कौन दिलों की जाने!

(339)
  • 213.8k
  • 21
  • 80.6k

कौन दिलों की जाने! एक दीपावली के पश्चात्‌ शादी—विवाह के लिये शुभ मुहूर्त आरम्भ हो जाता है। नवम्बर मास के अन्तिम दिनों में ‘महफिल' बैंक्वट, जो सम्भवतः ट्राईसिटी का सबसे बढ़िया व महँगा विवाह—स्थल है, में एक विवाह—समारोह का आयोजन था। अमावस्या की रात्रि थी। आसमान में लाखों—करोड़ों तारों का वैभव फैला हुआ था। हल्की—हल्की, मीठी—मीठी, तन को सुहाती ठंड थी। बैंक्वट में विभिन्न प्रकार की लाईटों तथा अनुपम फूल—सज्जा की व्यवस्था की गई थी। कुल मिलाकर अलौकिक दृश्य प्रस्तुत था। वरपक्ष मोहाली का नामी—गिरामी परिवार है। वधुपक्ष वाले चाहे पटियाला के रहने वाले थे, फिर भी उपस्थित मेहमानों में

Full Novel

1

कौन दिलों की जाने! - 1

कौन दिलों की जाने! एक दीपावली के पश्चात्‌ शादी—विवाह के लिये शुभ मुहूर्त आरम्भ हो जाता है। नवम्बर मास अन्तिम दिनों में ‘महफिल' बैंक्वट, जो सम्भवतः ट्राईसिटी का सबसे बढ़िया व महँगा विवाह—स्थल है, में एक विवाह—समारोह का आयोजन था। अमावस्या की रात्रि थी। आसमान में लाखों—करोड़ों तारों का वैभव फैला हुआ था। हल्की—हल्की, मीठी—मीठी, तन को सुहाती ठंड थी। बैंक्वट में विभिन्न प्रकार की लाईटों तथा अनुपम फूल—सज्जा की व्यवस्था की गई थी। कुल मिलाकर अलौकिक दृश्य प्रस्तुत था। वरपक्ष मोहाली का नामी—गिरामी परिवार है। वधुपक्ष वाले चाहे पटियाला के रहने वाले थे, फिर भी उपस्थित मेहमानों में ...Read More

2

कौन दिलों की जाने! - 2

कौन दिलों की जाने! दो रविवार को नित—प्रतिदिन की अपेक्षा रानी कुछ जल्दी उठी। आसमान साफ था। मौसम बड़ा तथा खुशनुमा था। गुलाबी ठंड तन—मन को स्निग्धता तथा स्फूर्ति प्रदान कर रही थी। आलोक से मिलने की उत्कंठा उसकी चालढाल तथा भाव—भंगिमाओं में स्पष्ट झलक रही थी। उस समय यदि कोई व्यक्ति आसपास होता तो रानी के मन की यह प्रफुल्लता उससे छिपी न रहती। विवाह—समारोह में तो आलोक से कुछ विशेष बातचीत हो न पायी थी, लेकिन आज उसे आलोक के साथ निर्बाध समय व्यतीत करने का अवसर मिलने वाला था। अपने नित्यकर्म निपटाकर उसने लच्छमी के आने ...Read More

3

कौन दिलों की जाने! - 3

कौन दिलों की जाने! तीन रमेश के मुम्बई जाने के बाद उसी दिन सायं रानी अपनी सहेली के संग कन्ट्री मॉल' गई थी। वहाँ कई प्रसिद्ध कलाकरों की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रसिद्ध चित्रकार सरदार शोभा सह की दो पेंटिंग्स रानी को बहुत पसन्द आईं — एक, आशीर्वाद की मुद्रा में गुरु नानक की पेंटिंग जोकि सरदार शोभा सह की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है तथा दूसरी, सोहनी—महिवाल की सर्वाधिक लोकप्रिय पेंटिंग जिसमें सोहनी नदी पार रह रहे अपने प्रेमी महिवाल से मिलन—हेतु कच्चे घड़े के सहारे नदी पार करते हुए दिखाई गई है — और वह इन्हें खरीदे ...Read More

4

कौन दिलों की जाने! - 4

कौन दिलों की जाने! चार क्रिसमस से अगला दिन रानी ने सुबह उठकर जैसे ही बाहर का दरवाज़ा खोला देखा कि बाहर कोहरे की चादर फैली हुई थी। कोहरा इतना गहरा था कि सामने वाले घरों के खिड़की—दरवाज़े तक दिखाई न देते थे। स्ट्रीट लाईट्‌स की रोशनी सड़क तक भी नहीं पहुँच पा रही थी, ट्‌यूब—रोड के चार—पाँच फीट के घेरे में ही सिमट कर रह गई थी। चारों तरफ पूर्ण निस्तब्ध्ता छाई हुई थी, कहीं किसी पंछी तक का स्वर सुनाई नहीं देता था। छः बज चुके थे, फिर भी घुप्प अंधेरा था। रात टी.वी. पर दिखा रहे ...Read More

