महामाया

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आधी रात से ही हरिद्वार के कनखल घाट पर लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। गंगाजी के ठंडे पानी में जैसे ही लोग नहाने के लिये उतरते ‘डुबुक’ की आवाज के साथ ही ‘हर्रऽऽ हर्रऽऽ गंगेऽऽ’ का कंपकपाता स्वर वातावरण में फैल जाता। रात सिमटने के साथ ही घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। पौ फटते ही घाट के ऊपर की तरफ बने विशाल परकोटे का द्वार खुला और सैकड़ों साधुओं की जमात घाट की ओर बढ़ने लगी। लम्बी दाढ़ी-जटाएँ, शरीर पर भस्म, अंगारों सी दहकती आँखें, किसी के हाथ में चिमटा, किसी के हाथ में त्रिशूल तो किसी के हाथ कमंडल। वस्त्र के नाम पर ज्यादातर सिर्फ कोपिन धारण किये हुए थे। कुछ एकदम नंग-धडं़ग थे। इनके बीच एक दैदीप्यमान साधु भी था।

Full Novel

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महामाया - 1

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – एक आधी रात से ही हरिद्वार के कनखल घाट पर लोगों की आवाजाही शुरू गई थी। गंगाजी के ठंडे पानी में जैसे ही लोग नहाने के लिये उतरते ‘डुबुक’ की आवाज के साथ ही ‘हर्रऽऽ हर्रऽऽ गंगेऽऽ’ का कंपकपाता स्वर वातावरण में फैल जाता। रात सिमटने के साथ ही घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। पौ फटते ही घाट के ऊपर की तरफ बने विशाल परकोटे का द्वार खुला और सैकड़ों साधुओं की जमात घाट की ओर बढ़ने लगी। लम्बी दाढ़ी-जटाएँ, शरीर पर भस्म, अंगारों सी दहकती आँखें, किसी के हाथ में चिमटा, ...Read More

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महामाया - 2

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – दो प्रवचन हॉल के पीछे वाला दरवाजा सीढ़ियों की तरफ खुलता था और सीढ़ियां लम्बे गलियारे में जाकर समाप्त होती थी। गलियारे में विलायती रेड कार्पेट बिछा था। गलियारे के अंत में एक बड़ा सा दरवाजा था। दरवाजे के उस पार एक वातानुकुलित सुसज्जित कमरा था। कमरे में सामने की ओर सिंहासन नुमा कुर्सी पर बाबाजी बैठे थे और नीचे दस पंद्रह भक्तगण। बाबाजी की आँखे बंद थी। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद कमरे में निस्तब्ध शांति थी। अखिल दूर से ही बाबाजी को प्रणाम कर पीछे की पंक्ति में बैठ गया। बाबाजी ...Read More

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महामाया - 3

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तीन अखिल ने खिड़की के सामने लगा परदा हटाया और खिड़की खोल दी। ताजी हवा का एक झोंका कमरे में प्रवेश कर गया। हवा के झोंके के साथ ही खिड़की के रास्ते धूप का एक टुकड़ा भी कमरे में उतरा और लंबाई में फैल गया। अखिल ने महसूस किया कि सुबह के नौ बज चुके हैं लेकिन धूप में अभी भी गर्माहट नहीं हैं हल्का सा कुनकुनापन जरूर है। अखिल दोनों हाथ बांधे खिड़की के सामने खड़ा हो गया। खिड़की गंगा घाट की तरफ खुलती थी। खिड़की से बाहर का दृश्य किसी सुंदर लैंडस्केप ...Read More

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महामाया - 4

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चार भोजनशाला में अखिल की अनुराधा से मुलाकात हुई। दोनों बहुत देर तक भोजनशाला ही खड़े-खड़े बतियाते रहे। सामान्य परिचय से शुरू हुई बातचीत व्यक्तिगत रुचियों और अनुभवों तक पहुंच गयी। ‘‘आप यहाँ कब से आ रही हैं’’ ‘‘पाँच-छः साल से’’ ‘‘आपकी बाबाजी से मुलाकात कैसे हुई?’’ ‘‘मेरी बाबाजी से मुलाकात.......यह एक लम्बी कहानी है। चलो कहीं बैठकर बात करते हैं।’’ अखिल और अनुराधा भोजनशाला के पास ही आम के पेड़ के नीचे एक बैंच पर बैठ गये। अनुराधा ने बातचीत शुरू की। ‘‘हाँ तो आप पूछ रहे थे कि मेरी बाबाजी से मुलाकात ...Read More

