कर्म पथ पर

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‌ Chapter 1सन 1942 का दौर था। सारे देश में ही अंग्रेज़ों को देश से बाहर कर स्वराज लाने का प्रबल संकल्प था। देश को अंग्रज़ों की पराधीनता से छुड़ाने का जुनून हर स्त्री, पुरुष और युवा पर छाया था।9 अगस्त 1942 को गांधीजी ने बंबई के गोवालिया टैंक मैदान से अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाने की चेतावनी दी। उन्होंने देशवासियों को नारा दिया 'करो या मरो'। गांधीजी के इस आवाहन पर हजारों की संख्या में नर नारी सड़कों पर उतर पड़े। युवा वर्ग इस मुहिम में बढ़ चढ़ कर

Full Novel

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कर्म पथ पर - 1

‌ Chapter 1सन 1942 का दौर था। देश में ही अंग्रेज़ों को देश से बाहर कर स्वराज लाने का प्रबल संकल्प था। देश को अंग्रज़ों की पराधीनता से छुड़ाने का जुनून हर स्त्री, पुरुष और युवा पर छाया था।9 अगस्त 1942 को गांधीजी ने बंबई के गोवालिया टैंक मैदान से अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाने की चेतावनी दी। उन्होंने देशवासियों को नारा दिया 'करो या मरो'। गांधीजी के इस आवाहन पर हजारों की संख्या में नर नारी सड़कों पर उतर पड़े। युवा वर्ग इस मुहिम में बढ़ चढ़ कर ...Read More

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कर्म पथ पर - 2

Chapter 2मुंशी दीनदयाल खाने के बाद लेटे हुए आराम कर रहे थे। किंतु मन बेचैन था। अब अक्सर स्वास्थ रहता था। उन्हें लगता था कि अधिक दिन जीवित नहीं रह पाएंगे। एक वर्ष पहले ही उन्होंने मुनीमतगिरी से आवकाश ग्रहण कर लिया था। अब सेठ जी के यहाँ से थोड़ी सी पेंशन मिलती थी। उसी से काम चलता था।उनकी चिंता का कारण धन नहीं था। थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी जिससे जीवन आराम से कट सकता था। उन्हें फिक्र थी अपनी बेटी वृंदा की। वह छोटी उम्र ...Read More

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कर्म पथ पर - 3

कर्म पथ पर Chapter 3कैसरबाग में श्यामलाल टंडन का शानदार बंगला था। श्यामलाल का रहन सहन पश्चिमी तौर तरीकों पर आधारित था। उनका खान पान, लिबास और बोली सभी कुछ अंग्रेज़ी था।अंग्रेज़ों की तरह ही वह वक्त के बहुत पाबंद थे। उनके हर काम का नियत समय था। वह उसी के अनुसार काम करते थे। कारिंदों से काम में ज़रा सी भी चूक होती थी तो उनकी खैर नहीं होती थी। यह ...Read More

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कर्म पथ पर - 4

कर्म पथ पर Chapter 4घायल हाथ लिए वृंदा जब अपने घर पहुँची तो उसे देख कम्मो घबरा गई, हाय दइया..! यू का भया दीदी। कुछ नहीं तुम जाकर दवा का डब्बा ले आओ। वृंदा मरहम पट्टी करना जानती थी। कम्मो भाग कर दवा का डब्बा ले आई। वृंदा के हर निर्देश का कम्मो अच्छी तरह पालन कर रही थी। कुछ ही देर में वृंदा ने घाव साफ कर पट्टी बाँध ली। कम्मो उसके लिए हल्दी वाला दूध ले आई। दूध का ...Read More

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कर्म पथ पर - 5

कर्म पथ पर Chapter 5लखनऊ में एक केस चर्चा का विषय बना हुआ था। लखनऊ के सभी प्रमुख अखबारों में इस केस की चर्चा हो रही थी। केस सत्रह साल के एक क्रांतिकारी युवक मानस पाठक पर चल रहा था। मानस पर आरोप था कि उसने एक अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी जॉर्ज बर्ड्सवुड के काफिले पर बम फेंका था। मानस उन्नाव का रहने वाला था। वह एक निर्धन किसान परिवार से ताल्लुक रखता था। वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के ...Read More

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कर्म पथ पर - 6

कर्म पथ पर Chapter 6कोर्ट रूम में उपस्थित सभी लोग श्यामलाल की तर्कशक्ति से बहुत प्रभावित थे। मानस की नोटबुक सामने लाकर उन्होंने अपना पक्ष मजबूत कर लिया था।‌ अब वह केस को पुरी तरह से अपने पक्ष में मोड़ने के लिए कमर कस चुके थे। श्यामलाल ने जज से कहा, योर लॉर्डशिप, जिस वाक्य की मैं चर्चा कर रहा था वह मानस ने लिखा है। अतः मैं मानस से ही कुछ सवाल पूँछना चाहता हूँ। इजाज़त मिलने पर श्यामलाल ने ...Read More

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कर्म पथ पर - 7

कर्म पथ पर Chapter 7आरंभ में वृंदा को हिंद प्रभात का काम संभालने में कुछ मुशकिल हुई थी। अब तक वह केवल लेख लिखती रही थी। लेकिन यहाँ उसकी ज़िम्मेदारी बड़ी थी। पर उसने इस काम को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया था। उसमें सीखने की लगन थी और भुवनदा एक सुलझे हुए शिक्षक। अतः कुछ दिनों में ही वह बहुत कुछ सीख गई। हिंद प्रभात रोज़ अपने क्रांतिकारी विचारों के साथ पाठकों तक पहुँचता था। ...Read More

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कर्म पथ पर - 8

कर्म पथ पर Chapter 8वृंदा और भुवनदा हिंद प्रभात के अगले ‌अंक में छपने वाले एक लेख पर आपस में विमर्श कर रहे थे। यह लेख लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्रों में हो रहे क्रांतिकारी आंदोलनों के बारे में था। लेख में बाराबंकी में रहने वाली नूरजहाँ सिद्दीकी का उल्लेख था। नूरजहाँ की उम्र बीस साल थी। उसके शौहर असगर अली सरकारी स्कूल में उर्दू के टीचर थे। पुलिस ने उन पर क्रांतिकारियों के साथ मिले होने ...Read More

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कर्म पथ पर - 9

कर्म पथ पर Chapter 9मानस को जेल भिजवाने के बाद से ही श्यामलाल बहुत खुश थे। उन्हें लग रहा था कि यह केस जीत कर उन्होंने खुद को अंग्रेज़ी हुकूमत की नज़रों में चढ़ा लिया है। बाकी जो कुछ रही सही कसर है वह जय के नाटक से पूरी हो जाएगी।इतने सालों में पहली बार उन्हें अपने बेटे जय पर गर्व हो रहा था। अब तक‌ उसने सिर्फ उनकी दौलत खर्च करने का काम ही किया ...Read More

