दो अजनबी और वो आवाज़

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दो अजनबी और वो आवाज़ जीवन में जब आपके किसी अपने की कोई परेशानी आपके सर चढ़कर बोलती है तो क्या होता है ? जाहीर सी बात है मन परेशान हो उठता है और दिलो दिमाग के बीच एक जंग सी छिडी होती है। दोनों में से कोई भी एक दूसरे का साथ नहीं देता। ऐसे हालात में आपके दिमाग में कुछ ऑर चल रहा होता है और आप का शरीर कुछ और कर रहा होता है (कुछ ऐसा जिसको करने के लिए आपको दिमाग की जरूरत नहीं होती) ठीक वैसा ही इस कहानी की नायिका के साथ भी हो

Full Novel

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 1

दो अजनबी और वो आवाज़ जीवन में जब आपके किसी अपने की कोई परेशानी आपके सर चढ़कर बोलती है क्या होता है ? जाहीर सी बात है मन परेशान हो उठता है और दिलो दिमाग के बीच एक जंग सी छिडी होती है। दोनों में से कोई भी एक दूसरे का साथ नहीं देता। ऐसे हालात में आपके दिमाग में कुछ ऑर चल रहा होता है और आप का शरीर कुछ और कर रहा होता है (कुछ ऐसा जिसको करने के लिए आपको दिमाग की जरूरत नहीं होती) ठीक वैसा ही इस कहानी की नायिका के साथ भी हो ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 2

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-2 क्यूँ, ऐसा क्यूँ लगता था तुम्हें क्यूंकि....जाने दो फिर कभी, फिर समय के मेरा आकर्षण बदलने लगा और तुम जैसे समय के साथ–साथ मेरी जिंदगी से कहीं गुम होती चली गयी। अब मेरी भी ज़िंदगी लगभग बदल चुकी थी और जैसा के लड़कों के साथ अक्सर होता है। उम्र के साथ कुछ गलत आदतें साथ लग जाती है। मुझे भी उन दिनों नशे की आदत लग चुकी थी। जब भी कभी मुझे खाली समय मिलता। मैं अपने दोस्तों के साथ बैठकर दारू पी लिया करता। यह शौक इस कदर बढ़ा कि मेरी पहली ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 3

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-3 इसके पहले मैं कुछ और सोच पाती, वह आवाज मेरे निकट आकर मुझसे है तुम यहाँ बैठो और मेरा इंतज़ार करो। जब हमारी कॉफी तैयार हो जाएगी तो यह भैया तुम्हारा नाम लेकर तुमसे खुद कॉफी ले जाने को कहेंगे। मैं अभी आता हूँ। मैं वहाँ बैठकर अपनी नर्वसनेस को छिपाने का निरर्थक प्रयास करते हुए आस पास के माहौल का जायजा लेने लगती हूँ। वो फिर मेरे पास आकर पूछता है कॉफी आ गयी क्या ? मैं ज़रा गुस्से से उससे कहती हूँ कम से कम आज तो मेरे सामने आकर बैठो, ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 4

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-4 गाड़ी का वाइपर ज़ोर-ज़ोर से अपने आप चल रहा है। बाहर बारिश अपने पर बरस रही है। चुभने वाली खामोशी से डरकर मैं पसीना पसीना हो रही हूँ। आस-पास भी कुछ दिखायी नहीं दे रहा है। गाड़ी भी लॉक है। मुझे ऐसा लग रहा है, मानो मुझे कोई अगवा करके अपने साथ लेजा रहा है। तभी तो उसने मुझे गाड़ी में कैद कर दिया है। न कोई आवाज है, न किसी तरह का कोई शोर है। सिर्फ गाड़ी के वाइपर के चलने की आवाज आरोही है। जैसे रात के सन्नाटे में घड़ी की ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 5

