किन्नर विमर्श की पहली कहानी पर आधारित उपन्यास दरमियाना भाग - १ तारा और रेशमा की संगत मैं उसे तब से जानता हूं, जब मैंने उसे पहली बार देखा था। उसके दोनों हाथों की हथेलियों के मध्य भाग, बहुत ही कलात्मक ढंग से टकरा रहे थे, यद्यपि ढोलक की थाप और फटे हुए स्वरों में, उसकी तालियों की कहीं कोई संगत नहीं थी। किन्तु हां! अन्य कर्कश स्वरों में, उसका स्वर सबसे अधिक तीखा और एकरस था -- गीत के आरोह-अवरोह की प्रति़बद्धता से दूर--शास्त्रीय गायन की वर्जनाओं से मुक्त--फटे हुए स्वर और बिगड़ी हुई धुनों में, एक फिल्मी गीत ! 'गीत' अब ठीक-ठीक याद नही है। मैंने
Full Novel
दरमियाना - 1
दरमियाना भाग - १ तारा और रेशमा की संगत मैं उसे तब से जानता हूं, जब मैंने उसे पहली देखा था। उसके दोनों हाथों की हथेलियों के मध्य भाग, बहुत ही कलात्मक ढंग से टकरा रहे थे, यद्यपि ढोलक की थाप और फटे हुए स्वरों में, उसकी तालियों की कहीं कोई संगत नहीं थी। किन्तु हां! अन्य कर्कश स्वरों में, उसका स्वर सबसे अधिक तीखा और एकरस था -- गीत के आरोह-अवरोह की प्रति़बद्धता से दूर--शास्त्रीय गायन की वर्जनाओं से मुक्त--फटे हुए स्वर और बिगड़ी हुई धुनों में, एक फिल्मी गीत ! 'गीत' अब ठीक-ठीक याद नही है। मैंने ...Read More
दरमियाना - 2
दरमियाना भाग - २ रास्ते-भर वे चुहलबाजी करते रहे। एक-दूसरे को छेड़ते, गाते, टल्लियां-तालियां खड़खाते, वे मस्ती में चल थे। उनके साथ का मर्दनुमा दरमियाना, ढोलक पर थाप देकर अलाप उठा रहा था। मैं भी साथ-साथ चलते हुए गर्व अनुभव कर रहा था कि जब बस्ती का कोई भी व्यक्ति उनके समीप नहीं आ पाता, तब मैं कितना सहज रूप से तारा का हाथ पकड़ कर चल सकता हूं। अन्य लोग, जो मुझे हास्य या घृणा की दृष्टि से देख रहे थे, उस समय ईष्यालु नज़र आये थे। तारा ने फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा और पूछ लिया, ...Read More
दरमियाना - 3
दरमियाना भाग - ३ कहने को कहा जा सकता है कि विष भी वहीं वास करता है, जहां विश्वास है... और जब धीरे-धीरे सारा विश्वास ही विषाक्त हो जाता है, तब जैसे अचानक बहुत परिचित-से चेहरे भी नीले पड़ने लगते हैं...गंदला जाते हैं। बहुत देर के बाद हम जान पाते हैं कि परिचय था ही कहाँ ? क्योंकि पहचानना एक बात है, जानना दूसरी बात! कोई महीने-भर बाद साथी लोगों का मूड़ बना कि शराब पी जाए, मगर पैसे किसी के भी पास नहीं थे। बहुत सोचने पर भी जब कुछ नहीं सूझा, तो एक साथी ने सुझाया कि ...Read More
दरमियाना - 4
दरमियाना भाग - ४ धीरे-धीरे क्षण बीते और बीते हुए क्षण, महीनों से होते हुए... वर्षो में बदल गए। मकान भी बदल गया था। पिता जी की तरक्की के बाद एक दूसरी कालोनी में बड़ा घर मिल गया था। मैं भी बहुत बदल गया था। उस दौरान यह भी तो नहीं सोच पाया कि तारा अब कैसी होगी ! होगी भी, या... या उसकी हथेलियाँ थक कर चुप हो चुकी होंगी ? उसका लाड़-प्यार या गालियाँ, बनारसी पत्तों की थैली या तालियाँ—इतने बर्षों में मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था। अचानक एक दिन जब मैं अपनी पत्नी के ...Read More
दरमियाना - 5
