तेज रफ्तार गाड़ी को झटके के साथ रोक दिया, बत्ती लाल हो गई थी और हरी होने में अभी चौरासी सेकंड की अवधि दिखाई जा रही थी। एक लंबी सांस भरकर बाहर को छोड़ी। गाड़ी भले ही थम गई थी मगर मन उसी रफ्तार से बीते दिनों का छोर पकड़ने दौड़ा जा रहा था, जैसे बचपन में पतंग लूटने दौड़ा करते थे, गड्ढा, खाई कुछ नहीं दिखता था, निगाहें बस पतंग पर होतीं और दौड़ते जाते। आज ठीक वैसा ही अहसास हो रहा है। ट्रैफिक, सिगनल कुछ नहीं दिख रहा, बस दौड़ता जा रहा हूं, जैसे डायरी नही, पतंग लूटकर आ रहा हूं। …तीस साल मुझे नौकरी करते हो रहे हैं, कॉलेज छोड़े तीन साल और ... मैंने मन ही मन हिसाब लगाया, दो साल नौकरी पाने की कोशिश में भी लगे थे। यानी स्कूल छोड़े करीब पैंतीस साल।
Full Novel
जी-मेल एक्सप्रेस - 1
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 1 - पर्सनल डायरी तेज रफ्तार गाड़ी को झटके के साथ रोक दिया, बत्ती लाल गई थी और हरी होने में अभी चौरासी सेकंड की अवधि दिखाई जा रही थी। एक लंबी सांस भरकर बाहर को छोड़ी। गाड़ी भले ही थम गई थी मगर मन उसी रफ्तार से बीते दिनों का छोर पकड़ने दौड़ा जा रहा था, जैसे बचपन में पतंग लूटने दौड़ा करते थे, गड्ढा, खाई कुछ नहीं दिखता था, निगाहें बस पतंग पर होतीं और दौड़ते जाते। आज ठीक वैसा ही अहसास हो रहा है। ट्रैफिक, सिगनल कुछ नहीं दिख रहा, बस दौड़ता ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 2
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 2 - बीते लम्हों की यादें अन्यमनस्क-सा दिन बीता और रात सुबह के इंतजार में गई। नींद के झोंके भी स्कूल के दिनों में लिए जाते रहे। देखता रहा, बड़ा-सा वह चबूतरा, जहां प्रार्थना हुआ करती थी। नूपुर प्रार्थना कराने वाली टीम के साथ मंच पर खड़ी होती। उसकी यूनिफॉर्म हमेशा साफ और तरीके से प्रेस की हुई होती। स्कर्ट की बाईं ओर एक साफ सफेद रूमाल टंगा रहता। वह कभी उस रूमाल का इस्तेमाल करती हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता। वह वैसे ही स्कर्ट के साथ लगा रहता जैसे उसे साथ में सिल दिया ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 3
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 3 - क्यू से ‘क्वीन’ हमारे समय में लड़के-लड़कियां एक साथ नृत्य नहीं करते थे। याद है, मछेरा नृत्य में मछुआरा और मछुआरिन, दोनों के रूप में लड़कियों ने ही नृत्य किया था। बस पोशाक अलग-अलग पहनी थी। मगर अब समय बदल गया है। अब तो लड़कों का डांस खासा चुनौती भरा होता है। मैं कल्पना कर रहा हूं कि वह आर नाम का लड़का अपने खास तरह के डांसिंग अंदाज से क्यू नाम की लड़की को आकर्षित कर रहा है। मेरे भीतर एक तरह की रूहानी दुनिया आकार लेती जा रही है और मैं ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 4
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 4 - ‘जॉय-स्पॉट’ अचानक मेरा मोबाइल बज उठा। मेरा मोबाइल कम ही बजता है, मैंने फोन उठाया। कोई अपरिचित नंबर था। “हलो, मेरा नाम रिया है, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगे?” कोई नशीली-सी आवाज़ थी। मैं हैरान रह गया, “अरे, मेरा नंबर किसने दिया आपको?” “मुझे पार्टी में जाना, घूमना बहुत पसंद है... क्या आप मुझे अपने साथ पार्टी में ले चलोगे?” मेरे प्रश्न को अनसुना कर उसने अपनी बात जारी रखी। एक पल को तो मैं अकबका गया, फिर समझ आया कि यह तो रिकार्डेड मैसेज है। लेकिन तब भी, यह कितनी हैरानी की ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 5
