उसका और रीमा का प्रतियोगियों जैसा रिश्ता है और हर प्रतियोगी जीतने की बजाय दूसरे को हराना चाहता है, यह एक बिडम्बना है। वह उम्र और ओहदे दोनों में रीमा से बड़ी है कुशल ग्रहणी है ऊँचा सम्पन्न मायका है फिर भी वह रीमा से खुद को हल्का पाती रही है। उसकी ...Read More
एक बूँद इश्क - 15
एक बूँद इश्क (15) आज सुबह-सुबह परेश के फोन की घण्टी बज उठी। गणेश का फोन है- "शाब, रीमा कैशी हैं? जब शे गयीं हैं कोई खबर ही नही..हम शब को बहुत याद आती हैं उनकी" गणेश के फोन में न जाने ऐसा क्या है जिसने उसके शरीर में ऊर्जा का संचार कर दिया - "हैलो गणेश...गणेश दादा, कैसे हैं आप? अच्छा लगा आपकी आवाज़ सुन कर....हाँ दादा, रीमा ठीक ही है, अच्छा तो नही कहूँगा।" "क्या बात है शाब? बिटिया ....ठीक तो है न? हमने शंकोच में फोन नही किया..इन्तजार करते रहे, जब बिटिया ने शुध नही ली ...Read More
एक बूँद इश्क - 16
एक बूँद इश्क (16) चार दिन गुजर गये। रोते-मनाते, सुनते-समझते रीमा बच्ची सी हो गयी है। वह रोती, हँसती और फिर उदास हो जाती। कभी कोसानी को मचलती, कभी नींद में बैजू को पुकारती तो कभी काल्पनिक बाँसुरी सुन इठलाती। यह सब असहनीय तो है ही साथ ही सबसे छुपाना भी है। माँ की उम्र नही एक ऐसी घटना को समझना जो वास्तविक तौर पर उनके आस-पास कभी न घटी हो। शुचिता की अन्दरुनी ईर्ष्या भी परेश से छुपी नही है। ऐसे में खामोशी ओढ़ लेना बेहतर है। कुशाग्र से लम्बी और सौहार्दपूर्ण मुलाकात के बाद यही निष्कर्ष निकला ...Read More
एक बूँद इश्क - 17
एक बूँद इश्क (17) "परेश यह बैजू कौन है? रीमा से उसकी मुलाकात कहाँ और कैसे हुई? जल्दी से बात बताओ मुझे?" दिव्या बगैर किसी भूमिका के तड़ातड़ सवालों से उसे पाटने लगी। "रीमा बैजू से प्रेम करती है अथाह प्रेम..वो दोनों एक दूसरे को बेइंतहा प्रेम करते हैं। उनका प्रेम गंगाजल की तरह पाक है दिव्या.." परेश गंभीर है वह सब साफ-साफ बता रहा है बगैर किसी लाग -लपेट के। "यह क्या कह रहे हो तुम परेश? व्हाट ए स्टुपिट एक्ट??? रीमा ऐसा कैसे कर सकती है? वह ऐसी लड़की नही है परेश...मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ। ...Read More
एक बूँद इश्क - 18
एक बूँद इश्क (18) मां परेश और मयंक के बीच लंबा वार्तालाप चला शुचिता जहाँ पर खामोश खड़ी है। तो वह लगा ही चुकी थी अब तो बस आने वाले अपने सुनहरे दिनों के बारे में सोचकर झूम रही है। कोई भी मानने को तैयार नहीं कि परेश सच बोल रहा है सभी को लग रहा है कि वो रीमा को बचाने की कोशिश कर रहा है यही समय है जो शुचिता के लिए बहुत आनंददाई है और यही तो वह चाहती है उस का सपना साकार होने जा रहा है वह खुश है। कोयले को जितना भी तोड़ो ...Read More
एक बूँद इश्क - 19
एक बूँद इश्क (19) एक बार फिर से उन्हीं सर्पीली, घुमावदार और लुभावनी सड़कों पर होती हुई उनकी गाड़ी रिजार्ट'पर जा लगी। गणेश और शंकर पहले से उनकी राह देख रहे हैं। गाड़ी के रुकते ही मिलने को अधीर हो उठे। सब्र का बाँध दोनों ही सिरों से टूटा है। अश्रुधारा रीमा की आँखों मे ही नही है गणेश और शकंर की आँखें से भी झर-झर आँसू बह रहे हैं। दोनों तरफ की निश्छल, पवित्र संवेदनायें सभी पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। बाबूराम समेत परेश भी हतप्रत है। जैसे मायके पहुँचते ही लड़की चिड़िया बन चिहुकंने लगती है ...Read More