दरमियाना भाग - ५ कई बार ऐसा तो होता है कि हमारे पूर्व में गढ़े गए प्रतिमान अचानक बदल हैं । कोई छवि या धारणा भरभरा कर बिखर जाती है ।... मगर ऐसा बहुत कम होता है कि हम किसी के बारे में कोई प्रतिमान तय ही नहीं कर पाते ।... विशेषकर ‘इनके’ बारे में । कारण यह भी हो सकता है कि ये खुद ही एक रहस्य का आवरण अपने गिर्द बनाये रखते हैं । शायद इसलिए कि ये हमारे जैसे नहीं होते.... और शायद इसलिए भी कि हम उन्हें समझ ही नहीं पाएंगे, वे ऐसा ही मान ...Read More
दरमियाना - 6
दरमियाना भाग - ६ अरे... क्या हो गया तुम्हें... भैया... पीछे हटो... क्या हुआ तुम्हें ? मुझे धकेलने के बाद वह कुछ सामान्य हुई थी । उसने अपने उसे भीतर आने के लिए कहना नहीं पड़ता था । वह आई और तपाक-से सोफे पर पसर गई । मैंने लाकर पानी दिया, तो उठ कर एक बार वह फिरकी की तरह घूमी, कैसी लग रही हूँ मैं ? वही औरतों वाले सवाल ! मेरा मन हुआ कि कह दूँ -- बला की खूबसूरत !... मगर फिर ध्यान से देखा, तो लगा कि यह साड़ी तो मधुर की है । टोकना ...Read More
दरमियाना - 7
दरमियाना भाग - ७ मेरे सवाल के जवाब में उसका सवाल आया था । सटाक-से मेरे सामने रखे गये सवाल ने वाकई मुझे झकझोर दिया था – सच है, क्या जानता हूँ मैं इसके बारे में ?... और उसने कितनी हिकारत से मेरे सवाल को इग्नोर कर दिया था ।... ठीक ही तो किया था -- ‘राहुल’ के बारे में जानने से पहले तो मुझे इसके बारे में जानना चाहिए था ।... उसकी उठी नजरें अभी भी उसके सवाल का जवाब माँग रही थीं, मेरा सवाल शायद उसके तईं इतना जरूरी नहीं था । मैं जबसे इसे जानता हूँ, ...Read More
दरमियाना - 8
दरमियाना भाग - ८ मैंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया और अपने पास सोफे पर बैठा लिया । धीरे-से सिर पर हाथ फेरा और फिर कंधे को थपथपा दिया । उसने अपनी डबडबाई पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था । वही-गहरी, बड़ी, झील-सी आँखे और उसी तरह भरी हुई । किन्तु इस बार उसने मेरे स्पर्श को दूसरे ही अर्थों में स्वीकार किया था । मैं और मधुर जब रूठ जाते, तो इसी तरह मैं उसके कंधे को सहला देता । मैं अक्सर कहा करता कि स्पर्श एक बहुत अच्छी थेरेपी है... एक बहुत अच्छा उपचार । उसने ...Read More
दरमियाना - 9
दरमियाना भाग - ९ पापा भी इसी वजह से चले गये । उन्हें भी सबसे रोज कुछ न कुछ पड़ता था । घर आकर वो भी रोते थे, मगर भैया पर कोई असर नहीं होता था... यह संध्या थी । इसलिए मुझे ज्यादा आश्चर्य हो रहा था । उसने कहा था कि यह समझती है । मुझे भी ऐसा ही लगा था किन्तु अब लग रहा था कि वह दोनों ओर की पीड़ा समझती है शायद । उसकी परवरिश के बारे में भी बहुत सारी बातें सामने आई थीं । वे अपने अनुभव बताये जा रहे थे और ...Read More
दरमियाना - 10
दरमियाना भाग - १० तभी एक दिन संजय घर आ गया । वह कड़े ताल में था, इसलिए मैं कह रहा हूँ । ...या शायद अपने गुस्से की वजह से, जो मेरे भीतर वजह-बेवजह कुलबुला रहा था । मैंने सारी की सारी भड़ास इस पर निकाल दी । ...मेरे लगातार सवालों से वह अचकचा गया था । कुछ नहीं बोला । मेरे किसी भी सवाल का सही या गलत जवाब उसने नहीं दिया था । ...उसकी वे बड़ी-सी, सुंदर-सी ...गहरी और कजरारी झीलें डबडबा आई थीं । मधुर घर पर ही थीं । उसने मुझे शांत किया और चुपचाप ...Read More
