कशिश सीमा असीम (1) गर न होते आँसू आँखों में खूबसूरत इतनी आँखें न होती गर होता न दर्द दिल में कीमत खुशी की पता न होती जीवन में आगे आने की चाहत न होती गर होता मन में सकूँ औ करार वक़्त ने हमको क्या दिया क्या नहीं कभी रब से कोई शिकायत न होती हवाई जहाज ने दिल्ली शहर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से चेन्नई की ओर उडान भरी तो पारुल को लगा, हम सच हैं बिल्कुल सच और हमारा प्यार भी एकदम सच्चा है तभी तो हम हमेशा क्षितिज पर ही मिलते हैं ! उसने पास में बैठे राघव का
Full Novel
कशिश - 1
कशिश सीमा असीम (1) गर न होते आँसू आँखों में खूबसूरत इतनी आँखें न होती गर होता न दर्द में कीमत खुशी की पता न होती जीवन में आगे आने की चाहत न होती गर होता मन में सकूँ औ करार वक़्त ने हमको क्या दिया क्या नहीं कभी रब से कोई शिकायत न होती हवाई जहाज ने दिल्ली शहर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से चेन्नई की ओर उडान भरी तो पारुल को लगा, हम सच हैं बिल्कुल सच और हमारा प्यार भी एकदम सच्चा है तभी तो हम हमेशा क्षितिज पर ही मिलते हैं ! उसने पास में बैठे राघव का ...Read More
कशिश - 2
कशिश सीमा असीम (2) बड़ी प्यारी लग रही हो ! उनके यह शब्द उसके कानों मे गूंजने लगे ! वो वाकई मे खूबसूरत लग रही है ! वो आइने के सामने जाकर खड़ी हो गयी ! स्काई ब्लू कलर के फ्रॉक सूट में उसके चेहरे का रंग तो बहुत निखर आया था पर न होठो पर लिपिस्टिक न आंखो में काजल कुछ भी तो नहीं बचा था उसके पास ! चलो कोई नहीं, आज यूं ही रहने देती हूँ ! वो अपने बाल सुलझा कर नीचे मैस हाल में आ गयी ! वहाँ पर राघव पहले से मौजूद थे वे ...Read More
कशिश - 3
कशिश सीमा असीम (3) पापा के साथ स्टेशन तक आई ! वैसे तो पापा हमेशा हर जगह उसे अपने ही लेकर जाते हैं लेकिन आज उन्होने भी अकेले जाने देने मे कोई आनाकानी नहीं की थी ! बल्कि रास्ते में समझाते हुए कहा था, देखो संभाल कर जाना और अपना खयाल रखना ! जी पापा ! आप बिल्कुल बेफिक्र रहें ! मैं अब बड़ी हो गयी हूँ ! ट्रेन में बैठते समय पापा के पाँव छूते हुए पारुल ने कहा, पापा आप अपना और मम्मी का ख्याल रखना ! तू सदा खुश रहे ! सफलता तेरे कदम चूमे ! ...Read More
कशिश - 4
कशिश सीमा असीम (4) सबने राघव को मनाया और वे चलने को मान गए ! हर बात मे आगे रहने वाले कमल जी कि इच्छा थी कि वे सबको बोटिंग कराएंगे ! अरे इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है ! खुशी और मस्ती से लबरेज वे सब खुशी से चहक पड़े ! वे सब 50 के करीब लोग थे और उन सबका एक ही बोट मे आना संभव ही नहीं था ! दो बोट की गयी और संजोग देखिये कि राघव उसकी ही बोट में और उसके बराबर वाली सीट पर बैठ गए ! सुबह के करीब ...Read More
कशिश - 5
कशिश सीमा असीम (5) आज पापा ने ऑफिस से घर आकर उसकी शादी कि बात छेंड दी, सुनो मेरे में ही एक लड़का है आज ही ट्रांसफर होकर आया है बहुत ही समझदार और इज़्ज़त करने वाला ! सोचता हूँ कि उससे पारुल की शादी की बात चलाई जाये ! आप को हर लड़का अच्छा लगता है पहले पारुल से तो पूछ लिया करो ! वो तो शादी का नाम सुनते ही भड़क जाती है ! क्यों, क्या उसे शादी नहीं करनी ? करनी क्यों नहीं है बस उसने कह रक्खा है कि चार साल बाद करेगी ! पहले ...Read More
