योगिनी

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कई बातें ऐसी थीं जो मीता के स्वभाव के प्रतिकूल थीं- उनमे से एक थी ब्राह्मवेला के पश्चात चारपाई तोड़ते रहना। अनुज से इस विषय में अनेक बार उससे बहस हुई थी और यदा कदा मानमनौव्वल से मिट जाने वाला अस्थाई किस्म का मनमुटाव भी हो गया था, परंतु सहरी की अजान अथवा मुर्गे की बांग सुन लेने के बाद मीता कभी बिस्तर पर नहीं लेटी थी। देर से सोने वाला अनुज उस समय गहरी नींद में होते हुए भी मीता के शरीर की उष्णता की कमी शिद्दत से महसूस करता था और मन मसोस कर रह जाता था।

Full Novel

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योगिनी - 1

योगिनी 1 कई बातें ऐसी थीं जो मीता के स्वभाव के प्रतिकूल थीं- उनमे से एक थी ब्राह्मवेला के चारपाई तोड़ते रहना। अनुज से इस विषय में अनेक बार उससे बहस हुई थी और यदा कदा मानमनौव्वल से मिट जाने वाला अस्थाई किस्म का मनमुटाव भी हो गया था, परंतु सहरी की अजान अथवा मुर्गे की बांग सुन लेने के बाद मीता कभी बिस्तर पर नहीं लेटी थी। देर से सोने वाला अनुज उस समय गहरी नींद में होते हुए भी मीता के शरीर की उष्णता की कमी शिद्दत से महसूस करता था और मन मसोस कर रह जाता ...Read More

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योगिनी - 2

योगिनी 2 भुवन पुनः मीता की स्वीकृति मानते हुए नीचे स्थित भवन की ओर चल दिया और मीता उसके हो ली। मुख्य द्वार पर भुवनचंद्र ने जूते उतारे और उसे देखकर मीता ने भी चप्पल उतार दी। ‘ओउम् मित्राय नमः’- द्वार से अंदर जाने पर मीता ने देखा कि एक बडे़ से हाल में एक वयोवृद्व स्वामी जी सूर्य नमस्कार कर रहे थे एवं उनके सामने दस-ग्यारह साधक/साधिकायें उनका अनुसरण कर रहे थे। उन्हीं का समवेत स्वर मीता को सुनाई दिया था। पूरे हाल में दरी बिछी हुई थी और भुवनचंद्र एवं उसके निकट मीता भी दरी पर खडे़ ...Read More

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योगिनी - 3

योगिनी 3 मीता दिन में अपनी दीदी के साथ घर के काम में हाथ बंटाती रही, परंतु दोपहर के के उपरांत विश्राम के दौरान मीता को भुवनचंद्र के साथ मंदिर जाने की बात याद आने लगी। उसने दीदी से इस विषय में कुछ भी नही कहा- पता नहीं कौन सा चोर उसके मन में प्रवेश कर गया था? बस छः बजने से दस मिनट पूर्व बोली, ‘दीदी! मै घूमने जा रही हूं।’ दीदी उसके इस घूमने के स्वभाव से परिचित थीं। उन्होने बस इतना कहा, ‘ठीक है, परंतु अंधेरा होने से पहले ही लौट आना।‘ मीता जब धर से ...Read More

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योगिनी - 4

योगिनी 4 अगले दिन योगासन की अंतिम क्रियाओं- अग्निसार प्राणायाम, भा्रमरी प्राणायाम, एवं शांतिपाठ- से पूर्व स्वामी जी ने को अपने निकट बुला लिया एवं उससे इन क्रियाओं को कराने को कहा। मीता ने न केवल प्रत्येक क्रिया को उत्कृष्टता से करके दिखाया वरन् स्वामी जी की भांति स्पष्टतः से प्रत्येक क्रिया का वर्णन अपने कोकिलकंठी स्वर में किया। मीता के इस असाधरण कौशल की स्वामी जी ने प्रशंसा की एवं सभी साधक अत्यंत प्रभावित हुए- भुवनचंद्र तो मन ही मन ऐसे गद्गद हो रहा था जैसे उस प्रशंसा का केन्द्र विंदु वही हो। भविष्य में स्वामी जी प्रतिदिन ...Read More

