व्यापारी ने बूढ़े की खूब आव भगत की और कुत्ते को भी बहुत अच्छी तरह अलग कमरे मे रखा । और अपने नौकरो को उन दोनो की सेवा मे लगा दिया । आखिर वह बूढ़ा सन्तुष्ट हो गया और उसे अपना कुत्ता बेचने पर राज़ी हो गया । लेकिन कुत्ते की कीमत चुकाने मे उस व्यापारी को अपना सारा व्यापार और सारी सम्पत्ति बेचनी पड़ी । अब उसके पास सिर्फ़ वह पुश्तैनी मकान ही बचा रह गया । लेकिन व्यापारी के लिये यह भी कोई घाटे का सौदा नही था - - - और बहुत कुछ पढ़ें इस भाग मे ।
Full Novel
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 1
व्यापारी ने बूढ़े की खूब आव भगत की और कुत्ते को भी बहुत अच्छी तरह अलग कमरे मे रखा और अपने नौकरो को उन दोनो की सेवा मे लगा दिया । आखिर वह बूढ़ा सन्तुष्ट हो गया और उसे अपना कुत्ता बेचने पर राज़ी हो गया । लेकिन कुत्ते की कीमत चुकाने मे उस व्यापारी को अपना सारा व्यापार और सारी सम्पत्ति बेचनी पड़ी । अब उसके पास सिर्फ़ वह पुश्तैनी मकान ही बचा रह गया । लेकिन व्यापारी के लिये यह भी कोई घाटे का सौदा नही था - - - और बहुत कुछ पढ़ें इस भाग मे । ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 2
पहले भाग एक व्यापारी और कुत्ते वाला बूढ़ा मे आपने पढ़ा किस प्रकार वह व्यापारी लालच के वश मे व्यापार छोड़ खजाना खोजने निकला और उसी डाकू के चंगुल मे जा फ़सा जिसे उस बूढ़े ने धोखा दिया था । अपनी जान बचाने उसे डाकुओं की शर्त माननी पड़ी और डाकुओं के लिये खजाने की खोज करना स्वीकर करना पड़ा … आगे कौनसी घटनायें उसका इंतज़ार कर रही थी जानने के लिये पढ़िये इस द्वितीय भाग भेड़ियों का घेरा मे । ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- 3
रहस्य रोमान्च से भरी कथा । पूर्ववर्ती दोनो भाग के बाद पढ़ें…… मुझे लगा मेरी बंद आखों के ऊपर कोई प्रकाशपुन्ज धीरे-धीरे मेरे अस्तित्व को सहला रहा है । वह धीरे-धीरे मेरे शरीर को गर्म कर रहा है । यह प्रकाशपुंज निश्चय ही बड़ा दयालू है । क्या यह ईश्वर की दया का प्रकाश है क्या वह ऐसा ही दयालू है । क्या यह स्वयं ईश्वर का ही आलोक है । मै तो धन्य हो गया । धीरे-धीरे मेरे शरीर मे शक्ति का संचार होने लगा और इसी के साथ असंख्य सुईयों के चुभने का अहसास भी होने लगा । मेरा शरीर हिल-डुल नही पा रहा था । मेरी पलकें सूजी हुई और भारी थी । मै आखें भी नही खोल पा रहा था । मुझे लगने लगा जैसे हज़ारो कीड़े मेरे शरीर पर रेंग रहे है । क्या मै फ़िर से नर्क मे फ़ेंक दिया गया हूं । ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे -4
जो इसके पहले तीन भाग पढ़ चुके हैं, आगे पढ़ें_ _ _ लेकिन यह क्या … अचानक मेरे रोंगटे होगये । उस पहाड़ के ऊपर एक दैत्य की सी आकृति उभर आई । वह धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ रहा था । ऊपर पहुंच कर वह रुका और निश्चल खड़ा हो गया । प्रकाश उसके पीछे होने के कारण वह सिर्फ़ एक छाया सा प्रतीत हो रहा था । उसका लम्बा कद और चौड़े कंधे और बेतरतीब बिखरे हुये बालों वाला उसका सर देखकर मै बुरी तरह घबरा गया । मुझे लगा वह मेरी ही तरफ़ देख रहा है । उसकी अदृश्य आंखे मुझे ही घूर रही हैं । मै एक चट्टान के पीछे छिप गया । वह साया धीरे-धीरे अन्धेरे मे विलीन हो गया । ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- 5
