औरतें रोती नहीं

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन एक जिंदगी और तीन औरतें मैं हूं उज्ज्वला: जनवरी, 2006 1 मामूली औरतें जिंदगी... कल तक अगर मुझसे बयां करने को कहा जाता, तो कहती- ऊंची-ऊंची राहों पर चलकर एक ठीक से मुकाम तक पहुंचने का नाम है जिंदगी। कल यानी सोलह महीने पहले तक। आज कहने का मन हो रहा है- अनजानी गलियों से गुजरने का दर्दभरा रोमांचकारी सुख जिस अनचाहे और अनचीन्हे मुकाम तक ले जाता है, कमोबेश वही जिंदगी है। मैं पैंतीस के आसपास पहुंची एक मामूली औरत कितनी दार्शनिक बातें करने लगी हूं। मुझे जानता कौन था। कोई नहीं। साथ काम

Full Novel

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औरतें रोती नहीं - 1

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन एक जिंदगी और तीन औरतें मैं हूं उज्ज्वला: जनवरी, 2006 1 मामूली औरतें जिंदगी... तक अगर मुझसे बयां करने को कहा जाता, तो कहती- ऊंची-ऊंची राहों पर चलकर एक ठीक से मुकाम तक पहुंचने का नाम है जिंदगी। कल यानी सोलह महीने पहले तक। आज कहने का मन हो रहा है- अनजानी गलियों से गुजरने का दर्दभरा रोमांचकारी सुख जिस अनचाहे और अनचीन्हे मुकाम तक ले जाता है, कमोबेश वही जिंदगी है। मैं पैंतीस के आसपास पहुंची एक मामूली औरत कितनी दार्शनिक बातें करने लगी हूं। मुझे जानता कौन था। कोई नहीं। साथ काम ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 2

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 2 रंग धुआं-धुआं ऐसा नहीं कि मैं शादी से पहले स्त्री-पुरुष के रिश्ते अनभिज्ञ थी। बहुत कुछ जानती थी। पत्रिकाओं में पढ़कर, अपनी शादीशुदा सहेली से, कॉलेज की साइंस की लेक्चरर मैडम माला बनर्जी से। बल्कि उन्होंने तो एक बार इच्छुक छात्राओं को अलग से बुलाकर सेक्स एजुकेशन पर लंबी व्याख्या दे डाली थी। बहुत खुलकर स्पष्ट शब्दों में बताया कि इंटरकोर्स क्या होता है? स्त्रियां किस तरह गर्भधारण करती हैं और बचाव के उपाय क्या हैं? यही नहीं, बहुत मधुर आवाज में माला मैम ने हम सबको समझाया था, ‘सेक्स बुरी चीज ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 3

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 3 करवट बदलने से टूट जाते हैं सपने मन्नू की नजर से: 1989 मैं बहुत परेशान हूं। मैं शायद अब आ नहीं पाऊंगा...’’ मन्नू हाथ में स्टील की कटोरी में चना-गुड़ लिए खड़ी थी, झन्न से गिर गई कटोरी। चेहरा फक। आंख में टपाटप आंसू भर आए। ऐसा क्यों कह रहे हैं श्याम? उसके पास नहीं आएंगे? उसका क्या होगा? श्याम बैठे थे, आंखें बंद किए। मन्नू उनके पैरों के पास बैठ गई। आंसुओं से तलुआ धुलने लगा, तो श्याम के शरीर में हरकत हुई, ‘‘मत रो मन्नू। मैं रोता नहीं देख पाऊंगा ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 4

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 4 जिंदा हूं जिंदगी श्याम के साथ काम करते थे कमलनयन। क्रांतिकारी किस्म कम बोलने वाले आदमी। बनारस के पढ़े-लिखे। श्याम के वे एकमात्र हमप्याला-हमनिवाला थे। जब भी मौका मिलता, दोनों मिल बैठकर बीयर पीते। कमलनयन का लगाव एक वेश्या के साथ हो गया। वे कभी-कभी उसे घर भी ले आते। शोभा नाम था उसका। उम्र बीसके साल। पतली-दुबली शोभा के चेहरे का पिटा हुआ रंग श्याम को कचोट जाता। भूरे पतले बालों की दो चोटियां बनाकर रखती। उसके शरीर के हिसाब से उसके वक्ष भारी लगते। लगता वक्षों के बोझ तले वह ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 5