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 5. फैन्टेसी की दुनिया उस रोज मासबंक किया गया था। मस्ती या मसखरी के लिए बल्कि घर पर पढ़ाई करने के लिए, जबकि प्रिंसिपल ने किसी विशेषज्ञ को ‘इग्जैम टिप्स’ देने के लिए आमंत्रित किया हुआ था। क्लास खाली पाकर प्रिंसिपल को बहुत शर्मिंदा होना पड़ा। प्रिंसिपल ने इन छात्रों के पेरेंट्स को बुलवाने का फरमान सुनाया। इस फैसले से छात्रों को बड़ी परेशानी हुई। परेशानी इसलिए कि स्कूल आने पर पेरेंट्स को न मालूम क्या-क्या और जानकारियां दी जातीं जो उनके लिए और कई तरह की मुसीबतें खड़ी कर सकती थीं। फिर सवाल यह ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 6
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 6. रोज की दुल्हन लगभग आधे घंटे बाद पूर्णिमा जीएम के साथ दाखिल हुई। लंबे के बावजूद जीएम मैडम ने ऊंचे हील वाली सैंडल पहनी हुई थी। ठक्-ठक् की आवाज उनकी चाल को और भी रोबदार बना रही थी। वे पूर्णिमा के साथ किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रही थीं। वैसे भी, जिस विषय पर जीएम से चर्चा की जाए, वह तो अपने आप ही महत्वपूर्ण हो उठता है। वे दोनों हॉल के भीतर आ चुकी थीं। हम सभी अपनी-अपनी सीट पर खड़े हो गए। मगर मैडम ने कोई दिलचस्पी न ली, उनका पूरा ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 7
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 7. अर्ली प्यूबर्टी दफ्तर में राजनीति होने लगी है। बेचारी पूर्णिमा कितनी तरह से विभाग ऊपर उठाने की कोशिश करती है और धमेजा उसका पंक्चर कर देता है। सोचता हूं, पूर्णिमा इतनी मिलनसार और हंसमुख है, फिर अपने पति के साथ क्यों नहीं निभा पाई और क्यों उसका घर छोड़कर आ गई? ‘‘ये घर छोड़कर नहीं आई, इसके पति ने ही इसे निकाल बाहर किया।’’ मिसेज विश्वास फुसफुसा रही थी। कोई कैसे किसी की निजी जिंदगी के बारे में इतने भरोसे से कमेंट कर सकता है, पता नहीं। मुझे ऐसी बातों में कभी दिलचस्पी नहीं ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 8
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 8. अधिकार और बंदिश के बीच पूर्णिमा के आने के बाद से सेक्शन में जीवंतता गई है। ट्रेनीज भी अधिक आने लगे हैं या कहो, पूर्णिमा अधिक-से-अधिक ट्रेनीज रखने और उन्हें सिखाने के पक्ष में रहती है। अभी भी वह चरित को उसके प्रॉजेक्ट में गाइड कर रही है। ‘‘कोई ऐसा मॉडल तैयार करो कि हमें किसी प्राकृतिक आपदा के आने की पूर्व चेतावनी मिल सके, ताकि टूरिस्ट या यूं कहो कि ह्यूमन लाइफ को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी तरह की दुर्घटना से पहले अलार्म-सा बजने लगे...’’ चरित ऐसे किसी सिस्टम की संभावनाओं के ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 9
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 9. तस्वीर का दूसरा रुख क्वीना ने लिखा है कि कुणाल से मिली जानकारी के उसे प्रैक्टिकल में पूरे नंबर मिले हैं। हो सकता है, वह टीचरों की चापलूसी वगैरह करके क्वीना के नंबर पता लगा लाया होगा। क्या पता, नंबर बढ़वा भी आया हो। लड़कों के भीतर यही तो विशेषता होती है कि वे लगकर पढ़ाई करते हों या नहीं, पर अपना टार्गेट हिट करने के प्रति पूरी तरह सजग रहते हैं। चेक वाली घटना के बाद से धमेजा और पूर्णिमा के बीच अंडरस्टैंडिंग बनने लगी है। अब वे एक-दूसरे को सहयोग करने लगे ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 10
