आज किसी ने पांच छह लाईन मेंं परिचय माँगा, बड़ी दुविधा में जान आ गई।भला आधी सदी की बात कुल जमा चालीस शब्दों या चार सतरों में कोई कैसे लिख सकता है । जिन्दगी भी ऐसी वैसी नहीं, एकदम ऊबड़ खाबड़।एक पल हँसी तो दो दिन की सिसकियों वाला रोना।हर पल मैलोड्रामा।ऐसी जिंदगी कि कम से कम दस फिल्में बनाने का मसाला समेटे हुए है।तो भई हमने भी तय कर लिया है, लिखेंंगे तो दो सौ पन्ने लिख डालेंगे।अब यह मत कहना कि बोर हो गए।पहली बात तो रब झूठ न बुलाए, बोर हो नहीं सकते और अगर कहीं होने
Full Novel
तानाबाना - 1
आज किसी ने पांच छह लाईन मेंं परिचय माँगा, तो बड़ी दुविधा में जान आ गई।भला आधी सदी की कुल जमा चालीस शब्दों या चार सतरों में कोई कैसे लिख सकता है ? जिन्दगी भी कोई ऐसी वैसी नहीं, एकदम ऊबड़ खाबड़।एक पल हँसी तो दो दिन की सिसकियों वाला रोना।हर पल मैलोड्रामा।ऐसी जिंदगी कि कम से कम दस फिल्में बनाने का मसाला समेटे हुए है।तो भई हमने भी तय कर लिया है, लिखेंंगे तो दो सौ पन्ने लिख डालेंगे।अब यह मत कहना कि बोर हो गए।पहली बात तो रब झूठ न बुलाए, बोर हो नहीं सकते और अगर कहीं होने की .... ...Read More
तानाबाना - 2
तानाबाना – 2 झीनी बीनी चदरिया के ताने की पहले दो तारों की बात मैंने शुरु की थी कि एक तार खट से टूट गया । दूसरा तार उलझ कर स्वयं से ही लिपट गया । यह साल था उन्नीस सौ चालीस का साल जब भारत जो तब हिन्दोस्तान के नाम से जाना जाता था ,में राजनीतिक और सामाजिक उथलपुथल का वर्ष था । एक तरफ आजादी का संघर्ष चरम पर था तो दूसरी ओर मिशनरी तथा ब्रह्मसमाज जैसी संस्थाओंके प्रयासों से भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रचार प्रसार हो रहा था । युवक थोङा बहुत पढकर ...Read More
तानाबाना - 3
तानाबाना 3 यह वह समय था जब एक ओर लक्ष्मीबाई , अहिल्याबाई , देवीचेनम्मा , महारानी पद्मावती वीरता की कहानियाँ घर घर कही सुनी जाती थी पर घर की औरतों को दबा कर रखा जाता । मायके ससुराल कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं थी । इसी कुल की एक महिला की कहानी सुनिए , खुदबखुद उस समय की औरतों की हालत का अंदाज हो जाएगा । इसी परिवार के एक लङके की शादी हुई । वधु सामान्य कदकाठी की साँवली सी लङकी थी । नैन नक्श भी बिल्कुल साधारण । तब दूल्हा दुल्हन को देखने दिखाने का ...Read More
तानाबाना - 4
तानाबाना 4 उस लङकी के इस तरह लापता हो जाने पर चार दिन तो उसकी चर्चा फिर उसे सपने की तरह भुला दिया गया । इस घटना को घटे महीने से एक दो दिन ज्यादा बीते होंगे कि एक दिन पङोस की ताई चूल्हे की आग लेने चौके में आई । आज की पीढी को हो सकता है , बात हजम न हो । लाईटर से या आटोमैटिक गैस चूल्हे जलते देखने वाली पीढी की जानकारी के लिए बता दूँ । इसी इंडिया में माचिस से दिया या चूल्हा जलाना अपशगुण माना जाता था । रसोई का ...Read More
तानाबाना - 5
तानाबाना 5 पास पङोस की हैरानी , चिंता , ईर्ष्या , निंदा चुगली चलती रही । इन से बेपरवाह दुरगी पहले की तरह घर के काम काज में जुटी रहती । दोपहर में थोङा फुरसत होती तो चरखा लेकर बैठ जाती । ये स्वदेशी अपनाओ के दिन थे । जगह जगह विदेशी कपङों की होली जलाई जा रही थी । घर घर चरखे घूम रहे थे । क्या औरतें क्या मरद सब दिन में एक दो घंटे चरखा जरुर कातते । हथकरघे चलने शुरु हो रहे थे । औरतें घर में दरियाँ ,खेस , दोहर बुनती । अपनी ...Read More