पता नही कितना समय बीता था कि एक अजीब से भय के वश मेरी नींद खुल गयी । मेरी खुली तो खुली की खुली रह गयी । मेरा भय मेरे सामने था । मेरे बिल्कुल समीप … इतना समीप कि उसकी सांसों को मै अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था । उसकी सांसों की बदबू से मेरा दम घुटा जा रहा था । यह वही था । बिल्कुल वही । (इसे पढ़ने से पूर्व इसके पूर्ववर्ती चारों भाग ज़रूर पढ़ लें_ धन्यवाद) ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे-6
इस भाग को पढ़ने से पूर्व कृप्या इसके पूर्व पांचो भाग ज़रूर पढ़ें …… “तुम कह तो ठीक रहे ।“ उसने कहा “लेकिन वे भी तो हमसे अनभिज्ञ हैं । और अनभिज्ञ ही सबसे अधिक भयभीत और सबसे अधिक आक्रामक होता है । और यह भी सच है कि, अनभिज्ञता ही जिज्ञासा जगाती है और जिज्ञासा ही ज्ञान के पट खोलती है ।“ “तुम सच कह रहे हो मित्र । अब हमे प्रार्थना करनी चाहिये कि हमारे प्रति इनके मन मे पहले से कोई पूर्वाग्रह न हो । यदि ऐसा रहा तो हमे उनके पूर्वाग्रह को तोड़कर अपनी मित्रवत छवि गढ़नी होगी जो ज़रा दुःसाध्य है । क्योंकि नई छव ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 7
पिछले भाग से-यह तो बहुत बुरा हुआ। हमने अपने पहले सम्पर्क के प्रयास में ही उन्हें डरा दिया। निश्चित इससे हमारे बारे में उनकी धारणा खराब ही बनेगी...सातवाँ भाग-जलपरियों के बीचउधर हमसे दूर चट्टानो पर धूप सेकती मत्सकन्यायें, जिन्हें हम जलपरियाँ भी कहते हैं, हमे देखते ही कुछ अजीब सी भाषा मे चीखने चिल्लाने और धड़ाधड़ पानी मे कूदने लगीं। थोड़ी ही देर मे उस पूरे जलक्षेत्र मे भीषण हलचल मच गई। उधर अचानक ही चारो तरफ़ से नर मत्स्यमानव हमारे चारो ओर पानी मे प्रगट हो गये। उनके कंधे चौड़े और भुजायें बलिष्ठ थी। उनके सिर पर लम्बे ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 8
पिछले भाग से-"लगता है, वे हमारी बलि चढ़ाने ले जारहे हैं।" गेरिक ने कहा।"तुम सही कह रहे हो मित्र," कहा, "लगता है, हमारे विदाई की बेला आ चुकी है।अब आगे पढ़ें...आठवां भागअज्ञात भविष्य की यात्राअभी हम इस प्रकार से विचार कर ही रहे थे कि उन लोगों ने हमे दो अलग अलग चट्टानो पर रख दिया और हमारे हाथ पैर जिन रस्सियों से बंधे थे उनके दूसरे लम्बे सिरों को अलग अलग पेड़ से बांध दिया और दो सैनिक वहां पहरा देने लगे।वह कोई सूना समुद्रि तट नही था, यहां बहुत ही चहल पहल थी। कई छोटे बच्चे और ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 9
पिछले अंक में अपने पढ़ा-अब उन लोगों ने हमें बन्धनमुक्त किया। पहनने को वस्त्रादि दिए और सिपाहियों की निगरानी घूमने फिरने की आज़ादी भी प्रदान की। ...हमारी वापसी की तैयारियां चल रही थीं...अब आगे पढ़ें...-------------------------------नौवा भागबंधनमुक्त किंतु दोषमुक्त नहीइस सारे प्रकरण मे एक बात हमे समझ मे आई कि यहां के सामान्यजन हमसे बहुत प्रभावित लग रहे थे। यह शायद गेरिक की विद्वत्ता पूर्ण वार्तालाप के कारण था। यूं भी, जन सामान्य तो सदैव शान्ति ही चाहता है। यह तो सत्ता की भूख है, जिसके कारण जन साम ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 10
