फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे। जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए। उसने अपने मंत्री को उसे बुलाने की आज्ञा दी और मंत्री यह आज्ञा पाकर बड़ी धूमधाम से विदा हुआ। जब वह समरकंद शहर के समीप पहुँचा तो शाहजमाँ यह समाचार सुनकर उसकी अगवानी को सेना लेकर अपनी राजधानी से रवाना हुआ और शहर के बाहर पहुँचकर मंत्री से मिला। वह उसे देखकर प्रसन्न हुआ। शाहजमाँ अपने भाई शहरयार का कुशलक्षेम पूछने लगा। मंत्री ने शाहजमाँ को दंडवत कर उसके भाई का हाल कहा।
Full Novel
अलिफ़ लैला - 1
फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे। जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए। ...Read More
अलिफ़ लैला - 2
एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल बँधे हुए थे। उसने देखा कि वे दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे हैं। वह व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था। वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा। ...Read More
अलिफ़ लैला - 3
शहरजाद ने कहा : प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए देश-विदेश की यात्रा किया करता था। एक बार उसे किसी विशेष कार्य के लिए अन्य स्थान पर जाना पड़ा। वह अकेला घोड़े पर बैठ कर चल दिया। गंतव्य स्थान पर खाने-पीने को कुछ नहीं मिलता था, इसलिए उसने एक खुर्जी में कुलचे और खजूर भर लिए। काम पूरा होने पर वह वापस लौटा। चौथे दिन सवेरे अपने मार्ग से कुछ दूर सघन वृक्षों के समीप एक निर्मल तड़ाग देखकर उस की विश्राम करने की इच्छा हुई। वह घोड़े से उतरा और तालाब के किनारे बैठ कर कुलचे और खजूर खाने लगा। जब पेट भर गया तो उसने जगह साफ करने के लिए खजूरों की गुठलियाँ इधर-उधर फेंक दीं और आराम करने लगा। ...Read More
अलिफ़ लैला - 4
वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी। कुछ समय बाद दासी से एक पुत्र का जन्म हुआ। बच्चा पैदा होने पर मेरी पत्नी उस बच्चे और उसकी माता से अत्यंत द्वेष रखने लगी। मुझे इस बात का अति खेद है कि मुझे अपनी पत्नी के विद्वेष का हाल बहुत दिन बाद मालूम हुआ। ...Read More
अलिफ़ लैला - 5
सरे बूढ़े ने कहा, 'हे दैत्यराज, ये दोनों काले कुत्ते मेरे सगे भाई हैं। हमारे पिता ने मरते समय तीनों भाइयों को तीन हजार अशर्फियाँ दी थीं। हम लोग उन मुद्राओं से व्यापार चलाने लगे। मेरे बड़े भाई को विदेशों में जाकर व्यापार करने की इच्छा हुई सो उसने अपना सारा माल बेच डाला और जो वस्तुएँ विदेशों में महँगी बिकती थीं उन्हें यहाँ से खरीद कर व्यापार को चल दिया। इसके लगभग एक वर्ष बाद मेरी दुकान पर एक भिखमंगा आकर बोला, भगवान तुम्हारा भला करे। मैंने उस पर ध्यान दिए बगैर जवाब दिया, भगवान तुम्हारा भी भला करे। उसने कहा कि क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैंने उसे ध्यानपूर्वक देखा और फिर उसे गले लगाकर फूट-फूट कर रोया। मैंने कहा, भैया, मैं तुम्हें ऐसी दशा में कैसे पहचानता। फिर मैं ने उसके परदेश के व्यापार का हाल पूछा तो उसने कहा कि मुझे इस हाल में भी देख कर क्या पूछ रहे हो। ...Read More
अलिफ़ लैला - 6
तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुलाम के पास बैठी हास-विलास और प्रेमालाप कर रही है। यह देखकर मुझे अत्यंत आश्चर्य और क्रोध हुआ और मैंने चाहा कि उन दोनों को दंड दूँ। तभी मेरी पत्नी एक पात्र में जल ले आई और उस पर एक मंत्र फूँक कर उसने मुझ पर अभिमंत्रित जल छिड़क दिया जिससे मैं कुत्ता बन गया। पत्नी ने मुझे घर से भगा दिया और फिर अपने हास-विलास में लग गई। ...Read More
अलिफ़ लैला - 7
शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी में जाल फेंकता था। एक दिन सवेरे उठकर उसने नदी में जाल डाला। उसे निकालने लगा तो जाल बहुत भारी लगा। उसने समझा कि आज कोई बड़ी भारी मछली हाथ आई है लेकिन मेहनत से जाल दबोच कर निकाला तो उसमें एक गधे की लाश फँसी थी। वह उसे देखकर जल-भुन गया, उसका जाल भी गधे के बोझ से जगह जगह फट गया था। ...Read More
अलिफ़ लैला - 8
फारस देश में एक रूमा नामक नगर था। उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था। उस बादशाह को रोग हो गया। इससे वह बड़े कष्ट में रहता था। राज्य के वैद्य-हकीमों ने भाँति-भाँति से उसका रोग दूर करने के उपाय किए किंतु उसे स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ। संयोगवश उस नगर में दूबाँ नामक एक हकीम का आगमन हुआ। वह चिकित्सा शास्त्र में अद्वितीय था, जड़ी-बूटियों की पहचान उससे अधिक किसी को भी नहीं थी। इसके अतिरिक्त वह प्रत्येक देश की भाषा तथा यूनानी, अरबी, फारसी इत्यादि अच्छी तरह जानता था। ...Read More
अलिफ़ लैला - 9
पूर्वकाल में किसी गाँव में एक बड़ा भला मानस रहता था। उसकी पत्नी अतीव सुंदरी थी और भला मानस बहुत प्रेम करता था। अगर कभी घड़ी भर के लिए भी वह उसकी आँखों से ओझल होती थी तो वह बेचैन हो जाता था। एक बार वह आदमी किसी आवश्यक कार्य से एक अन्य नगर को गया। वहाँ के बाजार में भाँति-भाँति के और चित्र-विचित्र पक्षी बिक रहे थे। वहाँ एक बोलता हुआ तोता भी था। तोते की विशेषता यह थी कि उस से जो भी पूछा जाए उसका उत्तर बिल्कुल मनुष्य की भाँति देता था। इसके अलावा उसमें यह भी विशेषता थी कि किसी मनुष्य की अनुपस्थिति में उसके घर पर जो-जो घटनाएँ घटी होती थीं उन्हें भी वह उस मनुष्य के पूछने पर बता देता था। ...Read More
अलिफ़ लैला - 10
प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य को बुलाकर कहा कि राजकुमार के साथ चले जाओ तुम्हें सब रास्ते मालूम हैं, राजकुमार को नहीं मालूम, इसलिए एक क्षण के लिए भी राजकुमार का साथ न छोड़ना। ...Read More
अलिफ़ लैला - 11
उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों वाला तालाब है। मैं आपको ब्योरेवार सारी कहानी बता रहा हूँ जिससे आपको सारा हाल मालूम हो जाएगा। जब मेरा पिता सत्तर वर्ष का हुआ तो उसका देहांत हो गया और उसकी जगह मैं राजसिंहासन पर बैठा। मैंने अपने चाचा की बेटी के साथ विवाह किया। मैं उसे बहुत चाहता था और वह भी मुझे बहुत चाहती थी। ...Read More
अलिफ़ लैला - 12
शहरजाद की कहानी रात रहे समाप्त हो गई तो दुनियाजाद ने कहा - बहन, यह कहानी तो बहुत अच्छी कोई और भी कहानी तुम्हें आती है? शहरजाद ने कहा कि आती तो है किंतु बादशाह की अनुमति हो तो कहूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी और शहरजाद ने कहना शुरू किया। ...Read More