5

कौन दिलों की जाने! - 5

कौन दिलों की जाने! पाँच रमेश दिल्ली से रात को देर से आया था, इसलिये नौ बजे तक सोता उठते ही उसने रानी को कहा — ‘कल तुम्हें बताया था कि मैंने एक जरूरी मीटिंग अटैंड करनी है, इसलिये जल्दी जाना है। मैं तैयार होता हूँ, तुम नाश्ता और खाना बनाओ।' ‘मुझे याद है। आप तैयार होकर आइये, मैंने नाश्ता और खाना तैयार कर रखा है।' ‘वैरी गुड।' रमेश के ऑफिस जाने के बाद लच्छमी से जल्दी से घर के बाकी बचे काम करवा कर रानी ग्यारह बजे के लगभग आलोक के पास होटल पहुँच गई। कमरे में दाखिल ...Read More

6

कौन दिलों की जाने! - 6

कौन दिलों की जाने! छः 31 दिसम्बर रात को आठ बजे प्रधानमन्त्री जी का राष्ट्र के नाम सन्देश प्रसारित था, इसलिये आलोक ने सात बजे ही सामने वाले ‘तन्दूर' से दाल—सब्जी व दो चपातियाँ मँगवा लीं। वैसे भी आलोक को रात का खाना जल्दी खाने की आदत है। इससे सोने से पूर्व खाना अच्छी तरह पच जाता है और नींद भी बढ़िया आती है। खाने से निवृत होकर टी.वी. ऑन करके रजाई ओढ़ ली। ठीक आठ बजे प्रधानमन्त्री का राष्ट्र के नाम सम्बोधन प्रारम्भ हुआ। प्रधानमन्त्री ने देशवासियों को नव—वर्ष की शुभ कामनाएँ व बधाई देने के उपरान्त 500 ...Read More

7

कौन दिलों की जाने! - 7

कौन दिलों की जाने! सात प्रथम जनवरी, नववर्ष का प्रथम प्रभात धुंध या कोहरे का कहीं नामो—निशान नहीं था, कि इस मौसम में प्रायः हुआ करता है। आकाश में कहीं—कहीं बादलों के छोटे—छोटे टुकड़े मँडरा रहे थे। ठंड भी बहुत कम थी। रमेश और रानी ‘न्यू ईयर ईव' का ज़श्न मनाकर रात को चाहे लगभग दो बजे आकर सोये थे, फिर भी रानी ने सदैव की भाँति समय पर उठकर नित्यकर्म निपटाये तथा स्नान कर पूजा की। तत्पश्चात्‌ सूर्य को जलार्पण करने के लिये लॉन में आई। सूर्य—देवता अभी दिखाई नहीं दे रहे थे, लेकिन पूर्व दिशा के क्षितिज ...Read More

8

कौन दिलों की जाने! - 8

कौन दिलों की जाने! आठ सुबह की चाय का समय ही ऐसा समय था, जब रमेश और रानी कुछ इकट्ठे बैठते और बातचीत करते थे। लोहड़ी से तीन—चार दिन पूर्व प्रातःकालीन चाय पीते हुए रानी ने कहा — ‘रमेश जी, क्यों न इस बार लोहड़ी पर बच्चों को बुला लें। काफी समय हो गया उन्हें आये हुए।' ‘दिन में फोन करके पूछ लेना, अभी तो वे लोग सोये हुए होंगे। आ जायें तो अच्छा ही है। लोहड़ी पर घर में रौनक हो जायेगी, वरना तो क्लब में किटी पार्टी मेम्बर्स के साथ ही लोहड़ी मनेगी।' बड़ी बेटी अंजनि ने ...Read More

9

कौन दिलों की जाने! - 10

कौन दिलों की जाने! दस 24 जनवरी दोपहर में मोबाइल की घंटी बजी। रानी ने जब मोबाइल उठाया तो संक्रान्ति के बाद आज आलोक का नाम देखकर उसके हृदय में खुशी की हिलोरें उठने लगीं। उसका मुख प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो उठा। ‘हैलो' के उत्तर में उधर से आवाज़़ आई — ‘रानी, कहीं डिस्टर्ब तो नहीं कर दिया, क्या कर रही थी?' ‘तुम्हारे फोन आने से डिस्टर्ब नहीं, बल्कि प्रसन्न होती हूँ। कर कुछ भी नहीं रही थी, बस लेटे—लेटे मन्टो की कहानियाँ पढ़ रही थी।' ‘वैरी गुड, कैसी लग रही हैं मन्टो की कहानियाँ, कोई और किताब भी ...Read More