दरमियाना - 11
दरमियाना भाग - ११ दरअसल, इसके जर्मनी जाने की बात प्रताप गुरू को पता चल गई थी । वह चाहता था कि यह उसके हाथ से निकले । इसीलिए वह एक दिन अपनी मंडली के कुछ दरमियानों को साथ लेकर आया था ...और इसे किसी बातचीत के बहाने गाड़ी में बैठा लिया था । उस समय 21 हजार रूपये भी उसके पास थे । धीरे-धीरे इनकी बातचीत और गाड़ी चलती रही । रास्ते में कब इसे बेहोश कर दिया गया, कुछ पता ही नहीं चला । जब इसे होश आया, तो यह जालंधर छावनी के आसपास किसी बड़े-से नाले ...Read More
दरमियाना - 12
दरमियाना भाग - १२ मगर वह ज्यादा देर नहीं सो सका था। कुछ ही देर में हड़बड़ा कर उसकी टूट गई । मैंने देखा -– उसके चेहरे पर कुछ अनमनापन था । ...वह सहज नहीं था । फिर भी वह मेरी तरफ देख कर मुस्कराया। मैं भी मुस्करा दिया था । इशारे से उसने मुझे पास बुलाया । ...मैं उसके सिरहाने आकर बैठ गया । एक हाथ धीरे-से उसके माथे पर रखा, तो उसने मेरा दूसरा हाथ पकड़ लिया, "भैया, एक वादा करोगे ? ..." "हाँ बोल !" मैंने उसे आश्वासन दिया । "यदि मुझे कुछ हो जाए ... ...Read More
दरमियाना - 13
दरमियाना भाग - १३ तभी वे बोले, "इसे किसी कुशल डॅाक्टर ने ही ऑपरेट किया है...क्योंकि इसके गुप्तांग पर प्रकार की शल्यक्रिया की गई थी, उससे जाहिर है कि यह काम कोई अनाड़ी आदमी इतनी सफाई से नहीं कर सकता था । मगर वह शायद नहीं जानता था कि इसे हेमोफिलिया है । ...लगता है, वह हैवान इसी कार्य में दक्ष है... " उनके इस सटीक आकलन पर मैं हतभ्रम था । वे बोले, "यह पुलिस केस ही था...मगर आपसे बात होने के बाद ऐसा नहीं किया गया, पर अब भी आप ऐसा कुछ नहीं चाहेंगे ?" "नहीं डा'क ...Read More
दरमियाना - 14
दरमियाना भाग - १४ जिस्म और जज्बात का संतुलन जाहिर है कि ‘इन जैसों’ से यह मेरा पहला परिचय था। सुनंदा मेरे लिए नयी जरूर थी, मगर मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि आखिर मैं ही क्यों -– क्यों मैं ही ‘इन जैसों’ के संपर्क में रह-रहकर आ जाता हूँ।... नहीं मालूम कि ऐसा क्या था, जो अपने बचपन से मैं एक बार तारा के संपर्क में आया, तो फिर यह सिलसिला ही बन गया। कह सकते हैं कि एक संपर्क से दूसरा संपर्क... और दूसरे परिचय से तीसरा -– मगर बात केवल इतने भर से खत्म ...Read More
दरमियाना - 15
दरमियाना भाग - १५ मैं ऊपर चला आया था। सुनंदा के कमरे में। दालान और बाकी घर पर मैं निगाह डालना चाहता था, मगर संकोचवश मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। हाँ, सुनंदा के आने तक मैंने उसके कमरे का मुआयना जरूर कर डाला था।... कमरा क्या था, बमुश्किल उसे तरह-तरह की चीजों से सँवारने की कोशिश की गर्इ थी। गेट पर नकली सीपियों की झालर को वंदनवार की शक्ल में लटकाया गया था। कमरे के दायीं तरफ एक दीवान सलीके से बिछाया गया था। उसके सामने चार छोटी कुर्सियों के बीच एक छोटी-सी मेज। दीवान के ठीक सामने एक ...Read More
दरमियाना - 16
