रूस के पत्र

(38)
  • 104.9k
  • 81
  • 30.6k

सोवियत शासन के प्रथम परिचय ने मेरे मन को खास तौर से आकर्षित किया है, यह मैं पहले ही कह चुका हूँ। इसके कई विशेष कारण हैं और वे आलोचना के योग्य हैं। रूस की जिस तसवीर ने मेरे हृदय में मूर्ति धारण की है, उसके पीछे भारत की दुर्गति का काला परदा पटक रहा है, हमारी इस दुर्गति के मूल में जो इतिहास है, उससे हम एक तत्व पर पहुँच सकते हैं, और उस तत्व पर गहरा विचार करने से आलोच्य विषय में मेरे क्या भाव हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है।

Full Novel

1

रूस के पत्र - ( उपसंहार )

सोवियत शासन के प्रथम परिचय ने मेरे मन को खास तौर से आकर्षित किया है, यह मैं पहले ही चुका हूँ। इसके कई विशेष कारण हैं और वे आलोचना के योग्य हैं। रूस की जिस तसवीर ने मेरे हृदय में मूर्ति धारण की है, उसके पीछे भारत की दुर्गति का काला परदा पटक रहा है, हमारी इस दुर्गति के मूल में जो इतिहास है, उससे हम एक तत्व पर पहुँच सकते हैं, और उस तत्व पर गहरा विचार करने से आलोच्य विषय में मेरे क्या भाव हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है। ...Read More

2

रूस के पत्र - 1

मॉस्को आखिर रूस आ ही पहुँचा। जो देखता हूँ, आश्चर्य होता है। अन्य किसी देश से इसकी तुलना नहीं हो बिल्कुल जड़ से प्रभेद है। आदि से अन्त तक सभी आदमियों को इन लोगों ने समान रूप से जगा दिया है। हमेशा से देखा गया है कि मनुष्य की सभ्यता में अप्रसिद्ध लोगों का एक ऐसा दल होता है, जिनकी संख्या तो अधिक होती है, फिर भी वे ही वाहन होते हैं, उन्हें मनुष्य बनने का अवकाश नहीं, देश की सम्पत्ति के उच्छिष्ट से वे प्रतिपालित होते हैं। वे सबसे कम खा कर, सबसे कम पहन कर, सबसे कम सीख कर अन्य सबों की परिचर्या या गुलामी करते हैं सबसे अधिक उन्हीं का परिश्रम होता है। सबसे अधिक उन्हीं का असम्मान होता है। ...Read More

3

रूस के पत्र - 2

स्थान रूस। दृश्य, मॉस्को की उपनगरी का एक प्रासाद भवन। जंगल में से देख रहा हूँ --दिगंत तक फैली अरण्यभूमि, सब्ज रंग की लहरें उठ रही हैं, कहीं स्याह-सब्ज, कहीं फीका बैंगनी-मिलमा सब्ज, कहीं पीले-सब्ज की हिलोरें-सी नजर आ रही हैं। वन की सीमा पर बहुत दूर गाँव की झोपड़ियाँ चमक रही हैं। दिन के करीब दस बजे हैं, आकाश में बादल पर बादल धीमी चाल से चले जा रहे हैं, बिना वर्षा का समारोह है, सीधे खड़े पापलर वृक्षों की चोटियाँ हवा से नशें में झूम-सी रही हैं। ...Read More

4

रूस के पत्र - 3

बहुत दिन हुए तुम दोनों को पत्र लिखे। तुम दोनों की सम्मिलित चुप्पी से अनुमान होता है कि वे पत्र मुक्ति को प्राप्त हो चुके हैं। ऐसी विनष्टि भारतीय डाकखानों में आजकल हुआ ही करती है, इसीलिए शंका होती है। इसी वजह से आजकल चिट्ठी लिखने को जी नहीं चाहता। कम से कम तुम लोगों की तरफ से उत्तर न मिलने पर मैं चुप रह जाता हूँ। निःशब्द रात्रि के प्रहर लंबे मालूम होने लगते हैं -- उसी तरह 'निःचिट्ठी' का समय भी कल्पना में बहुत लंबा हो जाता है। इसी से रह-रह कर ऐसा मालूम होने लगता है, मानो लोकांतर-प्राप्ति हुई हो। मानो समय की गति बदल गई है -- घड़ी बजती है लंबे तालों पर। द्रौपदी के चीर-हरण की तरह मेरा देश जाने का समय जितना खिंचता जाता है, उतना ही अनंत हो कर वह बढ़ता ही चला जाता है। जिस दिन लौटूँगा, उस दिन तो निश्चित ही लौटूँगा -- आज का दिन जैसे बिल्कुल निकट है, वह दिन भी उसी तरह निकट आएगा, यही सोच कर सांत्वना पाने की कोशिश कर रहा हूँ। ...Read More