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कर्म पथ पर - 10

‌‌‌ कर्म पथ पर Chapter 10नाटक के पहले शो के दिन सभी बहुत उत्साहित थे। सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। बस कुछ ही समय में नाटक का मंचन शुरू होने वाला था। सिर्फ जय कुछ अनमना सा था। इंद्र ने उसे समझाया कि वह उस लड़की की बातों को मन से ना लगाए। शो खराब हो गया तो तुम्हारे पिता की प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए वह ऊपरी तौर पर खुश रहने का दिखावा कर रहा था। विलास ...Read More

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कर्म पथ पर - 11

कर्म पथ पर Chapter 11श्यामलाल जय के अचानक पार्टी छोड़ कर चले जाने से बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने जय को इस बात के लिए बहुत डांट लगाई। जय ने भी चुपचाप सबकुछ सुन लिया। श्यामलाल परेशान थे। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर जय को हो क्या गया है। पहले तो अच्छा खासा था। कितने उत्साह से उसने नाटक में प्रमुख भूमिका निभाई थी। शो भी सफल ...Read More

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कर्म पथ पर - 12

कर्म पथ पर ‌ Chapter 12उस दिन वृंदा नाटक का पहला शो रुकवाने के लिए अपने साथियों के साथ विलास रंगशाला की तरफ बढ़ रही थी। पर रास्ते में ही पुलिस ने उसे और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। शाम तक भुवनदा ने वृंदा की जमानत करवा दी थी। जब वह घर पहुँची तो वहाँ माहौल ही अलग था। पड़ोसी बनवारी लाल, उनके पिता, शंकर और कुछ अन्य लोग घर के दरवाज़े पर खड़े थे। उसके पहुँचते ही शंकर बोला, लो आ ...Read More

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कर्म पथ पर - 13

कर्म पथ पर Chapter 13मदन से मिलने के बाद से जय और भी बेचैन हो गया था। मन में उथल पुथल मची थी। इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या वृंदा उस पर विश्वास करेगी। यदि उसने मिलने से मना कर दिया तो क्या होगा।दरअसल जय की उलझन का कारण यह नहीं था कि वृंदा क्या निर्णय लेगी। वह तो अपने मन को ही नहीं समझ पा रहा था। आखिर क्यों उसका मन इस तरह वृंदा की ...Read More

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कर्म पथ पर - 14

कर्म पथ पर Chapter 14वृंदा को होश आया तो उसके चारों तरफ अंधेरा था। कुछ देर बाद जब आँखें कुछ अभ्यस्त हुईं तो उसे समझ में आया कि वह किसी कमरे में बंद थी। उसके हाथ पाँव बंधे थे। लेकिन यह पुलिस लॉकअप नहीं था। उसके मन में आया कि उसे तो पुलिस गिरफ्तार कर लाई थी। पर वह पुलिस हिरासत में नहीं थी। तो फिर वह थी कहाँ ? उसे अंतिम जो बात याद थी कि एक हवलदार ने उसे ...Read More

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कर्म पथ पर - 15

कर्म पथ पर Chapter 15हैमिल्टन बहुत ही सनकी और क्रूर था। जो भी उसके खिलाफ जाता था उसे बुरी तरह कुचल देता था। जब हिंद प्रभात में उसके खिलाफ रिपोर्ट छपी तो वह क्रोध से पागल हो गया। जब उसे पता चला कि उसके विरुद्ध रिपोर्ट लिखने वाली एक बाल विधवा औरत है, जिसका नाम वृंदा है तो उसने उसके किए की सजा दिलाने के लिए कमर कस ली।उसने फौरन अपने मित्र पुलिस कमिश्नर से कह कर वृंदा की गिरफ्तारी ...Read More

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कर्म पथ पर - 16

कर्म पथ पर Chapter 16हैमिल्टन के चंगुल से बच कर वृंदा छिपते छिपाते भुवनदा के पास पहुँची। उसे देखते ही भुवनदा रो पड़े। फिर आश्चर्य से बोले, तुम पुलिस की गिरफ्त से कैसे छूटीं ? मदन ने बताया था कि जब तुम पार्क में पहुँचीं तब पुलिस ने तुम्हें गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन फिर वृंदा की दशा देखकर बोले, पहले चलकर बैठो। तुम बहुत थकी हुई लग रही हो। भुवनदा ने उसे कमरे में ले जाकर बैठाया। फिर नौकर को आवाज़ लगाई। बंसी एक ...Read More

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कर्म पथ पर - 17

‌ कर्म पथ पर Chapter 17अपने कमरे में पहुँच कर जय बिस्तर पर गिर गया। उसकी आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे। जो कुछ भी वृंदा पर बीती थी, उसे जानने के बाद उसका मन बहुत विचलित हो गया था। अब वह पछता रहा था कि क्यों उसने वृंदा से मिलने की इच्छा जताई थी। ना ही वह वृंदा से मिलने जाता और ना ही पुलिस उसे गिरफ्तार कर उस हैमिल्टन के बंगले पर ...Read More

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कर्म पथ पर - 18

कर्म पथ पर Chapter 18सब जानने के बाद भी जय ने खुद को काबू में कर लिया था। वह चाहता तो उसी समय इंद्र को उसके धोखे के लिए खरी खोटी सुनाई सकता था। अपने पापा से सवाल कर सकता था कि अपने रुतबे में एक उपाधि जोड़ने के लिए उन्होंने वृंदा को उस दरिंदे हैमिल्टन के पास क्यों पहुँचा दिया। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह जानता था कि अभी ऐसा करने पर ये लोग उसे दबा देंगे। वह हैमिल्टन ...Read More

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कर्म पथ पर - 19

कर्म पथ पर Chapter 19वृंदा ने वैसे ही क्रोध से मदन को देखा। ये कैसा मज़ाक है मदन ? मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। मदन ने बड़ी गंभीरता के साथ जवाब दिया। मैं इतने गंभीर विषय को मज़ाक में नहीं ले सकता हूँ।‌ मैंने जो कहा वह एकदम सच है। वृंदा अभी भी तमतमाई हुई थी। वो बिगड़ैल रईसज़ादा हमारी लड़ाई का सिपाही बनेगा ? तुमने ही तो कहा था कि जो सच्चे मन से आना चाहे उसका स्वागत है। उसने भी सच्चे ...Read More

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कर्म पथ पर - 20

कर्म पथ पर Chapter 20बहुत सोंचने के बाद भी जय यह नहीं तय कर पा रहा था कि अपनी शुरुआत कैसे करे। इसलिए उसने मदन को मिलने के लिए गोमती नदी के किनारे उसी जगह बुलाया था जहाँ वो दोनों पिछली बार मिले थे।दोनों जब किनारे पर पहुँचे तो मल्लाह रामसनेही भाग कर उनके पास आया। बाबूजी आपने पहचाना, हम वही हैं जिसने उस दिन नाव की सैर कराई थी। जय ने पहचान कर कहा, हाँ बिल्कुल पहचान लिया। कैसे हो ? रामजी की ...Read More

