एक मुट्ठी इश़्क

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एक मुट्ठी इश्क़...!!--भाग(१) सरकारी अस्पताल का कमरा,कमरे मे पडे़,सफ़ेद रंग के आठ दस बिस्तर और उन्हीं बिस्तरों में से एक बिस्तर जीनत का भी हैं, महीनों से बिस्तर पर लेटे लेटे ऊब चुकी है,बिस्तर के सिराहने बनी खिड़की से लाँन के बाहर का नज़ारा देखकर जी बहला लेती हैं, बूढ़ी हो चुकी हड्डियों में अब इतनी जान नहीं बची हैं कि चल फिर सके,लेकिन अल्लाह की रह़मत हैं कि उसका शौहर और उसके बच्चे हमेशा साएं की तरह उसके पीछे लगे रहते हैं, तभी तो महीनों से अस्पताल में हैं और किसी के मुंह से उफ्फ़ की आवाज़ भी नहीं

Full Novel

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एक मुट्ठी इश़्क--भाग (१)

एक मुट्ठी इश्क़...!!--भाग(१) सरकारी अस्पताल का कमरा,कमरे मे पडे़,सफ़ेद रंग के आठ दस बिस्तर और उन्हीं बिस्तरों में एक बिस्तर जीनत का भी हैं, महीनों से बिस्तर पर लेटे लेटे ऊब चुकी है,बिस्तर के सिराहने बनी खिड़की से लाँन के बाहर का नज़ारा देखकर जी बहला लेती हैं, बूढ़ी हो चुकी हड्डियों में अब इतनी जान नहीं बची हैं कि चल फिर सके,लेकिन अल्लाह की रह़मत हैं कि उसका शौहर और उसके बच्चे हमेशा साएं की तरह उसके पीछे लगे रहते हैं, तभी तो महीनों से अस्पताल में हैं और किसी के मुंह से उफ्फ़ की आवाज़ भी नहीं ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग(२)

गुरप्रीत ,मां की बातों को अनसुना करके अपनी ही दुनिया मे मगन रहतीं, सहेलियों के साथ खेंतों में दिनभर तो कभी बकरियों के झुंड के साथ,कभी कभी सैर करने नहर के किनारे टहलने चली जाती लेकिन उसे पानी से बहुत डर लगता था,इसलिए पानी से हमेशा दूरी बनाकर रहती,सहेलियां नहर में नहातीं और वो दूर से ही उन्हें देखती,घर गृहस्थी के किसी काम को हाथ नहीं लगाती,मां कहते कहते थक जाती लेकिन वो तो एकदम चिकना घड़ा हो गई थी,मां की बातों का उस पर कोई भी असर ना पड़ता लेकिन सहेलियों के साथ कभी कभार कुएँ पर पानी ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (३)

गीली हालत मे गुरप्रीत बग्घी लेकर घर पहुंची और सुखजीत ने उसकी हालत देखी और अच्छे से दोनों बाप की खबर ली___ मै तो कह कहकर हार गई लेकिन बाप बेटी तो मन मे ठान ली हैं कि मेरी कोई बात नहीं सुननी, सयानी लड़की उल्टी सीधी हरकतें करती फिरती हैं और बाप को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ता, लड़की को तैरना नहीं आता और कूद पड़ी बग्घी लेकर नहर में,अभी कुछ हो जाता तो मैं क्या करती इकलौती संतान हैं, सालों बाद घर मे सन्तान हुई थी,कैसे रातभर जाग जागकर पाल पोसकर बड़ा किया लेकिन ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (४)

इन्हीं दंगों की आग गुरप्रीत और सरबजीत के गांव तक भी जा पहुंची थी,पूरा गांव जैसे दहशत और डर साए में डूबा था,हर जगह मातम ही मातम था।। बहुत ही मनहूस घड़ी थी वो, कोई सुरक्षित नहीं था उस समय ना सलमा ना सीता,कुरान और गीता में लिखे संदेश को लोग भूल गए थे,बस हर छुरे और तलवार पर खून ही खून नजर आ रहा था। अबलाएं डर रहीं थीं, घूंघट में छुपी हर दुल्हन सोच रही थी कि उसकी चूड़ियां सुरक्षित रहें,हर बहन का आंचल दुहाई दे रहा था, लोगों के खिड़की दरवाजे नहीं खुल रहे ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (५)

अचानक ही इख़लाक़ का एक साल का बेटा रो पड़ा, इख़लाक़ ने चुप कराने की कोशिश करनी चाहीं लेकिन शायद मां के लिए रो रहा था,गुरप्रीत को बच्चे पर रहम आ गया, उसने उसे गोद मे उठा लिया,गुरप्रीत ने बच्चे को जैसे ही गोद मे लिया बच़्चा चुप हो गया।। शायद ये आपको अपनी अम्मी समझ रहा हैं, इख़लाक़ बोला।। तभी इख़लाक़ की तीन साल की बेटी भी जाग गई और अपनी आंखो को मलते हुए उसने पूछा___ ये कौन हैं? अब्बू!अम्मीजा़न वापस आ गई ।। नहीं, बेटा ,ये भी हमारी तरह परेशान हैं, हमारे साथ ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (६)