तानाबाना - 6
तानाबाना 6 घर की इस बेटी की बात आगे । फिलहाल तो यहीं पाकपटन की बात जारी जाय । इस घटना के सात महीने बीते होंगे कि एक दिन भट्ट बाबा ( यह चारण थे जो परिवार के हर जातक का जन्म लेखा अपनी लाल जिल्द चढी बही में लिख कर रखते । किसी भी वंस का हालउनके खाते में दर्ज रहता ।साल में एक बार जरुर आते । अक्सर लोग इनसे रिश्ता सुझाने के लिए कहते और ये रिश्ता तय करवा भी देते ) के साथ दो लोग आए । एकदम गोरे चिट्टे , दंबे ऊँचे ...Read More
तानाबाना - 7
तानाबाना 7 दिन हफ्तों में बदले , हफ्ते महीनों में और महीने सालों में । सर्दी जाती गर्मी आ जाती और गर्मी जाती तो सर्दी आ जाती । मौसम बदलते रहे । नहीं बदला तो मंगला का पछतावा और उसके कठोर नियम । उसका जमीन पर सोना । शाम को एक समय भोजन करना । चौबीस की चौबीस एकादशी का निर्जल ल्रत , हर एकादशी पर मुंडन सब जारी रहे । सारी जिंदगी उसने नया कपङा नहीं पहना । सारा जेवर पोटली बाँध धर दिया । हाथ नाक कान सब अंलकार विहीन । लोगों में पहले चर्चा ...Read More
तानाबाना - 8
तानाबाना - 8 आप भी सोच रहे होंगे ,क्या कर रही हूँ मैं । देने चली थी परिचय और ले बैठी कहानियाँ कुछ इधर की ,कुछ उधर की । पहले दुरगी और उसकी देवरानियों की कहानी ले बैठी , अब मंगला और उसके तमाम खानदान की । सही हो जी आप बिल्कुल सही । एक परसैंट भी गलत नहीं । पर क्या है न , जब कपङा खरीदने के लिए बाजार जाते है न , बिल्कुल प्योर वाली सिलक का कपङा तो सबसे पहले उसको आँखों से परखते हैं , फिर छूकर देखते हैं । फिर धीरे ...Read More
तानाबाना - 9
तानाबाना - 9 एक तरफ तो सतघरे में गाँव की बारह से सोलह साल की सभी की शादी की तैयारियाँ जोर -शोर से चल रही थी , दूसरी ओर सतघरे की सुरक्षा के लिए शहर को जाती दोनो सङकों पर पीतल के कोके वाले लम्बे - चौङे फाटक लगाए जा रहे थे । पहरेदारी के लिए युवकों की टीमें बनी । जगह जगह गतका और लाठी चलाना सीखने वाले अपना खून पसीना बहाते दिखाई देने लगे । कोई शहर जाता तो वहाँ से आसपास की खबरें साथ चली आती । लोग पहले ही डरे होते ...Read More
तानाबाना -10
lतानाबाना 10 अभी तक आप पढ रहे थे , मंगला अल्पायु में ही विधवा हो गयी । बेटियों के साथ जीवन थोङा पटरी पर आया था कि देश आजाद हो गया । इस आजादी की हमें बहुत बङी कीमत चुकानी पङी । राजनैतिक ,आर्थिक,सामाजिक हर मोर्चे पर लेकिन इससे भी ज्यादा व्यक्तिगत । देश दो भागों में बँट गया । साथ ही शुरु हुआ पलायन जिसका बायोप्रोडक्ट थे साम्प्रदायिक दंगे । भीषण मार-काट मची थी । लोग मर रहे थे । लोग मार रहे थे । अब आगे .... जमना ने दही बिलोने के लिए मधानी डाली ...Read More
तानाबाना - 11
तानाबाना 11 आखिर यह दिन जैसे तैसे बीत गया । जो गुंधा आटा और दही वे साथ आए थे , रात को उसी को जैसे तैसे लकङियां इकट्ठी करके सेका गया । भूखे बच्चों के हिस्से एक एक रोटी ही आई । वह भी किसी के गले लहीं उतरी । उतरती कैसे , न चकला न बेलन न तवा न कोई दाल सब्जी । यहाँ तक कि नमक की डली भी नहीं । कहाँ सारा परिवार दूध , मक्खन का आदी था , यहाँ रोटी भी दुर्लभ हो गयी । किसी परिवार के पास थोङा गुङ था ...Read More