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 10. विदाई गीत डायरी का यह पन्ना उदासियों से घिरा है। स्कूल छोड़ने की उदासी... बीत जाने की उदासी... बहुत कुछ छूट जाने की उदासी... कितनी खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है क्वीना ने अपनी पीड़ा को-- समय की शाख से पीले पत्तों की तरह, झरते जा रहे हैं जो सुनहरे पल, काश! उन्हें यादों की किताबों में फूलों की तरह दबा कर सहेज लेती... मैं महसूस करता हूं, डायरी की शैली मेरी अपनी लेखन शैली के बहुत करीब है। फर्क है तो बस इतना कि ऐसा ही मैं हिंदी में लिखता, जबकि यहां अंगरेजी में लिखा ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 11
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 11. हॉरमोनल इंबैलेंस क्वीना आगे की पढ़ाई करने घर से कहीं दूर गई है। उसके में सात सदस्य हैं। क्वीना ने लिखा है, वे अपने ग्रुप को सेवन स्टार कहते हैं। सातों सदस्य एक से बढ़कर एक बिंदास हैं। आए दिन वे क्लास के बाद वी.पी. मॉल घूमने चले जाते हैं, वहां बरिस्ता में कॉफी पीते हैं और खूब मस्ती करते हैं। किसी के बर्थडे वगैरह पर ‘ड्रिंक एंड डाइन’ रेस्तरां में जाकर ड्रिंक भी करते हैं और डाइन भी। कॉलेज फेस्ट का जिक्र करते हुए क्वीना ने लिखा है कि यहीं उसकी मुलाकात ‘वी’ ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 12
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 12. ‘‘एडवेंचर कुड़िये... एडवेंचर...’’ क्वीना की परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। परीक्षाओं के बीच ही का जन्मदिन भी है। निकिता ने साफ शब्दों में पार्टी न करने का ऐलान कर दिया है। क्वीना जानती है कि निकिता की मर्जी के खिलाफ जाना ठीक नहीं रहेगा, इसलिए इस उत्सव को आगे के लिए मुल्तवी कर दिया है। बहरहाल, रात बारह बजे सभी ने दनादन फोन किए और निकिता को ‘विश’ किया। ‘कम आउट इन योर बैलकनी।’ निकिता के मोबाइल पर क्वीना का संदेश आया। निकिता हैरानी से बालकनी की तरफ लपकी। देखा, नीचे समीर अपनी बाइक ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 13
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 13. चुंबकीय आकर्षण कमाल है, इतनी सारी मस्ती के बाद भी क्वीना का रिजल्ट प्रभावित हुआ था। निकिता ने भी अपनी पुरानी परसेंटेज बनाए रखी थी जबकि समीर एक पेपर में पास नहीं हो पाया था। रिजल्ट के बाद ये लोग वी पी मॉल गए थे। समीर साथ होकर भी साथ नहीं था। वह उखड़ा-उखड़ा ही रहा। क्वीना लिखती है कि वे लोग कितनी मस्ती किया करते थे, किसी भी ट्रक को हाथ के इशारे से रोक देना और ऊपर जा बैठना, फिर सबका मिलकर कोरस गाना, शोर मचाना... ये शरारतें इस बार अनुपस्थित रहीं ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 14
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 14. ‘टीन एज प्रॉब्लम्स ऐंड टोटल पर्सनैल्टी’ क्वीना लिखती है कि हंसी-खुशी असल में किसी साथ से मिलती है, न कि किसी घटना या बात से। काफी समय बाद आज समीर भी सामान्य बरताव कर रहा था और हंसी-कहकहों के बीच हलके तौर पर ही सही, पर शामिल था। अभी वे यह तय कर ही रहे थे कि उन्हें अपने बसेरों की तरफ रुख करना चाहिए कि अचानक एक बाइक निकिता से टकराती हुई निकल गई। बाइक के पीछे बैठा व्यक्ति शायद झपटमारी के इरादे से निकिता पर लपका था, मगर उससे पहले ही निकिता ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 15
