घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (1) घटना को देखा जाए तो एसी कोई बहुत बड़ी घटना भी नहीं है कि उस पर इतना हंगामा हो। लेकिन अगर शहर का इतिहास देखें तो यही छोटी सी घटना बारूद के घर में जलती हुई अगरबत्ती की तरह साबित हो सकती है। शहर के कुछ आवारा शोहदे स्कूल से लौटती हुई दो बहनों को रोज़ छेड़ते थे। बहनों के साथ मुश्किल यह थी कि उनके घर में मर्द नाम की कोई चीज़ नहीं थी। उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे जिनके अचानक गुज़र जाने के बाद मां को अनुकंपा नौकरी बैंक में मिल
Full Novel
घेराव - 1
घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (1) घटना को देखा जाए तो एसी कोई बहुत बड़ी घटना भी नहीं है कि पर इतना हंगामा हो। लेकिन अगर शहर का इतिहास देखें तो यही छोटी सी घटना बारूद के घर में जलती हुई अगरबत्ती की तरह साबित हो सकती है। शहर के कुछ आवारा शोहदे स्कूल से लौटती हुई दो बहनों को रोज़ छेड़ते थे। बहनों के साथ मुश्किल यह थी कि उनके घर में मर्द नाम की कोई चीज़ नहीं थी। उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे जिनके अचानक गुज़र जाने के बाद मां को अनुकंपा नौकरी बैंक में मिल ...Read More
घेराव - 2
घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (2) होने को तो पुलिस को यही लग रहा था कि सब कुछ उसके सोचे ही हो रहा है लेकिन कहते हैं ना कि भीड़ और भेड़ का जिसने भरोसा किया उससे बड़ा बेवकूफ़ कोई नहीं। युवा डीएसपी भी यहीं पर मात खा गया। जनाज़े की नमाज़ के बाद जनाज़ा मस्ज़िद से आगे बढ़ा तो भीड़ के सुर बिल्कुल बदल चुके थे। जिस समय डीएसपी एस पी को वायरलेस पर सूचित कर रहा था कि सर यहां सब ठीक है, ठीक उसी समय जनाज़ा शहर के मुख्य चौराहे पर रखा भी जा चुका था, और ...Read More
घेराव - 3 - अंतिम भाग
घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (3) ‘तीन चार हज़ार तो होने ही चाहिए। हमने इसको राजनैतिक रूप नहीं दिया है, सच्चे हिंदू को बुलाया है जिसे भी लगता है कि मुसलमानों के इशारे पर एक तेरह साल के मासूम हिंदू बच्चे के खिलाफ प्रकरण दर्ज करना हमारी अस्मिता पर प्रहार है वह हमारे साथ साथ आए हमने एसा निवेदन किया है।’ उस व्यक्ति का चेहरा कुछ तन गया। ‘लड़के की गिरफ़्तारी हो गई ?’ समीर ने प्रश्न किया। ‘एसे कैसे हो जएगी, आग नहीं लगा देंगे थाने को’ उस व्यक्ति का चेहरा पूर्णतः भगवा हो चुका था। ‘आप नहीं आ ...Read More