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 5 शाम ढलने लगी थी। बस जरा सी देर में अंधेरा हो जाएगा, पांव को पांव नहीं सूझेगा। झरने के पार पहुंचने के बाद श्याम असमंजस में खड़े हो गए, अब आगे कैसे जाएंगे? बहुत दूर उन्हें रोशनी सी नजर आ रही थी। टिमटिमाता हुआ दीया। वे उसी दिशा में चल पड़े। पास गए, तो देखा आठ-दस युवक थे। हाथ में लाठी-भाला लिए। कइयों की दाढ़ी बढ़ी हुई। श्याम डर गए। कौन हो सकते हैं? डाकू-लुटेरे? इनसे जाकर कैसे पूछें कि रास्ता बताओ। श्याम को पास आता देख वे युवक खुद ही चुप ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 6

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 6 हवा, तुम कल आना श्याम के अंदर उबाल सा आ गया। लगा का खाया-पिया उलट देंगे। किसी तरह अपने को समेटकर उठे और बाहर चले आए। तीन दीवारों वाले कमरे का एक हिस्सा भी उनका जाना-पहचाना नहीं लग रहा था। अनजाने से पांच युवक। अपनी धुन में खोए। वे घर से बाहर निकल आए। सीधे कदम स्टेशन की तरफ बढ़े। वहीं प्लेटफॉर्म पर बैठकर उन्होंने खूब उल्टी की और पस्त होकर सीमेंट की बेंच पर लेट गए। घंटे भर बाद होश आया, तो जेब टटोलकर देखा। पर्स था। अठन्नी निकालकर स्टेशन की ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 7

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 7 झूठा समंदर दो दिन पहले रूमा ने जिद की कि वे सप्ताह का राशन, पानी, सब्जी वगैरह लाकर रखें फिर तो उन्हें फुर्सत नहीं मिलेगी। श्याम चलने को हुए, तो उनके साथ मन्नू और बच्चे भी तैयार हो गए। अनिरुद्ध और उज्ज्वला को स्कूटर पर आगे खड़ा कर और सहमती सी मन्नू को पीछे बिठाकर वे पहले ओखला सब्जी मंडी गए और वहां से आई.एन.ए. मार्केट आए। कोने पर ही चाट की दुकान लगती थी। मन्नू के आने के बाद पहली बार उन्होंने उसे बाहर ले जाकर चाट खिलाई। अपने जेठ से ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 8

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 8 कंप्यूटर के स्क्रीन पर उभर आया है एक शख्स पद्मजा रेड्डी: 2000 मेरी जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त है- पद्मजा ने अपनी डायरी में अंग्रेजी में लिखा। मैं बहुत नाखुश हूं। मेरे सभी निर्णय गलत साबित हो रहे हैं। कुछ भी सही नहीं हो रहा। मैंने कभी नानागारू से यह बात नहीं कही, कहूंगी तो उन्हें दुख ही होगा। पर एक बात तो कहना चाहती हूं- मैंने बहुत दुख दिया है आपको। कभी आपकी बात नहीं मानी। आपको हमेशा बुरा कहा। आपने कोशिश की एक अच्छा पिता बनने की। मुझे सही सलाह ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 9

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 9 नदी कब रुकी है उस रात मोधुमिता को लगा था कि अब बहती नदी को नहीं रोक पाएगी। पद्मजा को अपने पास रखना एक छलावा ही था। बेटी को पिता की संपत्ति आकर्षित कर रही है। मां के पास है ही क्या़ फिर ऐसी जिद्दी और अनियंत्रित बच्ची को लेकर वह करेगी भी क्या? बांग्ला समाज में बदनामी तो बहुत पहले हो चुकी। अब रही-सही इज्जत बेटी हाथों में भर-भर उछाल रही है। मोधुमिता की मां का कहना था बेटी को हाथ से जाने मत दो। बेटी के बहाने बालमोहन तुमको पैसे ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 10