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 15. मैं अचानक बड़ी हो गई... क्वीना लिखती है, समीर की वह हँसी उसके दिलोदिमाग छाई रही। वह सोचने लगी, अब तक उसे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जो क्वीना की खुशी से खुश होता हो। अब तक उसके जितने भी दोस्त बने थे, उन सबके प्यार में स्वार्थ था। वे क्वीना के माध्यम से खुद को संतुष्ट करते रहे, किसी ने भी क्वीना की मर्जी जानने की कोशिश नहीं की। क्वीना लिखती है कि बेशक उन्होंने उस पर कीमती तोहफे लुटाए, मगर इसलिए नहीं कि क्वीना को उनकी जरूरत थी या वह उन्हें पसंद ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 16
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 16. बीते वक्त का जख्म लंबे अंतराल के बावजूद दोनों के बीच कोई दूरी नहीं थी। ‘‘तुझमें इतना रूखापन क्यों है?’’ क्वीना उसी अंतरंगता के साथ पूछ रही थी, ‘‘क्या तू शुरू से ऐसी ही है?’’ निकिता ने बताया कि एक दिन उसने अपनी मां से किसी को यह कहते सुन लिया था कि उसके जन्म पर निकिता के पापा उसे देखने तक नहीं आए। तब वह बहुत छोटी थी। इतनी छोटी कि उसकी मां ने यह सोचा भी न होगा कि निकिता इन बातों का अर्थ भी समझ सकती थी। मगर निकिता के अबोध ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 17
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 17. पीली फाइल बाकी तो सब ठीक है, मगर क्वीना उसे सोता छोड़कर बाहर क्यों आई? इस वक्त तो क्वीना को निकिता के साथ होना चाहिए था। उसे निकिता के उठने से पहले बढ़िया-सी चाय बनाकर उस नई सुबह में उसका स्वागत करना चाहिए था। मैं ऐसा दृश्य गढ़ सकता था, मगर मेरी चेतना क्वीना की उदारता पर संदेह कैसे कर सकती थी? अगर ऐसा करने के बदले वह चुपके से वहां से निकल ही आई थी, तो भी, वह पलायन तो हरगिज नहीं हो सकता था। जिस दिलेरी से क्वीना ने निकिता को उसकी ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 18
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 18. पिछले जन्म की बातें क्वीना ने जिस तरह निकिता को संभाला था, वह सचमुच करने वाला था। अचानक ही लगा कि हमलोग नई पीढ़ी की क्षमता और संवेदनशीलता पर गलत आरोप लगाते हैं। वे पर्याप्त संवेदनशील भी हैं और वक्त पड़ने पर स्थितियों को संभाल भी सकते हैं। क्वीना की भूमिका मुझे पूरी पीढ़ी की ओर से आश्वस्त कर रही थी। मैं देख रहा था कि क्वीना निकिता की तमाम गोपनीयताओं के साथ होकर भी, उसके अखंडित स्वाभिमान की रक्षा के लिए तत्पर थी। रातभर जगे होने के कारण क्वीना अगली सुबह देर तक ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 19
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 19. ‘पैसिव पार्टनर’ नहीं, ‘एक्टिव प्लेयर’ ‘‘मिस्टर त्रिपाठी!’’ पूर्णिमा कुछ हड़बड़ाई-सी सामने खड़ी थी। उसे से किसी अर्जेंट फाइल पर साइन लेने थे। उसे कोई विश्वसनीय व्यक्ति चाहिए था जो यह काम करा लाता। मैडम अपना फोन नहीं उठा रहीं, मगर वह जानती है कि इस वक्त मैडम कहां होंगी। मैं सीलबंद फाइल लिए गाड़ी में बैठ गया। ड्राइवर रास्ता जानता है, इसलिए मुझे अधिक चौकस रहने की जरूरत नहीं है। गाड़ी मेन रोड से भीतर की सड़क पर उतर आई है... अंदर गलियों-गलियों घूम रही है। खीज आती है मुझे खुद पर... क्या समझते ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 20