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कर्म पथ पर - 21

कर्म पथ पर Chapter 21रंजन और जय मेवाराम आढ़तिये की दुकान के बाहर खड़े थे। एक आदमी को दुकान से निकलते देख कर जय ने आगे बढ़ कर कहा,"नमस्ते भाई साहब। इस दुकान में श्री शिव प्रसाद सिंह हिसाब किताब देखने का काम करते हैं।""हाँ कहिए क्या काम है आपको ?""जी उनसे मिलना था।""किस सिलसिले में ?"रंजन ने कहा,"जी वो हमारे मामा हैं।""अच्छा कौन सी बहन के बेटे हो ?"रंजन ने बिगड़ते हुए कहा,"आप उनसे मिलवा दीजिए। हम ...Read More

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कर्म पथ पर - 22

कर्म पथ पर Chapter 22खाना खाने के बाद जय ने मालती से कहा,"बहुत ही स्वादिष्ट खाना था। तुम्हारी अम्मा ने बनाया था।""खाना अम्मा ही बनाती हैं। मैं कभी कभी उनकी मदद कर देती हूँ।""अपनी अम्मा को मेरे और मेरे साथी की तरफ से धन्यवाद देना। उनसे कहना कि मैं उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ।"संतोषी आड़ में खड़ी जय की बात सुन रही थी। उसने आड़ में रहते हुए ही कहा,"मेहमान को भोजन कराना तो हमारी ...Read More

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कर्म पथ पर - 23

कर्म पथ पर Chapter 23आंगन में पूरी तरह शांति थी। सिर्फ कोने में लगे नीम के पेड़ पर बैठी चिड़ियों की चहचहाट ही सुनाई पड़ रही थी। संतोषी वृंदा के बारे में सोंच रही थी। वह जानना चाहती थी कि हैमिल्टन ने उसके साथ क्या किया। उसके मन में हो रही उथल पुथल को समझने की कोशिश कर रहा था। संतोषी ने जय से पूँछा।"उस दानव ने वृंदा के साथ क्या किया ?"जय ने वृंदा के साथ जो कुछ ...Read More

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कर्म पथ पर - 24

कर्म पथ पर Chapter 24माधुरी जब घर लौटी तो परेशान व बुझी बुझी थी। संतोषी उसे इस हाल में देखकर घबरा गई।"क्या हुआ बिटिया ? तू इतनी परेशान क्यों हैं। तुम तो अपने बाबूजी के साथ गई थी। अकेली क्यों आईं ? कहाँ हैं तुम्हारे बाबूजी ?"माधुरी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। संतोषी बुरी तरह डर गई। उसे लगा कि शायद उसके पति के साथ कोई दुर्घटना हो गई है।"माधुरी सच सच बताओ। तुम्हारे बाबूजी ...Read More

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कर्म पथ पर - 25

कर्म पथ पर Chapter 25शिव प्रसाद गुस्से में उबलते हुए हवेली पहुँचे‌। पर उन्हें गेट के भीतर ही नहीं घुसने दिया गया‌ दरबान ने कहा कि उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं है। शिव प्रसाद का गुस्सा और भड़क गया। उन्होंने जबरन भीतर जाने की कोशिश की। इस पर दरबान ने उन्हें धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया।अपमान की आग में जलते हुए शिव प्रसाद पुलिस थाने पहुँचे। उन्होंने थानेदार बृजलाल क खत्री को हैमिल्टन द्वारा अपनी बेटी पर किए ...Read More

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कर्म पथ पर - 26

कर्म पथ पर Chapter 26शिव प्रसाद जय और रंजन के साथ बैठे थे। सभी खामोश थे। शिव प्रसाद समझ नहीं पा रहे थे कि आगे की कहानी कैसे बनाएं। रंजन ने बात बढ़ाते हुए कहा, आपकी बेटी के साथ बहुत बुरा हुआ। उस हैमिल्टन ने एक प्रतिभाशाली लड़की का जीवन बर्बाद कर दिया। शिव प्रसाद ने कहा, जब भी उस हैमिल्टन के बारे में सोंचता हूँ तो गुस्से से जल उठता हूँ। पर अब मैं भी लगभग हार मान चुका हूँ। समाज का जो ...Read More

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कर्म पथ पर - 27

कर्म पथ पर Chapter 27महेंद्र के जाने के बाद घर में तनाव का माहौल था। शिव प्रसाद नहीं चाहते थे कि हैमिल्टन द्वारा सुझाए गए रिश्ते के बारे में सोंचा जाए। उनका मानना था कि हैमिल्टन नॅ अपने ही किसी स्वार्थ के लिए यह रिश्ता भेजा है। स्टीफन से शादी करवा कर वह अपना ही कोई हित साधेगा।संतोषी भी इस बात को समझती थी। पर महेंद्र ने जाते समय जो कहा था वह उससे डरती थी। उसे अक्सर ...Read More

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कर्म पथ पर - 28

कर्म पथ पर Chapter 28खाने के बाद शिवप्रसाद संतोषी से बात करने के लिए गए। "संतोषी रमनलाल भाईसाहब ने उपाय तो अच्छा सुझाया है। महेंद्र के ज़रिए एक बार स्टीफन से मिल कर उसे परखने की कोशिश की जा सकती है।""मैं जानती थी कि भइया कोई ना कोई सही राह बता देंगे। तभी तार देकर उन्हें बुलवाया था। आप कल जाकर महेंद्र से इस बारे में बात करिए।""हाँ.... मैंने भी यही सोंचा हैं। लेकिन संतोषी मान लो स्टीफन ...Read More

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कर्म पथ पर - 29

कर्म पथ पर Chapter 29अपनी कहानी सुनाते हुए शिवप्रसाद चुप हो गए। कमरे में सन्नाटा छा गया। जय और रंजन भी भावुक हो गए थे। जय उठ कर शिवप्रसाद के पास आया। उनके कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली दी। मालती एक लोटे में पानी और गिलास रख गई थी। रंजन ने शिवप्रसाद को पानी पिलाया। अपनी भावनाओं पर काबू करने के बाद शिवप्रसाद बोले,"मजबूरी इंसान से क्या नहीं करा देती है। जय बाबू मैं कायर नहीं हूँ। पर जानता था कि हैमिल्टन ...Read More

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कर्म पथ पर - 30

कर्म पथ पर Chapter 30माधुरी और उसके परिवार के साथ जो कुछ हुआ उसे सुनकर वृंदा को हैमिल्टन पर बहुत क्रोध आया।"रंजन मैं समझ ‌सकती हूँ कि माधुरी को क्या सहना पड़ा होगा। उस हैमिल्टन की वहशियत को मैंने भी झेला है। उस दिन मेरे भीतर सोई ना जाने कौन सी शक्ति जाग उठी थी कि मैं बच कर भाग निकली थी। अगर मैं हिम्मत हार गई होती तो उसने मुझे मरवा दिया होता।""दीदी आप कितनी हिम्मती हैं ...Read More