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 10 जिंदगी दरिया नहीं उज्ज्वला, मन्नू और पद्मजा: 2006 ‘‘क्या तुम्हारे पिता ने पता लगाने की कोशिश नहीं की कि तुम अब कहां हो, पद्मा?’’ उज्ज्वला ने पूछा जरूर, पर उसे उम्मीद नहीं थी कि इस सवाल का जवाब देने में पद्मजा को इतनी दिक्कत आएगी। जिन नानागारू की बात वो लगातार करती है, जिनसे अलग होने के बाद भी वह महसूस करती है कि उनकी छाया उसके साथ है, उनके जिक्र से इतनी तकलीफ? मन्नू ने फौरन कहा, ‘‘अरे डालो पानी इस सब पर कब से हम यहां बोले जा रहे हैं ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 11

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 11 अनजाने द्वीप यह भी एक दुनिया है! दुनिया जहान से बेखबर लोग। आ रहे हैं, कहां जा रहे हैं? इनके चेहरे इतने पारदर्शी क्यों नहीं? न यात्रा का उत्साह, न ठौर तक पहुंचने का रोमांच। कितना फर्क है विमान और रेल के यात्रियों में। इस समय अगर ट्रेन से जा रही होती, तो साथ बैठी व्यापारी की पत्नी अब तक अपना भूगोल-इतिहास बता उससे भी बहुत कुछ उगलवा चुकी होती। एक ही बार श्याम के साथ रेल में सफर किया था मन्नू ने। बहुत इच्छा थी तिरुपति जाने की। पढ़-सुन रखा था। ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 12

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 12 मेरी जिंदगी के सौदागर हैदराबाद एयरपोर्ट पर लैंडिंग से पहले उज्ज्वला एक से होश में आ गई। अंदर का तापमान बीस डिग्री के आसपास था। ठंड सी लगी, तो अपने हाथों को जीन्स की जेब में डाल वह सीट पर टिक कर बैठ गई। कितना अच्छा लग रहा है यह सफर। शांत और तल्लीन। रास्ते में जरा सा खाया था उसने। अब भूख लग रही थी। पद्मजा से कहेगी, तो नाराज होगी कि तुम वक्त के पीछे चलती हो। कोई बात नहीं। जरा सी भूख बर्दाश्त कर लेगी, तो क्या हो जाएगा। ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 13

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 13 अधूरे ख्वाबों की सिसकियां उज्ज्वला की नजर से: मई 2006 इस तरह ने ली करवट। वो भी सिर्फ चंद महीनों में। कल रात मन्नू ने मुझसे कहा था, ‘‘तुम्हारे अंदर इतनी मजबूत औरत बसती है, मुझे अंदाज नहीं था। तुमने किस तरह हम सबको संभाल लिया!’’ मैं चुप रही। मन्नू बहुत बेचैन है, साफ नजर आ रहा है। कल रात ही मैंने उससे सख्ती से कहा था कि तुम पद्मजा की मां के साथ सोओगी। मन्नू ना-नुकुर करने लगी। मैंने डांट दिया, ‘‘तुम्हें दिख नहीं रहा, वो औरत बीमार ची रही है? ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 14

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 14 तुम्हारे आसमान से मेरी दुनिया दूर है सितम्बर 2004: मन्नू की बदलती सब कुछ अचानक हुआ। मन्नू यूं अकेली घर से निकलती नहीं थी, पर बिना निकले गुजारा भी नहीं। पद्मजा जापान गई है अपना प्रोजेक्ट ले कर। उज्ज्वला सूर्यभान के घर गई है। पता नहीं कब लौटेगी। उसे निकलना ही पड़ा, वो भी अकेले। सुबह ही मन्नू सोच रही थी कि वह भी उज्ज्वला के साथ चली जाती तो कैसा रहता। सूर्यभान की बेटी को वह भी देख आती। सूर्यभान ने उन सबकी पहचान अस्पताल में हुई थी। उनकी तेरह साल ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 15