10

कौन दिलों की जाने! - 9

कौन दिलों की जाने! नौ मकर संक्रान्ति मौसम ने करवट बदली। कुछ दिन पहले तक जहाँ सर्दी की जगह का अहसास होने लगा था, अब दो—तीन दिन से पहाड़ों पर बर्फबारी होने से शीत—लहर चलने लगी थी। पहली बार साँस छोड़ते हुए नाक—मुँह से भाप निकलने लगी थी। संजना को विदा करने तथा रमेश व लच्छमी के जाने के पश्चात्‌ रसोई का बचा—खुचा काम समेट कर रानी टी.वी. ऑन करके रजाई में दुबक गई। क्योंकि बर्फीली हवाओं के कारण हाथ—पैर ठिठुर रहे थे, अतः लॉबी या ड्रार्इंगरूम में बैठकर पढ़ना अथवा कोई और काम करना सम्भव न था। बारह—एक ...Read More

11

कौन दिलों की जाने! - 11

कौन दिलों की जाने! ग्यारह आलोक की कोशिश होती है कि जब तक कोई विवशता न हो, समय की का ख्याल जरूर रखा जाये। पच्चीस तारीख को ठीक ग्यारह बजे उसने रानी के घर की डोरबेल बजाई। रानी ने दरवाज़ा खोला और ‘आइये' कह कर स्वागत किया। चाय पीने के बाद दोनों ने रसोई का रुख किया। रानी ने छौंक के लिये प्याज़, लहसुन, टमाटर, अदरक, धनिया पहले ही से तैयार कर रखा था। सब्जी कौन—सी बनेगी — गाजर—मटर या मटर—पनीर का फैसला आलोक की पसन्द के अनुसार होना था। मटर के दाने निकाले हुए थे। गाजर—मटर बनाने का ...Read More

12

कौन दिलों की जाने! - 12

कौन दिलों की जाने! बारह बसन्त पंचमी से एक दिन पहले सायं पाँच बजे तक रानी की ओर से आने, न—आने के बारे में जब कोई समाचार नहीं आया तो आलोक अन्दर—ही—अन्दर बेचैनी अनुभव करने लगा। एक बार तो उसके मन में आया कि फोन करके पता करूँ, लेकिन दूसरे ही क्षण पच्चीस जनवरी को रानी की कही बात स्मरण हो आई, जब उसने चाहे स्पष्ट रूप में तो मना नहीं किया था, किन्तु कोई पक्का आश्वासन भी नहीं दिया था। आखिर सात बजे के लगभग रानी का फोन आया। देर से फोन करने के लिये क्षमा माँगते हुए ...Read More

13

कौन दिलों की जाने! - 13

कौन दिलों की जाने! तेरह एक दिन रात का खाना खाने के बाद रमेश और रानी बेड पर बैठे देख रहे थे। आलोक से दोस्ती को लेकर रमेश के मन में शक की वजह से द्वन्द्व तो रहता था, लेकिन उसके पास रानी के विरुद्ध लच्छमी से प्राप्त आधी—अधूरी जानकारी के अतिरिक्त कोई ठोस सबूत नहीं था, जिसके आधार पर वह रानी के चरित्र पर सन्देह कर सकता। फिर भी चाहता वह जरूर था कि किसी—न—किसी तरह कोई कड़ी हाथ लगे ताकि रानी स्वयं वस्तुस्थिति प्रकट कर दे। इसीलिये उसनेे हवा में तीर चला कर अपना मनोरथ पूरा करना ...Read More

14

कौन दिलों की जाने! - 14

कौन दिलों की जाने! चौदह अंजनि और बच्चे होली के पाँच दिन बाद वापस चले गये। सभी को होली—मिलन में खूब आनन्द आया। हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को खूब हँसाया, कई श्रोता तो हँस—हँस कर दुहरे हुए जा रहे थे। उपस्थित श्रोताओं में से कइयों ने हँसी—मज़ाक के चुटकले तथा क्षणिकाएँ सुनाकर मनोरंजन किया। अन्त में फूलों की होली खेली गई और लड्डुओं का प्रसाद बाँटा गया। बच्चों ने ननिहाल में एक सप्ताह तक खूब मौज—मस्ती की। रमेश ने भी उन्हें काफी समय दिया। आर्यन अपना लैपटॉप तथा आई—पैड साथ लेकर आया था। रमेश ...Read More

15

कौन दिलों की जाने! - 15

कौन दिलों की जाने! पन्द्रह अंजनि बच्चों सहित नाश्ता करने के पश्चात्‌ वापस चली गई। उन्हें विदाकर रमेश भी ऑफिस चला गया। जब लच्छमी अपना काम करके जा चुकी तो रानी ने सोचा, आलोक को सारे घटनाक्रम से अवगत करवाना चाहिये, क्योंकि आलोक प्रतिभावान्‌ व बुद्धिमान होने के साथ—साथ धैर्यवान और प्रत्युत्पन्नमति व्यक्ति है। उसका सबसे बड़ा गुण है कि वह सदैव निर्द्वन्द्व रहता है, चिंता उसे छूती तक नहीं। वह सभी बातों का सही परिप्रेक्ष्य में आकलन कर जो राय देगा, वही समीचीन होगी। यही सब सोचकर उसने आलोक को फोन किया — ‘आलोक, फुर्सत में हो या ...Read More