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कर्म पथ पर - 31

कर्म पथ पर Chapter 31जब स्टीफन ने कमरे में प्रवेश किया माधुरी बैठी बाइबल पढ़ रही थी। माधुरी ने बाइबल को बंद कर आल्टर पर प्रभु यीशू की प्रतिमा के पास रख दिया। उसने रोज़ी को आवाज़ देकर पानी लाने को कहा। स्टीफन के पानी पी लेने पर वह उसके लिए चाय का इंतज़ाम करने चली गई। स्टीफन कई दिनों से देख रहा था कि माधुरी ने बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया है। वह अपने आचार व्यवहार में और ...Read More

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कर्म पथ पर - 32

कर्म पथ पर Chapter 32जय ने उन लोगों को हिंद प्रभात के साथ अपना संबंध बताते हुए उसके मेरठ जाकर माधुरी के अम्मा बाबूजी से मिलने वाली सारी बात विस्तार से बता दी। जय ने माधुरी से कहा, मैं लौट कर आया तो तुम्हारे बाबूजी को दिया गया वचन कि मैं व्यक्तिगत तौर पर तुम्हारे बारे में पता करूँगा, मुझे हर समय बेचैन किए रहता था। मैंने तुम्हारे विषय में पता करना शुरू कर दिया। माधुरी ने ...Read More

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कर्म पथ पर - 33

कर्म पथ पर Chapter 33स्टीफन के पिता विलियम क्लार्क जॉन हैमिल्टन के दोस्त थे।‌ दोनों ने साथ ही लंदन में पढ़ाई की थी। उसके बाद दोनों एक साथ भारत आ गए। दोनों ही अल्मोड़ा में रहते थे। विलियम एक प्रकृति प्रेमी व्यक्ति थे। उन्हें पहाड़ों पर पाई जाने वाली जड़ी बूटियों के औषधीय गुणों का भी बहुत ज्ञान था। यह ज्ञान उन्होंने अपने पिता से प्राप्त किया था। उनके पिता ने एक वैद्य से आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान अर्जित किया ...Read More

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कर्म पथ पर - 34

‌‌‌ कर्म पथ पर Chapter 34माधुरी यह तो जानती थी कि स्टीफन एक बहुत अच्छा इंसान है। पर अभी तक उसे उसके पिछले जीवन के बारे में जानने का मौका नहीं मिला था। आज पहली बार उसे अपने पति के बीते हुए जीवन के बारे में पता चल रहा था। स्टीफन ने कहा, अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर मैं हैमिल्टन के पास लखनऊ आ गया। मैं उसके अहसानों के तले दबा था। मेरी अनुपस्थिति में उसने मेरी माँ की देखभाल की थी। ...Read More

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कर्म पथ पर - 35

कर्म पथ पर Chapter 35एक तरफ से हैमिल्टन का प्रस्ताव लुभावना था। उसकी सुझाई लड़की से शादी करने से स्टीफन का क़र्ज़ भी उतर जाता और घर भी बस जाता। पर कुछ बातें उसे खटक भी रही थीं। सबसे बड़ी बात यही थी कि हैमिल्टन को अपने ऑफिस के एक हिंदुस्तानी क्लर्क से इतनी सहानुभूति क्यों हो रही थी। अब तक स्टीफन का अनुभव यही रहा था कि हैमिल्टन अपने नीचे काम करने वालों से अधिक वास्ता नहीं रखता ...Read More

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कर्म पथ पर - 36

कर्म पथ पर Chapter 36जय सब जानकर बहुत गंभीर हो गया था। स्टीफन और माधुरी ने बहुत कुछ झेला था। जय ने कहा,"आप लोगों को बहुत सी तकलीफों का सामना करना पड़ा। पर मैं आपकी तारीफ करूँगा कि आप झुके नहीं। आपने माधुरी को उस दुष्ट के नापाक इरादों से दूर रखा।""मिस्टर टंडन मैंने जो किया वह पति के तौर पर मेरा फर्ज़ था। माधुरी ने भी कम हिम्मत नहीं दिखाई। डट कर हर परिस्थिति का सामना किया। मैं ...Read More

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कर्म पथ पर - 37

कर्म पथ पर Chapter 37जय अपने कमरे में जा रहा था जब भोला ने आकर कहा कि बड़े मालिक उसे अपने कमरे में बुला रहे हैं।जय अपने पिता के कमरे में गया। वह कानून की कोई किताब लेकर बैठे थे। जय को देखकर किताब बंद कर दी। उसे पास पड़ी हुई कुर्सी पर बैठने को कहा।जय उनके पास बैठ गया। वह इंतज़ार कर रहा था कि श्यामलाल कुछ कहें। श्यामलाल ने शांत गंभीर स्वर में कहा,"आजकल तुम घर से गायब रहने ...Read More

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कर्म पथ पर - 38

कर्म पथ पर Chapter 38गोमती नदी पर पड़ती सूरज की किरणें इस तरह का प्रभाव पैदा कर रही थीं जैसे नदी पर सुनहरा वर्क चढ़ा हो। तट पर बैठा मदन जय के बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था। जय को संकोच में देखकर मदन ने ही बात आगे बढ़ाई।"किसी गहरी चिंता में लग रहे हो ? क्या बात है ?"जय ने दूर दूसरे किनारे पर नज़र टिकाकर कहा,"मदन मैंने अपने पापा का घर छोड़ दिया। उन्हें मंजूर नहीं था ...Read More

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कर्म पथ पर - 39

कर्म पथ पर Chapter 39खुले तौर पर नहीं किंतु मन ही मन विष्णु क्रांतिकारियों का समर्थन करते थे। ये बात मदन को पता थी। इसलिए वह जय को लेकर उनके पास गया था। उस दिन जब विष्णु ने अपने घर पर देखा तो उन्हें अंग्रेज़ी अखबार में छपी उसकी तस्वीर की याद आ गई थी। उसमें छपे जय के परिचय के कारण वह पहचान गए थे कि वह मशहूर वकील श्यामलाल टंडन का बेटा है। बस वह यह नहीं समझ ...Read More

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कर्म पथ पर - 40

कर्म पथ पर Chapter 40भुवनदा के घर पर एक बैठक चल रही थी। इस बैठक में मदन, रंजन और जय भी शामिल थे। हैमिल्टन के खिलाफ वृंदा की दूसरी रिपोर्ट छपने के बाद भुवनदा ने कुछ दिनों तक हिंद प्रभात का संचालन बंद करने का फैसला किया था। वह अपने नौकर बंसी के साथ अपने घर रहने आ गए थे। वृंदा भी अपने घर ना जाकर भुवनदा के साथ ही चली आई थी। उनका मानना था कि वृंदा ...Read More

