वह आवाज़ ठीक वैसी थी मानो किसी चाकू या तलवार को, धारदार बनाने के लिए, किसी पत्थर पर घिसा जा रहा हो। हालाँकि यह आवाज़ बहुत ही धीमे से उभरी थी लेकिन इस सन्नाटे में साफ-साफ सुनी जा सकती थी। उसके कानों ने इसे सुना और वह सिहर उठा। डर किसी लकीर की तरह उसके भीतर खिंचता चला गया। उसने आँखें खोलने की कोशिश की। उसे, हाथ-पैर बांध कर, एक कोने में पटक दिया गया था। चारों तरफ घने अंधेरे के अलावा कुछ नहीं है। उसकी आँखों को भी कस कर बांध दिया गया है शायद। लेकिन अगर वह किसी तरह अपनी आँखें खोल भी लेगा तो भी सिवाय अंधेरे के कुछ नहीं दिखाई देगा। आवाज़ फिर उभरी!
Full Novel
तीसरी रात - 1
तीसरी रात महेश शर्मा पहला दिन, सुबह : 8 बजे वह आवाज़ ठीक वैसी थी मानो किसी चाकू या को, धारदार बनाने के लिए, किसी पत्थर पर घिसा जा रहा हो। हालाँकि यह आवाज़ बहुत ही धीमे से उभरी थी लेकिन इस सन्नाटे में साफ-साफ सुनी जा सकती थी। उसके कानों ने इसे सुना और वह सिहर उठा। डर किसी लकीर की तरह उसके भीतर खिंचता चला गया। उसने आँखें खोलने की कोशिश की। उसे, हाथ-पैर बांध कर, एक कोने में पटक दिया गया था। चारों तरफ घने अंधेरे के अलावा कुछ नहीं है। उसकी आँखों को भी कस ...Read More
तीसरी रात - 2
तीसरी रात महेश शर्मा पहला दिन, शाम : 6 बजे पार्क में वह रोजाना की तरह टहल चुकने के वह अपने पड़ौसी के साथ, बेंच पर बैठा हुआ गप्पे मार रहा था। पड़ौसी उससे एक अजीब सी बात पूछी – -“आपको रात को नींद आसानी से आ जाती है?” -“हाँ! आ ही जाती है – ” वह थोड़ा मुस्कुराया – “लेकिन इधर मुझे देर रात तक जाग कर फिल्में देखने की लत लग गई है। उस वजह से नींद आने में थोड़ी दिक्कत होती है।” -“हाँ यह बात तो है – ” पडोसी बोला – “लेकिन मेरे साथ दूसरी ...Read More
तीसरी रात - 3
तीसरी रात महेश शर्मा दूसरा दिन, दोपहर : 2 बजे खाना खाने के बाद पत्नी को पत्नी को बस से छोड़ कर वह घर लौटा। थोड़ा थका-थका सा महसूस कर रहा था। वह कपड़े बदल कर बिस्तर में लेट गया। थोड़ी देर सोने का मन था। उसने सिरहाने रखी किताब उठाई और पढ़ने लगा। वाकई दो-तीन पन्ने पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखें बोझिल होने लगी। उसने किताब एक तरफ रख कर आँखें मूँद ली। ठीक उसी वक्त उसकी नज़र सामने दीवार पड़ी। वहाँ एक छिपकली थी। पहले तो उसके शरीर में झुरझुरी सी छूट गई। नींद उड़ चुकी थी। वह आँखें ...Read More
तीसरी रात - 4 - अंतिम भाग
तीसरी रात महेश शर्मा तीसरा दिन, सुबह : 7 बजे उसने दरवाजा खोला। सामने मेड खड़ी थी। वह किचन जाकर अपने लिए चाय बनाने लगा। उसने फैसला कर लिया था कि वह मेड की तरफ देखेगा भी नहीं। पता नहीं क्यों उसे ऐसा करने में डर लग रहा था। मेड कमरे में सफाई कर रही थी। उसे अचानक ख्याल आया कि क्यों न वह छिप कर मेड को सफाई करते हुये देखे। यह देखे कि क्या वह उस भारी अलमारी को हिला पाती है या नहीं? और क्या उस अलमारी के यूँ हिलाए जाने पर वैसी ही आवाज़ पैदा ...Read More