पी.के. (1) बालभवन के पास चाय की दुकान पर वह मित्र के साथ चाय पी रहा था. उनके हाथों में चाय के छोटे गिलास थे और वे दुकान और सड़क के बीच दुकान के निकट ही बातों में मशगूल थे. लंबे समय बाद वह मित्र से मिला था जो उन दिनों पास के कैनेरा बैंक में पो.ओ. था. वे बात
Full Novel
पी.के. - 1
पी.के. (1) बालभवन के पास चाय की दुकान पर वह मित्र के साथ चाय पी रहा था. उनके हाथों चाय के छोटे गिलास थे और वे दुकान और सड़क के बीच दुकान के निकट ही बातों में मशगूल थे. लंबे समय बाद वह मित्र से मिला था जो उन दिनों पास के कैनेरा बैंक में पो.ओ. था. वे बात ...Read More
पी.के. - 2
पी.के. (2) “चाय पीने.” “मैं पिलाउंगा चाय आज आपको.” पीके बोला और साथ हो लिया था. वह कुछ नहीं पाया था, लेकिन तभी उसके मन में एक बात पैदा हुई थी और उसने सोचा था कि चाय पीते हुए वह पीके से अपनी बात कहेगा. “यह मेरे सहयोगी नबारिया हैं. दस बजे से पांच बजे तक की ड्यूटी पर हैं. पीछे बैठते हैं---“ उसने नबारिया से हाथ मिलाया. “पीके की ड्यूटी तीन बजे तक है. उसके बाद आपको जब भी कोई पुस्तक की जरूरत हो और न मिल रही हो तब मुझे बताएंगे.” नबारिया बिना कुछ कहे ही अपनी ...Read More
पी.के. - 3
पी.के. (3) पीके उन दिनों हाई स्कूल था और उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड से प्राइवेट इंटरमीडिएट कर रहा था. नहीं नबारिया भी हाई स्कूल ही था और वह भी पीके के साथ प्राइवेट परीक्षा की तैयारी कर रहा था. इस प्रकार पीके की पत्नी और वे दोनों परीक्षार्थी थे. पीके उससे पहले तीन बार प्रयास कर चुका था और असफल रहा था. वह उसका चौथा अवसर था. “विनोद बाबू, इंटर होता तब मैं आज जूनियर अटेण्डेण्ट नहीं होता. मैं भी सीनियर हो चुका होता----.” यह कहते हुए पीके के चेहरे पर मायूसी उभर आयी थी. “इंटरमीडिएट करना इतना कठिन ...Read More
पी.के. - 4 - अंतिम भाग
पी.के. (4) सुमन और डॉ. तनेजा की मुलाकातें बढ़ने लगी थीं. सुमन के लाइब्रेरी जाना शुरू करने के बाद घर के बजाय उसके ऑफिस में मिलने जाने लगा था. पीके लंच के लिए प्रति दिन घर जाता था एक बजे और डेढ़ बजे लौट आता था. यह उसकी पुरानी आदत थी, जबकि सुमन लंच लेकर जाती थी. एक दिन बच्चों की बस सुबह आठ बजे स्टैंड पर पहुंची. आठ बजे पीके को लाइब्रेरी खोलवानी होती थी. बच्चों को छोड़कर वह सीधे लाइब्रेरी की ओर दौड़ा और काम में इतना व्यस्त हुआ कि अपनी दूसरी चाबी लेने जाने का उसे ...Read More