अलिफ़ लैला - 13
मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया। मुझे लेकर पहले वह शराब बेचने वाले के यहाँ गई। फिर कुँजड़े की दुकान पर उसने ढेर-सी तरकारियाँ खरीदीं और फल वाले के यहाँ से बहुत-से फल लिए। गोश्त वाले के यहाँ से उसने तरह-तरह का मांस खरीदा और अन्य दुकानों से भी बहुत कुछ लिया। फिर सारा सामान मेरे सर पर लदवाकर आपके घर में लाई। आपने कृपा कर के मुझे अब तक ठहरने दिया और खानपान दिया जिसके लिए मैं आपका आजीवन आभारी रहूँगा। यही मेरी राम कहानी है।' ...Read More
अलिफ़ लैला - 14
अभी पहले फकीर की अद्भुत आप बीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से लोग उबरे नहीं थे कि जुबैदा दूसरे फकीर से कहा कि तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने कहा कि आपकी आज्ञानुसार मैं आप को बताऊँगा कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ और मेरी आँख कैसे फूटी। मैं एक बड़े राजा का पुत्र था। बाल्यकाल ही से मेरी विद्यार्जन में गहरी रुचि थी। अतएव मेरे पिता ने दूर-दूर से प्रख्यात शिक्षक बुलाकर मेरी शिक्षा के लिए रखे। थोड़े ही समय में मैंने न केवल लिखना-पढ़ना सीख लिया बल्कि कुरान शरीफ भी कंठस्थ कर लिया। इसके अतिरिक्त नबी के कथनों यानी हदीसों और धर्म और दर्शनशास्त्र की शिक्षा भी प्राप्त कर ली। इसके अतिरिक्त भाँति-भाँति के कला- कौशल भी सीख लिए और इतिहास, पहेली और मनोरंजन वार्ता में भी पारंगत हो गया। मैंने काव्यशास्त्र और गणित में भी अच्छा अभ्यास कर लिया जैसा एक राजकुमार होने के नाते मुझसे आशा की जाती थी। इन सबके साथ ही मैंने सुलेखन में भी दक्षता प्राप्त कर ली और अरबी लिपि की सातों लेखन पद्धतियों का मुझे ऐसा अभ्यास हो गया कि मेरे जैसा सुलेखक दूर-दूर तक नहीं पाया जाता था। ...Read More
अलिफ़ लैला - 15
किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता हूँ और यह मुझ से वैर ही रखे जाता है। अतएव वह वहाँ से कुछ दूर पर बसे दूसरे नगर में एक अच्छा मकान खरीद कर जिसमें एक अंधा कुआँ भी था, रहने लगा। उसने फकीरों का बाना भी ओढ़ लिया और रात-दिन भगवान के भजन में समय बिताने लगा। उसने अपने मकान में कई कक्ष बनवाए जिनमें वह साधु-संतों को ठहराता और भोजन दिया करता था। इससे वह नगर में बहुत प्रसिद्ध हो गया और लोग उससे मिलने को आने लगे। ...Read More
अलिफ़ लैला - 16
हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा नाम अजब है और मैं महा ऐश्वर्यशाली बादशाह किसब का बेटा हूँ। पिता के स्वर्गवास के बाद मैं सिंहासनारूढ़ हुआ और उसी नगर में रहने लगा जिसे मेरे पिता ने अपनी राजधानी बनाया था। मेरी राजधानी समुद्र के किनारे बसी थी। उसकी रक्षा के लिए डेढ़ सौ युद्ध पोत तैयार रहते थे। इसके अलावा दूरस्थ व्यापार के लिए पचास जहाज थे और बहुत-से दूसरे जहाज भी लंगर डाले रहते थे कि लोग उन पर बैठकर समुद्र में सैर-सपाटा किया करें। मेरे राज्य में कई अन्य नगर और द्वीप भी थे। ...Read More
अलिफ़ लैला - 17