16

कौन दिलों की जाने! - 16

कौन दिलों की जाने! सोलह नव संवत्सर की पूर्व संध्या तक रानी की ओर से कोई कॉल नहीं आई। संकेत था कि स्थिति पूर्ववत्‌ थी अथवा और नहीं बिगड़ी थी। इंग्लिश में कहावत है — नो न्यूज़ इज गुड न्यूज़। अतः आलोक ने नव संवत्सर की सुबह उठते ही रानी को नव संवत्सर की शुभ कामनाएँ तथा बधाई का एस.एम.एस. करते हुए सूचित किया कि दिन में जब वह फुर्सत में होगी तो फोन पर बातें करेंगे। दोपहर दो बजे के लगभग जब रानी ड्रार्इंगरूम में बैठी ‘फेमिना' पढ़ रही थी तो मोबाइल की घंटी बजी। फोन के स्क्रीन ...Read More

17

कौन दिलों की जाने! - 17

कौन दिलों की जाने! सत्रह नियति की विडम्बना! एक दिन पूर्व आलोक और रानी ने प्रभु से प्रार्थना की कि उनके जीवन में किसी प्रकार के विषाद के लिये कोई स्थान न हो, उनका प्रेममय सम्बन्ध दुनिया की नज़रों से बचा रहे। दूसरे ही दिन मिस्टर मेहरा और रमेश की मुलाकात हुई। इस मुलाकात ने आलोक और रानी की प्रभु से की गई प्रार्थना को न केवल विफल कर दिया, वरन्‌ रमेश के मन—मस्तिष्क में आलोक और रानी के सम्बन्धों को लेकर चल रहे झंझावात को और उग्र कर दिया। आलोक और रानी ने कामना तो की थी खुशियों ...Read More

18

कौन दिलों की जाने! - 18

कौन दिलों की जाने! अठारह तीसरे दिन विनय अपनी दीदी के घर था। रानी को उसका आना अच्छा तो किन्तु थोड़ा आश्चर्य भी हुआ, क्योंकि विनय ने अपने आने के सम्बन्ध में कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी। विनय ने सोचा था कि जब जीजा जी ने जरूरी बात करने के लिये बुलाया है तो रानी को तो अवश्य ही बताया होगा। इसीलिये उसने अलग से रानी को सूचना देनी आवष्यक नहीं समझी थी। जब विनय घर पहुँचा तो रमेश ऑफिस जा चुका था। रानी — ‘विनय, बिना किसी सूचना के अचानक कैसे आना हुआ?' ‘जीजा जी ने फोन ...Read More

19

कौन दिलों की जाने! - 19

कौन दिलों की जाने! उन्नीस 9 जून को ‘कबीर जयंती' पर पंजाब यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। कार्यक्रम के संयोजक आलोक के एक मित्र थे, अतः उसे भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण—पत्र मिला था। कार्यक्रम का समय सायं छः से आठ था। आलोक ने सोचा, गर्मी की वजह से पटियाला से दोपहर चार बजे निकलना तो बड़ा मुश्किल होगा, खाना खाकर चण्डीगढ़ के लिये निकल लेता हूँ। कार्यक्रम से पहले रानी से भी मिलना हो जायेगा। जब तक रानी के घर पहुँचूँगा, वह घर के कामकाज भी निपटा चुकी होगी। उसे आज ...Read More

20

कौन दिलों की जाने! - 20

कौन दिलों की जाने! बीस चार जुलाई को सायं छः बजे के लगभग आलोक ने रानी को कॉल की पूछा — ‘हैलो मॉय डियर, कल का प्रोग्राम उसी तरह रहेगा, जैसा हमने प्लान किया था या कोई चेंज है?' ‘वैसा ही होगा, जैसा हमने सोचा हुआ है।' ‘तब तो तय रहा कि मैं बारह बजे के लगभग ‘जे डब्लयू मेरियट' में पहुँच कर तुम्हारा इन्तज़ार करूँगा, और अगर कहो तो मैं तुम्हें घर से भी ‘पिकअप' कर सकता हूँ।' ‘आलोक, तुम्हें घर आने की जरूरत नहीं। मैं ही बारह—साढ़े बारह बजे तक पहुँच जाऊँगी।' ‘तो फाइनल रहा। बॉय।' पाँच ...Read More

21

कौन दिलों की जाने! - 21

कौन दिलों की जाने! इक्कीस अगले दिन सुबह जब रानी डाईनग टेबल पर नाश्ता कर रहे रमेश को दूसरा परोसने लगी तो रमेश की दृष्टि रानी की अँगुली में चमक रही सॉलिटेयर की अँगुठी पर पड़ी। उसने पूछा — ‘यह अँगुठी कब खरीदी?' मन—ही—मन रानी अपनी बेपरवाही व मूर्खता ...Read More