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-5 जैसे मैं किसी अंधेरे कमरे में बंद हूँ, जहां चाहकर भी मैं कुछ नहीं पा रही हूँ। अंधेरा इतना घना है कि हाथ को हाथ की सुध नहीं, मानो जैसे मैं सच में अंधी हो गयी हूँ। आती हुई आवाज़ें मुझे परेशान कर रही हैं। मैं बेचैनी से छटपटा रही हूँ। सुनो तुम कौन हो...? मैं अब भी नहीं जान पायी हूँ। लेकिन अभी इस वक़्त तुम्हारी आवाज मुझे डरा रही है। मुझे यहाँ से बाहर निकालो प्लीज....नहीं तो मैं मर जाऊँगी। मैं देख क्यूँ नहीं पा रही हूँ। क्या मैं सच में ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 6

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-6 और सुनो क्या नाम है तुम्हारा पत्तल लगा दिये हों...तो अब जरा थोड़ा भून लो चुलेह पर, निम्मी का यूं मुझ पर रोब जमाना शायद मौसी से देखा नहीं गया और उन्होंने उसे ज़ोर से डांट लगते हुए कहा। अरे हाओ री.... बड़ी आयी कहीं की लाट साहब है क्या तू, जो इस पर हुक्म चलावे से, अरे...मेहमान से भी कोई काम करावे है के??? चल छोरी तू बैठ, मैं खाना परोसती हूँ तन्ने, कुछ ही देर में सभी को भोजन परोस दिया गया। अभी सब खाना खा ही रहे थे कि जोरदार ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 7

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-7 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। पर यह क्या, जिस आग तलाश में, मैं मर-मर के यहाँ तक पहुंची थी, वह आग तो ठंडी हो चुकी है। अब मेरा क्या होगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि आज तो मेरी मौत पक्की है। सुबह होने तक निश्चित ही मैं ठंड से मर चुकी होंगी। किन्तु लकड़ियों में से हल्का-हल्का धुआँ अब भी निकल रहा है। मैं उस धुए से अपने हाथों को गरम करने कि नाकाम कोशिश करने लगती हूँ। मन में बहुत इच्छा है कि कहीं से एक माचिस मिल ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 8

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-8 उस अंधेरे में वह अंकल जी किसी खलनायक से कम नज़र नहीं आते हालांकि वह कभी किसी से कुछ नहीं कहते थे। स्वभाव के भी भले इंसान थे। लेकिन वही दूसरी ओर जब कभी अकेले रहना पड़े ,तो ऐसा भी लगता था कि चलो हम अकेले नहीं है। कोई तो है हमारे आस पास जिसे वक़्त पड़ने पर बुलाया जा सकता है। आज फिर उस लाल बिन्दु पर मेरी नज़र इस तरह से सालों बाद पड़ी थी। मैंने किसी तरह हिम्मत करके उस लाल बिन्दु के पास जाने कि कोशिश की लेकिन उस ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 9

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-9 एक पल को मेरा भी मन किया कि मैं अपनी चाय छोड़कर, वहाँ कॉफी पी आऊँ। फिर दूजे ही पल यह ख्याल आया कि एक तो मेरे पास पहले से ही पैसे नहीं है, दूजा जिसका घर है उसके घर में चीजे यूं बर्बाद करना भी तो ठीक नहीं लगता। भले ही वह मामूली सी चाय ही क्यूँ न हो। ऐसा सोचकर मैं वापस अंदर जाकर अपनी चाय का कप अपने हाथों में लेकर चाय पीना शुरू कर देती हूँ। मेरी चाय अब तक ठंडी हो चुकी है। मगर मैंने उसे नज़र अंदाज़ ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 10

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-10 वैसे, मन तो मेरा भी अभी यही हो रहा है, कि मैं भी जाकर मर जाऊँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं इतनी कमजोर लड़की नहीं हूँ। सोचते-सोचते मैं वापस उस घर के निकट पहुँच जाती हूँ। जहां से में चली थी। कॉफी की वही मनमोहक महक मेरी साँसों में एक आशा की किरण सी जागा देती है। मैं भागकर उस घर में जाती हूँ और फिर एक बार (उस आवाज) को पुकारती हूँ। लेकिन इस बार भी, मुझे सामने से कोई जवाब नहीं आता। मैं वही सीढ़ियों पर बैठकर बे इंतहा रोने ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 11