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महामाया - 5

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – पांच ‘‘व्हाट इज यूअर नेम.....?’’ आश्रम की रिसेप्शन कुर्सी पर बैठे-बैठे ही स्वामी दिव्यानंद सामने खड़ी विदेशी महिला से पूछा। ‘‘काशा’’ ‘‘आऽऽशा’’ स्वामी दिव्यानंद ने महिला का नाम जोर से दोहराते हुए रजिस्टर में लिखा। ‘‘नो..नो.. काशा’’ ‘‘ओके...काशा नाॅट आशा।’’ दिव्यानंद ने रजिस्टर में नाम दुरस्त करते हुए पूछा ‘‘कन्ट्री नेम।’’ ‘‘आस्ट्रीया’’ ‘‘कन्ट्री....आस्ट्रेलिया’’ ‘‘नो...नो...नाॅट आस्ट्रेलिया । आ....स्ट्री....या....’’ काशा ने देश के नाम के सभी हिस्सों को अलग-अलग करके बोला। ‘‘दुनिया में कितने सारे देश हैं और उनके कितने अजीब-अजीब नाम हैं। अब पहले दुनियाभर के देशों के नाम याद करो यही तुम्हारा सन्यास है ...Read More

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महामाया - 6

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – छह अखिल कुछ सोचता हुआ रिसेप्शन पर पहुंचा । वहाँ दिव्यानंद जी आनंदगिरी से बात पर उलझ रहे थे। आनंदगिरी जोर-जोर से बोलता हुआ पीछे पलटा और अखिल को देखा-अनदेखा करते हुए गुस्से में वहाँ से चला गया। दिव्यानंद जी भी रिसेप्शन की कुर्सी पर बैठे गुस्से में बड़बड़ा रहे थे। ‘‘अरे ऐसे बहुत साधु देखे। भगवा चोला पहना और हो गये मनमुखी साधु। अरे साधु समाज में ऐसे मनमुखी साधुओं की कोई बखत थोड़ी होती है। अभी कोई इस आनंद गिरी से पूछेगा कि तेरा गुरू कौन.......? कौन अखाड़ा.......? तो भूल जाऐगा सारी ...Read More

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महामाया - 7

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – सात हॉल में धूपबत्ती और गूगल की खूशबू। दो व्यवस्थापकनुमा लोग जल्दी-जल्दी तखत की ठीक करने, देवी प्रतिमा के सामने दीपक जलाने, अगरबत्तियाँ जलाने जैसे काम पूरे करने में जुटे थे। धीरे-धीरे लोग हॉल में जुट रहे थे। तखत के समीप बैठे चार-पाँच भगवाधारी धीमी लय में ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप कर रहे थे। लोग दोहरा रहे थे। ‘ऊँ नमः शिवाय’ की धुन तेज और तेज होती जा रही थी। करीब आधे घंटे बाद बाबाजी ने प्रवेश किया। महायोगी महामंडलेश्वर की जय के साथ कीर्तन समाप्त हो गया। बाबाजी तखत पर विराजित हो ...Read More

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महामाया - 8

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – आठ अनुराधा ने निर्मला माई के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए थोड़े ऊँचे स्वर कहा। ‘‘माई हम है अनुराधा’’ ‘‘अन्दर आ जाईये, अनुराधा जी’’ अनुराधा ने दरवाजा खोलकर कमरे में प्रवेश किया और निर्मला माई के पास आकर बैठ गई। निर्मला माई वार्डरोब के सामने पालथी मारे बैठी थी। उनके सामने ज्वलेरी बाॅक्स और कीमती घड़ियों के डिब्बे खुले पड़े थे। ‘‘अनुराधा जी देखिये तो, इतनी गिफ्ट इकट्ठी हो जाती है कि इन्हें कहाँ रखें समझ में नहीं आता। सब सामान इस अलमारी में ही ठूंसना पड़ता है । हमारे कपड़ों की प्रेस भी ...Read More