एक बूँद इश्क - 20
एक बूँद इश्क (20) उस झोपड़े में आज बहार सी आ गयी। पंखडंडियों से गुजरती छोकरियों ने तो ताकाझाँकी शुरु कर दी है। सबके मन में पूरा यकीन है जरुर शंकर ने अपने बड़े बेटे का ब्याह पक्का किया है। परेश बाहर तख्त पर बैठा है गणेश और शंकर के साथ..रीमा अन्दर काबेरी के पास है। यूँ तो परेश को कभी प्रकृति से कोई खास लगाव नही रहा मगर वह उसका अतीत था आज तो वोह भी उसमें बह रहा है। उसने एक नजर उठा कर चारों तरफ सीधे तने पहाड़ों को देखा...चिड़ियों को देखा किस बेवाकी से पखंडडियों ...Read More
एक बूँद इश्क - 21
एक बूँद इश्क (21) परेश रीमा को एकटक देख रहा है अचानक से उसके अन्दर आये बदलाव से परेश हो गया। उसके अन्दर का प्रेमरस छिटक कर दूर जा गिरा। रीमा के फोन की लाइट चमक उठी, दिव्या का फोन है। यूँ तो वह रीमा का फोन उसके पीछे नही छूता..सो बजने दिया...घण्टी लगातार बज रही है.....परेश ने अपना फोन उठा कर देखा दिव्या की आठ मिसकॉल पड़ी हैं........"ओहहह..शायद वह चिन्तित है,,,,, गलती उसकी नही हमारी है, कल से रीमा और मैंने एक भी बार बात नही की" परेश ने कॉल बैक किया और दिव्या का गुस्सा भी सहा...उसका ...Read More
एक बूँद इश्क - 22
एक बूँद इश्क (22) ये संयोग ही है कि डा. कुशाग्र का एक ही घंटी पर फोन उठ गया। से लंबी बातचीत के दौरान यही निष्कर्ष निकला कि ऐसी स्थिति से घबराना नहीं है कि ऐसी स्तिथी अक्सर आएगी और यह इलाज का एक हिस्सा है जिसके लिए उसको पहले से माइंड मेकअप करना होगा स्थिति इतनी खतरनाक भी नहीं है जितनी की इलाज ना करने की दशा में होगी अच्छा यही होगा धैर्य से काम ले और घबराहट को हिम्मत में बदलें,,,,और फिर, रीमा को अकेले निकलने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्यों नहीं पहले ही उसको स्वेच्छा ...Read More
एक बूँद इश्क - 23
एक बूँद इश्क (23) चुल्लु में नदी का पानी भर कर उसके छीटें मार रहा है..परेश उसके चेहरे को हुये आवाज़ लगा रहा है- "उठो रीमा...देखो कौन आया है?? तुम किसको पुकार रहीं थीं??? उठो..आँखे खोलो....देखो बैजू आ गया रीमा.." और फिर, अचानक रीमा ने आँखें खोल दीं....इन आँखों में किसी की तलाश है....जिसे वह आँखें खोलते ही ढूँढने लगी है....परेश और गणेश बिल्कुल उसके नजदीक ही बैठे हैं उन्हे समझ नही आ रहा इस गुत्थी को कैसे सुलझायें? आखिर कब तक यूँ ही वह रीमा को बार-बार बेहोश होते देखते रहेगें??? अचानक ही सूखे पत्तों पर किसी के ...Read More
एक बूँद इश्क - 24 - अंतिम भाग
एक बूँद इश्क (24) एक दिन पूर्णमासी की रात थी चाँद पूरा चमक रहा था...चार दिन से चन्दा नदी नही आई थी वह बुखार में तप रही थी...दूसरे उसके घर से निकलने पर भी पाबंदी लगी थी......पटवारी उगाही के लिये दूसरे गाँव गया था.....चन्दा बैजू से मिलने को रोई चिल्लाई तो माँ ने तरस खाकर उसे घर से जाने दिया इस शर्त पर कि दो घण्टें में वापस लौट आयेगी। चन्दा नदी किनारें पहुँची तो बैजू पहले से बैठा उसका इन्तजार कर रहा था...उस समय नदी का किनारा इतना सुनसान नही था....अक्सर लोग वहाँ आते थे कुछ घूमने..कुछ भेड़ें ...Read More