पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे नीला प्रसाद (1) वह सुबह से अपने कमरे में लैपटॉप पर व्यस्त है. मुझसे बात करने भी नहीं आ रही. कोई उदास करने वाली बेचैनी मुझे अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है. हर मदर्स डे पर मुझसे आकर लिपट जाने और जेब-खर्च के नाममात्र पैसों से मुझे कुछ- न- कुछ खरीद कर देने वाली मेरी बेटी आज तो मुझे कोई भाव ही नहीं दे रही, मानो उसे याद तक न हो कि आज मदर्स डे है. “ओ बित्ती, ता तलती तू!.”, मैंने रोज की तरह दुलार में पुकार कर बात शुरू
Full Novel
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे - 1
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे नीला प्रसाद (1) वह सुबह से अपने कमरे में लैपटॉप पर है. मुझसे बात करने भी नहीं आ रही. कोई उदास करने वाली बेचैनी मुझे अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है. हर मदर्स डे पर मुझसे आकर लिपट जाने और जेब-खर्च के नाममात्र पैसों से मुझे कुछ- न- कुछ खरीद कर देने वाली मेरी बेटी आज तो मुझे कोई भाव ही नहीं दे रही, मानो उसे याद तक न हो कि आज मदर्स डे है. “ओ बित्ती, ता तलती तू!.”, मैंने रोज की तरह दुलार में पुकार कर बात शुरू ...Read More
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे - 2
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे नीला प्रसाद (2) मां- बेटी के रिश्ते में जो प्रगाढ़ता दिनों- गहरी होती जानी थी, उसे खत्म करने की जिम्मेदार, इस अनूठे रिश्ते की आत्मा के कत्ल की गुनहगार थी मैं!! मैं उदास हो गई. ये दास्तान कुछ अलग तरह से लिखी जा सकती थी. ऐसा बिल्कुल संभव था कि बेटी जैसे- जैसे बड़ी हो, मेरा- उसका दोस्ताना बढ़ता जाय. मैं और बेटी एक दूसरे के ज्यादा करीब होते जाएं.मेरा उससे तेरह साल, सवा आठ महीनों का नाता था- यानी जबसे वह मेरे पेट में आई, तबसे. जाने कितने तो सपने ...Read More
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे - 3 - अंतिम भाग
पौधे से कहो, मेरे जन्मदिन पर फूल दे नीला प्रसाद (3) हां, वह एक कविता ही है जिसे उसके पिता मिलकर लिख रहे है. धीरे- धीरे बड़ी हो रही है यह कविता.. ज्यादा मीनिंगफुल होती जा रही है. बढ़ने, लम्बे होने के क्रम में उसमें कुछ तीती- तीखी, धारदार पंक्तियां भी जु़ड़ती जा रही हैं.. मां की दिली इच्छा कि वह एक सुखांत कविता हो -प्यारी, सुंदर, विचारों में स्पष्ट, अर्थपूर्ण- जिसे दुनिया याद रखे.. पर समझ की एक बड़ी गलती ये हो गई कि बिट्टी जैसी कविता को उसके मां- पिता अकेले ही कैसे लिख सकते हैं! उसे ...Read More