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 15 भटकती नींदों के सहारे पद्मजा: फरवरी 2007 पहली आर ऑनी से मिली, लगा एकदम अनजाना चेहरा नहीं है। तीसेक साल का होगा। अच्छी लंबाई, एक आम अरबी की तरह खूब गोरा रंग, जरा सी दाढ़ी, एकदम हरी आंखें। उसने बंद गले की शर्ट पहन रखी थी। जैसे ही उसने मुझसे हाथ मिलाया, तेज खुशबू के झोंके ने मेरे दिमाग की नसों को चौकन्ना कर दिया। इस गंध से बाज क्यों नहीं आते अरब के लोग? ऑनी ने बड़े अदब से अपनी लंबी, महंगी, चमचमाती गाड़ी का दरवाजा खोला। मेरे बैठने के बाद ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 16

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 16 दगाबाज आईना वो दिन, वो शाम... मैं थरथराकर उठ गई। मेरा मोबाइल रहा था। थककर रुक गया। दो मिनट बाद मैसेज की खनखन हुई। बेमन से उठाकर देखा- दिल्ली से मेरी अस्सिटेंड आलवी का मैसेज था- तुम्हारा डॉगी टुटू बीमार चल रहा है। चार दिन से खाना नहीं खाया। तुम कब आ रही हो? टुटू का क्या करूं? मैंने दो पल मैसेज पर नजरें गड़ाए रखीं। फिर एक परिचित फोन नंबर मिलाया। ‘‘ऑनी... बिजी तो नहीं... आ सकते हो?’’ ऑनी की आवाज स्पष्ट नहीं थी। वह किसी के साथ था। उसने बेहद ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 17

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 17 मन्नू की जिंदगी का का-पुरुष फरवरी 2007 मीटिंग लंबी चली। महिला कल्याण की मीटिंग जल्दी खत्म हो सकती थी भला? मन्नू सुबह जल्दी जगी थी। इस समय उसे इतनी नींद आ रही थी कि आंखें खुली रखना मुश्किल हो रहा था। मीटिंग खत्म होते ही वह झटपट उठकर बाहर आ गई। सुशील उससे पहले बाहर आ चुके थे। मन्नू को देखते ही उसके पास आ गए और बहुत मुलायम आवाज में पूछने लगे, ‘‘कैसी हो? कुछ सीखने को मिला मीटिंग में। नीरजा जी तो बहुत अच्छा बोलती हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 18

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 18 ये दाग-दाग अंधेरा सप्ताह भर बाद सुशील एक दिन अचानक सुबह-सुबह घर आ धमके। मन्नू उठ चुकी थी। सुशील के चेहरे से लग रहा था कि कोई बात है। तनाव से भरा। मन्नू चाय बना लाई। इन दिनों घर का काम करने के लिए पूरे वक्त की सर्वेंट रख ली है उसने। बच्ची सी दिखने वाली षोडसी संजुक्ता। उसके साथ मन्नू का टाइम भी मजे-मजे में कट जाता है। संजुक्ता सब्जी लाने बाजार तक गई है। इसलिए सुशील का हाथ पकड़ा जा सकता है। बालों में उंगली फेरते हुए पूछा जा सकता ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 19

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 19 सुबह कल होगी चरण ने ठीक घर के सामने उतार दिया। मन्नू उससे फिर कुछ नहीं कहा, घर तक छोड़ने के लिए धन्यवाद भी नहीं। मन बेचैन था। हाथ कांप रहे थे, शरीर थरथरा रहा था। अब गुस्सा भी नहीं आ रहा था उसे। बस समझ नहीं आ रहा था कि इस चक्र से निकले कैसे? सुशील से नाता तोड़ दे या अपने आपको उन सबके रंग में रंग ले? घर के हर कोने में सुशील का अहसास अब भी मौजूद है। उनके आने से पहले मन्नू हर कमरे में चंदन की ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 20

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 20 आवारा नदी के घाट नहीं होते तीन जिंदगियां: जून 2007 एक उमस दोपहरी को ठंडाने में जुटी थीं वे तीनों। जून महीने की शुरुआत थी। सुबह सात बजे से गर्म हवा चलने लगी थी। ऐसा मौसम कि मन डूबने लगे, तन तपने लगे और दुनिया वीरान लगे। लेकिन उज्ज्वला ने सुबह-सुबह ही कह दिया था, ‘‘गर्मी को लेकर कोई शिकायत नहीं करेगा। पानी की कमी है। बस एक बार नहा सकती हो। घर में ए.सी. नहीं है। दस बजे के बाद कूलर चला दूंगी। नाश्ते में वेजीटेबल उपमा और मट्ठा दे रही ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 21