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कर्म पथ पर - 41

कर्म पथ पर Chapter 41जय को घर छोड़कर गए तीन महीने हो रहे थे। श्यामलाल उसके बारे में ही सोंच रहे थे। वह अजीब सी विचित्र स्थिति में थे। कभी जय की धृष्टता पर क्रोधित होते थे। तो कभी यह सोंच कर दुखी होते थे कि अपनी बेवजह की ज़िद में वह बेकार ही कष्ट उठा रहा है।इस समय वह एक गहरी सोंच में बैठे थे। जय से उन्होंने कभी भी कोई आशा नहीं की थी। वह देखते ...Read More

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कर्म पथ पर - 42

कर्म पथ पर ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ Chapter 42जबसे जय अपना घर छोड़कर गया था इंद्र को महसूस हो रहा था कि उसके जाल में फंसी सोने की मछली देखते ही देखते उसके जाल से निकल गई है। एक ही झटके में उसके सपनों का रंगमहल भरभरा कर गिर गया। वह यह बात सहन नहीं कर पा रहा था। इंद्र बंबई की फिल्म नगरी में अपना नाम बनाना चाहता था। पहले जब उसने कोशिश की थी तो वह सफल नहीं हो सका था। ...Read More

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कर्म पथ पर - 43

कर्म पथ पर Chapter 43 हिंद प्रभात फिर से आरंभ हो गया था। हालांकि ‌अभी पहले की तरह काम नहीं हो पा रहा था। अभी हफ्ते में केवल दो बार ही चार पृष्ठों का अखबार निकल पा रहा था। उसकी भी कुछ प्रतियां छप रही थीं। जिन्हें बड़ी सावधानी के साथ गुपचुप कुछ नियमित पाठकों तक पहुँचाया जा रहा था।इस समय वृंदा लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में अंग्रेज़ों के विरुद्ध मोर्चा चला रहे लोगों की कहानियों को ...Read More

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कर्म पथ पर - 44

कर्म पथ पर 44इंद्र श्यामलाल के बुलाने पर उनके बंगले पर पहुँचा था। नौकर भोला उसे श्यामलाल के कमरे में ले गया। श्यामलाल की दशा देखकर इंद्र समझ गया कि वह अपने बेटे को लेकर बहुत चिंतित हैं।"नमस्ते चाचा जी... आपने बुलाया था।""हाँ बेटा। कुछ बात करनी थी। आओ बैठो।"इंद्र उनके पास जाकर बैठ गया। श्यामलाल ने बड़े ही दुखी स्वर में कहा,"बेटा... तुमसे जय के नारे में पता करने को कहा था। कुछ पता चला।""नहीं चाचा जी...अगर कोई खबर होती तो मैं ...Read More

45

कर्म पथ पर - 45

कर्म पथ पर Chapter 45हैमिल्टन का धैर्य खत्म हो रहा था। वृंदा की रिपोर्ट को छपे हुए बहुत समय हो गया था पर अभी तक उसका कोई पता नहीं चला था। वह इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर की प्रतीक्षा कर रहा था। वही था जिससे वह कोई उम्मीद कर सकता था। इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर बहुत ही काबिल था। सबसे बड़ी बात यह थी कि वह हिंदुस्तानियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। इसलिए जल्दी से जल्दी यहाँ से वापस इंग्लैंड ...Read More

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कर्म पथ पर - 46

कर्म पथ पर Chapter 46भुवनदा की प्रेस मोहनलाल गंज के सिसेंदी गांव में थी। उनको यहाँ लोग वसुदेव गुप्ता के नाम से जानते थे। वैसे उनके लहजे में एक बंगालीपन था। इसके लिए भुवनदा ने कह रखा था कि बचपन में उनके पिता उन्हें बंगाल ले गए थे। वो सिलीगुड़ी में एक चाय बागान के मैनेजर थे। वहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। इसलिए बंगाली बोलने की आदत रही थी। पर पिछले कुछ सालों से वह अपने मूल निवास स्थान ...Read More

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कर्म पथ पर - 47

कर्म पथ पर Chapter 47कमला के मन में बार बार लता के भविष्य की चिंता घूम रही थी। लता उसकी पहली संतान थी। अपने बच्चों में उसे वह सबसे अधिक प्यारी थी। जब उसे पता चला था कि लता का रिश्ता उससे उम्र में तीन गुना बड़े उत्तम से हो रहा है तो उसने इसका पुरजोर विरोध किया था। उत्तम की पहली पत्नी का देहांत हो चुका था। वह दो बच्चों का बाप था। उसे अपनी फूल ...Read More

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कर्म पथ पर - 48

कर्म पथ पर Chapter 48स्टीफन अस्पताल से लौट कर आया तो माधुरी अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी। उसे स्टीफन के आने का भी पता नहीं चला। स्टीफन भी बिना कोई आहट किए चुपचाप उसे पढ़ते हुए देख रहा था। इस समय स्टीफन एक पति या हितैषी के रूप में उसे नहीं देख रहा था। बल्कि एक प्रेमी की तरह उसे निहार रहा था। ऐसा वह पिछले कई दिनों से कर रहा था। जब भी माधुरी पढ़ाई करती या किसी काम ...Read More

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कर्म पथ पर- 49

कर्म पथ पर Chapter 49महेंद्र कुमार खुश था। उसने हैमिल्टन के बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि हैमिल्टन उसकी इस कामयाबी पर उसकी पीठ थपथपाएगा। खुश होकर उसे मनचाहा ईनाम देगा। घर से निकलते वक्त उसकी पत्नी ने टोका,"आज सुबह सुबह कहाँ जा रहे हैं ?"और कोई दिन होता तो वह टोके जाने पर चिढ़ जाता। पर आज उसका मूड बहुत अच्छा था। उसने कहा,"बोलो लौटते समय बाजार से क्या लेकर आऊँ ?"उसकी पत्नी को विश्वास ...Read More

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कर्म पथ पर - 50

कर्म पथ पर Chapter 50बृजकिशोर गांव के कुछ अन्य लोगों के साथ आए थे। वह सब नाराज़ लग रहे थे। भुवनदा ने उन्हें बैठाते हुए कहा,"आप लोगों को जो कुछ भी कहना है ‌वह इत्मिनान से बैठ कर करिए। इस तरह से नाराज़ होने की क्या जरूरत है।"सभी लोग बैठ गए। बृजकिशोर ने गुस्से में कहा,"देखिए वासुदेव जी आप अपनी भतीजी सावित्री को समझा लीजिए। हम अपनी परंपराओं में किसी का दखल नहीं सहेंगे। आपकी भतीजी ...Read More

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कर्म पथ पर - 51

कर्म पथ पर Chapter 51वृंदा दुखी थी‌। उसने लता और अन्य लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए गांव वालों को समझाने का प्रयास किया। पर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी। बल्की उन चार लड़कों को भी स्कूल भेजना बंद कर दिया। वह सोंच रही थी कि जो समाज को एक दिशा दिखाते हैं। उनके भले के लिए काम करते हैं। समाज उनके ही खिलाफ क्यों हो जाता है। उनका अपमान और तिरस्कार क्यों करता है। इतिहास में ...Read More