दरमियाना भाग - १६ मुझे भी उस तक पहुँचने में सहायता मिल सकती थी, इसलिए मैंने भी मुस्कुराकर हामी दी। प्रेस वार्ताओं में भी शायद निकटता लाने के लिए इसी प्रकार के निमंत्रण हुआ करते हैं कि ‘चलिए, कुछ बातें बेतकल्लुफी के साथ हो जाएँ।’ सुनंदा के इस खूबसूरत आग्रह को मैं यूँ भी नकारना नहीं चाहता था। हालांकि मैं इस मामले में भी सतर्क रहता कि किसी अजनबी के साथ, इतनी जल्दी इन ‘लहरों’ पर सवार नहीं होना चाहिए।... पर, पता नहीं सुनंदा के मामले में यह सतर्कता कहाँ चली गर्इ। वह उठी और एक कबर्ड से रम ...Read More
दरमियाना - 17
दरमियाना भाग - १७ खाना तार्इ अम्मा ने ही परोसा था। लगा कि वह सुलतान को खिलाने का आदेश खुद गरम-गरम बनाने चली गर्इ थीं। एक माँ जैसी आत्मीयता या कहें कि वात्सल्य भी था... और शायद यही वह कारण था कि उनके बनाये खाने का स्वाद ही कुछ और था। मेरी माँ कहा करती थीं, ‘पाँच मसाले तो सभी डालते हैं खाने में, मगर जो दिल का छटा मसाला डाल दे -- तो उसके खाने में स्वाद अपने आप आ जाता है।’ यह छटा मसाला मैं कभी समझ नहीं पाया था। धीरे-धीरे जाना कि दिल से खिलाने की ...Read More
दरमियाना - 18
दरमियाना भाग - १८ कुछ दिन उधर जाना नहीं हुआ, तो यह बात भी आर्इ-गर्इ-सी हो गयी। न मैंने सुनंदा से इस बात का जिक्र किया... और न ही उसने कोर्इ सफार्इ देना जरूरी समझा। यूँ भी अब उस घर में केवल सुनंदा से ही मेरी घनिष्टता नहीं रह गर्इ थी। इस घटना से पहले भी मैं अनेक बार वहाँ गया था। कर्इ बार ऐसा भी होता कि सुनंदा वहाँ नहीं होती। किसी बधार्इ पर या अपनी किसी चेली के साथ... और या फिर किसी और काम से कहीं गर्इ होती। तब या तो मैं सुलतान को पढ़ाने लगता ...Read More
दरमियाना - 19
दरमियाना भाग - १९ यह तो अब खुद रुखसाना बी को भी याद नहीं कि वे जिन बच्चों को धरती पर उतार लार्इं, उनमें से कितने हिन्दू थे और कितने मुसलमान!... और क्यूँकि वे पेशेवर दायी नहीं थीं, इसलिए उन्होंने इस काम के लिए किसी से कोर्इ पैसा भी कभी नहीं लिया। हक-हकूक का पैसा तो वे मंगौड़ी और पापड़ का ही माँगतीं। उसमें मोलभाव की गुंजाइश कतर्इ नहीं थी। थोड़ी-बहुत छूट वे देतीं भी, तो केवल उन्हीं को –- जो या तो बेचने के लिए ले जाते... और या फिर जिनके पास पैसे होते ही नहीं थे! शायद ...Read More
दरमियाना - 20
दरमियाना भाग - २० नंदा ने छोटी के सिर पर हाथ रख कर शायद पहली दुआ दी थी 'छोटी, एक बात याद रखना! मुझसे अब कभी नहीं मिलना, पर हां -– तुझे बहुत प्यारा बन्ना मिलेगा और तू बहुत खुश रहेगी।' मटकी तो इसने भी फोड़ दी थी, सबके नाम की। बस, एक ही बात का मलाल इसे हमेशा रहता -– बेटियाँ तो सभी की बिदा होती हैं, पर क्या कोर्इ अपनी 'बेटी' को इस तरह बिदा करता है? बेटी या बेटा? एक बेहूदी जिज्ञासा। प्रायः सोचा जाता कि सृजन की प्रक्रिया से जो भी मिले, वह प्रकृति से ...Read More
दरमियाना - 21
दरमियाना भाग - २१ मैंने कहा था न! सुनंदा बहुत कम बोलती, मगर उसकी आँखें बिना बोले रह ही सकती थीं। वह मुझसे भी ज्यादा कुछ नहीं बोलती थी। तार्इ अम्मा और सुलतान के साथ मेरे संबंधों की सहजता ने भी उसको मेरे प्रति सहज बनाये रखा था। मैं नहीं जानता कि स्वयं उसने मेरे प्रति क्या धारणा बनार्इ थी, मगर हाँ -– मुझे हमेशा ही उसने बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा था। पता नहीं, इसके पीछे मेरा पेशा रहा हो, व्यक्तित्व, व्यवहार, शिक्षा, मेरी सहजता या मेरा शादीशुदा होना! उसकी दृष्टि से, खुद को समझना, मेरे लिए ...Read More