तानाबाना - 12
तानाबाना 12 मंगला की सहारनपुर वाली यह जिठानी उर्फ अफ्रीका वाली याऩी पार्बती यानी अम्माजी । वे मेरी पड़नानी जेठानी थी। सामान्य मंझोला कद । दुबला पतला शरीर । कुछ कुछ सांवला रंग , चेहरा साधारण सिवाए बड़ी बङी आँखों के । आधे सफेद , आधे काले बाल कुल मिला कर एक सामान्य भारतीय महिला पर इसके बावजूद कुछ तो था जो उन्हें भीड़ से अलग बनाता था ।उनके चेहरे पर एक अलौकिक तेज था जो देखने वाले को अभिभूत कर देता । एकदम रिन की चमकार वाली सफेद साड़ी , पफ वाली बाहों और बन्द गले का ...Read More
तानाबाना - 13
तानाबाना 13 अफ्रीकावाली इन ताई जी ने विभाजन से बिखरे इस परिवार को सिर माथे लिया । मिला कर परिवार में पच्चीस लोग थे । उनके लिए हवेली के तीन कमरे खोल दिए गये । खाने पीने की पूरी व्यवस्था की गयी । परिवार के पास अपनी कहने को छत हो गयी । अगले दिन चंद्र और जमना परिवार को यहीं छोङ अबोहर जमीन का कब्जा लेने गये । दो चार दिन की भाग दौङ के बाद उन्हें जमीन का कब्जा मिल गया जिसे किसी को खेती के लिए दे ये लौट आए और रुङकी के पास ...Read More
तानाबाना - 14
तानाबाना 14 प्रसन्नमन से घर लौटे प्रीतम ने जब यह खुशखबरी घर आ बाकी परिवार के लोगों दी तो हर तरफ खुशियाँ छा गयी । औरतों ने आटा भून कर कसार बनाई । पितरों को भोग लगाया और अङोस पङोस में सबका मुँह मीठा कराया । दो महीनों में से एक दिन तो रास्ते में ही टूट गया । बाकी रहे गिनती के उनसठ दिन । बेशक हाथ तंग है पर कुछ तो करना ही पङना है सो परिवार तुरंत तैयारी में लग गया ।इधर मुकुंद ने समधियों से विवाह की तारीख तो पक्की कर ली पर ...Read More
तानाबाना - 15
तानाबाना 15 रवि की जब सगाई हुई , तब वह मुश्किल से पंद्रह साल का था और मंगेतर बारह या तेरह की रही होगी । यह विभाजन वाली आँधी न चलती तो दो तीन साल पहले ही शादी और गौना निबट जाता । पर आजादी का आना तो किसी मुसीबत से कम न था , दंगो फसादों में लुटे - पिटे लाखों करोङो लोग भूख , गरीबी बेरोजगारी और बीमारियों से जूझ रहे थे । अपनी जन्मभूमि से बिछुङे लोग गहरे अवसाद के शिकार हो गए थे । महंगाई अलग जी का जंजाल बन गयी थी । ...Read More
तानाबाना - 16
तानाबाना 16 तब सहारनपुर के लिए एक ही गाङी जाती थी । फिरोजपुर से तीन चलती , वाया फरीदकोट , बठिंडा , पटियाला , अंबाला होती हुई सुबह पाँच बजे सहारनपुर पहुँचती । वहाँ सामने एक और गाङी तैयार खङी रहती । सवारियाँ अपनी अपनी गठरी संभालती भाग कर उस पर सवार हो जाती और गंगा मैया की जय , शिव शंभु की जय ,बम बोले की जय से स्टेशन गूँज उठता । इस गाङी में आधे लोग अपने किसी स्वजन की अस्थियाँ लाल थैली या मटकी में लिए गंगा में विसर्जित कर उन्हें मोक्ष दिलाने ...Read More
तानाबाना - 17
तानाबाना 17 अब बताओ बहनजी हुआ क्या है सास ने तुम्हारी सेवा की तुमने सास की धर्मशीला की आँखों में बङी देर से रोके हुए दो मोती प्रकट हो गये । भाभी ने कमर पर हाथ फेर दिलासा दिया तो एक बार फिर उसकी रुलाई फूट पङी । भाभी जितना चुप कराती , उतना गंगा जमना हर हर करती । सुबकते सुबकते उसने बताया – भाभी वहाँ रोज माँस पकता है ।भाभी धम से जमीन पर बैठ गयी - हे भगवान । बीबी फिर । तू पाँच दिन भूखी प्यासी बैठी रही । खाया पीया नहीं ...Read More