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 21 उस रात की सुबह नहीं शायद दुबई से वह इतनी जल्दी न अगर उस रात अलीशा उससे मिलने के बजाय अपने एक कमरे के स्टूडियो में खुदकुशी न कर लेती। उस दिन शाम तक वह इंतजार करती रही अलीशा का। फोन पर ऑनी ने बता की थी उससे। न जाने किस बात पर नाराज थी वह उससे। ऑनी ने फोन रखने के बाद कहा था, ‘‘बहुत लालची हो गई है अलीशा। तुम उससे न मिलो, तो अच्छा है। तुमको पसंद नहीं करेगी।’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘तुम यंग हो। अट्रैक्टिव हो। उसके धंधे में उतर ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 22

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 22 अपने घर में किसी दूसरे का घर कुछ इस तरह की जिंदगी तीनों औरतों की: सितम्बर 2010 आमना सैयद के लिए पूरा दिन बहुत तनाव भरा था। सुबह से अपना भारी किट बैग उठाकर निकल पड़ी थी वह एक अदद किराए का फ्लैट ढूंढने। बस महीने भर के लिए। बहुत हो तो दो महीने के लिए। कहीं एक कमरा नहीं मिल रहा। दोपहर को सड़क किनारे खड़े होकर उसने छोटे-कुलचे खाए। वहीं से मिनरल वॉटर की छोटी बोतल खरीद दो घूंट मार लिए। अब क्या? वापस? उसने बेमन से मोबाइल घुमाया। दूसरी ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 23

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 23 आने से पहले बस उसे दिक्कत हुई थी फैजल से। फैजल अलग पढ़ने में ठीक था। पर जब यहां इंजीनियरिंग में उसे कहीं दाखिला नहीं मिला, तो अब्बा ने उसे दुबई के बिट्स पिलानी में इंजीनियरिंग करने भेज दिया। कई गुना ज्यादा खर्च। पर अब्बा चाहते थे कि फैजल इंजीनियर बने। दो साल पहले वह वहां से डिग्री लेकर लौट आया। अब्बा कहते रहे कि वहां नौकरी मिल रही है, तो वहीं कर लो। पर नहीं... पता नहीं क्या करना चाहता है? अब्बा का किताबों का बिजनेस कोई इतना बड़ा नहीं कि ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 24

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 24 आमना को ज्यादा देर नहीं लगी अपने को तैयार करने में। देखकर आए, इतने बड़े चैनल का ऑडिशन आखिर होता कैसे है? हमेशा की तरह लंबी कुर्ती, जीन्स और जालीदार स्टोल पहना। आंखों में गहरा काजल, सुबह बाल धोए थे, लंबे बालों को खुला छोड़ दिया, कानों में कंधे तक झूलते कुंडल। सोनिया ने पूरा मेकअप कर रखा था, लेकिन आमना को देखकर उत्साह से बोली, ‘‘कूल मैन... तुम स्मार्ट लग रही हो। दिस अटायर सूट्स यू...’’ ऑडिशन गुड़गांव में था। मेट्रो ले कर दोनों वहां पहुंचीं। जबदस्त भीड़। लेकिन सोनिया की ...Read More

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औरतें रोती नहीं - 25 - अंतिम भाग

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 25 इस मोड़ से आगे रात जमकर नींद आई। बारह बजे उसे स्टूडियो था। तैयार होने से पहले आंटी का नौकर सतीश बता गया कि कोई फैजल आया है उससे मिलने। आंटी ने अपने कमरे के बाहर एक रिसेप्शन जैसा बना रखा था, जहां उनकी पेइंग गेस्ट्स अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिल सकती थीं। फैजल अपना किट बैग उठाए सीधे स्टेशन से चला आया था। अपने किसी वी.आई.पी. दोस्त से कह-सुनकर उसने रिजर्वेशन करवा लिया था। फैजल उसे देखते ही लपककर पास आ गया, ‘‘गुड मॉर्निंग सिस। तैयार हो गई? आज मैं ...Read More