कशिश - 6
कशिश सीमा असीम (6) सुबह ही राघव से बात हुई थी मन पूरे दिन बड़ा खुश रहा था ! को फिर उसका फोन आ गया ! कैसे हो आप ? अचानक से उसके मुंह से निकाल गया ! बढ़िया हूँ और तुम ? बिल्कुल आपकी ही तरह बढ़िया ! राघव उसकी बात सुनकर हंस पड़ा ! वो भी हंसने लगी ! अरे सुनो प ...Read More
कशिश - 7
कशिश सीमा असीम (7) आ रही हूँ बुआ ! चल रुही अब बाहर चलें बुआ बुला रही हैं ! चल ! वे दोनों हँसती मुसकुराती बाहर आ गयी ! तुम दोनों तो कहीं मिल जाओ तो तुम दोनों के पास बस बातों के सिवाय कुछ भी नहीं होगा ? बुआ बोली ! अरे बुआ, कितने दिनों बाद तो मिले हैं ! वो तो मिलोगी ही, जब मिलने नहीं आओगी ? आपलोग भी कब से नहीं आए हैं पारुल ने शिकायती लहजे में कहा ! बेटा बुआ से बराबरी न किया कर ! ठीक है बुआ ! अब से कोई ...Read More
कशिश - 8
कशिश सीमा असीम (8) इस बार पापा ने भाई को बुला लिया था और उसके ऊपर यह ज़िम्मेदारी डाली कि वो पारुल को छोडकर आए ! भाई दो दिन की छुट्टी लेकर आए थे एक दिन घर में सबके साथ बिताया ! भाई के आने से घर का माहौल थोड़ा खुशनुमा हो गया था ! अगले दिन भाई उसे छोडने के लिए एयर पोर्ट तक गए कैब से उसका समान निकाल कर बाहर रखा और उसे समझाते हुए बोले कि देखो अपना सामान ट्रॉली में रख कर ले जाओ और अपनी फ्लाइट के काउंटर पर जाकर चैक इन करवा ...Read More
कशिश - 9
कशिश सीमा असीम (9) दोनों बेहद खुश थे और होना भी चाहिए आखिर ईश्वर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार जो ली थी ! वैसे अगर सच्चे दिल से ईश्वर से जो भी मांगों वो जरूर मिलता है भले ही देर हो जाये ! पर उनको देर भी कहाँ हुई थी ! यार क्या सोच रही है पारुल ? तू सोचती बहुत है ! पारुल सिर्फ मुस्कुरा दी ! ये राघव भी न कभी आप कह कर बात करते हैं और कभी तू कहकर ! लेकिन जब वे तू कह कर बोलते है तब बहुत अपनापन सा महसूस होता है ! ...Read More
कशिश - 10
कशिश सीमा असीम (10) तुम मेरा हाथ देखो और बताओ मेरी जिंदगी में कितनी प्रेमिकाएं हैं ? हे भगवान कितनी ? पारुल हंसी ! हाँ भई ! कितनी ही बता दो आज तक एक भी नहीं मिली है न ? सही है ! न मिले ! क्यों तुम मेरी खुशी नहीं चाहती हो क्या ? चाहती हूँ तभी तो कह रही हूँ ! अच्छा यह भला कौन सी खुशी हुई कि तुम मेरे जीवन मे किसी प्रेमिका का दखल भी नहीं चाहती ! मैं हूँ न ! उसने हल्के से कहा ! और मेरे होते हुए किसी और प्रेमिका ...Read More
कशिश - 11
कशिश सीमा असीम (11) प्लेन अब बादलो के नीचे आ गया था ! अब वो कलकत्ता शहर के ऊपर रहा था जहां से उसे फ्लाइट बदलनी थी क्योंकि डायरेक्ट फ्लाइट नहीं मिली थी ! यहाँ से घर किसी छोटे खिलौने की मानिंद नजर आ रहे थे ! देख पारुल यहाँ हर घर के पास मे पोखर है ! पोखर ? पोखर मतलब छोटा सा तालाब ! अच्छा वो क्यों ? वो इसलिए क्योंकि यह लोग इसमे मछली पालते हैं, जैसे हम लोग अपने घर के बाहर किचिन गार्डन बनाते हैं न ! ताजी सब्जियाँ उगाने के लिए ठीक वैसे ...Read More
कशिश - 12
