फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, भाभीजी ! इस बार आपको हमारे शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं. क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती हैं. आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी. ऐसी क्या बात हो गई ? आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है.
Full Novel
जर्नलिज़्म - 1
जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (1) फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, "भाभीजी ! इस बार आपको शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं. " "क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती हैं. " "आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी. " "ऐसी क्या बात हो गई ?" "आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है. " फ़ोन उसके हाथ से छूटते छूटते बचा, "भला मैं मिनिस्टर के ...Read More
जर्नलिज़्म - 2 - अंतिम भाग
जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (2) श्री वर्मा ने एक मीटिंग में ये बात बताई थी, "बहुत वर्षो पहले ठाकुरों का उत्तर प्रदेश में दबदबा था. कारण ये था कि उनके परिवार का एक सद्स्य घर से घोड़े पर निकाल जाता था. उसका मन जहाँ आता था, वहाँ एक तलवार गाढ़ देता था. बस उसके आस् पास का इलाका उसकी जागीर बन जाता था. मजाल है कोई उसकी उसकी तलवार को हाथ भी लगा दे. यदि किसी में हिम्मत होती तो उसे हट्टे कट्टे ठाकुर से लड़ना होता था. इसी तरह उस तलवार के इर्द गिर्द गांव बसता जाता, इसी तरह ...Read More