22

कौन दिलों की जाने! - 22

कौन दिलों की जाने! बाईस रानी प्रतीक्षा में ही थी। जैसे ही आलोक ने घर पहुँच कर हॉर्न बजाया, अन्दर बुलाने की बजाय घर को ताला लगाकर रानी स्वयं ही बाहर आ गई और कार में आलोक की बगल वाली सीट पर बैठ गई। आलोक ने पूछा — ‘कहाँ चलें?' ‘अब यह तुम्हें देखना है कि कहाँ जाना है। इस वक्त मैं कुछ भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हूँ। बस इतना ख्याल रखना कि शाम सात बजे तक घर लौट आयें।' आलोक ने कार स्टार्ट करते ही म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। विविध भारती से ‘एसएमएस के ...Read More

23

कौन दिलों की जाने! - 23

कौन दिलों की जाने! तेईस जैसे नदी का प्रवाहमय जल सरस व पवित्र होता है और स्थिर जल में थोड़े समय पश्चात्‌ ही दुर्गन्ध आने लगती है, ठीक उसी प्रकार यदि दाम्पत्य जीवन की स्थिति स्थिर जल की तरह हो जाये तो सरसता लोप हो जाती है, उसका स्थान ले लेती है नीरसता व उबाऊपन। समीर के मन्द—मन्द झोंकों—सी नोंक—झोंक जीवन को आह्‌लादित करती है। तूफान—रूपी प्रचण्ड उत्ताल तरंगें जीवन को युद्ध—क्षेत्र में परिवर्तित कर देती हैं। पति—पत्नी के स्वभाव की विषमताओं के होते हुए तथा विचारों में मतैक्य न होने पर भी उनके जीवन में समरसता का प्रवाह ...Read More

24

कौन दिलों की जाने! - 24

कौन दिलों की जाने! चौबीस रविवार की छुट्‌टी होने के कारण ड्राईवर तो आया नहीं था। रात को आये व बारिश के कारण कार साफ करनी जरूरी थी, अतः रमेश ने लच्छमी से कार साफ करने के लिये कहा। रविवार को नाश्ता व लंच अलग—अलग न बनता था, वरन्‌ दोनों का मिश्रण ब्रंच ही बनता था, अतः आज भी रानी ने ब्रंच तैयार किया और टेबल पर लगा दिया। रमेश ने तैयार होकर ब्रंच किया और घड़ी देखी। ग्यारह बजने में दस मिनट थे। पिछले कुछ दिनों से दोनों में बोलचाल लगभग बन्द था। जब बिना बोले काम बिल्कुल ...Read More

25

कौन दिलों की जाने! - 25

कौन दिलों की जाने! पच्चीस रमेश के जाने के बाद रानी घर में अकेली रह गई। सोचने लगी, वकील ने बातों—बातों में आलोक तथा उनकी दोस्ती सम्बन्धी सारी जानकारी हासिल कर ली है। मेरे बाद काफी देर तक रमेश जी वकील साहब के साथ रहे। वकील साहब ने मुझसे जो जानकारी ली है, उसमें से कई बातें रमेश जी को पहले से ज्ञात नहीं थीं। वकील साहब ने रमेश जी को सारी बातें अवश्य बताई होंगी। रमेश जी और वकील साहब में क्या—क्या विचार—विमर्श हुआ, मुझे कुछ भी नहीं बताया रमेश जी ने। वकील साहब ने दुबारा मुझे बुलाया ...Read More

26

कौन दिलों की जाने! - 26

कौन दिलों की जाने! छब्बीस रानी से फोन पर बातें करने के उपरान्त आलोक विचार करने लगा कि इतने बाद रानी से मुलाकात होने पर सोचा तक नहीं था कि हमारी यह मुलाकात रानी के वैवाहिक जीवन को इस हद तक भी प्रभावित कर सकती है। वह स्वयं को इस सब के लिये दोषी अनुभव करने लगा। अपराध—बोध व ग्लानि उसके समस्त व्यक्तित्व व विचारधारा को ग्रसित करने लगे। साथ ही उसके अन्तर्मन से आवाज़ आई कि रानी के समर्पण की गहराई और गम्भीरता को देखते हुए नहीं लगता कि वह अपने बढ़े हुए कदम पीछे हटाने को तैयार ...Read More

27

कौन दिलों की जाने! - 27

कौन दिलों की जाने! सताईस रविवार को तो रमेश और रानी एडवोकेट खन्ना के पास तलाक सम्बन्धी कानूनी सलाह के लिये गये ही थे। खन्ना साहब ने रानी से केवल पूछताछ की थी और रमेश को कानूनी पक्ष से अवगत करवाया था। सोमवार शाम को रमेश फोन करके खन्ना साहब से दुबारा मिलने गया। खन्ना साहब को धरा 13(बी)के तहत आपसी सहमति से तलाक की अर्जी लगाने से पहले एक साल या इससे अधिक समय तक अलग रहने की शर्त का स्पष्टीकरण करने को कहा। खन्ना साहब ने विस्तार से समझाते हुए कहा — ‘रमेश जी, धारा 13(बी) के ...Read More