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योगिनी - 5

योगिनी 5 भुवनचंद्र को मानिला से तिरोहित हुए अनेक वर्ष बीत चुके हैं- इन वर्षों में मानिला ने अनेक देखे हैं। अब यह उत्तर प्रदेश के बजाय उत्तरांचल में स्थित है, रामनगर एवं भिकियासेंण जाने वाली सड़कों की दशा सुधर गई है, मानिला बाजा़र में कुछ नई दूकाने बन गईं है, राजकीय इंटर कालिज अब राजकीय परास्नातक महाविद्यालय बन गया है; अपना प्रांत बनवा लेने के बाद अब यहंा के लोग भी राजनैतिक दांव-पेंच, विकास योजनाओं में कमीशन खाने के खेल, एवं दबंगई के बल पर चुनाव जीतने की कला सीख रहे हैं। भुवनचंद्र के मकान एवं ज़मीन पर ...Read More

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योगिनी - 6

योगिनी 6 चीड़ के वृक्षों से आच्छादित उूंची पहाडी़ के ढलान पर बसे मानिला गांव में मानिला (मां अनिला) दोनों मंदिर - मानिला मल्ला और मानिला तल्ला- न केवल हिंदुओं की श्रद्धा के केन्द्र हैं, वरन् अपनी अद्भुत छटा के कारण सैलानियों को भी आकर्षित करते हैं। आज ग्रामों के नगरीकरण की मार से मानिला गांव कुछ कुछ एक मैदानी कस्बे जैसा लगने लगा है- बढ़ती आबादी, ग्राम में पानी की ऊंची टंकियां, सड़कों के किनारे खड़े होते बिजली के खम्भे, हाथों में मोबाइल और घरों में टी0 वी0, तथा रामनगर से आने वाली मुख्य सड़क पर बढ़ती चार ...Read More

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योगिनी - 7

योगिनी 7 योगी के अकारण रुष्ट रहने के कारण मीता कुछ समय से अवसादग्रस्त सी रहने लगी थी- महिलाओं पुरुषों द्वारा दबाये जाने की बात ने उसकी हृत्त्ंात्री को इस प्रकार झंकृत कर दिया जैसे ध्वनि के दो स्रोंतों की आवृत्ति एक हो जाने पर उनका सम्मिलित तरंगदैध्र्य ...Read More

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योगिनी - 8

योगिनी 8 उस सायं योगिनी ने माइक के प्रस्ताव का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया था। रात्रि में वह तरह के विचारों में डूबी रही थी। वह आश्चर्य में पड़कर सोचती कि क्या सचमुच ऐसा संसार सम्भव है जिसमें पौरुषेय अहम् न हो, स्त्रियों की पुरुष पर पराधीनता न हो, एवं पुरुषों के संसार की भांति मनुष्य मनुष्य में मारकाट न हो? आज उसे अपने उस पति को बैयरा के रूप में अपनी आंखों से देखने की उत्कंठा भी जाग्रत हो रही थी, जो अपने हाथ से लेकर पानी भी नहीं पीता था। दूसरी सायं योगिनी ने माइक से ...Read More

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योगिनी - 9

योगिनी 9 ‘‘हाय! ह्वेयर आर यू फ्रा़म’’ दीवान मार्केट से लौटकर मीता जब अपने कमरे का ताला खोल रही तभी पीछे से एक गोरी अधेड़ महिला की चहकती सी आवाज़ आई। मीता के ‘‘आय ऐम फ्रा़म इंडिया’’ कहने पर उस महिला ने तपाक से अपना हाथ मिलाने को बढ़ाया और अपना परिचय देने लगी। ‘‘आय ऐम शेली फ्रा़म इंग्लैंड।’’ मीता के आश्रम में गोरे लोगों का आना जाना लगा रहता था और वह उनसे मिलने के तौर तरीकों से परिचित थी। उसने हाथ बढ़ाकर ‘‘हाउू डू यू डू’’ कहा और अपना परिचय दिया। भारतीय सभ्यता के अनुसार उसने शेली ...Read More