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कर्म पथ पर - 52

कर्म पथ पर Chapter 52बनारस में भी हैमिल्टन को निराशा ही हाथ लगी। इसने उसकी खीझ को और बढ़ा दिया था। इससे पहले सुजीत कुमार मित्रा के मकान का पता चलने पर उसे लगा था कि बस अब वृंदा उसके कब्ज़े में आने वाली है। पर वहाँ पता चला कि वो लोग मकान छोड़कर चले गए। उसके बाद से उसका कोई पता नहीं चल रहा था।‌ महेंद्र माधुरी की एकदम सटीक खबर लाया था। पर जब हैमिल्टन के आदमी ...Read More

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कर्म पथ पर - 53

कर्म पथ पर Chapter 53जय ने अपनी राह चुन ली थी। अपना निर्णय कर वह भुवनदा के पास पहुँचा। अपना निर्णय बताते हुए उसने कहा,"दादा... मैंने देश और समाज के लिए कुछ करने के इरादे से अपने पापा का घर छोड़ा था। पर अभी तक तय नहीं कर पाया था कि मुझे करना क्या है। पर अब मैंने अपना मन पक्का कर लिया है। मैंने तय कर लिया है कि मैं भी वृंदा की तरह समाज की ...Read More

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कर्म पथ पर - 54

कर्म पथ पर Chapter 54जय और मदन कमरे में लेटे हुए थे। आज दोनों ही बहुत थक गए थे। पूरा दिन भागदौड़ से भरा रहा।मदन हिंद प्रभात की प्रतियों के वितरण के लिए गया था। कुछ देर के लिए अपने घर भी गया था। लौटते हुए शाम हो गई थी। जय को विष्णु के काम से अचानक मौरांवां जाना पड़ा। पूरा दिन वहीं लग गया। वह बहुत थक गया था। भुवनदा के घर खाना खाकर दोनों कुछ ही समय पहले ...Read More

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कर्म पथ पर - 55

कर्म पथ पर Chapter 55रात के नौ बज रहे थे। स्टीफन और माधुरी डिनर करने के बाद अपने घर के छोटे से बगीचे में टहल रहे थे। स्टीफन ने पूँछा,"अपनी पढ़ाई कर रही हो ना ? अब तुम्हें डॉक्टर बनने के हिसाब से पढ़ाई करनी है। मैंने तुम्हें बायोलॉजी की किताब लाकर दी थी। पढ़ा उसे ?""हाँ पढ़ा... कुछ नोट्स भी बनाए हैं।""गुड.... अगर कोई मदद चाहिए तो बताना।""बिल्कुल...आप ही तो मेरे टीचर हैं।""तो फिर ...Read More

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कर्म पथ पर - 56

कर्म पथ पर Chapter 56रामरती को इस घर में सदा माँ का ही सम्मान मिला था। माधुरी और स्टीफन से उसे एक लगाव सा हो गया था। वह समझ गई थी कि मुसीबत बड़ी है। स्टीफन ने उससे माधुरी और उसके बच्चे की हिफाजत करने को कहा था।‌ उसका कर्तव्य बोध जागा। उसने रोती हुई माधुरी से कहा,"रो मत बिटिया। अपनी और बच्चे की रक्षा करना अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। उठो....'तभी अचानक काँच के टूटने की आवाज़ ...Read More

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कर्म पथ पर - 57

कर्म पथ पर Chapter 57माधुरी पत्थर का बुत बन गई थी। रामरती उसे समझाती थी कि स्टीफन ‌अब वापस नहीं आएगा। पर उसकी निशानी तुम्हारे पेट में है। अब तुम्हें उसके लिए जीना है। स्टीफन भी यही चाहता था कि तुम और उसका बच्चा सुरक्षित रहें। लेकिन वह बस गुमसुम सी बैठी रहती थी।रामरती के बहुत कहने पर माधुरी बड़ी मुश्किल से कुछ खाने को तैयार हुई थी। रामरती थाली लेने चली गई। तभी मारिया अपने पति अल्फ्रेड के साथ ...Read More

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कर्म पथ पर - 58

कर्म पथ पर Chapter 58हैमिल्टन दीवान पर मसनद लगाए हुए लेटा था। उसके सामने मेज़ पर शराब की बोतल रखी थी। उसके हाथ में गिलास था। जिसे उसने अभी अभी एक सांस में खाली किया था। उसकी बची हुई एक आँख लाल थी। इस लाली का कारण नशे से अधिक उसका गुस्सा था। वह सामने खड़े महेंद्र को घूर रहा था। महेंद्र नज़रें झुकाए हुए था। फिर भी वह हैमिल्टन की जलती हुई आँखों को महसूस कर रहा था। वह डर से कांप ...Read More

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कर्म पथ पर - 59

कर्म पथ पर 59माधुरी स्टेशन के बाहर निकल रही थी। पीछे से कुली उसका सामान लेकर चल रहा था। वह पहचान में ना आ सके इसलिए कल घर से ही अपना हुलिया बदल कर निकली थी। हमेशा की तरह साड़ी ना पहन कर उसने स्कर्ट ब्लाऊज़ पहन रखा था। शादी के बाद स्टीफन ने उसे खरीद कर दिया था। उसने एक दो बार पहना था। पर स्टीफन ने कहा था कि वह साड़ी में बहुत सुंदर लगती है। इसलिए वैसे ही रखा था।सर ...Read More

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कर्म पथ पर - 60

कर्म पथ पर Chapter 60 गांव की दस लड़कियां नवल किशोर के आंगन में बैठी कढ़ाई कर रही थीं। रोज़ ये सभी लड़कियां दोपहर को यहाँ इकट्ठा होकर सिलाई कढ़ाई सीखती थीं। सिलाई कढ़ाई के साथ वृंदा उन्हें पढ़ाती भी थी।लड़कियों को सिलाई कढ़ाई सीखने से अधिक रुचि पढ़ने में थी। वृंदा उन्हें और भी बहुत सी ज्ञानवर्धक बातें बताती रहती थी। लड़कियां अपने काम में लगी थीं। वृंदा वहीं बैठी नवल किशोर से बातें कर रही थी। जबसे उनके आंगन ...Read More

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कर्म पथ पर - 61

कर्म पथ पर Chapter 61 जय को नींद नहीं आ रही थी। वह अपने कमरे के बाहर छत पर टहल रहा था। आज शाम को वह वृंदा से उसी जगह मिला जहाँ वो दोनों अक्सर मिलते थे। जब वह वहाँ पहुँचा था तो वृंदा पहले से ही मौजूद थी। वह अनमनी सी लग रही थी। जय ने ‌उससे उसकी उदासी का कारण पूँछा तो उसने अपनी आँखें उठाकर उसकी तरफ देखा था। उसकी उन आँखों में दर्द था। वह ...Read More