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 20. सरकारी दौरा क्वीना ने निकिता के साथ कोई फेथ ग्रुप ज्वाइन किया है जहां मिलजुल कर एक-दूसरे के दुख-सुख बांटते हैं, हर सदस्य की बेहतरी के लिए प्रार्थनाएं करते हैं। क्वीना लिखती है, एक परिवार वह है जिसमें हमने अपने कर्मों के आधार पर जन्म लिया है, उससे मिले रिश्ते ईश्वर प्रदत्त हैं, हमें उन्हें निभाना है मगर ‘फेथ परिवार’ हमारा अपना बनाया हुआ परिवार है। इन संबंधों को हमने स्वेच्छा से अपनाया है, इसलिए इनका निर्वाह करने में अद्वितीय खुशी मिलती है। फेथ परिवार में शामिल होकर क्वीना बहुत खुश है। यहां सभी ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 21
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 21. मरीना की याद के साथ दिल्ली की वापसी ये दिन हवा के झोंके की गुजर गए। हमारी वापसी की टिकट शनिवार शाम की थी, हमारे पास दिन का समय खाली था। ‘‘मरीना बीच पर चलें?’’ विनीता के स्वर की आतुरता के साथ मेरे भीतर भी मरीना से दोबारा मिलने की इच्छा तीव्र हो गई। लगभग तीस वर्षों बाद दोबारा यहां आया था, इससे पहले कॉलेज ट्रिप के साथ आया था। मरीना बिलकुल वैसी ही थी उन्मुक्त... उद्दाम... उच्छृंखल... सफेद झाग के बीच हलकी-सी मलिनता... पाश में भर लेने के आवेश के साथ अपनी अजान ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 22
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 22. जिगोलो यानी... मेल प्रॉस्टीट्यूट बाहर कोरीडोर में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। में मोबाइल से संगीत का लुत्फ उठाते चपरासी साहब दोनों हाथ पैंट की जेबों में डाले, मस्त चाल के साथ चले आ रहे थे। ‘‘अरे प्रीतम, यहां की फाइलें कहां गईं?’’ उसका शाही अंदाज मुझे और भी व्यग्र कर रहा था। ‘‘कहां गईं मतलब? ...आप तो ऐसे कह रहे हो जैसे आपको कुछ पता ही न हो!’’ लो, कर लो बात, सवाल के जवाब में सवाल। ‘‘अरे यार, मैं तो दस दिन बाद आ रहा हूं, ट्रेनिंग पर गया था ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 23
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 23. बड़े अधिकारियों की छोटी करतूतों का पर्दाफाश घर पहुंचा तो विनीता ने देखते ही किया, “हमारे दफ्तर में आज दिन भर तुम्हारे दफ्तर की चर्चा होती रही।” उसकी आंखों में हैरानी से अधिक अविश्वास था। “मुझे तो खुद यकीन नहीं हो रहा।” बिना पूरी जानकारी के, मैं पूर्णिमा के बारे में कोई राय नहीं देना चाहता था। विनीता ने टीवी ऑन कर दिया और चैनल पर चैनल बदलने लगी। तीन दिन पहले हुए पर्दाफाश के बाद कोई नई जानकारी इनके पास नहीं थी मगर चैनलों ने इस खबर से फैली सनसनी को बनाए रखा ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 24
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 24. तहकीकात कुछ ही देर में गाड़ी झटके से रुकी और एक-एक कर हम तीनों से नीचे उतर गए। यह कोई सरकारी कॉलोनी थी। सीढ़ियां चढ़कर हम पहली मंजिल पर पहुंचे। उस पहलवान ने खास ऋद्म में दस्तक दी और दरवाजा खुल गया। भीतर घुसने पर मैंने खुद को किसी दफ्तर जैसी जगह में पाया। मुझे एक कुरसी की तरफ बैठने का इशारा कर वह व्यक्ति भीतर चला गया, धमेजा ने मुझे जिसका सहयोग करने को भेजा था। पहलवान अभी भी वहीं डटा था। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि मुझसे इन्हें क्या ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 25
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 25. अब मेरी बारी थी आज किसी से नमस्ते करने का भी साहस नहीं जुटा रहा था। चुपचाप अपनी सीट पर जा बैठा। धमेजा ने मुझे देखकर भी अनदेखा किया। पता नहीं, मुझसे नजरें मिलाकर वह मुझे शर्मिंदा नहीं करना चाहता था, या फिर उसने मेरा बहिष्कार किया था। फिलहाल, मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई में कुछ कहता। मैंने अपना चेहरा फाइलों में छुपा लिया। ‘‘साब जी, आपका फोन बज रहा है...’’ चपरासी शायद बात करने का बहाना तलाश रहा था मगर मेरा फोन सच में बज रहा था। घबराहट पर ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 26