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महामाया - 9

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – नो अखिल तैयार होकर शाम सात-आठ बजे बाबाजी के पास पहुँचा। वहाँ पहले से मोटा आदमी बैठा था जो श्यामवर्णी था। उसके पास ही लगभग इसी हुलिये वाला एक नौजवान भी था। वानखेड़े जी हमेशा की तरह हाथ में माला लिये बाबाजी के दांयी और खड़े थे। मोटा आदमी बाबाजी से आगे के कार्यक्रम के बारे में चर्चा कर रहा था। नौजवान बीच-बीच में सबकी नजर बचाकर कनखियों से माताओं की ओर देख लेता था। ‘‘शोभायात्रा का कार्यक्रम कल दोपहर एक बजे रखा है बाबाजी’’ मोटे व्यक्ति ने हाथ जोड़कर बाबाजी से कहा - ...Read More

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महामाया - 10

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – दस सुबह का वक्त था। बाबाजी संत निवास के बाहर वाले चबूतरे पर बैठे वह दूर कहीं शून्य में देखते हुए अंगुलियों से अपनी दाढ़ी के बालों को सुलझा रहे थे। वानखेड़े जी बाबाजी के दांयी ओर खड़े माला फिराने में व्यस्त थे। भक्त जैसे ही प्रणाम करने के लिये बाबाजी के पैरों की तरफ बढ़ते, संतु महाराज यह कहते हुए उन्हें पीछे धकेल देते कोई बाबाजी को छुए नहीं, दूर से प्रणाम करें। भक्त ठिठक जाते और दूर से ही बाबाजी को प्रणाम कर नीचे बिछे फर्श पर बैठ जाते। बाबाजी भक्तों की ...Read More

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महामाया - 11

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – ग्यारह प्रवचन हॉल में एक प्रौढ़ वय का व्यक्ति गेरूआ चैगा पहने पाँच-सात भक्तों घिरा बैठा था। पीछे की तरफ एक व्यक्ति लोगों को बता रहा था ‘यह अंजन स्वामी है।’ आप लोग इन्हें बाबाजी की जमात का मामूली साधु मत समझ लेना। इन्हें हनुमान जी का इष्ट है। इन अंजन स्वामी जी का स्थान कहाँ है ? दूसरे ने प्रश्न किया। ‘‘ये तो हमें नहीं पता, हिम इतना जानते हैं कि ये बहुत बड़े तांत्रिक हैं। अंदर की बात तो ये है कि खुद बाबाजी ने तंत्र विद्या अंजन स्वामी से सीखी है। ...Read More

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महामाया - 12

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – बारह मंदिर के पास ही जुगाड़ टेक्नाॅलाजी से चाय की गुमटी तैयार की गई एक पुरानी सी टेबल पर भर्रऽऽ.. भर्रऽऽ... कर जलने वाला स्टोव रखा था। हवा को रोकने के लिये एक पुराने कनस्तर को काटकर चद्दर से स्टोव के तीन तरफ आड़ की गई थी। पुरानी सी गंदी प्लास्टिक की तीन चार बरनियों में बिस्कुट, खारी और पाव रखे हुए थे। टेबल के सामने दो पुरानी बैंचे रखी थी। जिन पर बैठते ही वो चऽऽ चूं... की आवाजें करने लगती थी। ग्राहकों को धूप से बचाने के लिये दो बांसों पर एक ...Read More

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महामाया - 13

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तैरह केलकर भवन में इतना बड़ा हॉल था। सौ-सवा सौ लोग आराम से बैठ वहाँ एक बड़ी दरी बिछी हुई थी। दो तीन भगवा झोले पडे़ थे। एक रस्सी पर भगवा धोतियाँ सूख रही थी। यहाँ कुछ सन्यासी ठहरे हुए थे। जो फिलहाल कहीं गये हुए थे। ऊपर के तल पर तीन कमरे थे। जग्गा ने एक कमरे का दरवाजा धकेला वहाँ तीन-चार लोग ताश खेलने में मस्त थे। दूसरे कमरे में खप्पर बाबा दो-तीन साधुओं के साथ भोजन कर रहे थे। तीसरे कमरे में दरवाजे के सामने ही आँखें बंद किये एक संत ...Read More

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महामाया - 14

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चौदह यज्ञ मंडप के सामने वाले मैदान में समाधि के लिये गड्डा खोदे जाने काम तेजी से चल रहा था। गड्डे से थोड़ी दूरी पर चारों ओर बेरीकेट्स लगाये जा चुके थे ताकि भीड़ सीधे गड्डे तक नहीं पहुँच सके। धीरे-धीरे समाधि स्थल देखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोग बेरिकेट्स के बाहर खडे़ होकर कोतूहल से गड्डे को देख आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे। ‘‘इस गड्डे में तीन दिन, बिना कुछ खाये-पिये, बिना साँस लिये कोई जिंदा कैसे रह सकता है?’’ प्रश्न एक ही था लेकिन उत्तर को लेकर लोगों के ...Read More