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कर्म पथ पर - 62

कर्म पथ पर Chapter 62गांव के सरपंच के घर पर जय और कुछ अन्य गांव वाले बैठे थे। सभी इस बात पर विमर्श कर रहे थे कि नहर का काम जल्दी शुरू हो इसके लिए कलेक्टर साहब से मिलकर बात की जाए। जिला का कलेक्टर कोई दक्षिण भारतीय था। कलेक्टर का नाम रामकृष्ण अय्यर था। अय्यर को हिंदी भाषी क्षेत्र में आए हुए अधिक समय नहीं हुआ था। अतः हिंदी भाषा पर उसकी ...Read More

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कर्म पथ पर - 63

कर्म पथ पर Chapter 63महीने के अंतिम दिनों में विष्णु के काम के लिए जय लखनऊ आया हुआ था। संपत्ति का किराया वसूल करने के बाद वह सारा हिसाब बनाकर विष्णु के सामने हाजिर हुआ। उसने हिसाब की किताब सामने रखते हुए कहा,"दादा हिसाब पर एक नज़र डाल लीजिए।"विष्णु ने हंस कर कहा,"अब हिसाब तुमने लिखा है तो ठीक ही होगा। देखना क्या है।""नहीं दादा हिसाब के मामले में लापरवाही ठीक नहीं है। आप देख लीजिए।""अच्छा बाबा समझा दो हिसाब।"जय ...Read More

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कर्म पथ पर - 64

कर्म पथ पर Chapter 64श्यामलाल के लिए उनका बंगला वैसे ही हो गया था जैसे कोई वीरान खाली खंडहर हो। आज भी शानो शौकत बढ़ाने वाली सभी वस्तुएं बंगले में मौजूद थीं। कभी ये सभी वस्तुएं उनके अहंकार को पोषित करती थीं। उन्हें एहसास दिलाती थीं कि उनका समाज में एक रुतबा है। पर अब वही वस्तुएं उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं। क्योंकी उन सबके रहते हुए भी उन्हें एक खोखलापन महसूस होता था। उन्हें ...Read More

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कर्म पथ पर - 65

कर्म पथ पर Chapter 65पूरी तरह से सारी बातें पता करने के बाद हंसमुख ने सारी जानकारी लखनऊ लौट कर इंद्र को दे दी। सब जानकर इंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे लगा कि अब उसके सपने पूरे होने का समय निकट है। उसने हंसमुख को शाबाशी देते हुए कहा,"बहुत खूब...तुमने बहुत अच्छा काम किया है। अब बस तैयारी करो। मैं तुम्हें कुछ ही दिनों में बंबई से चलूँगा। फिर तुम सिनेमा जगत का माना ...Read More

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कर्म पथ पर - 66

कर्म पथ पर Chapter 66वृंदा लता के घर आई थी। वह एक बार फिर उसके माता पिता को इस बात के लिए मनाने का प्रयास करना चाहती थी कि वह उसे अन्य लड़कियों के साथ सिलाई कढ़ाई सीखने भेजा करें। उसकी मुलाकात लता के पिता बृजकिशोर से हो गई। उसने उन्हें समझाया कि वहाँ केवल लड़की ही आती हैं, वह भी सिलाई कढ़ाई सीखने। तो फिर उन्हें ऐतराज़ किस बात का है। बृजकिशोर ने वृंदा को जवाब देते हुए ...Read More

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कर्म पथ पर - 67

कर्म पथ पर Chapter 67वृंदा और जय हर एक चीज़ से बेखबर कुछ देर तक एक दूसरे के आलिंगन में बंधे खड़े रहे। सूरज डूब चुका था। सर्दियों का मौसम था। अंधेरा जल्दी गहरा जाता था। ठंड भी बढ़ गई थी। जय ने सुझाव दिया कि आज दोनों अलग अलग जाने की जगह एक साथ ही जाएंगे। वह उसे उसके घर छोड़कर अपने घर चला जाएगा। पर वृंदा ने मना कर दिया। वृंदा नहीं चाहती थी कि जब वह ...Read More

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कर्म पथ पर - 68

कर्म पथ पर Chapter 68इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर किसी विजयी सेनापति की तरह गर्व से सीना फुलाए हैमिल्टन के सामने खड़ा था। वृंदा सामने फर्श पर पड़ी थी। वह अभी भी बेहोश थी। हैमिल्टन उसके पास आया और पंजों के बल फर्श पर बैठ गया। बेहोशी में भी वृंदा के चेहरे पर एक अजीब सी आभा थी। वह कुछ क्षणों तक उसके चेहरे को निहारता रहा। वृंदा के गाल पर हाथ फेरकर ...Read More

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कर्म पथ पर - 69

कर्म पथ पर Chapter 69 श्यामलाल भी अपने कमरे में सोने चले गए थे। पर अब उनकी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। इतने दिनों बाद बेटा घर लौटा था तो इस मनःस्थिति में। जय को इस हालत में देखकर उनका कलेजा फट गया था।वह अभी तक जय से कोई बात ही नहीं कर पाए थे। उससे यह भी नहीं पूँछ पाए कि ‌इतने दिनों तक कहाँ थे ? इस बूढ़े बाप की ज़रा भी याद नहीं आई। लेकिन जय ...Read More

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कर्म पथ पर - 70

कर्म पथ पर Chapter 70हैमिल्टन की हवेली पर दरबान ने मदन और जय को रोक लिया। उसका कहना था कि साहब अभी हवेली पर नहीं है। वह लोग नए हैं। उसने उन्हें पहले कभी नहीं देखा। इसलिए साहब की इजाजत के बिना वह उन्हें अंदर नहीं जाने दे सकता है। जय एक मकसद के तहत सूट पैंट पहन कर आया था। मदन ने दरबान को उसका परिचय एक अंग्रेजी मैगजीन के रिपोर्टर के तौर पर दिया। उसने बताया कि ...Read More

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कर्म पथ पर - 71

कर्म पथ पर Chapter 71नौकरों ने वृंदा की लाश को जंगल में ठिकाने लगा दिया था। हैमिल्टन अपनी हवेली पर वापस जा रहा था। लेकिन वह बहुत खींसिआया हुआ था। बात बात पर नौकरों पर भड़क रहा था। उन्हें गालियां दे रहा था। उसे यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी कि वृंदा उसके सामने अपनी जान के लिए गिड़गिड़ाई नहीं। अपने अंतिम समय तक वह टूटी नहीं। पूरी निर्भीकता के साथ उसका मुकाबला करती रही। उसे एहसास दिलाती नहीं ...Read More

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कर्म पथ पर - 72

कर्म पथ पर Chapter 72जय ने श्यामलाल को वही बताया जो रास्ते में तय हुआ था। यह जानकर कि वृंदा के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया है श्यामलाल बहुत दुखी हुए। उन्होंने जय को समझाया कि वृंदा के ना मिलने का उन्हें अफसोस है। लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता है। पता नहीं हैमिल्टन ने उसे कहाँ पहुँचा दिया हो। हैमिल्टन की पहुँच देश के कई स्थानों पर है। और ...Read More

