बिद्दा बुआ

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बिद्दा बुआ (1) आवाज बुआ की ही थी, जिन्हें सारा गांव बिद्दा बुआ कहकर पुकारता है "उठो भाइयो भोर भया, कुछ काम करो मत सोओ तुम. जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है." पूरे छः महीने बाद गांववालों को उनकी आवाज सुनाई पड़ी है. छः महीने अपने भतीजे गोपाल के पास जमशेदपुर में गुजारकर वे रात ही लौटी थीं, लेकिन किसी को पता न चल पाया था. ऎसा पहली बार हुआ था. नहीं तो बुआ कहीं बाहर से आएं, चाहे भतीजे के पास जमशेदपुर से या मामा के पोते रमेश के पास भोपाल से, आते

Full Novel

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बिद्दा बुआ - 1

बिद्दा बुआ (1) आवाज बुआ की ही थी, जिन्हें सारा गांव बिद्दा बुआ कहकर पुकारता है "उठो भाइयो भोर कुछ काम करो मत सोओ तुम. जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है." पूरे छः महीने बाद गांववालों को उनकी आवाज सुनाई पड़ी है. छः महीने अपने भतीजे गोपाल के पास जमशेदपुर में गुजारकर वे रात ही लौटी थीं, लेकिन किसी को पता न चल पाया था. ऎसा पहली बार हुआ था. नहीं तो बुआ कहीं बाहर से आएं, चाहे भतीजे के पास जमशेदपुर से या मामा के पोते रमेश के पास भोपाल से, आते ...Read More

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बिद्दा बुआ - 2 - अंतिम भाग

बिद्दा बुआ (2) और सच ही सुबह गोपाल बिलकुल चंगा था. बुखार गायब था. अब तो उनकी दवा के गांव में घर-घर गाये जाने लगे. उस दिन से वे केवल गोपाल की ही बुआ नहीं, सारे गांव की बुआ हो गयीं थीं. पहले विद्या बुआ, क्योंकि यही उनका नाम था, बाद में वे विद्या बुआ से हो गयीं बिद्दा बुआ. छोटा-बड़ा, जवान-बूढ़ा उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. जब भी किसीके घर कोई बीमार होता, बिद्दा बुआ को बुलाया जाता, दवा पूछी जाती. लेकिन वे दवा कभी बताती न थीं. कभी-कभी केवल इतना कहतीं--"दवा तो तुम्हारे गांव के आस-पास ...Read More