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महामाया - 15

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – पंद्रह चाय वाला भी अखिल और अनुराधा को पहचानने लगा था। दोनों को दुकान तरफ आते देख छोटू ने जोर से कहा ‘‘दो कट चाय कम शक्कर कड़क और एक पारले।’’ दुकान वाले ने भी तेज-तेज स्टोव्ह में हवा भरना शुरू कर दी। हमेशा की तरह आज भी दोनों बैंच पर आमने सामने बैठ गये। छोटू चाय और बिस्कुट का पैकिट रखकर गुमटी की साफ-सफाई करने में व्यस्त हो गया। अखिल ने चाय की एक लम्बी चुस्की ली फिर कहने लगा- ‘‘बाबाजी का प्रवचन सुनकर ऐसा लगता है कि आध्यात्मिक संसार की चाबी सिर्फ ...Read More

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महामाया - 16

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – सोलह माई की बगीची के एक कमरे में वैद्यजी ने अपना डेरा जमा रखा उनकी उम्र चालीस-पैंतालीस के बीच थी। धोती-कुर्ते का पहनावा, आँखों में सूरमा, रंग थोड़ा दबा हुआ। चेहरे पर चेचक के निशान। वैद्यजी बांया पैर लंबा कर दांया पैर मोड़कर बांयी सीवन पर टिकाये अर्द्धपालथी आसन में बैठे थे। उन्होंने सामने बैठे मरीज के दांये हाथ की नाड़ी अपनी तीन ऊंगलियों से थामी और मरीज का हाल कहने लगे। ‘‘जोड़ों में दर्द रहता है...... कभी-कभी कलेजे में डट्ठा सा लग जाता है....... सांस लेने में तकलीफ होती है... दिन भर शरीर ...Read More

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महामाया - 17

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – सत्रह भोजनशाला से अपने कमरे की ओर जाते समय अखिल ने देखा कि मंदिर में सन्नाटा था। समाधि के लिये खोदे जा रहे गड्डे के पास कौशिक , जग्गा और जसविंदर बैठे-बैठे कुछ खुसुर-फुसुर कर रहे थे। अखिल कमरे में जाकर डायरी लिखने लगा- डायरी: आज का दिन बहुत थका देने वाला रहा। लेकिन बहुत से सवाल जेहन में छोड़ गया। आखिर यहाँ हो क्या रहा है? कितने सारे पात्र है। अलग-अलग किरदार, चमत्कृत कर देने वाली घटनाएँ तो यहाँ लगभग रोज ही घट रही है। विष्णु जी...... क्या केरेक्टर है। वह बाबाजी को ...Read More

18

महामाया - 18

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – अठारह बाबाजी योग के बारे में बोल रहे थे। किसी विदेशी ने प्रश्न किया ‘‘योग केवल आसन और प्रणायाम तक सीमित नहीं है। यह एक पूर्ण विज्ञान है। योग अंतरिक्ष के सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्वों को पकड़कर अपने अनुकुल कार्य करने की प्रेरणा देता है। ‘‘योग अंतरिक्ष के सूक्ष्म तत्वों को कैसे पकड़ता है ?’’ विदेशी युवक ने पूछा। ‘‘ऐसा है बेटे स्काट, अंतरिक्ष में जो कुछ हो रहा है उसका शरीर से गहरा संबंध है। और जो कुछ भी हर पल शरीर में घट रहा है उसका अंतरिक्ष से गहरा संबंध है। योग ...Read More

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महामाया - 19

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – उन्नीस मंदिर में दिनभर तरह-तरह की बातें होती रही। शाम को चार बजे पत्रकार हुई। बाबाजी की तरफ से विज्ञप्ति अखिल और अनुराधा ने तैयार की थी। एक दो पत्रकार जो ज़्यादा आड़े-तिरछे सवाल कर रहे थे उन्हे निर्मला माई और श्रद्धा माई बहुत देर तक समझाती रही। रात को समाधि स्थल पर कड़ा पहरा था। बाबाजी की स्थायी मंडली के सदस्य अपना बिस्तर लेकर समाधि स्थल पर ही आ गये। थोड़ी देर इधर-उधर की चर्चाएँ होती रही फिर शुरू हो गये किस्से। ‘‘क्यों संतु महाराज तुम्हे सांसाराम वाली निर्मला माई की समाधि याद ...Read More