28

कौन दिलों की जाने! - 28

कौन दिलों की जाने! अठाईस दो—तीन दिन तक रमेश विचार करता रहा कि आपसी सहमति के लिये रानी ने स्वीकृति दे दी है और साथ ही आश्वासन भी दिया है कि मैं जो भी करने को कहूँगा, वह बिना किसी शिकवे—शिकायत के मानने को तैयार है। चाहे मुझे विश्वास है कि कानूनी कार्रवाई पूरी होने के पश्चात्‌ रानी आलोक के साथ ही रहेगी, फिर भी एकबार उससे भी पूछ लेना बेहतर होगा कि उसकी भविष्य को लेकर क्या योजना है। साथ ही तय करना होगा कि क्या कोर्ट में आपसी सहमति की अर्जी देने तक अथवा कानूनी कार्रवाई पूरी ...Read More

29

कौन दिलों की जाने! - 29

कौन दिलों की जाने! उनतीस अगले दिन सुबह रानी जब नित्यकर्म से निवृत होकर अपने कमरे से बाहर निकली छः बज चुके थे। रमेश के बेडरूम में झाँकाा। वह भी जगा हुआ था, लेकिन उसने अभी बेड नहीं छोड़ा था। रानी अन्दर आई। ‘राम—राम' की और कहा — ‘अभी कुछ देर पहले विनय का फोन आया था। कह रहा था कि माँ की तबीयत ढीली है। आप कहें तो मैं माँ का पता ले आऊँ?' रात की बातचीत के पश्चात्‌ रमेश लगभग सहज था, पहले की तरह उखड़ा—उखड़ा नहीं था। कहा — ‘जा आओ, कितने दिन का प्रोग्राम है? ...Read More

30

कौन दिलों की जाने! - 30

कौन दिलों की जाने! तीस आलोक ने रिसेप्शन पर रूम—सम्बन्धी इन्कवारी की और बुकिंग फॉर्मेलिटीज़ पूरी कर रूम में फ्रैश होकर चाय बनाई। आधा—एक घंटा सुस्ताने के बाद वह रूम बन्द करके घूमने के लिये निकल पड़ा। घूमता—फिरता धोबी बाज़ार में जैन डिपार्टमेंटल स्टोर पर जा पहुँचा। प्रदीप पारदर्शी केबिन में बढ़िया मेज़—कुर्सी पर विराजमान था। उसके सामने टेबल पर एलसीडी स्क्रीन वाला लैपटॉप खुला था। प्रदीप चाहे आलोक का हमउम्र था, किन्तु उसका शरीर ढल चुका था। चेहरे पर उभर आई झुर्रियों की वजह से वह आलोक से आठ—दस वर्ष बड़ा लगता था। आलोक ने केबिन का दरवाज़ा ...Read More

31

कौन दिलों की जाने! - 31

कौन दिलों की जाने! इकतीस रानी के बठिण्डा जाने के पश्चात्‌ रात को रमेश ने घर आकर रानी का हुआ खाना खाया। खाना खाने के बाद जब सोने लगा तो उसके मस्तिष्क में तरह—तरह के परस्पर विरोधी विचार कौंधने लगे। उसे लगा, उसके अन्तर्मन में विचारों का भूकम्प—सा आ गया हो जैसे। एक विचार यह आया कि मेरे इतने कठोर रुख व निष्ठुर व्यवहार होने के बावजूद रानी को मेरी कितनी चिंता है। नाश्ता और लंच तो बनाया ही, रात के लिये भी खाना बनाकर रख कर गयी है। उसका इतवार को बठिण्डा आने के लिये कहना तथा वापस ...Read More

32

कौन दिलों की जाने! - 34

कौन दिलों की जाने! चौंतीस रविवार का दिन अभी सुबह के पाँच बजने में कुछ मिनट बाकी थे। यद्यपि की नींद खुल चुकी थी, फिर भी उसने अभी बेड नहीं छोड़ा था। उसके मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल की स्क्रीन पर रानी का नाम आ रहा था। उसने फोन ऑन किया। उधर से आवाज़़ आई — ‘गुड मार्निंग आलोक जी! क्या अभी सो रहे थे?' ‘वेरी गुड मार्निंग! जाग रहा हूँ, किन्तु अभी लेटा हुआ हूँ। इतनी सुबह कैसे?' ‘कल फ्लैट में शिफ्ट कर लिया था। घर से बाहर किसी अनजान जगह पर ज़िन्दगी में पहली बार रात के ...Read More