5

रूस के पत्र - 4

मॉस्को से सोवियत व्यवस्था के बारे में दो बड़ी-बड़ी चिट्ठियाँ लिखी थीं। वे कब मिलेंगी और मिलेंगी भी या मालूम नहीं। बर्लिन आ कर एक साथ तुम्हारी दो चिट्ठियाँ मिलीं। घोर वर्षा की चिट्ठी है ये, शांति निकेतन के आकाश में शाल वन के ऊपर मेघ की छाया और जल की धारा में सावन हिलोरें ले रहा है -- यह चित्र मानसपट पर खिंचते ही मेरा चित्त कैसा उत्सुक हो उठता है, तुमसे तो कहना फिजूल है। ...Read More

6

रूस के पत्र - 5

मॉस्को से तुम्हें मैं एक बड़ी चिट्ठी में रूस के बारे में अपनी धारणा लिख चुका हूँ। वह चिट्ठी तुम्हें मिल गई होगी, तो रूस के बारे में कुछ बातें तुम्हें मालूम हो गई होंगी। यहाँ किसानों की सर्वांगीण उन्नति के लिए जितना काम किया जा रहा है, उसी का थोड़ा-सा वर्णन लिखा था। हमारे देश में जिस श्रेणी के लोग मूक और मूढ़ हैं, जीवन के संपूर्ण सुयोगों से वंचित हो कर जिनका मन भीतर और बाहर की दीनता से बैठ गया है, यहाँ उसी श्रेणी के लोगों से जब मेरा परिचय हुआ, तब मैं समझ गया कि समाज के अनादर से मनुष्य की चित्त-संपदा कहाँ तक लुप्त हो सकती है -- कैसा असीम उसका अपव्यय है, कैसा निष्ठुर उसका अविचार है। ...Read More

7

रूस के पत्र - 6

रूस घूम आया, अब अमेरिका की ओर जा रहा हूँ, इतने में तुम्हारी चिट्ठी मिली। रूस गया था, उनकी पद्धति देखने के लिए। देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। आठ ही वर्ष के अंदर शिक्षा के जोर से लोगों के मन का चेहरा बदल गया है। जो मूक थे उन्हें भाषा मिल गई है, जो मूढ़ थे, उनके मन पर से पर्दा हट गया है, जो दुर्बल थे, उनमें आत्मशक्ति जाग्रत हो गई है, जो अपमान के नीचे दबे हुए थे, आज वे समाज की अंध कोठरी में से निकल कर सबके साथ समान आसन के अधिकारी हो गए हैं। इतने ज्यादा आदमियों का इतनी तेजी से ऐसा भावांतर हो जाएगा, इस बात की कल्पना करना कठिन है। जमाने से सूखी पड़ी हुई नदी में शिक्षा की बाढ़ आई है, देख कर मन पुलकित हो जाता है। देश में इस छोर से ले कर उस छोर तक सर्वत्र जाग्रति है। ...Read More

8

रूस के पत्र - 7

रूस से लौट कर आज फिर जा रहा हूँ अमेरिका के घाट पर। किंतु रूस की स्मृति आज भी संपूर्ण मन पर अधिकार किए हुए है। इसका प्रधान कारण यह है कि और-और जिन देशों में घूमा हूँ, वहाँ के समाज ने समग्र रूप से मेरे मन को हिलाया नहीं। उनमें अनेक कार्यों का उद्यम है, पर अपनी-अपनी सीमा के भीतर। कहीं पॉलिटेकनीक्स है तो कहीं अस्पताल, कहीं विश्वविद्यालय है तो कहीं म्यूजियम। विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्र में ही मशगूल हैं, मगर यहाँ सारा देश एक ही अभिप्राय को ले कर समस्त कार्य-विभागों को एक ही स्नायुजाल में बाँध कर एक विराट रूप धारण किए हुए है। सब-कुछ एक अखंड तपस्या में आ कर मिल गया है। ...Read More

9

रूस के पत्र - 8

रूस से लौट आया, अब जा रहा हूँ अमेरिका की ओर। रूस यात्रा का मेरा एकमात्र उद्देश्य था, वहाँ में शिक्षा प्रचार का काम किस तरह चलाया जा रहा है और उसका फल क्या हो रहा है, थोड़े समय में यह देख लेना। मेरा मत यह है कि भारतवर्ष की छाती पर जितना दुख आज अभ्रभेदी हो कर खड़ा है, उसकी एकमात्र जड़ है अशिक्षा। जाति-भेद, धर्म-विऱोध, कर्म-जड़ता, आर्थिक दुर्बलता -- इन सबको जकड़े हुए है शिक्षा का अभाव। साइमन कमीशन ने भारत के समस्त अपराधों की सूची समाप्त करने के बाद ब्रिटिश शासन का सिर्फ एक ही अपराध कबूल किया है, वह है यथेष्ट शिक्षा प्रचार की त्रुटि। मगर और कुछ कहने की जरूरत भी न थी। ...Read More