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महामाया - 20

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – बीस समाधि का वक्त नजदीक आता जा रहा था। समाधि स्थल पर तीनों माताएँ चुकी थी। वे आँख बंद किये जोर-जोर से ऊँ नमः शिवाय का जाप कर रही थी। अखिल, अनुराधा और वानखेड़े जी तीनों माताओं के पीछे बैठे थे। समाधि स्थल के चारों ओर एकत्रित जन समुदाय भी पूरे भक्ति भाव से झूम रहा था। बीच-बीच में माईक पर संतु महाराज की आवाज गूँज रही थी। समाधि में सिर्फ एक घंटा शेष है... सिर्फ आधा घंटा... समाधि की परिक्रमा करना मत भूलिये, समाधि की परिक्रमा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। हजारों ...Read More

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महामाया - 21

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – इक्कीस स्टॉल्स पर लोगों की भारी भीड़ थी। कोई माला खरीद रहा था.....कोई बाबाजी हिमालय में समाधिस्थ चित्र......कोई घर में सम्पन्नता के लिये यंत्र खरीद रहा था तो कोई माताओं के चित्रों वाला लाॅकेट....कोई भाग्य चमकाने वाली अंगूठी खरीद रहा था तो कोई घर में शंति के लिये पिरामिड। कोई कब्जियत की दवाई खरीद रहा तो कोई ताकत की दवाई हाथों में लेकर आजू बाजू देख रहा था। कोई स्टॉल के सामने खड़े होकर प्रवचन की सीडी सुन रहा था। कुछ देर अखिल किताबों में खोया रहा फिर अचानक किताब को नीचे रख बाबाजी ...Read More

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महामाया - 22

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – बाईस संत निवास में गद्दे पर लंबे पैर कर दीवार से सिर टिकाये निर्मला बैठी थी। नीचे कालीन पर आलथी-पालथी लगाये जग्गा बैठा था। उसने दोनों हाथों से निर्मला माई के दोनों पंजों को पकड़ रखा था। उन दोनों के बीच बातचीत चल रही थी। ‘‘तुम मुझे अपनी सेवा में लगा लो’’ ‘‘कौन, कब किसकी सेवा में रहेगा यह बाबाजी तय करते हैं’’ निर्मला माई ने जवाब दिया। ‘‘तो तुम बाबाजी से क्यों नहीं कहती?’’ ‘‘हमारे कहने से क्या होगा। निर्णय तो बाबाजी को करना है’’ ‘‘और बाबाजी तुम्हारी बात टाल नहीं सकते’’ ‘‘यही ...Read More

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महामाया - 23

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तेईस ठीक एक बजने में पाँच मीनिट पूर्व बाबाजी ने समाधि पर से मिट्टी का संकेत किया। कौशिक, जसविंदर और दो अन्य लोगों ने बाबा का संकेत मिलते ही समाधि के ऊपर की मिट्टी और एक टीन की चद्दर को हटाते हुए एक सीढ़ी नीचे गड्ढे में उतार दी। मंदिर प्रांगण में सन्नाटा था। लोग साँस रोके बैठे थे। समाधि के समीप जो गणमान्य नेता, पत्रकार, आयोजक परिवार के सदस्य बैठे थे, वे उचक-उचक कर कोतुहल के साथ समाधि के अंदर झांकने की कोशिश कर रहे थे। विदेशियों ने भी अपने कैमरे गड्ढे की ...Read More

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महामाया - 24

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चौबीस अखिल ने भी सीट पर सिर टिकाया,आँखें बंद की और सोचने लगा। पिछले दिनों में जो भी बाबाजी के सानिध्य में आया है उनमें से ज्यादातर लोगों की जिज्ञासाएँ शांत हुई है। कुछ की जिज्ञासाएँ और गहरा गई है। कुछ दीक्षा को अपने जीवन का दुर्लभ क्षण मानकर आनंदित है.....कुछ भाव विभोर.....कुछ पर गुरुभक्ति का अच्छा खासा जुनून सवार हो चुका है......कुछ समाधि के दर्शन को ही पुण्यलाभ मानकर उल्लासित हैं......साथ ही सब के सब श्रद्धा से नतमस्तक है। बाबाजी से जुड़ने के बाद लोगों के अपने-अपने अनुभव है। लोग अनुभव आपस में ...Read More

