चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (1) इस कहानी में जो चिरइ चुरमुन हैं वो ही ‘हम’ हैं । ‘हम’ का मतलब वो जो कहानी सुना रहा है । यहाँ पर ‘मैं’ की जगह पर ‘हम’ इसलिये सुना रहा है कि यहाँ कहानी किसी एक की नहीं है बल्कि हम काफी सारों की है । हम ही यहाँ पर प्रथम पुरुष हैं । हम काफी सारे जो उस समय वैसे तो चिरइ चुरमुन में गिने जाते थे, लेकिन हक़ीक़त ये थी कि हम उस समय चिरइ चुरमुन थे नहीं । ‘हम’ का मतलब इस छोटे से क़स्बे के
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चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 1
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (1) इस कहानी में जो चिरइ चुरमुन हैं वो ही ‘हम’ । ‘हम’ का मतलब वो जो कहानी सुना रहा है । यहाँ पर ‘मैं’ की जगह पर ‘हम’ इसलिये सुना रहा है कि यहाँ कहानी किसी एक की नहीं है बल्कि हम काफी सारों की है । हम ही यहाँ पर प्रथम पुरुष हैं । हम काफी सारे जो उस समय वैसे तो चिरइ चुरमुन में गिने जाते थे, लेकिन हक़ीक़त ये थी कि हम उस समय चिरइ चुरमुन थे नहीं । ‘हम’ का मतलब इस छोटे से क़स्बे के ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 2
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (2) हम बच्चे फिर हैरान परेशान हो गये कि रानी और को साथ देख लिया तो उसमें मार डालने की क्या बात थी । हमने हिम्मत करके प्रश्न किया मगर नानी का उत्तर वही रहा ‘सो जाओ रात हो रइ है ।’ कन्टेन्ट के हिसाब से देखा जाये तो कहानी हॉरर कहानी थी, जिसमें आख़िर में रानी का भूत आता था, मगर हम बच्चे कहानी को सुनने के बाद डरने के बजाय हैरत में थे । हममें से एक ने फिर से हिम्मत की और पूछा कि नानी, रानी में अगर ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 3
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (3) अपने बहुत सारे अनसुलझे सवालों के साथ ही हम बड़े रहे थे । इन सबमें ही उलझते उलझाते हम सबने मिडिल पास कर लिया था । अब हमारा स्कूल भी बदल गया था । इस बीच हम भी बहुत बदल गये थे । हम सबकी देह में कल्ले फूट रहे थे । मगर मन से हम अभी भी वही थे चिरइ चुरमुन। नये स्कूल में नये नये साथी मिले । बहुत से बच्चे गाँव के भी हमारी कक्षा में थे, जो गाँव के मिडिल स्कूल से मिडिल पास करके आगे ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 4
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (4) अम्मा जी हमें नानी की कहानियों की वो दुष्ट राक्षसी थीं जो राजकुमार को क़ैद करने के लिये हमेशा नये नये जाल बिछाती थी । अम्मा जी से हमें एक और कष्ट था, वो ये कि जब उनको कोई काम नहीं होता तो वो हमें देखते ही चिल्लातीं ‘ऐ लड़के इतनी गर्मी (सर्दी, बरसात) में बाहर क्यों घूम रहे हो, चलो घर ।’ ये वो समय था जब किसी भी बच्चे को पूरे मोहल्ले का कोई भी बड़ा, डाँट सकता था, मार सकता था, जलील कर सकता था । ये ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 5
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (5) हमारे प्रश्न अब ख़त्म हो चुके थे । जो कुछ था वो पता चल चुका था । अब कुछ और जानने की आवश्यकता भी नहीं थी । हमने पूछा ‘क्या आप जाना चाहते हैं ?’ कटोरी खसकी और नो को छूकर वापस आ गई । नो....? आज तक तो किसी आत्मा ने नहीं कहा था । जब भी पूछो तो चुपचाप यस करके चली जाती है । हम सबके पसीने छूट गये । जिन दोनों सुरेश और सुशील ने उँगली कटोरी पर रखी थी उनकी हालत और ख़राब थी । ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 6
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (6) उस दिन झाँकी का वो समय कैसे कटा हम ही हैं । शोएब तो पुराने टायरों से बनाये गये कालिया नाग के फन पर खड़ा हो गया और इधर हम सारे गोप ग्वाले उत्सुक थे ये जानने को कि आख़िर बात क्या हुई, और क्या क्या हुआ । मगर उसके लिये अगले दिन तक का इंतज़ार करना था क्योंकि झाँकी रात के नौ बजे ख़त्म होती थी । उसके बाद ग्रीन रूम में हमारे मेकअप उतारने का काम एक बार फिर चीनू दीदी ने किया। मेकअप और साज सज्जा करने ...Read More
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 7 - अंतिम भाग
चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (7) इस बार हमने प्लान को बदल दिया था । हमने के बाद का प्लान रखा था । बाद का मतलब जब झाँकी के बाद जब रात को मेकअप उतारा जाता है उस समय का । उस समय कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा । उस दिन गरुड़ पर बैठे विष्णु जी की सारे देवताओं द्वारा आरती करने की झाँकी बननी थी । प्लान ये था कि रूई के गरुड़ पर शोएब को बैठा छोड़कर बाकी के हम सब आधा घंटा पहले से ही झाँकी से उठ जाएँगे । सारे लोग तो फिल्म ...Read More