तानाबाना - 18
तानाबाना 18 पाकिस्तान से पलायन से उपजी निराशा ने इस दम्पति को अभी तक अपनी में कस कर जकङ रखा था । रवि एकदम वितरागी हो गया था , जङभरत । कोई उठा देता तो उठ जाता , खिला देता तो खा लेता , कपङे निकाल कर हाथ में पकङा देता तो नहाने चल देता और बाजार के सौदे की परची थमा दी जाती तो ताश खेलते लोगों के सिरहाने जा खङा हो खेल देख रहा होता । अक्सर परची खो जाती । रात को सोता तो डर कर चीखता हुआ उठ बैठता । हाथ में ...Read More
तानाबाना - 19
तानाबाना 19 नियत समय पर रेलगाङी ने सीटी बजाई और धुँआ उगलती हुई पटरियों पर दौङने लगी इधर इन दोनों के मन के घोङे सरपट भाग रहे थे , उधर छुक छुक करती रेलगाङी । कोई स्टेशन आता तो झटके से गाङी रुकती , इधर इनकी सोच के अश्व थमते । कैसे जाएंगे , घरवालों को क्या कहेंगे , रोटी का जुगाङ कैसे होगा , चाचा ने चाची की कितनी धुनाई की होगी , उनके घर पहुँचने से पहले अगर चाचा – चाची वहाँ सहारनपुर पहुँचे हुए तो । सौ तरह के सवालों से उलझते सुलझते रात ...Read More
तानाबाना - 20
तानाबाना – 20 चिट्ठी मिलते ही परिवार में खुशी की लहर दौङ गयी । अंदाजा तो पहले था पर इस चिट्ठी ने पुष्टि कर दी । चलो दोनों सहीसलामत हैं ।पर अब आगे क्या । अंत में फैसला किया गया कि जैसे भी हो , परिवार के बेटा – बहु हैं , सही सलामती की चिट्ठी भेज दी , ये क्या छोटी बात है । सबसे बङी खबर ये कि अब बेटा जिम्मेदार हो गया है । घर गृहस्थी की जिम्मेदारी समझने लगा है । कमा कर खाने लग गया है । मिलने चलते हैं , अगर ...Read More
तानाबाना - 21
तानाबाना 21 इसी उदासी भरे माहौल में पाँच महीने बीत गए और एक दिन सुबह उठी धम्मो को अहसास हुआ कि वह फिर से माँ बनने वाली है । अम्मा जवाई की फिर से बुलाहट हुई और उसने खबर की पुष्टि कर दी तो घर में खुशियाँ लौट आई । पर अब धम्मो बहुत कमजोर हो गयी थी । ऊपर से उसके पैरों और चेहरे पर सूजन आ गयी । पैर मन मन के हो गये । टाँगे मानो बेजान हो गयी । खङी होती तो चक्कर आने लगते । चेहरे पर झांईयाँ हो गई । ...Read More
तानाबाना - 22
तानाबाना – 22 अभी तक आप पढ रहे थे , मंगला और दुरगी की साहस, दृढता और की दास्तांन , अब बात कर रहे थे धम्मो यानी धर्मशीला कि जो धेवती है मंगला की , बेटी सुरसती की और बहु दुरगी की तो इन सबके गुण लेकर आगे बढी धर्मशीला । तेरह साल की अबोध उम्र में विभाजन का दर्द झेला , बारह साल की नासमझी में सगाई हो गयी । पंद्रह साल की हुई तो शादी के बंधन में बंध गयी । बीस साल की उम्र तक पहुँचते पहुँचते दो गर्भपातों का दंश झेलना पङा । ...Read More
तानाबाना - 23
तानाबाना 23 फरीदकोट के उस एक कमरे के घर में बरकतें आने लगी थी । सामने की पर एक नीम का तखता दो कीलों के सहारे टिकाया गया । उस पर कोरे लट्ठे के कपङे पर गहरे गुलाबी और हल्के गुलाबी रंग के धाने से शेड के गुलाब के फूल निकाल , डी एम सी के धागे से क्रोशिया की लेस लगा कर सुंदर कार्निश सजाई गयी थी । उस पर चार थाल दीवार के सहारे सीधे खङे किए गए । उन थालों के आगे छ गिलास उल्टे टिकाए गये और हर गिलास पर एक कटोरी और ...Read More