दरमियाना - 22
दरमियाना भाग - २२ कातिल अदाओं का कत्ल शायद मैं यह कभी जान नहीं पाता कि आखिर उस दिन अम्मा ने मुझे वहाँ से क्यों लौटा दिया था, यदि एक दिन यूँ ही मुझे नगमा न टकरा गर्इ होती। वह किन्हीं दो अन्य दरमियानों के साथ थी और उसने मुझे सरोजनी नगर मार्केट से गुजरते हुए पहचान लिया था। उसके एकटक मुझे देखने से, सोच तो मैं भी रहा था कि 'इसे कहीं देखा है!' मगर टोकना कुछ उचित नहीं लगा था। तभी उसने मेरे निकट आकर दोनों हाथ जोड़ दिए, "सर जी, नमस्ते!" "नमस्ते," तभी मैंने भी पहचाना, ...Read More
दरमियाना - 23
दरमियाना भाग - २३ दिल्ली के दिल क्नॉट प्लेस के आसपास का यह इलाक वी.वी.आर्इ.पी. कहलाता है। इसके एक राष्ट्रीय शान 'इंडिया गेट' है, तो दूसरी तरफ कला और संस्कृति का क्षेत्र मंडी हाउस -- जहाँ दूरदर्शन केन्द्र से लेकर साहित्य, कला, नाट्य आदि से जुड़े अनेक संस्थान और सभागार। श्रीराम सेंटर, त्रिवेणी, साहित्य कला अकादमी, फिक्की, एन.एस.डी., हिमाचल भवन, बंगाली मार्केट जैसा सुपर पॉश इलाका तो है ही, मगर सांगली मैस के पीछे पंजाब और हरियाणा भवन भी हैं। हार्इ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है और प्रगति मैदान भी बस सामने ही ...Read More
दरमियाना - 24
दरमियाना भाग - २४ वस्तुतः उस पहले दिन रेखा से इस इलाके का यह वर्णन जान कर, उसे विस्तार बताने की जरूरत मुझे क्यों पड़ी, यह बात भी दो-चार बार वहाँ जाने के बाद ही पता चली। उस मुलाकात के बाद मेरा जब भी मंडी हाउस जाना हुआ और समय भी मिल पाया, तो रेखा के यहाँ जरूर गया। वह मिली तो थोड़ी-बहुत गपशप हो गयी, अन्यथा उसकी अनुपस्थिति में उसके घर नहीं बैठा, बल्कि उस कॉलोनी की बेतरतीब गंदी गलियों से होता हुआ लौट आया। वहाँ से गुजरने के दौरान मैंने हमेशा आसपास के लोगों महिलाओं, युवाओं, बच्चों, ...Read More
दरमियाना - 25
दरमियाना भाग - २५ कुछ री-टेक के साथ उनके गीत और नृत्य का रियाज़ चलता रहा। मुकेश ने विभिन्न से लगभग सभी के बहुत-से चित्र खींच लिये थे। किन्तु घर में ही रियाज़ होने के कारण वे सभी पूरी साज-सज्जा के साथ नहीं थे। घर में सामान्य रूप से पहने जाने वाले सलवार-कुर्ते आदि में ही थे। साजिंदे यकीनन 'इनमें से' नहीं थे। इस दौरान रेखा की माँ अंदर कमरे में ही रहीं। छोटी बहन शायद घर पर नहीं थी। उस दिन, फिर कोर्इ अन्य अंतरंग बात रेखा से नहीं हो पार्इ थी। मुकेश को कुछ दुर्लभ चित्रों के ...Read More
दरमियाना - 26
दरमियाना भाग - २६ तभी एक दिन क्नॉट प्लेस की सलमा गुरू अपनी मंडली के साथ वहाँ आ धमकी और इसे आपने साथ ले जाने की ज़िद करने लगी थी। बहुत हंगामा हुआ था उस दिन यहाँ। आस-पास के बच्चों, महिलाओं और शोहदों की अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गर्इ थी। आखिर सलमा और उसके साथ आए लोगों ने इसे गाड़ी में डाल लिया था। इसने कुछ न-नुकर तो जरूर की थी मगर ज्यादा विरोध भी नहीं किया था। निशा तब बहुत छोटी थी। वह सहम कर माँ से चिपट गर्इ थी। आस-पास के लोगों ने भी उनकी कोर्इ मदद ...Read More