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योगिनी - 10

योगिनी 10 यद्यपि योगिनी मीता योगी को बताकर अमेरिका गईं थीं तथापि उनके इस तरह योगी को छोड़कर चले की घटना ने प्राचीन परम्पराओं वाले ग्राम मानिला में सब की आस्था को हिलाकर रख दिया था। योगी ने उूपर से निर्लिप्त बने रहने का दिखावा किया था, परंतु हेमंत चायवाले ने उन्हें अनेक बार सायं के धुधलके मे वृक्षों के झुरमुट के पीछे अश्रु पोंछते हुए देखा था। और फिर एक सायं अकस्मात योगिनी मीता मंदिर में पुनः आ गईं थीं। उनका पुनरागमन ग्रामवासियों में गुप्त पारस्परिक चर्चा का विषय अवश्य बना था, परंतु योगी द्वारा योगिनी के प्रति ...Read More

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योगिनी - 11

योगिनी 11 सायंवेला में मंदिर के अंदर एवं आसपास झुरमुटों में अंधेरा छा रहा है, परंतु मंदिर की छतरी आकाशीय वातावरण से प्रत्यावर्तित होकर पड़ने वाली रवि-किरणें उसे स्वर्णिम आभा प्रदान कर रहीं है। योगी आरती की थाल में रखे दिये की बाती को प्रज्वलित कर थाल को हाथों में उठा रहे हैं। योगिनी मीता एवं भक्तगण प्रणाम मुद्रा ग्रहण कर चुके हैं। फिर एक गोरा व्यक्ति चुपचाप मीता के पीछे आकर प्रणाम मुद्रा में खड़ा हो जाता है। किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं जाता है क्योंकि आरती प्रारम्भ हो चुकी है एवं भक्तगण नेत्र मूंदकर शंख-घड़ियाल की ...Read More

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योगिनी - 12

योगिनी 12 रात्रि के दो पहर बीत चुके हैं। मंदिर के अंदर एवं बाहर अंधकारमय शांति छाई हुई है- बहने वाली बयार भी आज शांत है, बस साल के वृक्ष के तने की खोह में बसेरा बनाये हुए उल्ूाक की ‘घू.... घू.....’ की आवाज़ यदाकदा इस नीरवता को भंग कर देती है। मीता भी निश्चिंतता से गहन निद्रा में सो रही हे। इसके विपरीत उसके बगल में लेटे योगी के मन में एक झंझावात उठा हुआ है। बेचैनी के सहन की सीमा के पार हो जाने पर योगी निश्शब्द पलंग से उठता है और कमरे से बाहर आकर हाल ...Read More

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योगिनी - 13

योगिनी 13 योगी भुवन को आदि-कैलाश से अलमोड़ा जनपद के मानिला गांव में वापस आये हुए तीन दिन हो हैं। माँ-अनिला (मल्ला) मंदिर में प्रवेश करते ही उसके पुनरागमन का समाचार मानिला ग्राम में फैल गया है एवं मानिलावासी उसके अकस्मात मंदिर छोड़कर चले जाने का कारण जानने हेतु मंदिर पर आने लगे हैं। उनके पूछने पर योगी अपनी आदि-कैलाश की यात्रा के विषय में बताने लगता है अथवा हेड़ाखान मंदिर, जागेश्वर मंदिर, पातालभुवनेश्वर की गुफा़, आदि-कैलाश पर्वत आदि की अद्भुत भव्यता एवं रहस्यमयता का वर्णन करने लगता है, परंतु मानिला मंदिर को चुपचाप छोड़कर चले जाने के विषय ...Read More

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योगिनी - 14

योगिनी 14 योगी भुवन चंद्र आदि-कैलाश से वापस मानिला /मल्ला/ मंदिर आकर प्रसन्न है। योगिनी मीता के पिछली बार तरह अमेरिका चले जाने की उसकी आशंका निर्मूल सिद्ध हुई है। एक तारों भरी रात्रि में योगिनी मीता के साथ एक दूसरे के हृदय में व्याप्त मिथ्या आशंकाओं एवं धारणाओं के विषय में खुली बात हो जाने से उन दोनों के मन में उद्भूत कलुष धुल गया है। इस कलुष से युगल के मन में उत्पन्न अवगुंठन द्वारा निर्मित बांध टूटकर बह गया है एवं वे प्रेमीद्वय हिम-शिखर से प्रवाहित उच्छंृखल जलधारा की भांति व्याकुल होकर एक दूसरे का संग ...Read More