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-11 जिसका जवाब मेरे पास नहीं है। क्यूंकि मुझे अपने अतीत का कुछ याद नहीं है। वहाँ मौजूद कुछ औरते मुझ से इशारे में यह बात जाना चाहती है इसलिए कभी मांग दिखती है, तो कभी मंगल सूत्र, तो कभी बिछिये, जिसके जरिये वो यह जानने का प्रयास कर रही है कि मेरा पति कौन हैं, कहाँ रहता है, क्या करता है। वह जिंदा भी है या नहीं...ऐसे न जाने कितने सवाल हैं जो उनके मन में घूम रहे हैं। मेरे पास वाली एक बूढ़ी महिला उन सबका इशारा समझ गयी थी इसलिए उसने ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 12

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-12 इस सब से तो अच्छा है, मैं चाहे इस बच्चे के साथ जीऊँ अकेले, पर शादी कर के बंधनों में बंधने और किसी के एहसानों तले दबने से अच्छा है। मैं स्वच्छंद ही रहूँ। मैंने मन ही मन यह निश्चय किया कि मैं शादी नहीं करूंगी। जो भी होगा आगे देखा जाएगा। अभी फिलहाल मुझे आज में जीना है। ऐसा सोचते हुए मैंने वापस अपने काम में ध्यान लगाना शुरू किया। एक दिन में मछली की टोकरी लिए दर दर भटक रही हूँ और शायद मेरी ऐसी हालात देखकर लोग मछली ले भी ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 13

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-13 कुछ देर बाद वहाँ बह रही हवा अपने साथ कुछ पकवानों की महक आयी। पोहे जलेबी और गरमा-गरम समोसों की खुशबू ने मेरा सारा ध्यान अपनी और खींच लिया। अब मुझे जोरों की भूख लग रही थी। पास वाली दुकान पर जाकर मैंने एक प्लेट पोहे और कुछ जलेबियों के साथ एक चाय भी खरीद ली। अभी मैं नाश्ते का लुफ़्त उठा ही रही थी कि सहसा मेरा मन किया कितनी खूबसूरत जगह है यह, काश मैं यहाँ हमेशा के लिए बस जाऊँ। तो ज़िंदगी स्वर्ग हो जाये मेरी, पर फिर अपने अतीत ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 14

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-14 न जाने कहाँ से किसी हवा के झोंके कि तरह रजिस्थान की वो रात मेरे दिमाग को छूकर निकल जाती है और मेरे मन में यह विचार आता है कि वहाँ तो ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा मिल गया था। मगर यहाँ तो पेड़ों पर भी बर्फ विराज मान है। ऐसे में लकड़ी तो मिलने से रही। ऊपर से मेरे पास कोई गरम कपड़ा भी नहीं है। आज तो लगता है, यह मेरी ज़िंदगी का आखिर दिन ही है। अब कुछ नहीं हो सकता। फिर भी अभी मैंने पूरी तरह ...Read More

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 15 - अंतिम भाग

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-15 तुम्हें ऐसा इसलिए लग रहा है कि तुम्हें कुछ याद नहीं है। लेकिन मैं तुम्हें कैसे याद दिलाऊँ की हम कौन है हम “दो अजनबी” नहीं है प्रिय...हम तो दो जिस्म एक जान है। इसलिए में एक आवाज़ हूँ...और तुम मेरा शरीर हो...इससे अधिक अब मैं और क्या कहूँ...कहते हुए वह आवाज़ मुझसे दूर होती हुई कहीं गुम हो गयी। उस जाती हुई आवाज ने मेरे दिमाग में एक हलचल सी पैदा कर दी। मेरी सारी अब तक की ज़िंदगी का जैसे कोई फ्लैश बॅक सा चला दिया। एक-एक कर के मेरी नज़रों ...Read More