दरमियाना - 27
दरमियाना भाग - २७ दया की दया का अंत रेखा की मौत के बाद भी मैं कुछ समय तक घर जाता रहा था। मोहिनी या गुलाबो और चंदा में से कोर्इ मिल जाता या फिर उसकी माँ और निशा से ही सामान्य जानकारी लेकर मैं लौट आता था। हालाँकि उस केस पर मैंने अपनी पूरी नजर बनाये रखी थी। गवाह और सबूतों की पड़ताल में पुलिस और मीडिया ने भी अहम भूमिका निभार्इ थी। मेरे अपने अखबार के और दूसरे अन्य मीडिया कर्मी साथियों ने भी हमारी मदद की थी। लिहाजा पूरी वारदात के सूत्र जुड़ते चले गये और ...Read More
दरमियाना - 28
दरमियाना भाग - २८ इस बीच वख्त कुछ और गुजर गया। यहाँ कुछ अन्य पत्रकार साथियों से भी मेरा हो गया था। उन्हीं में से एक साथी सुधीर वर्मा से मैंने एक दिन दयारानी के बारे में ज़िक्र किया, तो उन्होंने बताया कि हाँ वे दयारानी का घर जानते हैं और मेरे साथ चलने के लिए तैयार भी हैं। सो, उन्हीं के साथ एक दिन चलना तय किया गया। उन्होंने ही फोन पर मिलने का समय भी निश्चित कर लिया गया था। हम उन्हीं के वाहन से वहाँ गये थे। एक मध्यवर्गीय स्तर का दुमंजिला घर था। घर की ...Read More
दरमियाना - 29
दरमियाना भाग - २९ दयारानी का राजनीति में रूची, सामाजिक कार्यों में आगे बढ़कर योगदान करने... और किन्नर समाज हितों की लड़ार्इ लड़ने के उनके साहस ने मुझे भी उनसे जोड़े रखा। मैं यदाकदा उन्हें फोन कर, उनके घर चला जाता रहा। धीरे-धीरे मुझे उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी भी होने लगी। पता लगा कि वे पुराने गाजियाबाद शहर के मोहल्ला कांजीमल की रहने वाली थीं। पिता जी जूते बनाने का काम किया करते थे, लिहाजा घर की माली हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। एक भार्इ था 'बाबू', वह भी जैसे-तैसे अपना गुजारा किया करता था। किन्तु पिता ...Read More
दरमियाना - 30
दरमियाना भाग - ३० फिर मुझसे मुखातिब हुर्इं, "बाबू देखो, हमारी सीता मैया रावण के घर में इतने बरस मगर मजाल कि रावण जैसे राक्षस ने भी कोर्इ हरकत की हो! यहाँ तो अपने घर में ही बच्चियाँ सुरक्षित नहीं हैं!... अब सुना है कि भाजपा से कोर्इ नरेन्द्र मोदी जी आ रहे हैं। यह भी सुना है कि गुजरात में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। कांग्रेस राज में तो अब भट्टा ही बैठ गया। पर वे भी हम जैसों को कहाँ पूछेंगे? उनके पास तो संघ वाले और अपने चेले-चपाटे ही बहुत हैं!... पर मैं भी इस ...Read More
दरमियाना - 31 - अंतिम भाग
दरमियाना भाग - ३१ जी, जरूर! आप जब भी, जैसी भी मदद कहेंगी, मैं जरूर करूँगा। मैंने आश्वासन दिया।... यह केवल दयारानी का ही दर्द नहीं था। तारा माँ के संपर्क में आने के दौरान मैं छोटा अवश्य था, मगर इनकी 'भिन्नता' की पीड़ा को भी समझने लगा था।... फिर संध्या की मौत ने तो मुझे बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। वर्षों तक उस अवसाद से बाहर निकलना मेरे लिए कठिन हो गया था।... सुनंदा के बिंदासपन का मैं कायल जरूर था, किन्तु उसके जिस्म और जज्बात के बीच एक संतुलन बनाने की पीड़ा को भी ...Read More