सुनो पुनिया

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सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर देखा और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने लगा था. रह-रहकर हाथों के रोंगटे खड़े हो जाते थे और बदन कांप उठता था. पुनिया चाहती थी कि डेलवा (टोकरी) आज ही तैयार हो जाए. ’थोड़ा-सा ही बचा है---’ सोचकर उसने कुछ कांस खोंसकर सूजा उसमें घोंप दिया और आरण (सरकंडा) से तैयार मूंज फंसाकर आगे बुनना शुरू कर दिया. डेलवा समाप्त कर उसे आंगन बुहारना था, इसीलिए वह जल्दी-जल्दी

Full Novel

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सुनो पुनिया - 1

सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने लगा था. रह-रहकर हाथों के रोंगटे खड़े हो जाते थे और बदन कांप उठता था. पुनिया चाहती थी कि डेलवा (टोकरी) आज ही तैयार हो जाए. ’थोड़ा-सा ही बचा है---’ सोचकर उसने कुछ कांस खोंसकर सूजा उसमें घोंप दिया और आरण (सरकंडा) से तैयार मूंज फंसाकर आगे बुनना शुरू कर दिया. डेलवा समाप्त कर उसे आंगन बुहारना था, इसीलिए वह जल्दी-जल्दी ...Read More

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सुनो पुनिया - 2

सुनो पुनिया (2) घिनुआखेड़ा अहीरों का ही गांव है---एक सौ तीस घरों का छोटा-सा गांव. सभी काश्तकार. परिश्रमी और काम में प्रवीण किसानों का गांव है यह. रामभरोसे का बाप रघुआ के पास पच्चीस बीघे मातवर खेत हैं. खुद का ट्यूबवैल है और करने वाले दस मजबूत हाथ. गांव में वह सबसे अधिक सम्पन्न है. रामभरोसे उसका तीसरा और छोटा लड़का है—कम पढ़ा, लाड़-प्यार में पला-बढ़ा. कुछ-कुछ जिद्दी. पुनिया उसके मन में चढ़ गई तो वह शांत कैसे बैठ सकता था? कुछ दिनों तक वह दलपत खेड़ा के चक्कर काटता रहा---पुनिया से मिलकर अपनी बात कह देने के लिए ...Read More

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सुनो पुनिया - 3

सुनो पुनिया (3) पुनिया अब घर से अकेली कम ही निकलती थी. जब कभी जाती या तो अपनी माई साथ या पडोस की बसंती के साथ. बसंती उम्र में पुनिया से चार साल छोटी थी, और पारस सोचता कि क्यों न बसंती के माध्यम से ही वह अपनी बात पुनिया तक पहुंचा दे, लेकिन वह ऎसा भी नहीं कर सका. एक दिन कुछ देर के लिए पुनिया से फिर मुलाकात हो गई. बसंती साथ थी उस दिन पुनिया के. बसंती खेत में कुछ खोद रही थी और पुनिया मेड़ पर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी. पारस अपने खेतों की ...Read More

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सुनो पुनिया - 4 - अंतिम भाग

सुनो पुनिया (4) बलमा के ढोल का स्वर भी तेज से तेजतर होता जा रहा था. बलमा झूम रहा उसके हाथ स्वतः चल रहे थे---जैसे उनमें मशीन लगा दी गई हो. और मशीन रामभरोसे के हाथों में भी जैसे लग गई थी आज. जितनी तेजी से उसके हाथ चल रहे थे, उतनी ही तेजी से उसका दिमाग भी गतिशील था. ’तो यही अवसर है पारस को सबक सिखाने का---पुनिया से उसे दूर करने का---जो मेरी है---उससे मिलने, बात करने, देखने का सबक मिलना ही चाहिए!’ कड़ाक---कड़ाक—कट---कड़ाक---पारस का प्रहार बचाने में दिमाग चकरघिन्नी हो गया रामभरोसे का. संभलकर वह प्रहार ...Read More