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 26. भरोसे की नींव पर खड़ा रिश्ता मैं चुपचाप उनके सामने जाकर खड़ा हो गया। अपनी सफाई में क्या कहना है?” “तू कौन-सा नया ज्ञान बघारेगा?” “सीधे-सीधे काम की बात पर आ। तू तो डायरेक्ट पूर्णिमा को ही रिपोर्ट करता था न?” एक-एक कर वे तीनों मुझ पर हावी होने लगे थे और उनकी चुप्पी अब रौद्र रूप लेने लगी थी। मैंने समझा था कि माहौल थोड़ा संवेदनशील हुआ है, मगर यह मेरी गलतफहमी निकली। वे उन लड़कों पर जो आजमाइश नहीं कर पाए थे, वह अब मुझ पर करने को बेताब थे। मैं कुछ ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 27
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 27. डर से पार जाने का अहसास जैसाकि संभावित था, कुछ देर में फोन बजा मैं आदेश मुताबिक बाहर चला आया। आज मैं काफी संयत था और अपनी पेशी के लिए मानसिक रूप से तैयार भी था। आज मुझे जिस जगह ले जाया गया था, वह एक बड़ा हॉल था जिसे फोल्डिंग पार्टीशन से कई भागों में बांट रखा गया था। पांच-छह मेजों पर कई तरह के काम हो रहे थे। कहीं कागजों को अलग-अलग फाइलों में रखा जा रहा था तो कहीं कंप्यूटर पर किसी व्यक्ति का स्केच तैयार किया जा रहा था। हर ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 28
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 28. ‘आरबीएस’ का खुलासा अपनी सीट पर पहुंचने के बाद मैंने डॉक्टर का दिया हुआ कार्ड निकालकर देखा-- ‘डॉ. मधुकर’ उस पर लिखा था और मेरा अंदाजा सही था, वह एम्स में मनोचिकित्सक था। तभी उसका व्यवहार दूसरों से इतना अलग था। मैं ईश्वर का धन्यवाद कर रहा था कि किस प्रकार डॉक्टर मधुकर ने बीच में आकर मेरी बात सुनी थी। यह भी कितना बड़ा संयोग था कि मेरी तफतीश कभी भी नौजवान लड़कों के साथ नहीं हुई और मैं उनके सामने ज़लील होने से बच गया, वरना वे तो यही समझते कि मैं ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 29
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 29. वासना, संभोग और समाधि यह भी अच्छा हुआ कि अभिषेक इन दिनों अपने दोस्तों साथ देहरादून में है जिससे मैं विनीता के साथ खुलकर अपनी बात कह पाया, वरना परसों रात जिस तरह मैं फफक पड़ा था, अगर उस वक्त अभिषेक भी घर में होता तो बातें उससे भी कहां छुप पातीं और तब मैं कहां मुंह छुपाता। एक ओर मैं जहां अभिषेक की अनुपस्थिति से निश्चिंत हुआ था वहीं दूसरी ओर उसकी कमी को भी बेतरह अनुभव कर रहा था। शायद ऐसी किसी घड़ी में हर बाप अपने बेटे का कंधा तलाशता है। ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 30
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 30. अज्ञात से मुलाकात रात का खाना बन चुका है, मैं विनीता के फ्री होकर की राह देख रहा हूं। हालांकि मुझे पूरा भरोसा नहीं कि मेरी बात को वह कितनी गंभीरता से लेगी? कहीं वह मेरी हंसी ही न उड़ाने लगे, आखिर मैं भी तो उसके पूजा-पाठ को लेकर कभी गंभीर नहीं रहा। खाना बनाकर विनीता अपने मंदिर में संध्या-पूजन के लिए चली गई है। यानी करीब आधा घंटा गया। मैं व्यग्र हो रहा हूं उससे बात करने को, मगर उसका रूटीन पूरा हो तब न! दीप जलाकर उसने पूरे घर में घुमा दिया ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 31