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कर्म पथ पर - 73

कर्म पथ पर Chapter 73भुवनदा ने गांव वालों को बता दिया कि उनकी भतीजी सावित्री की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। इसलिए उन्होंने आदित्य और विलास के साथ शहर उसके घर वालों के पास भिजवा दिया है। अभी कुछ दिनों तक वह वहीं रहेगी। वह वृंदा को लेकर बहुत परेशान थे। यह सोच सोच कर कि वृंदा के साथ ना जाने क्या हुआ होगा उनका कलेजा फटा जा रहा था। वह बेसब्री से जय और मदन के लौटने ...Read More

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कर्म पथ पर - 74

कर्म पथ पर Chapter 74वृंदा के हादसे के बाद कुछ दिन हैमिल्टन परेशान रहा। उसे यह बात भूले नहीं भुला रही थी कि जाते जाते वृंदा उसे हरा गई। अतः अपने मन को शांत करने के लिए वह तरह तरह के उपाय करता था। एक दिन उसके एक मित्र जैकब ने बताया कि लखनऊ में एक थिएटर कंपनी अंग्रेजी ड्रामा प्रस्तुत कर रही है। इस ड्रामे की कहानी प्राचीन भारत के नाटककार कालिदास की कहानी शकुंतला पर आधारित है। इस ...Read More

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कर्म पथ पर - 75

कर्म पथ पर Chapter 75आज लीना के ड्रामे का शो नहीं था। वह अपने बगीचे में बैठी थी। इधर सर्दी कुछ अधिक ही पड़ रही थी। लेकिन बहुत दिनों के बाद आज खुली हुई धूप निकली थी। दोपहर के साढ़े तीन बजे थे। लीना अपने गार्डन में आकर बैठी थी। ढलती हुई गुनगुनी धूप उसे बहुत अच्छी लग रही थी। उसकी गोद में एक किताब थी।‌ पर उसे पढ़ने की जगह वह अपने खयालों में खोई हुई थी।अब वह हैमिल्टन ...Read More

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कर्म पथ पर - 76

कर्म पथ पर Chapter 76कलेक्टर राम कृष्ण अय्यर ने गांव में नहर बनवाने का काम शुरू करा दिया था। इससे कई गांव वालों को रोजगार भी मिला था। गांव वाले खुश थे अब गर्मियों में उन्हें पानी की तकलीफ नहीं होगी। वह सब इसके लिए जय का आभार मानते थे। जो भी हुआ था वह जय की कोशिशों का ही नतीजा था। इसलिए गांव में जय का मान बहुत बढ़ गया था। सब उसकी सारी बातें मानते थे। इसी ...Read More

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कर्म पथ पर - 77

कर्म पथ पर Chapter 77जय जानता था कि हैमिल्टन की हत्या करने के बाद उसके लिए वापस सिसेंदी गांव आना संभव नहीं होगा। ऐसे में लड़कों की कक्षा जारी नहीं रह पाएगी। इसलिए उसने उर्मिला से बात कर ली थी। उसने उन्हें बताया था कि उसे अपने किसी व्यक्तिगत काम से जाना पड़ेगा। ऐसे में क्या वह लड़कों को पढ़ाने का भी दायित्व ले सकती हैं। उर्मिला ने कहा कि वह कुछ दिनों के लिए संभाल सकती हैं।जय बहुत ...Read More

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कर्म पथ पर - 78

कर्म पथ पर Chapter 78लीना ने आज अपनी माँ की बंगाली साड़ी पहन रखी थी। वह बहुत खूबसूरत दिख रही थी। हैमिल्टन का ध्यान उसी पर था। उसे वृंदा पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने उसकी एक आंख फोड़ दी थी। उसे लग रहा था कि यदि उसकी दोनों आँखें सही होती तो वह और अच्छी तरह से लीना की खूबसूरती को देख सकता था। लीना ने केक काटा और एक टुकड़ा हैमिल्टन को खिला दिया। ...Read More

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कर्म पथ पर - 79

कर्म पथ पर Chapter 79भोला ने दरवाजा खोला और सामने जय को देखकर खुश होकर बोला,"भइया आप.... आपको देखकर बड़ी खुशी हुई।"भोला उसे श्यामलाल के कमरे में ले गया। श्यामलाल कोई किताब पढ़ रहे थे। जय ने आगे बढ़कर उनके पांव छुए। सामने जय को देखकर श्यामलाल ने उठकर उसे गले लगा लिया। मदन ने भी आगे बढ़कर उनके पांव छुए। श्यामलाल ने कहा,"तुम लोग अचानक यहाँ कैसे आ गए ? तुम लोग तो देश के भ्रमण पर निकले ...Read More

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कर्म पथ पर - 80

कर्म पथ पर Chapter 80साधुओं की एक टोली अभी रेल के थर्ड क्लास कंपार्टमेंट से उतरी। उनकी संख्या दस के करीब थी।‌ सभी रामेश्वरम से आ रहे थे। इनमें से दो साधु जय और मदन थे। अपने पापा के घर से जय मदान के साथ दिल्ली गया। वहाँ कुछ दिन रुक कर वह दोनों कुरुक्षेत्र चले गए। कुरुक्षेत्र में वह दोनों हरिद्वार चले गए। हरिद्वार में दोनों करीब तीन महीने तक ठहरे। इस दौरान वह कुछ साधुओं ...Read More

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कर्म पथ पर - 81

कर्म पथ पर Chapter 81मदन और रश्मी पंद्रह अगस्त पर होने वाले जलसे की तैयारी के बारे में ही बात कर रहे थे। जय को देखकर रश्मी बोली,"आओ भैया... हम दोनों इस साल पंद्रह अगस्त पर होने वाले जलसे की तैयारी के बारे में ही बात कर रहे थे। कौन कौन से कार्यक्रम होने हैं वह तो पहले से ही तय है। बच्चों का अभ्यास भी पूरा है। हम दोनों सोच रहे थे कि इस बार रामपुर ...Read More

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कर्म पथ पर - 82 - अंतिम भाग

कर्म पथ पर Chapter 82माधुरी ने दरवाज़ा खटखटाया।‌ एक लड़की ने दरवाज़ा खोला। इस समय माधुरी को एक अंजान आदमी के साथ देख कर उसे आश्चर्य हुआ। माधुरी ने कहा,"फुलवा यह मेरे भाई हैं। इनके चाय पानी का प्रबंध करो।"माधुरी जय को अंदर ले गई। आंगन पार कर के पीछे की तरफ एक कमरा था। उस कमरे को खोल कर जय से बोली,"चाचा जी का देहांत चार महीने पहले हो गया। वह यहीं रहते थे। अपना बंगला धन ...Read More