जुबैदा ने खलीफा के सामने सर झुका कर निवेदन किया है राजाधिराज, मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी। मैं और वे दोनों काली कुतियाँ तीनों सगी बहिनें हैं और यह दो स्त्रियाँ जो मेरे साथ बैठी हैं मेरी सौतेली बहनें हैं। जिस स्त्री के कंधों पर काले निशान हैं उसका नाम अमीना है, जो अन्य स्त्री मेरे साथ है उसका नाम साफी है और मेरा नाम जुबैदा है। अब मैं आपको बताती हूँ कि मेरी सगी बहनें कुतिया किस तरह से बन गईं। ...Read More
अलिफ़ लैला - 18
अमीना ने कहा, 'जुबैदा की कहानी आप उसके मुँह से सुन चुके, अब मैं अपनी कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत हूँ। मेरी माँ मुझे लेकर अपने घर में आई कि रँड़ापे का अकेलापन उसे न खले। फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर के बड़े आदमी के पुत्र के साथ कर दिया। दुर्भाग्यवश एक ही वर्ष बीता था कि मेरा पति मर गया। किंतु उसकी सारी संपत्ति जिसका मूल्य लगभग नब्बे हजार रियाल था मेरे हाथ आ गई। इतना धन मेरी सारी जिंदगी के लिए काफी था। जब पति को मरे छह महीने हो गए तो मैंने दस बहुत मूल्यवान पोशाकें बनवाईं जिनमें से हर एक का मूल्य एक-एक हजार रियाल था। जब पति को मरे एक वर्ष पूरा हो गया तो मैंने उन पोशाकों को पहनना आरंभ किया। ...Read More
अलिफ़ लैला - 19
जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी शुरू कर दी। ...Read More
अलिफ़ लैला - 20
सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्रेयस्कर है। सभी बुद्धिमानों ने ऐसा कहा है। मैं इस बात को बार-बार सोचता और मन ही मन अपनी दुर्दशा पर रोता। अंत में जब निर्धनता मेरी सहन शक्ति के बाहर हो गई तो मैंने अपना बचा-खुचा सामान बेच डाला और जो पैसा मिला उसे लेकर समुद्री व्यापारियों के पास गया और कहा कि अब मैं भी व्यापार के लिए निकलना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे व्यापार के बारे में बड़ी अच्छी सलाह दी। उसके अनुसार मैंने व्यापार की वस्तुएँ मोल लीं और उन्हें लेकर उनमें से एक व्यापारी के जहाज पर किराया देकर सामान लादा और खुद सवार हो गया। जहाज अपनी व्यापार यात्रा पर चल पड़ा। ...Read More
अलिफ़ लैला - 21
मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेचैन हो गया और फिर इरादा किया कि नई यात्रा करूँ और नए देशों और नदियों, पहाड़ों आदि को देखूँ। अतएव मैंने भाँति-भाँति की व्यापारिक वस्तुएँ मोल लीं और अपने विश्वास के व्यापारियों के साथ व्यापार यात्रा का कार्यक्रम बनाया। हम लोग एक जहाज पर सवार हुए और भगवान का नाम लेकर कप्तान ने जहाज का लंगर उठा लिया और जहाज पर चल पड़ा। ...Read More
अलिफ़ लैला - 22
सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्यापारियों के साथ बसरा के बंदरगाह पर जाकर एक जहाज पर सवार हुआ। हमारा जहाज कई द्वीपों में गया जहाँ व्यापार करके हम लोगों ने अच्छा लाभ कमाया। ...Read More
अलिफ़ लैला - 23
सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ। मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे वस्तुएँ जिनकी विदेशों में माँग है प्रचुर मात्रा में खरीदीं। फिर मैं माल लेकर फारस की ओर चला। वहाँ के कई नगरों में व्यापार करता हुआ मैं एक बंदरगाह पर पहुँचा और व्यापार किया। ...Read More
अलिफ़ लैला - 24
सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार यात्रा करनी चाही। चूँकि कोई कप्तान मेरी निर्धारित यात्रा पर जाने को राजी नहीं हुआ इसलिए मैंने खुद ही एक जहाज बनवाया। जहाज भरने के लिए सिर्फ मेरा माल काफी न था इसीलिए मैंने अन्य व्यापारियों को भी उस पर चढ़ा लिया और हम अपनी यात्रा के लिए गहरे समुद्र में आ गए। ...Read More
अलिफ़ लैला - 25
सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्रा का उन्माद चढ़ा। मेरे सगे-संबंधियों ने मुझे बहुत रोका किंतु मैं न माना। आरंभ में मैंने बहुत-सी यात्रा थल मार्ग से की और फारस के कई नगरों में जाकर व्यापार किया। फिर एक बंदरगाह पर एक जहाज पर बैठा और नई समुद्र यात्रा शुरू की। ...Read More
अलिफ़ लैला - 26
सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक दिन अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहा था कि एक नौकर ने आ कर कहा कि खलीफा के दरबार से एक सरदार आया है, वह आपसे बात करना चाहता है। मैं भोजन करके बाहर गया तो सरदार ने मुझसे कहा कि खलीफा ने तुम्हें बुलाया है। मैं तुरंत खलीफा के दरबार को चल पड़ा। ...Read More
अलिफ़ लैला - 27
शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर प्रजा का हाल जानने के लिए घूमा करता था। एक रोज उसने अपने मंत्री जाफर से कहा कि आज रात मैं वेश बदल कर घूमँगा, अगर देखूँगा कि कोई पहरेवाला अपने कार्य को छोड़ कर सो रहा है तो उसे नौकरी से निकाल दूँगा और मुस्तैद आदमियों को पारितोषिक दूँगा। मंत्री नियत समय पर जासूसों के सरदार मसरूर के साथ खलीफा के पास आया और वे तीनों साधारण नागरिकों के वेश में बगदाद में निकल पड़े। ...Read More
अलिफ़ लैला - 28
उस जवान ने कहा कि 'मृत स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे हैं। ग्यारह वर्ष पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता थी। हर काम मेरी प्रसन्नता का करती थी और मैं भी उससे बहुत प्रेम करता था। एक महीने पहले वह बीमार हुई। दो-चार दिन की दवा से वह अच्छी हो गई और स्वास्थ्यसूचक स्नान के लिए तैयार हुई। लेकिन उसने कहा मैं बहुत अशक्त हो गई हूँ, अगर तुम कहीं से मुझे एक सेब ला दो तो मैं ठीक हो जाऊँगी वरना फिर बीमार पड़ जाऊँगी। मैं उसके लिए सेब लाने को बाजार गया किंतु वहाँ एक भी सेब दिखाई न दिया। फिर मैं बागों में घूमा किंतु वहाँ भी किसी भी मूल्य पर सेब न मिला। फिर मैंने घर आ कर कहा कि बगदाद में तो कहीं सेब मिले नहीं, मैं बसरा बंदरगाह जा रहा हूँ शायद वहाँ सेब मिल जाएँ। ...Read More
अलिफ़ लैला - 29
मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि कई कलाओं और विधाओं में पारंगत था। मंत्री के दो सुंदर पुत्र थे जो उसी की भाँति गुणवान थे। बड़े का नाम शम्सुद्दीन मुहम्मद था और छोटे का नूरुद्दीन अली। जब मंत्री का देहांत हुआ तो बादशाह ने उसके दोनों पुत्रों को बुला कर कहा कि तुम्हारे पिता के मरने से मुझे भी बड़ा दुख है, अब मैं तुम दोनों को उनकी जगह नियुक्त करता हूँ, तुम मिल कर मंत्रिपद सँभालो। दोनों ने सिर झुका कर उसका आदेश माना। एक मास पर्यंत अपने पिता का शोक करने के बाद दोनों राज दरबार में गए। दोनों मिल कर काम करते थे। जब बादशाह आखेट के लिए जाता तो बारी-बारी से हर एक को अपने साथ ले जाता तो और दूसरा राजधानी में रह कर शासन कार्य को देखता। ...Read More