33

कौन दिलों की जाने! - 33

कौन दिलों की जाने! तेंतीस घर पहुँच कर रानी ने रमेश को फोन मिला कर अपने पहुँचने की सूचना रमेश ने कहा — ‘तुम्हारे जाने के बाद मैंने नन्दू ड्राईवर को खाना बनाने के लिये सहमत कर लिया है। वह मेरे साथ आकर खाना बना लेगा।' ‘मेरी गैर—हाज़िरी में तो ठीक था। आज तो मैं स्वयं खाना बनाऊँगी।' रमेश ने बात को और न बढ़ाते हुए इतना ही कहा — ‘रखता हूँ। बाकी बातें बैठकर करेंगे।' रात को रोज़ की भाँति रमेश साढ़े आठ बजे घर पहुँचा। रानी ने ‘राम—राम' की। थोड़ी देर बाद रानी ने रमेश के लिये ...Read More

34

कौन दिलों की जाने! - 35

कौन दिलों की जाने! पैंतीस रानी दिनभर फ्लैट पर ही रहती थी। खाना बनाया, खाया, टी.वी. देख लिया या किताब अथवा मैग्ज़ीन पढ़ ली, किन्तु शाम को सोसाइटी लॉन में घंटे—दो घंटे जरूर बैठती—घूमती थी। प्रायः पुरुष महीनों—सालों तक एक ही मुहल्ले—गली में रहते, रोज़ एक—दूसरे के पास से गुज़रते हुए भी अपरिचय की सीमा नहीं लाँघते, जबकि स्त्रियों का स्वभाव ठीक इसके विपरीत होता है। उन्हें नितान्त अपरिचित होते हुए भी एक—दूसरे से राह—रस्म पैदा करने में देर नहीं लगती। कुछ ही दिनों में रानी का काफी स्त्रियों से परिचय हो गया। अब जब परिचय होगा, बातचीत होगी ...Read More

35

कौन दिलों की जाने! - 32

कौन दिलों की जाने! बत्तीस रविवार को सुबह रमेश बाथरूम से स्नान करके निकला ही था कि विनय का आया। विनय पूछ रहा था — ‘जीजा जी, कब तक आ रहे हो?' ‘मेरा तो आने का कोई प्रोग्राम नहीं है।' ‘दीदी तो कह रही थीं कि आप आज आओगे।' ‘रानी ने मुझे आने के लिये कहा जरूर था, लेकिन मैंने कहा था कि पक्का नहीं कह सकता। देखूँगा। माँ कैसी हैं?' ‘माँ अब काफी ठीक हैं, बल्कि कह सकते हैं कि दीदी के आने से माँ को बहुत बड़ा सहारा मिल गया है। आप कहें तो दीदी हफ्ता—दस दिन ...Read More

36

कौन दिलों की जाने! - 36

कौन दिलों की जाने! छत्तीस 28 नवम्बर रानी अभी नींद में ही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी। ने फोन ऑन किया। उधर से आवाज़़ आई — ‘रानी लगता है, सपनों में खोई हुई थी! कितनी देर से रिंग जा रही थी?' ‘सॉरी आलोक जी, रात को काफी देर तक पढ़ती रही। इसलिये सपनों में नहीं, गहरी नींद में थी।' ‘यह तो बड़ी अच्छी बात है कि तुम गहरी नींद में थी। पूरी और गहरी नींद भी मनुष्य के लिये अति आवश्यक है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है। याद है तुम्हें, आज मैंने इतनी सुबह क्योंकर फोन किया ...Read More

37

कौन दिलों की जाने! - 37

कौन दिलों की जाने! सेंतीस रानी को फ्लैट में रहते हुए लगभग पाँच महीने हो गये थे। यहाँ रहने समयावधि पूरी होने की अथवा कह लीजिये कि यहाँ के अकेलेपन से छुटकारा पाने की वह उसी तीव्रता से प्रतीक्षा कर रही थी जैसे दिन में निकले हुए चन्द्रमा का निस्तेज हो चुका प्रकाश अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिये सँध्याकाल की आतुरता से प्रतीक्षा करता है। अपनी इसी मनःस्थिति के चलते रानी ने जनवरी के आखिरी सप्ताह में रमेश को फोन किया। हैलो, नमस्ते के बाद पूछा — ‘रमेश जी, कोर्ट में 13 फरवरी की तारीख है ना?' ...Read More

38

कौन दिलों की जाने! - 38

कौन दिलों की जाने! अठतीस जैसी रानी को आशंका थी, रात से ही हल्की—हल्की बूँदाबाँदी होने लग गई। सुबह के लिये निकलने के समय तक भी जारी थी। आलोक ने कोर्ट तक साथ जाने की कही तो रानी ने उसे फ्लैट पर ही रहने के लिये कहा और स्वयं कार चलाकर निकल गई। कोर्ट में सब काम ठीक से निपट गया। एक बार जज साहब ने रमेेश और रानी को अवश्य कहा कि आखिरी मौका है, अब भी आप अपनी अर्जी वापस ले सकते हैं। लेकिन जब रमेेश और रानी ने कहा कि अर्जी पूरी तरह सोच—विचार कर ही ...Read More