कशिश सीमा असीम (12) फ्लाइट उड़ान भरने वाली थी ! पारुल ने उसकी सीट बेल्ट बांध दी ! उसने किया कि उसकी माँ को जरा भी फिक्र नहीं, वे तो बस खुद में ही डूबी हुई हैं ! बेटा हाथ में मोबाइल पकड़े कोई गेम खेलने मे मस्त है और वे अपने पति की बाँहों में लिपटी कोई दूसरी ही दुनिया में हैं ! थोड़ी देर बाद जब एयर होस्टेस स्नेक्स की ट्रॉली लेकर आई तो राघव ने मिट्ठू के लिए और उसके लिए चॉकलेट ली ! नहीं अंकल मैं नहीं खाऊँगी ! मेरे नाना जी कहते हैं किसी ...Read More
कशिश - 13
कशिश सीमा असीम (13) लगता है कि अभी हमारा समान आया नहीं है ! राघव ने कहा ! सामान आया मतलब ? मतलब ? लगेज वाला जहाज अभी नहीं पहुंचा है ! क्या लगेज के लिए दूसरा जहाज ? उसे कुछ समझ नहीं आता बुद्धू कहीं की उसने स्वय को झिड़का ! और फिर जब कहीं बाहर नहीं जाना आना हो तो ऐसी बुद्धि होना स्वाभाविक है ! देखो जैसे मालगाड़ी होती है न ठीक वैसे ही जहाज होता हैं ! जो हमारा समान लेकर उड़ता है ! राघव ने उसे समझाते हुए कहा ! यह मेरे मन की ...Read More
कशिश - 14
कशिश सीमा असीम (14) हाँ यार, कभी खाता नहीं हूँ न इसलिए ! मैं जो नहीं थी पहले खिलाने लिए ! आपके लिए थोड़ी सी चीनी लाती हूँ ! राघव की मिर्च से हुई बुरी हालत को देखते हुए पारुल ने जल्दी से अपना चम्मच प्लेट में रखा और काउंटर पर खड़े व्यक्ति से थोड़ी चीनी मांगी ! उसने एक कटोरी मे चीनी डाल कर दे दी ! राघव चीनी को अपने मुंह मे डाल लो देखना मिर्च एकदम से मिट जाएगी ! नहीं रहने दो, मैंने पानी पी लिया है ! फिर भी तुम्हारे मुंह से सी सी ...Read More
कशिश - 15
कशिश सीमा असीम (15) लव यू राघव ! तुम बहुत अच्छे और प्यारे हो, तुम सा दुनियाँ मे कोई ! उसने मन में सोचा ! अब जल्दी से खाना फिनिश कर दो ! बस मैंने खा लिया ! इतना थोड़ा सा तो खाया है ? और यह सारे चावल बच गए इनको क्या करूँ ? क्या करूँ ? मुझसे अब नहीं खाये जा रहे ! उन मोटे मोटे चावलों को देखकर उसकी भूख तो पहले ही खत्म हो गयी थी ! चाय पीना है ? खाना खाने के बाद चाय ? इनको चाय और सिगरेट दोनों ही बहुत पसंद ...Read More
कशिश - 16
कशिश सीमा असीम (16) अरे क्या हुआ पारुल ? क्या सोच कर मुस्करा रही है ! कुछ नहीं बस ही ! उसके गाल एकदम से लाल हो उठे और दिल इतनी तेजी से धड़कने लगा मानों अभी सीने से कूद कर बाहर निकल आएगा ! कार अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी, गाना बज रहा था ये रास्ते हैं प्यार के ! आगे की सीट पर बैठा हुआ वो लड़का कानों मे हेडफोन लगाये अपनी ही मस्ती में सिर हिलाते हुए मस्त था ! राघव को पता नहीं क्या हुआ कि उसने पारुल का हाथ अपने हाथ में लेकर ...Read More
कशिश - 17
कशिश सीमा असीम (17) अभी और कितनी दूर है और कितना समय लगेगा ! अभी टेकसी वाले से पूछ तुम्हें बताता हूँ ! ड्राइवर अपनी ही धुन मे मस्त था गाना बज रहा था ! चला जाता हूँ किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए ! सच में यह पुराने गाने कितने सुमधुर होते हैं इनको सुनो तो इनकी लय तान में ही खोते चले जाओ ! आज के गानो से इनकी कंपरिजन ही नहीं की जा सकती ! भाई कितनी दूर है अभी, मतलब कितना समय लगेगा ? राघव ने थोड़ी तेज आवाज में उससे पूछा ...Read More
कशिश - 18
