अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (1) प्रेम और विरह का स्वरुपप्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्यदिन-ब-दिन बढ़ता ही है ।
Full Novel
अमर प्रेम -- 1
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (1) प्रेम और विरह का स्वरुपप्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्यदिन-ब-दिन बढ़ता ही है । ...Read More
अमर प्रेम -- 2
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (2) एक बार अजय को चित्रकारी के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ प्राप्त करने के लिए उसे अर्चना के शहर जाना था। जाने से पहले अजय ने ये खुशखबरी अर्चना को ख़त लिखकर पहुंचाई और साथ ही अर्चना से मिलने की इजाजत मांगी और अपना फ़ोन नम्बर दिया । उससे पूछा कि क्या वो उससे मिल सकती है सिर्फ़ एक बार या एक बार फ़ोन पर ही मुबारकबाद दे सकती है । मगर अपने संस्कारों और मर्यादाओं से बंधी अर्चना ने उससे मिलने से मना कर दिया। जिस दिन अजय को सम्मान ...Read More
अमर प्रेम -- 3
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (3) एक ही पल में इतना कुछ अचानक घटित होना--------अर्चना को अपने को काबू करना मुश्किल होने लगा। जैसे तैसे ख़ुद को संयत करके अर्चना ने भी अपने परिवार से अजय का परिचय कराया और फिर अजय ने भी अपने परिवार से अर्चना के परिवार को मिलवाया। दोनों परिवार इकट्ठे भोजन का और उस खास शाम का आनंद लेने लगे। मगर इस बीच अर्चना और अजय दोनों का हाल 'जल में मीन प्यासी 'वाला हो रहा था। आज दोनों आमने- सामने थे मगर लब खामोश थे. दोनों के दिल धड़क रहे थे ...Read More
अमर प्रेम -- 4
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (4) उधर अजय अपने वादे पर अटल था ----- दोबारा कभी न का वादा। अब उसने अर्चना को पुकारना छोड़ दिया था शायद अर्चना से मिलकर उससे अपना हाल-ए-दिल कहकर अजय को वक़्ती सुकून मिल गया था मगर फिर भी एक उदासी हर पल उसके जेहन पर छाई रहती ।अर्चना की यादों के साये हर पल उसके मानस- पटल पर छाये रहते । अब तो उसने खामोशी को अपना हमसफ़र बना लिया था और गुमनाम अंधेरों में जीवन गुजारने लगा था सिर्फ़ अर्चना की कवितायेँ पढता और उन्हें अपनी चित्रकारी से सजाता। ...Read More
अमर प्रेम -- 5
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (5) जब समीर ने इतना आश्वासन दिलाया तब अर्चना ने हिम्मत करके में दबी चिंगारी का समीर को दर्शन कराने की ठान ली और वादा लिया यदि वो नाराज भी होगा तो उसे कह देगा मगर उसे छोड़कर नहीं जाएगा क्योंकि अर्चना के लिए उसके पति और बच्चों का जीवन में क्या महत्त्व है वो कोई नहीं समझ सकता, वो उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती और जो खलिश उसे राख किये जा रही है वो बताने पर हो सकता है तूफ़ान की ज़द में सारा घर आ जाए इसलिए ...Read More
अमर प्रेम -- 6 - अंतिम भाग
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (6) तब राकेश हँसता हुआ बोला, “ देख हम सभी की ज़िन्दगी ये क्षण आते ही हैं मगर हर कोई उसका डटकर मुकाबला नहीं कर पाता सिर्फ कुछ दृढ निश्चयी लोग होते हैं जो इस फेज से गुजर जाते हैं मगर बाकी की ज़िन्दगी अस्त व्यस्त हो जाती है......ऐसे में अगर वो इस रिश्ते को सिर्फ एक ऐसे रूप में लें जैसे राधा कृष्ण का था, जैसे वहाँ वासना का कोई स्थान नहीं था मगर रिश्ता इतना गहरा था कि जितना कृष्ण की पत्नियाँ भी कृष्ण को नहीं जानती थीं उतना राधा ...Read More