तानाबाना - 24
तानाबाना – 24 हर की पौङी के घाट पर ही कुछ पल यादें साझा कर खन्नी चाची खन्ना चाचा तो चले गये पर इन सबको यादों के गहरे समंदर में गोते लगाने के लिए छोङ गये । रवि अपने पाकपटन के घर , मंदिर, गली और उस गली के दोस्तों की यादों में खो गया जिनके साथ उसका बचपन बीता था और जवानी आने से पहले ही सब का सब छूट गया । मंगला को अपना सतघरा याद आया तो उसकी आँखें गीली हो गयी । सुरसती अलग बैठी अपनी रुलाई रोकने की असफल कोशिश कर रही ...Read More
तानाबाना - 25
तानाबाना – 25 फरीदकोट लौटने के बाद के कई दिन उसी यात्रा के खुमार में बीते । पति – पत्नि आपस में इस सफर की छोटी से ठोटी बातें याद करते । धर्मशीला की सहेलियाँ जब तब हरिद्वार के घाटों की बात पूछती , गंगा की लहरों के बारे में जानना चाहती । वहाँ के मंदिरों की बातें करती । संध्या आरती की एक एक बात । वहाँ के हाट बाजारों की बातें । कचौरी और रबङी की बातें । जो चूङियाँ और मालाएँ वह इन लङकियों के लिए खरीदकर लाई थी . उनकी बातें । बातें ...Read More
तानाबाना - 26
तानाबाना – 26 धर्मशीला एक ओर बहुत खुश थी कि वह माँ बनने वाली थी , दूसरी बेहद डरी - सहमी और घबराई रहती । पता नहीं इस बार क्या होगा । यह बच्चा दुनिया देख पाएगा या पहले की तरह ... । फिर वह खुद ही अपनेआप को कई कई लानतें डालती हुई इस सोच को झटक डालती , नहीं - नहीं इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा । वह ठाकुरजी से इस सोच के लिए सौ सौ माफियाँ माँगती – हे ठाकुर जी , माफ कर देना । गलती हो गयी । इस नन्हीं सी ...Read More
तानाबाना - 27
तानाबाना – 27 गर्मी के दिन थे । जलता तपता जेठ का महीना । मई खत्म हो चुकी थी जून की आमद हो रही थी । गरमी , उसका हाल न ही पूछा जाए तो अच्छा है । सुबह सवेरे जैसे ही सूरज अपनी चारपाई छोङ धरती की सैर को निकलता , उसका चेहरा तमतमा जाता । गाल लाल सुर्ख हो उठते । जला डालता सामने आती हर चीज को । उसे तपता देख धरती भी तपने लगती । लोग काम के लिए निकलने को होते कि ये सूरज देवता सिर पर सवार हो जाते । लोग अपना ...Read More
तानाबाना - 28
तानाबाना – 28 दिन निकलने के साथ अस्पताल में धीरे धीरे चहल पहल शुरु हो गयी थी साफ सफाई करनेवाले कर्मचारी आ गये थे । इक्का दुक्का मरीज भी दीखने लगे थे । रवि एक कोने में बैठा था । उसका दिल बुरी तरह से धङक रहा था । घबराहट के मारे बुरा हाल था । लेबर रूम में धर्मशीला जितनी जद्दोजद कर रही थी , उतनी ही जद्दोजद इस समय उसके दिमाग में चल रही थी । वह बरामदे में इधर उधर टहल रहा था । मन ही मन सभी देवी देवताओं का स्मरण कर रहा ...Read More
तानाबाना - 29 - अंतिम भाग
तानाबाना – 29( ... यह अंत नहीं है ) उस दिन पूरा दिन रवि का काम में न लगा । वह बार बार धूप का परछावां देख समय का अनुमान लगाने की कोशिश करता । एक बार किसी घङी पहने आदमी से समय पूछ भी लिया पर उस समय तक सिर्फ दो ही बजे थे । अभी तीन घंटे बाकी थे । इतना लंबा समय । वह सोचकर ही परेशान हो गया । उसे यूं परेशान देखकर आखिर उसके साथी ने पूछ ही लिया – “ क्या बात बाबू ? आज बहुत बेचैन दिखाई दे रहे हो ...Read More