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महामाया - 25

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – पच्चीस नौगाँव से नैनीताल आये दस दिन गुजर गये थे। इन दस दिनों में यहाँ रम सा गया। आश्रम में भक्त आते। दो-चार दिन रूकते। फिर लौट जाते। भक्तों के आने-जाने का सिलसिला लगातार बना हुआ था। भक्त कुछ इष्ट मित्रों सहित सिर्फ पहाड़ घूमने आये थे। दिनभर सैर-सपाटा करते और रात को आश्रम में आकर ठहर जाते। कुछ भक्तों की अपनी समस्याएँ थी, जो इन्हें यहाँ खींच लायी थी। राधामाई सुबह-शाम इन भक्तों की ध्यान कक्षा लेती। दोपहर में भक्तों का दुखड़ा सुनती। उन्हें उपाय बताती। किसी को दो-दो घंटे शिव मंदिर में ...Read More

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महामाया - 26

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – छब्बीस शाम को बाबाजी का संदेश मिला तो वो बाबाजी के कमरे की ओर दिया। बाबाजी भगवा रंग का गाउन पहने कमरे में एक ओर लगे रेकलाइनर पर बैठे थे। उनके पैर गर्म पानी के टब में डूबे थे। दो लड़कियाँ पूरी श्रद्धा से उनके पैरों की सफाई कर रही थी। अखिल दरवाजे पर ही रूक गया। बाबाजी ने उसके पैरों की आहट सुन आँखें खोली और स्नेह से कहा ‘‘आओ.....आओ।’’ अखिल नीचे फर्श पर बैठ गया। ‘‘यहाँ कोई परेशानी तो नहीं है बेटा’’ ‘‘जी....जी नहीं बाबाजी, पत्रिका के काम में ही लगा हूँ’’ ...Read More

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महामाया - 27

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – सत्ताईस अनुराधा के आश्रम लौट आने से अखिल सबसे ज्यादा खुश था। अनुराधा ने उसे बताया था कि बाबाजी ने उसकी नौकरी छुड़वा दी है और यहीं उसके लिये एक नर्सिंग होम बनवाने वाले हैं। बाबाजी के इस प्रस्ताव से अनुराधा उत्साहित थी। अखिल और अनुराधा बात करते-करते ऊपर मंदिर जा में पहुंचे। वहाँ मड़ला महाराज पूरी मस्ती में डूबे गा रहे थे। ना जाने तेरा साहब कैसा है। मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै, क्या साहब तेरा बहिरा है? चिउंटी के पग नेवर बाजे, सो भी साहब सुनता है। पंडित होय के आसन मारै, लंबी ...Read More

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महामाया - 28

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – अट्ठाईस पिछले एक महिने में अखिल पत्रिका के कामकाज और आश्रम की दिनचर्या में रमा कि उसे समय का भान ही रहा। उसने इन दिनों बहुत कुछ जाना समझा था। बहुत सी जिज्ञासाएँ अभी भी शेष थी। दीक्षा के बारे में वो दो-तीन बार वह कह चुका है लेकिन वह हर बार यह कहकर टाल जाते हैं कि सही समय आने पर दीक्षा होगी। आज बाबाजी से दीक्षा की फायनल बात करना है। सोचते-सोचते अखिल बाबाजी के कमरे में पहुंचा। बाबाजी के कमरे में अनुराधा, दोनों माताएँ, काशा, राम और स्काॅट बैठे थे। वानखेड़े ...Read More

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महामाया - 29

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – उनत्तीस अखिल ने कमरे में जाकर कपड़े बदले और आलथी-पालथी लगाकर पलंग पर बैठ दरवाजा खुला था। थोड़ी देर में अनुराधा ने कमरे में प्रवेश किया। अनुराधा के हाथ में एक शाॅल थी। ‘‘वाह! बहुत सुंदर शाॅल है। बाबाजी के लिये लायी थी?’’ अखिल ने शाॅल अपने हाथ में लेते हुए पूछा। ‘‘तुम्हे गिफ्ट करने के लिये नौगाँव से खरीदी थी।’’ अनुराधा ने खड़े-खड़े कहा। ‘‘फिर तुमने मुझे गिफ्ट क्यों नहीं की?’’ ‘‘सोचा था, कोई अच्छा अवसर आयेगा तो तब तुम्हें गिफ्ट करूंगी।’’ ‘‘बैठो न! खड़ी क्यों हो।’’ ‘‘नहीं रात बहुत हो गई है। ...Read More