कशिश सीमा असीम (18) पारुल चलो जल्दी से पहले अपने रुम पर पहुँचो फिर बात करना ! राघव ने फोन मिलाते हुए देखकर टोंका ! अरे मैं तो इनको मना नहीं करती कि यह मत करो, वो मत करो ! उसे राघव का यूं टोंकना अच्छा नहीं लगा फिर भी अपना मोबाइल पर्स में डाल लिया !! अरे जाना किधर है यहाँ तो कोई बिल्डिंग नजर नहीं आ रही है ! लड़का सारा सामान लेकर चला गया था किधर से गया और कहाँ से गया ! राघव ने कार वाले को पेमेंट किया और पीछे की कि तरफ जाने ...Read More
कशिश - 19
कशिश सीमा असीम (19) थोड़ी ही देर में बेटर एक ट्रे में फुल प्लेट दाल फ्राई, गोभी की सब्जी बड़ा डोंगा, दो पैक्ड दही, बड़ी प्लेट सलाद और चार रूमाली रोटियों जो कपड़े के नैपकिन में लपेट कर डलिया में रखी हुई थी ! उसने पहले टेबल पर रखे हुए सामान को समेटा फिर बड़े करीने से खाने का सारा सामान टेबल पर सजा दिया ! एक स्टूल पर पानी का जग और गिलास रख कर वो कमरे से चला गया ! ओहह माइ गॉड !! इतना सारा खाना कौन खाएगा ? पारुल के मुंह से अनायास निकल पड़ा ...Read More
कशिश - 20
कशिश सीमा असीम (20) वे दोनों एक होना चाहते थे भूल के दुनियाँ की सब रीति रिवाजें और रस्में बहुत सारे बंधनों में बांध देता है हमारा समाज लेकिन यह मानव मन यह सब कहाँ सोचता है ! वो तो उन बातों के खिलाफ होना चाहता है जो उसे बान्ध दे ! तभी तो टूट जाती हैं वर्जनाएं, जो हमारे ऊपर लगा दी जाती हैं ! पारुल ने अपनी आँखें खोली पूरी दुनियाँ अलग सी महसूस हुई पल भर में ही सब कुछ बदल चुका था और एक नए रिश्ते का ईश्वर ने निर्माण कर दिया था ! जब ...Read More
कशिश - 21
कशिश सीमा असीम (21) अच्छा जी,सुना है कि आत्मकथा में एक एक शब्द सच होता है ! हाँ ! आप अपनी आत्मकथा में मुझे भी लिखेंगे ! नहीं बस तुमको छोडकर सब ज्यों का त्यों लिख दूंगा ! लेकिन मुझे क्यों नहीं लिखेंगे ? क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और हम जिसे प्रेम करते हैं उसे जमाने से छिपा कर रखते हैं ! हम्म ! और तुमने मुझ पर विश्वास किया है तो तुम्हारे विश्वास को कैसे तोड़ सकता हूँ ! नहीं, मैं कभी नहीं तोड़ सकता जिस दिन तोड़ दिया उस दिन तेरा गुनहगार बन जाऊंगा ! ...Read More
कशिश - 22
कशिश सीमा असीम (22) लंच ब्रेक में खाने की मेज पर खाना लग गया था, खाने में दाल, चावल आलू की मसाले वाली सब्जी व सलाद, रोटियाँ अभी नहीं रखी थी ! राघव वही कुर्सी पर बैठे थे उनके पास में एक पहाड़ी लड़की और एक असमियाँ लड़की बैठी हुई थी ! उसे अच्छा नहीं लगा बल्कि बहुत तेज गुस्सा आया ! अरे यह लोग क्यों बैठी हैं, उसे बैठना है वहाँ पर ! हालांकि वहाँ पर कोई खाली कुर्सी नहीं पड़ी थी फिर भी वो उनके पास जाकर बोली, मुझे भी बैठा लो न ? हाँ हाँ आओ ...Read More
कशिश - 23
कशिश सीमा असीम (23) पारुल जरा वो पानी की बोतल तो उठा कर दे देना ! राघव ने उस को तोड़ा ! जी ! वो बस इतना ही कह पाई थी ! उसने उठकर साइड टेबल में रखी हुई पानी की बोतल और गिलास उसे पकड़ा दिया ! अरे भाई सिर्फ बोतल ही मांगी थी न ! वे चिड़चिड़े स्वर में बोले ! ओह ! पारुल ने उनके हाथ से गिलास लिया और मेज पर रख दिया ! ये राघव भी न वैसे बड़ा लाड़ दिखाते हैं लेकिन जरा सी गलत बात पर ऐसे बोलते हैं जो अच्छा नहीं ...Read More
कशिश - 24