10

रूस के पत्र - 9

हमारे देश में पॉलिटिक्स को जो लोग खालिस पहलवानी समझते हैं, उन लोगों ने सब तरह की ललित कलाओं पौरुष का विरोधी मान रखा है। इस विषय में मैं पहले ही लिख चुका हूँ। रूस का जार किसी दिन दशानन के समान सम्राट था, उसके साम्राज्य ने पृथ्वी का अधिकांश भाग अजगर साँप की तरह निगल लिया था और पूँछ से भी जिसको उसने लपेटा, उसके भी हाड़-माँस पीस डाले। ...Read More

11

रूस के पत्र - 10

विज्ञान की शिक्षा में पुस्तक पढ़ने के साथ आँखों से देखने का योग रहना चाहिए, नहीं तो उस शिक्षा तीन-चौथाई हिस्सा बेकार चला जाता है। सिर्फ विज्ञान ही क्यों, अधिकांश शिक्षाओं पर यही बात लागू होती है। रूस में विविध विषयों के म्यूजियमों द्वारा उस शिक्षा में सहायता दी जाती है। ये म्यूजियम सिर्फ बड़े-बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि हर प्रांत में छोटे-छोटे देहातों तक के लोगों को प्रत्यक्ष ज्ञान कराते हैं। ...Read More

12

रूस के पत्र - 11

पिछड़ी हुई जातियों की शिक्षा के लिए सोवियत रूस में कैसा उद्योग हो रहा है-यह बात तुम्हें पहले लिख हूँ। आज दो-एक दृष्टांत देता हूँ। यूराल पर्वत के दक्षिण में बास्किरों का निवास है। जार के जमाने में वहाँ की साधारण प्रजा की दशा हमारे ही देश के समान थी। वे जीवन-भर चिर उपवास के किनारे से ही चला करते थे। तनख्वाह उन्हें बहुत कम मिलती थी। किसी कारखाने में ऊँचे पद पर काम करने लायक शिक्षा या योग्यता उनमें नहीं थी, इसलिए परिस्थिति के कारण उन्हें सिर्फ मजदूरी का ही काम करना पड़ता था। क्रांति के बाद इस देश की प्रजा को स्वतंत्र शासन के अधिकार देने का प्रयत्न शुरू हुआ। ...Read More

13

रूस के पत्र - 12

ब्रेमेन जहाज तुर्कमेनियों के विषय में पहले ही लिख चुका हूँ कि वे मरुभूमि निवासी संख्या में दस लाख हैं। चिट्ठी उसी का परिशिष्ट है। सोवियत सरकार ने वहाँ कौन-से विद्या मंदिर स्थापित करने का संकल्प लिया है, उनकी एक सूची दे रहा हूँ - बिगनिंग विद अक्टूबर 1, 1930, द न्यू बजेट इयर, ए नम्बर ऑफ़ साइन्टिफ़िक इन्स्टीट्यूट्स विल बी ओपेन्ड इन तुर्कमेनिया, नेमली : १- तुर्कमेन जिओलॉजिकल कमेटी २- तुर्कमेन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ अप्लाइड बॉटनी ३- इन्स्टीट्यूट फ़ॉर स्टडी एंड रिसर्च ऑफ़ स्टॉक ब्रीडिंग ४- इन्सटीट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी ऐण्ड जियोफ़िज़िक्स ५- इन्स्टीट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च ६- केमिको-बैक्टीरिओलॉजिकल इन्स्टीट्यूट, एंड इस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल हाइजीन ...Read More

14

रूस के पत्र - 13

सोवियत रूस के साधारण जन-समाज को शिक्षा देने के लिए कितने विविध प्रकार के उपाय काम में लाए गए इसका कुछ-कुछ आभास पहले की चिट्ठियों से मिल गया होगा। आज तुम्हें उन्हीं में से एक उद्योग का संक्षिप्त विवरण लिख रहा हूँ। ...Read More

15

रूस के पत्र - 14

इस बीच में दो-एक बार मुझे दक्षिण द्वार से सट कर जाना पड़ा है, वह द्वार मलय समीर का नहीं था, बल्कि जिस द्वार से प्राण-वायु अपने निकलने के लिए रास्ता ढूँढती है, वह द्वार था। डॉक्टर ने कहा - नाड़ी के साथ हृदय की गति का जो क्षण भर का विरोध हुआ था, वह थोड़े पर से ही निकल गया। इसे अवैज्ञानिक भाषा में मिराकिल (जादू) कहा जा सकता है - अब से खूब सावधानी से रहना चाहिए। अर्थात उठ कर चलने-फिरने से हृदय में वाण आ कर लग सकता है - लेटे रहने से लक्ष्य भ्रष्ट हो सकता है। ...Read More