30

महामाया - 30

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तीस अखिल जब राधामाई के कमरे में पहुंचा। कमरे में ब्लू जिंस पर मेंहदी का टाॅप पहिने, खुले बालों को कंधों तक झुलाये एक लड़की कुछ लिखने में तल्लीन थी। कमरे में राधामाई को न देखकर अखिल वापिस लौटने ही वाला था कि लड़की ने धीरे से सिर ऊपर किया और मुस्कुराई। अखिल के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वो जिसे कोई और लड़की समझ रहा था वो राधामाई थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। ‘‘ऐसे आँखें फाडे़ क्या देख रहे हो? पहिले कोई लड़की नहीं देखी क्या?’’ राधामाई की ...Read More

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महामाया - 31

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – इकत्तीस काशा ने बाबाजी और सूर्यगिरी के साथ तहखाने के ऊपर बने कमरे में किया। कमरे के बीचों-बीच रखी चौकी पर प्रकाश का एक वृत्त बन रहा था। शेष कमरे में पूर्ण अंधकार था। काशा भारतीय परिधान में थी। उसने हल्के गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी पहनी थी। बालों को जूड़े की शक्ल में बांधा था। मोगरे के फूलों की वेणी लगायी थी। हाथों में पूजा की थाली थी। बाबाजी ने काशा को चौकी के सामने बिछे आसन पर बैठने का ईशारा किया। काशा ने पूजा की थाली नीचे रखी। फिर आलथी-पालथी लगाकर ...Read More

32

महामाया - 32

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – बत्तीस महाअवतार बाबा के दर्शन कर काशा प्रफुल्लित थी। उसकी आँखों से महाअवतार बाबा मूरत गायब ही नहीं होती थी। सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते हर पल वो ‘ऊँ महाअवतार बाबा नमः’ का जाप करती रहती। उसकी एक ही साध थी महाअवतार बाबा के दर्शन। अपनी इस इच्छा के लिये वह बाबाजी से खूब अनुनय विनय करती ‘‘प्लीज बाबाजी एक बार.....सिर्फ एक बार और हमें महाअवतार बाबा से मिलवा दीजिये।’’ लगभग एक सप्ताह बाद फिर से काशा की महाअवतार बाबा से मुलाकात करवायी गई। थोड़ी देर तो वो अपलक महाअवतार बाबा को देखती रही। फिर उसने ...Read More

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महामाया - 33

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – तैंतीस आज ठंड ने कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ लिया था। अखिल ने हीटर और पलंग पर बैठकर पत्रिका का फायनल प्रूफ देखने लगा। तभी किसी ने जोर से उसका दरवाजा भड़भड़ाया। इतनी रात कौन हो सकता है? साचते हुए अखिल ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही देशी शराब का भमका उसके नथुनों से टकराया। अखिल ने देखा सामने जग्गा खड़ा था। उसके हाथ में एक पैकेट था। जग्गा को इतनी रात गये इस हालत में देख अखिल को थोड़ा अचंभा हुआ। जग्गा बिना पूछे सीधे कमरे में घुस आया। नशे के कारण उसके ...Read More

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महामाया - 34 - अंतिम भाग

महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चौंतीस रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे का समय था। आश्रम में सन्नाटा था। कमरे बाबाजी अपने आसन में बैठे थे और अनुराधा उनके सामने सिर झुकाये बैठी थी। ‘‘बेटे पिछले कुछ दिनों से आप बहुत परेशान दिख रही हैं क्या बात है?’’ ‘‘कुछ खास नहीं बाबाजी, मन का विचलन बहुत बढ़ गया है। समझ में नहीं आता कि क्या करूँ?’’ अनुराधा के स्वर में निराशा थी। ‘‘लगता है आजकल आप ध्यान नहीं कर रही हैं?’’ ‘‘करती हूँ बाबाजी, लेकिन आँखें बंद करते ही विचार और ज्यादा परेशान करने लगते हैं। मन शांत होने के ...Read More