कशिश सीमा असीम (24) क्या लिखूँ मैं ? कविता या प्रेमपत्र ? दिमाग में तो राघव ही घूम रहे तो राघव को ही लिख सकती है और कुछ ख्याल में ही नहीं आता मानों पूरी दुनियाँ को बिसरा कर सिर्फ राघव से नाता जोड़ लिया है या सिर्फ उनको हो अपना मान लिया है ! राघव क्या तुम मेरा मन नहीं पढ़ पाते ? क्या तुम्हें मेरे अलावा कोई और भी इस दुनियाँ में नजर आता है तो क्यों ? मुझे तो कोई भी नहीं दिखता ! सिर्फ तुम और तुम ही ! कैसे संभव होगा ऐसा कि वो ...Read More
कशिश - 25
कशिश सीमा असीम (25) तन से ज्यादा उसका मन दर्द कर रहा था ! राघव ने उसके बाहर निकलते कमरे का दरवाजा बंद कर लिया ! ओहह यह कैसा प्रेम है जो उसे इतना दर्द दे रहा है उसे तकलीफ से भरे दे रहा है ! वो वहाँ से आ तो गयी थी लेकिन मन वही पर पड़ा रह गया था बेजान जिस्म वहाँ से चला आया था ! कमरे में मेनका मैडम अभी जग रही थी ! कहाँ चली गयी थी, इतनी देर से दरवाजा खुला पड़ा था ! पता नहीं क्यों, जी घबरा रहा था तो राघव ...Read More
कशिश - 26
कशिश सीमा असीम (26) रात भर चैन की नींद न आने से मन एकदम से भरा भरा था ! में नहीं आ रहा था कि वो प्रेम में है या किसी के वशोकरन में ! जैसे वो चाहता है उसी तरह से हर बार हो जाता है ! अरे टावल तो लेकर ही नहीं आई ! वो बाहर आकर तौलिया उठाती है ! मैडआम ने सदी बअनध ली है पिंक कलर की साड़ी में उन्के खुले बालों से गईरतआ हुआ पानी उनकी साड़ी को गीला कर रहा था और वे शीशे के सामने खड़े होकर चेहरे पर पीएनके कलर ...Read More
कशिश - 27
कशिश सीमा असीम (27) अरे राघव कहाँ चले गए अभी तो वो यहाँ आने को कह रहे थे और ही कहीं और चले गए ! ओहह यह राघव भी न, कितने मस्त मौला हैं किसी भी बात की कोई परवाह ही नहीं ! उनको तो अपने आप की ही फिक्र नहीं है ! उसे ही हर वक्त उनकी फिकर लगी रहती है ! और जब वो उनकी परवाह या फिकर करती है तो वो भी उनको अच्छा नहीं लगता है ! फौरन उसे कहेंगे, सुनो तुम अपना ख्याल कर लो वही बहुत है मैं अपना ख्याल खुद रख सकता ...Read More
कशिश - 28
कशिश सीमा असीम (28) हाँ उन्हें अपने दिल में बसा लेती हूँ फिर देखे वे किधर जाएंगे या जिधर जाएंगे मेरा दिल उनके साथ साथ चला जाएगा तब न वो अकेले और न मैं अकेली हर जगह हम एकदूसरे के साथ साथ ! अरे पारुल वहाँ क्या कर रही है आओ इधर हमलोगों का एक फोटो तो खीच दो ! हे भगवान राघव को उसकी याद भी आई तो कम के लिए ! वो मन ही मन मुस्कुराइ ! वैसे कोई अपना या बेहद खास होता है न वो कम के वक्त ही याद आता है ! जी लाइये ...Read More
कशिश - 29
कशिश सीमा असीम (29) वाह संग्रहालय, हाँ ठीक है !चलिए पर न, एक भी क्षण गबाए बिना उसने एकदम कह दिया ! क्योंकि अँधा क्या चाहे दो आँखे और उसे तो राघव का साथ चाहिए किसी भी तरह से भी मिले ! वो एक बेहद खूबसूरत संग्रहालय था ! दीवारों पर सुन्दर भित्ति चित्र बने थे और एक एक चीज ऐसे करने सजी हुई वहां की पुराने ज़माने की कलात्मकता को दर्शा रही थी ! कितनी देर तक राघव एक एक चीज के बारे में बताते रहे ! कितना अच्छा लगता है जब राघव उससे बातें करते हैं और ...Read More
कशिश - 30