शाहीन का नाम सुनकर सबको तसल्ली हो गई और सब अपनी तलवारों के साथ वहाँ से चले गए,तब मौलवी बोले,बहुत बचें मियाँ, ये सब तो खून के प्यासे थें,चलो चुपचाप जाकर लेट जाओ लेकिन गहरी नींद में मत सोना,क्या पता दूसरी आफत कब आ जाए? जी,सही कह रहे हैं आप,चलिए आप भी आराम कर लीजिए और इतना कहकर इख़लाक़ लेट गया पर आंखों में नींद कहाँ, अपनी मरहूम वीबी को याद करके उसकी आंखे भर आई,अभी चार साल पहले ही तो उसका निकाह हुआ था,बड़ी बहन के ससुराल से उनके किसी रिश्तेदार के यहाँ से रिश्ता आया था,हम ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (७)

गुरप्रीत का ऐसे मे मां बनना, सबके लिए फिक्र वाली बात हो गई थीं,घरवालों का और पति का अब कुछ पता नहीं था,सब बहुत बड़े सदमे आ गए थे।। शाम होने को थीं, दूसरी कोठरी अभी बनी नहीं थी,हलकी गुलाबी ठंड वाला मौसम था,गुरप्रीत कोठरी में आराम कर रही थीं,इम्तियाज भी गुरप्रीत के साथ ही बगल मे लेटा था,करें भी एक साल का बच्चा जो ठहरा वो गुरप्रीत को ही अब अपनी समझने लगा,तभी गुरप्रीत उठी और बाहर आकर चूल्हा सुलगाने लगी,फात़िमा ने गुरप्रीत को बाहर देखा तो पास आकर बोली।। तू बाहर क्यों आई? सोच ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (८)

शाम हो चुकी थीं,दिनभर आराम करने के बाद इख़लाक सब्जियों के खेतों मे गुड़ाई निराई का काम कर रहा बच्चे बाहर खेल रहे थें,फात़िमा दूसरी कोठरी में शाम के खाने की तैयारी कर रही थीं, तभी गुरप्रीत नींद से जागकर आई और फात़िमा के पास आकर बोली___ आपा!आपने मुझे जगाया नहीं, कितनी शाम होने को आई और आप छोड़िए खाने की तैयारी मैं करती हूँ।। तू ये क्यों भूल जाती हैं, जीनत़ कि मैं भी तेरी तरह एक औरत हूँ, तेरी हालत देखकर क्या मुझे जरा सा भी दुःख नहीं हुआ होगा, मुझे क्या इतना बेरहम समझा हैं, ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--भाग (९)

ज्यों ज्यों जीनत़ के प्रसव के दिन करीब आ रहेंं थे,सबका मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था,फात़िमा और इख़लाक, कोशिश कर रहे थे कि जच्चा और बच्चा दोनों ही स्वस्थ रहेंं,दोनों ही जीनत़ का खास ख्याल रख रहे थें, दोनों के मन में डर था कि पराई अमानत है,सब कुछ अच्छी तरह से निपट जाए।। इधर जीनत़ भी अपनी इस हालत को लेकर बहुत संजीदा थी,उसे कभी कभी इस हालत पर तरस भी आता और कभी कभी गुस्सा भी आता,वो कुछ सोच ही नहीं पा रही थी कि अब उसकी जिन्दगी कौन सा मोड़ लेने वाली थी,वो दुनिया ...Read More

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एक मुट्ठी इश्क़--10 - (अंतिम भाग)

इख़लाक ने जीनत़ को चारपाई पर लिटा दिया, फात़िमा ने फौरऩ चूल्हे पर आग सुलगाई और कटोरी मे तेल करके जीनत़ की पीठ और कमर पर मालिश की।। चोट कुछ ज्यादा ही लगी थी जीनत को ,कई दिनों तक उसे उठने बैठने मे बहुत दिक्कतें हुई,लेकिन अब वो धीरे धीरे ठीक हो चली थी,फात़िमा पूरा पूरा ख्याल रखती जीनत़ का और आते जाते इख़लाक भी खैर-खबर लेता रहता,पता नहीं इख़लाक़ ऊपर से तो नाराज़गी का दिखावा करता लेकिन दिल ही दिल में उसे जीनत़ की बहुत फिकर रहती,वो मन मे सोचता कि उसके बच्चे एक मां को तो ...Read More