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 31. नीली डायरी और सरप्राइज़ पार्टी मैं अचानक ही महसूस करने लगा हूं कि मैं चाहता हूं, जिस तरह चाहता हूं, हू-ब-हू वैसा ही हो जाता है। घर के छोटे-छोटे मामलों में भी विनीता का ही निर्णय सर्वमान्य होता था। आज इतने महत्वपूर्ण मौके पर उसका इस तरह समर्पण करना और अभिषेक को एअर फोर्स में भेजने के लिए राजी हो जाना लगभग असंभव-सा काम था, मगर संभव हो गया। हालांकि मैं जानता हूं कि विनीता मूल रूप से फौजी जिंदगी के प्रति अत्यंत संवेदनशील है और यह संवेदनशीलता उसके जुड़ाव के कारण है, न ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 32
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 32. यातना से गुजर कर सरप्राइज पार्टी सच में बहुत गोपनीय ढंग से आयोजित की थी। अभिषेक को अंतरा ने यह कहकर बुलाया था कि उसके दफ्तर का ‘अवॉर्ड-फंक्शन’ है जिसमें अंतरा को भी अपने परिवार सहित अवॉर्ड लेने आना है। यों, अभिषेक कहीं आना-जाना पसंद नहीं करता है, मगर इस बार उसने ज्यादा ना-नुकुर नहीं की। इस कामयाबी के बाद उसमें भी खुलापन आया है और अब वह लोगों से मिलने में सहज हो रहा है। तय समय पर हम घर से निकल पड़े। हमने जैसे ही हॉल में प्रवेश किया, कोई देशभक्ति धुन ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 33
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 33. मैं क्वीना से मिलना चाहता हूं... मैं अवाक् उसकी तरफ देख रहा था। उसकी मुझ पर टिकी हुई थीं, जैसे वह पूरी दृढ़ता के साथ अपनी जिंदगी के उस काले अध्याय को स्वीकारने का सामर्थ्य जुटा रहा हो। मैंने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह और भी फूट पड़ा। ‘‘बहुत छोटा था तब मैं, जब मां मुझे डे-बोर्डिंग में छोड़ जाती थी...’’ वह बताने लगा, ‘‘मेरी मां उस जमाने में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में मनोविज्ञान पढ़ाने जाती थी।’’ उसने अंदाजे से बताया कि यह कोई तीस साल पुरानी बात होगी, तब ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 34
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 34. पहचान परेड मैंने देखा, जांच कक्ष के भीतर वाले हिस्से में चरित को लिटा था, नीली बत्ती ठीक उसकी आंखों के सामने थी। आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में वह खुद से संवाद कर रहा था। ‘‘...तब मैं नाइन्थ में पढ़ता था। ‘रूबी मैम’ मुझे इंगलिश पढ़ाती थीं। रूबी मैम के कारण ही मेरा रुझान अंगरेजी कविता की तरफ हुआ और उसी उम्र से मेरी कविताएं स्कूल मैगजीन में प्रकाशित होने लगीं। मैं स्कूल की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगा जिससे स्कूल में मेरी अलग पहचान बनने लगी। रूबी मैम मुझे खूब प्रोत्साहित करतीं, समय ...Read More
जी-मेल एक्सप्रेस - 35 - अंतिम भाग
जी-मेल एक्सप्रेस अलका सिन्हा 35. सवाल-दर-सवाल “घर पर किसी ने महंगे तोहफों के बारे में आपसे कुछ पूछताछ नहीं मधुकर के इस सवाल पर चरित कुछ पल को खामोश हो गया। चेहरे पर आड़ी-तिरछी रेखाएं उभर आईँ। “मेरे पिता की जिंदगी उनके ऑफिस तक केंद्रित थी। अफसर बनने की लालसा लिए-लिए ही वे रिटायर हो गए,” चरित का जवाब मधुकर के सवाल से सीधे-सीधे तो नहीं जुड़ता था, मगर उसके भीतर का आक्रोश जरूर इस सवाल के साथ जुड़ा था, “मेरी तरफ उनका ध्यान गया ही नहीं कभी, वे तो हर बात में मुझे नाकारा साबित करने में लगे ...Read More