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योगिनी - 15

योगिनी 15 काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर मीता ने बाथरूम में जाकर अपना योगिनी का चोला उतार दिया और पहिन ली। काठगोदाम एक्सप्रेस समय से चल दी। शीतकाल होने के कारण बर्थ खाली मिल गई और मीता कम्बल ओढ़कर लेट गई। मीता को अनुज के साथ बिताये प्रारम्भिक दिनों के दृश्य एक एक कर ऐसे याद आने लगे, जैसे सिनेमा के पर्दे पर चित्र उभर कर आयें और मिटते जायें। कुछ दृश्य क्षण दो क्षण में विलीन हो जाते, तो कुछ देर तक रुके रहते। मानव स्वभावानुसार वे दृश्य देर तक उभरे रहते, जो मीता के मन में काॅटा ...Read More

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योगिनी - 16

योगिनी 16 मानिला में तीन दिन से बर्फ़ गिर रही थी- सर्वत्र रजत-श्वेत का साम्राज्य था। अल्मोड़ा जनपद का ग्राम पर्यटक स्थलों के सामान्य मार्ग से अलग स्थित होने के कारण अभी भी अपना नैसर्गिक सौंदर्य बचाये हुए है। यद्यपि सड़क के किनारे बसे होने के कारण बस, बिजली, फोन, पोस्ट आफ़िस, कालेज जैसे आधुनिकता की द्योतक सुविधायें यहां आ गईं हैं और निकटस्थ पर्वत के एक शिखर पर एक सरकारी डाकबंगला भी बन गया है तथापि बाहरी लोगों का आवागमन अभी भी सीमित ही है। अतः न तो यहां की छटा ने और न यहां के लोगों ने ...Read More

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योगिनी - 17

योगिनी 17 हेमंत और शरत को नींद तो पहले भी नहीं आ रही थी और चाय पीने से जब लगना भी कम हो गया, तो हेमंत ने कथा की डोर को पुनः पकड़ लिया। उसने मीता के वापस आ जाने पर भुवन की उसके प्रति बढ़ी हुई आसक्ति की बात रससिक्त शब्दों में सुनाई। फिर गम्भीर होकर बताया कि योगी जब योगिनी की आसक्ति में आकंठ डूबे हुए थे तभी माइक का, यह जानने हेतु कि मीता बिना बताये अमेरिका से वापस क्यों चली आई थी, आश्रम पर पुनरागमन हो गया। योगिनी अपने खुले दिल के स्वभाववश एवं अमेरिका ...Read More

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योगिनी - 18

योगिनी 18 (पुनरावतरण) बर्फ़ीला तूफ़ान थम चुका था और आकाश में बादल छंटने लगे थे. बादलों के बीच से कहीं तारे भी दिखाई देने लगे थे. हिमपात इतना अधिक हुआ था कि उन नक्षत्रों के टिमटिमाते प्रकाश में सम्पूर्ण धरा रजत-आच्छादित लग रही थी. ऊपर देखने पर मीरा को बर्फ़ीली चोटियां बहुत दूर नहीं लग रहीं थीं, परंतु मीरा जानती थी कि वे हैं बहुत दूर. हिमाच्छादन के कारण मीरा गौर्नरग्राट नामक रेल-स्टेशन की स्थिति का अनुमान नहीं लगा पा रही थी. और न उसकी दूरी का सही आकलन कर पा रही थी. वह इतना समझ गई थी कि ...Read More

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योगिनी - 19 - अंतिम भाग

योगिनी 19 तूफ़ान के रुकने पर घनघोर अंधकार छा चुका था. जुगुनू की भांति यत्र-तत्र टिमटिमाते तारे ही पृथ्वी केवल इतना प्रकाश प्रदान कर रहे थे कि मीरा अपनी परिस्थिति की भयावहता का वास्तविक आकलन कर सके. हिम-सलिला के मार्ग, जिससे वह आई थी, पर वापस जाना मृत्यु को सद्यः आमंत्रण देने के समान था, क्योंकि नई गिरी बर्फ़ उसे कहीं भी हिम-समाहित कर सकती थी. किसी दूसरे मार्ग की खोज और उसकी निरापदता की आश्वस्ति भी सम्भव नहीं प्रतीत हो रही थी. मीरा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई थी और समझ नहीं पा रही थी कि इस बर्फ़ के बियाबान ...Read More