39

कौन दिलों की जाने! - 39

कौन दिलों की जाने! उनतालीस कँपकँपाने वाली ठंड चाहे नहीं रही थी, फिर भी सुबह की चाय रजाई में ही पीने को मन करता था। चाय पीते हुए रानी ने आलोक से कहा — ‘अब क्योंकि मैरिज़ रजिस्ट्रेशन के लिये एप्लीकेशन लग चुकी है, हमें अपने बच्चों को भी सूचित कर देना चाहिये। साथ ही उनसे रजिस्ट्रेशन वाले दिन आने के लिये भी अनुरोध करना चाहिये। क्या विनय को भी सूचित करना चाहिये? दफ्तरी कार्रवाई पूरी होने के बाद उस दिन शाम को लिमिटिड सी गैदरग करके सेलिब्रेट कर सकते हैं।' ‘तुम्हें लगता है कि अंजनि और संजना आयेंगी? ...Read More

40

कौन दिलों की जाने! - 40

कौन दिलों की जाने! चालीस एक दिन साँझ पूर्व जब अस्ताचलगामी सूर्य ने अपने विविध रंग पश्चिमी क्षितिज पर हुए थे, आलोक और रानी लॉन में बैठे चाय पी रहे थे कि प्रोफेसर गुप्ता का फोन आया। वे पूछ रहे थे — ‘आलोक, घर पर ही हो?' ‘हाँ, क्यों?' ‘गपशप करने आना था।' ‘आ जाओ यार, तुम्हें पूछ कर आने की कब से जरूरत पड़नेे लगी?' ‘अरे भाई तुम ठहरे उन्मुक्त परिन्दे, पता नहीं कब, कहाँ अन्तर्धान हो जाओ!' ‘इन बातों को छोड़ो और सुनो! अकेले मत आना, भाभी जी को भी साथ लाना।' ‘हम दो मोलड़ों के बीच ...Read More

41

कौन दिलों की जाने! - 41

कौन दिलों की जाने! इकतालीस रानी ने अंजनि और संजना से फोन पर बात की। उन्हें बताया कि पच्चीस को एक छोटा—सा कार्यक्रम रखा है, जिसमें गैट—टू—गैदर के अतिरिक्त पुस्तकालय का उद्‌घाटन व नेत्रदान की शपथ ली जायेगी। दोनों ने सीधे मना तो नहीं किया, किन्तु यह कह दिया कि मम्मी—पापा (सास—ससुर) से बात करके बतायेंगी। जो अपेक्षित था, वही उत्तर अर्थात्‌ वे नहीं आ पायेंगी, दूसरे दिन रानी को मिल गया। विनय ने भी फिर कभी आने की कह कर पला झाड़ लिया। आलोक ने भी सौरभ और पूर्णिमा को सूचित किया। सौरभ ने कहा कि वह अस्पताल ...Read More

42

कौन दिलों की जाने! - 42

कौन दिलों की जाने! बयालीस तेईस मार्च को आलोक, रानी और प्रोफेसर गुप्ता (गवाह के रूप में) वकील साहब साथ एडीएम कार्यालय गये। जब उनकी फाईल एडीएम साहब के समक्ष प्रस्तुत की गई तो उन्होंने औपचारिक दो—चार बातें पूछकर आलोक व रानी को अपने सामने हस्ताक्षर करने को कहा तथा प्रोफेसर गुप्ता के गवाह के रूप में हस्ताक्षर करवा कर मैरिज़ रजिस्ट्रेशन की कार्रवाई पूरी कर दी। कार्रवाई पूरी होने पर एडीएम साहब ने मैरिज़ सर्टिफिकेट आलोक को देते हुए कहा — ‘प्रोफेसर आलोक, जीवन के इस पड़ाव पर अकेलापन सबसे अधिक कष्टदायी होता है। ऐसे में साथी का ...Read More

43

कौन दिलों की जाने! - 43 - अंतिम भाग

कौन दिलों की जाने! तिरतालीस अप्रैल के दूसरे सप्ताह का एक दिन। सुबह मंद—मंद समीर बह रही थी। बेड तथा नित्यकर्म से निवृत होकर आलोक और रानी लॉन में झूले पर बैठे मॉर्निंग टी की चुस्कियाँ ले रहे थे कि सौरभ का फोन आया — ‘पापा, हमने कल रात दिल्ली लैंड किया था। हम हयात रिजेंसी में रुके हुए हैं। आप हमें मिलने आ जाओ।' सौरभ की दिल्ली आकर मिलने की बात सुनकर आलोक ने आश्चर्यचकित हो प्रश्न किया — ‘क्यों, इतनी दूर आकर पटियाला आये बिना ही वापस जाना है क्या?' जवाब देते हुए सौरभ कुछ हिचकचाते हुए ...Read More