"अरे बहू रोटी ना बनी के अभी तक! अंधेरा घिरने को आया! तुझे पता है ना! मुझे सूरज छिपते ही खाने की आदत है!" "अम्मा वो उपले गीले थे ना इसलिए आंच जल ही ना रही थी। मैं तो इतनी देर से लगी हूं चूल्हा जलाने में!" "रहने दे, ज्यादा बात मत बना! देख रही हूं जब से पेट पड़ा है, ज्यादा ही हाथ पैर ढीले हो गए हैं तेरे। अरे हमने भी तो छे छे बच्चे जने हैं। हमने तो कभी यों हाथ पैर ना छोड़ें और तेरा ये आलस देखकर तो लगता है कि इस बार भी छोरी
Full Novel
कृष्णा - भाग-१
"अरे बहू रोटी ना बनी के अभी तक! अंधेरा घिरने को आया! तुझे पता है ना! मुझे सूरज छिपते खाने की आदत है!" "अम्मा वो उपले गीले थे ना इसलिए आंच जल ही ना रही थी। मैं तो इतनी देर से लगी हूं चूल्हा जलाने में!" "रहने दे, ज्यादा बात मत बना! देख रही हूं जब से पेट पड़ा है, ज्यादा ही हाथ पैर ढीले हो गए हैं तेरे। अरे हमने भी तो छे छे बच्चे जने हैं। हमने तो कभी यों हाथ पैर ना छोड़ें और तेरा ये आलस देखकर तो लगता है कि इस बार भी छोरी ...Read More
कृष्णा - भाग २
"क्या हुआ। अब तू कुछ बताएगी या फिर मुंह ही फुलाए रखेंगी!" "अब तुम्हारी मां ऐसी बातें करेगी तो तो आएगा ही ना! आज फिर बैठ गई थी। वही पोते की बात लेकर। अब यह सब मेरे हाथ में है क्या! तुम ही बताओ!" "अच्छा शांत हो जा! ज्यादा मां की बातों को दिल पर मत लिया कर।" "अच्छा जी, आप एक बात बताओ! अगर मुझे इस बार भी लड़की हुई तो क्या आप मुंह फेर लोगे मुझ से!" "लगता है तेरा भी मां की बातों को सुन सुनकर दिमाग फिर गया है। बेटा हो या बेटी बस तेरे ...Read More
कृष्णा भाग-३
इसी बीच कमलेश ने एक बेटे को जन्म दिया । दादी को पोता और बहनों को भाई मिल गया । परिवार में सभी बहुत खुश थे । कृष्णा दसवीं व दुर्गा 12वीं क्लास में पहुंच गई थी। कृष्णा एक मेधावी छात्रा थी और अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल रहती। वही दुर्गा का मन पढ़ाई में बिल्कुल ना लगता था। उसे तो सजना संवरना, नाच गाना और फिल्में देखना ही भाता था। बोर्ड के नतीजे आने के बाद जैसी सब को आशा थी, वही हुआ। कृष्णा ने अपनी कक्षा व स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया और दुर्गा ने किसी ...Read More
कृष्णा भाग-४
वर्ष पंख लगाते ही बीत गए। दुर्गा एक प्यारे से बेटे की मां बन गई थी और कृष्णा ने ऊंचाइयों को छूते हुए बीएससी फर्स्ट डिवीजन से पास की। उसके नाम के साथ एक नया तमगा जुड़ गया, गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा। दीक्षांत समारोह में वह अपने माता-पिता के साथ पहुंची। अपनी बेटी को सम्मानित होता देख। रमेश और कमलेश का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।कृष्णा शुरू से ही साइंटिस्ट बनना चाहती थी और उसका यह सपना कॉलेज से मिली स्कॉलरशिप ने पूरा कर दिया। उसे अगले महीने अमरीका जाने का निमंत्रण मिला था।जिसने भी सुना कृष्णा को बधाई ...Read More
कृष्णा भाग-५
धीरे धीरे समय का पहिया आगे बढ़ता जा रहा था। कृष्णा को नौकरी करते हुए 4 साल हो गए और इस बीच अपनी योग्यता के बलबूते परीक्षा पास कर प्रथम श्रेणी अधिकारी नियुक्त हो चुकी थी। रमेश की तबीयत भी अब काफी बेहतर हो गई थी । दूर रहने से दीपक की भी बुरी संगति और आदतें छूट गई थी और उसने मोबाइल का कामकाज सीख लिया था ।उसमें आए बदलाव और उसकी इच्छा को देख कृष्णा व उसके पिता ने उसका मोबाइल का एक शोरूम शुरू करवा दिया था। रमेश भी उसके साथ शोरूम पर ही बैठते और ...Read More
कृष्णा भाग-६
रमेश अपने दोस्त के बेटे की शादी में गया हुआ था। शाम को जब वह लौटा तो बहुत ही था। उसे इतना खुश देख कमलेश ने कहा "क्या बात है जी! आज बहुत दिनों बाद आपको इतना खुश देख रही हूं । कोई खास बात है!" "हां भाग्यवान मैं कृष्णा की शादी के लिए चिंतित था । भगवान ने मेरी मुराद पूरी कर दी। शादी में मेरे दोस्त किशन का एक रिश्तेदार आया हुआ था। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला कि वह भी अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढ रहा हैं और उनका बेटा भी ...Read More
कृष्णा - भाग -७
देवी देवताओं की पूजा के बाद उसकी सास ने कृष्णा को एक तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा बहु इनसे भी आशीर्वाद लो। यह तेरी सास है ।मोहन की मां!" यह सुन कृष्णा को आश्चर्य हुआ। फिर उसने दोनों हाथ जोड़ अपनी सासू मां से भी आशीर्वाद लिया। शाम को आस पड़ोस की औरतें मुंह दिखाई के लिए आई तो लक्ष्मी को देख उसकी सास से बोली "क्या शांता तुम लगता इसकी नौकरी और लेने पर मर गई। अरे जोड़ी तो मिला लेती। रंग तो देख अपनी बहू का!" ऐसी बातें कृष्णा के लिए कोई नई नहीं थी ...Read More
कृष्णा - 8 - अंतिम भाग
कृष्णा जब से इस घर में आई थी, तब से ही देख रही थी कि उसके ससुर मोहन की अपने छोटे बेटे संजय को अधिक प्यार करते हैं और उसकी हर अनचाही मांग को पूरा करते हैं। संजय ने छोटा सा बिजनेस किया हुआ था लेकिन उसकी लापरवाही की वजह से हर बार बिजनेस में घाटा हो जाता था । जिसकी भरपाई के लिए उसके सास-ससुर जब तब खुद भी और मोहन से भी पैसे ले उसके बिजनेस में लगाते रहते थे। मोहन में कितनी बार अपने माता पिता को समझाने की कोशिश की। संजय सही संगति में नहीं ...Read More