कशिश सीमा असीम (30) बेटा मैं क्या करूँगा, इतने सरे सेब का ? आप खा लीजियेगा ! वो मासूमियत बोला ! हम्म ! राघव उसकी बात पर मुस्कुराये बिना न रह सके ! यह होती है देने की चाह ! चलो भाई, अब चलते हैं ! आज मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जो उन सेबों का मोल उस बच्चे को लौटा पाता, वाकई प्रेम का कोई भी मोल नहीं है, यह ख़रीदा नहीं जा सकता, न ही इसे माँगा जा सकता है अगर यह मिलना होता है तो कहीं न कहीं से किसी बहाने से मिल ही ...Read More
कशिश - 31
कशिश सीमा असीम (31) पारुल और राघव कमरे में आ गए थे ! आज राघव में उसे अपने गले लगते हुए कहा क्या तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है जो हर समय तेरी नजरे सवाली बनी रहती हैं ? हाँ है न, लेकिन तब, जब तुम मेरे करीब होते हो तो ! सिर्फ मेरे साथ ही रहा करो न, सिर्फ मेरे बनकर ! लेकिन कैसे संभव है ? राघव ने उसके माथे को प्रेम से चूमते हुए कहा ! अच्छा अब तुम अभी मेनका मैम के कमरे में जाओ नहीं तो वे तुम्हें सूंघती हुई यही आ जाएँगी और ...Read More
कशिश - 32
कशिश सीमा असीम (32) खाना खाने के बाद वे लोग उस बालकनी में आकर बैठ गए, जहाँ पर कुर्सियां हुई थी ! सुबह और रात दोनों समय यही आकर बैठना उन सभी का भी सबसे महत्वपूर्ण शगल था ! सुबह होते ही चाय का कप लेकर नीचे दिख रहे उस घर को देखना, जिसमे लकड़ियाँ जलाकर एक बड़ी सी पतीली में पानी गर्म होता रहता था, जिसे नहाना होता बाल्टी में थोड़ा गर्म पानी निकालता और थोड़ा ठंडा पानी उसमें ड़ाल देता ! लोगों की खिड़कियां बंद रहती ! देर तक एकदन सन्नटा जैसा रहता ! कहीं कोई शोर ...Read More
कशिश - 33
कशिश सीमा असीम (33) यह प्रकृति देख रही हो न, यह मेरी प्रेमिका है, सच्ची प्रेमिका,! उसके कानो में बात सुनाई दी जो राघव मेनका मैम को बता रहे थे ! इनको मेनका जी से बात करना कितना अच्छा लगता है न फिर मुझसे क्यों बात करते हैं शायद इनके लिए प्रेम का मतलब यही होता होगा रुलाना सतना तड़पाना ! कैसे आये इस मन को करार,! ओ चैन देने वाले जब तूने ही बेचैन कर दिया ! रह रह कर माँ की याद आने लगी न जाने क्यों हमें जब कभी किसी भी तरह की तकलीफ होती है ...Read More
कशिश - 34
कशिश सीमा असीम (34) अरे क्या बात करती हो मैडम जी, हम आपको बहुत स्वादिष्ट चीजें खिलाएंगे ! राघब हुए बोले ! हे ईश्वर, मुझे बस इतना बता दो कि लोग प्रेम को चैन से जीने क्यों नहीं देते ? वे क्यों दुश्मन बन जाते हैं ? क्यों लोगों का प्यार छीन लेना चाहते हैं ?क्या उनके पास कोई और काम नहीं है सिवाय दूसरों की खुशियों में आग लगाने के अलावा ? ऐ पारुल तू क्या सोचने लगी क्या तेरी कीवी भी खट्टी और कड़वी निकली ? किसी ने पारुल को हिलाकर कहा तो वापस अपनी सोच से ...Read More
कशिश - 35 - अंतिम भाग
कशिश सीमा असीम (35) ओह्ह यह उसे क्या हो जाता है ? वो उसके प्यार में इतना मदहोश हो है ! उसे कुछ भी होश ही नहीं रहता ! वो अपने आसपास से बेखबर होकर सिर्फ राघव को ही याद रख पाती है ! हे ईश्वर, उसे सद्बुद्धि दे ! वो अपनी इन गलतियों की वजह से ही अक्सर दुखी होती है ! राघव उसे दुःख नहीं देता है, वो स्वयं अपने लिए दुखों का पहाड़ खड़ा कर लेती है ! क्या करे वो ? कैसे खुद पर सब्र करे और कैसे जिए ? राघव के साथ होते हुए ...Read More