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे...भाग-10.जंगल, रात में सोता नहीं है “तुम्हे चेताया गया था, भागने की कोशिश मत करना।” डाकू बोला। वह हाथ मे धनुष-बाण लिये खड़ा था और उसका निशाना अपने बंदी यानि व्यापारी की ओर था। दूसरा डाकू हाथ मे नंगी तलवार लिये खड़ा था।“यदि भागने की कोशिश करे तो जान से मार देना और प्रमाण स्वरूप उसका सिर साथ मे लेते आना; यही आदेश दिया गया था हमे। और यह भी कि हमने तुम्हे चेतावनी भी दे दी थी सो तुम्हे अब मरना ही होगा।” यह तलवार वाला डाकू बोला। वह तलवार ताने दो कदम आगे ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 11
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-11. एक और यात्रा “तो, मत्स्यद्वीप से हमारे द्वीप के लिये की यात्रा का समय भी शीघ्र ही आ पहुंचा। एक जहाज़ तैयार था। साथ में मल्लाहों की अच्छी खासी संख्या और साथ ही मत्स्यद्वीप के सैनिकों की टुकड़ी भी उपस्थित थी। दानवों जैसे ऊंचे पूरे सैनिक, जिनके गज भर चौड़े कंधे और वृक्ष के तनो जैसी भारी भरकम भुजायें किसी भी शत्रु का दिल दहलाने की क्षमता रखते थे। साथ ही कुछ सहयोगी भी साथ किये गये थे। “इतना सारा ताम झाम किसलिये?” मैंने गेरिक से पूछा; यह बात और ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 12
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-12 संकट में प्राण सारा दिन हमारे जलपोत पर हलचल किंतु दिन बीत गया। कोई विशेष बात या घटना के बिना। दिनभर की हलचल के बाद सभी लोग सोने चले गये। मैंने मित्र गेरिक से कहा कि वह भी दिनभर का थका हुआ है अत: विश्राम करे मैं यथासम्भव रात जागकर स्थिति पर नज़र रखूंगा और आवश्यकता होने पर सभी को जगा दूंगा। गेरिक ने मेरी ओर अर्थपूर्ण ढंग से देखा और सोने चला गया। मैंने अभियान प्रमुख से भी उनका सहायक बनने का प्रस्ताव रखा और प्रार्थना की कि वे विश्राम करें ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 13
पिछले भाग में आपने पढ़ा था- व्यापारी को लगा थोड़ी देर में सवेरा हो जायेगा और जंगल में खजाने खोज में आगे की यात्रा में निकलना होगा; अतः थोड़ा विश्राम आवश्यक है। अतः उसने उन दोनो डाकुओं के उपहास पर चुप्पी साध ली और सोने की कोशिश करने लगा। अपने बंदी को सोता देख दोनो डाकुओं ने भी थोड़ी देर विश्राम करना उचित जाना और हँसते हँसते सो गये। तीनो रातभर के जागे हुये थे तुरंत सो गये और जंगल एक नये प्रकार की आवाज़ से गूंजने लगा वह आवाज़ थी तीन थके हुये प्राणियों के समवेत स्वर में ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 14
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-14 दो से भले तीन तभी उसे प्रसन्नता से उछलते आते हुये शेरू को देखा और अगले ही क्षण उन दो डाकुओं को उनके एक तीसरे साथी के साथ आता हुआ देख कुछ शांति का अनुभव किया। अभी वह इस परिस्थिति को समझा भी न था कि एक चिंता ने उसे आ घेरा- अभी तक तो दो ही थे, अब तीन से बचना तो और कठिन हो गया है। उसे घबराया हुआ देख वे तीनो हंसने लगे और नवागंतुक डाकू ने अपने साथियों से पूछा, “तुम लोग इस प्रकार इसकी निगरानी करते हो?” ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 15
पिछले भाग में आपने पढ़ा... तो निष्कर्ष्र यह निकलता है कि प्रशंसा एक ब्रह्मास्त्र है और कोई भी इस से बच नहीं सकता। क्योंकि थोड़ी बहुत प्रशंसा तो हज़म की जा सकती है लेकिन इसकी अधिक मात्रा मनुष्य का दिमाग घुमा देती है। प्रशंसा का भी अपना एक नशा होता है। व्यापारी अपने इन्ही विचारों में डूबा हुआ था और वह नवागांतुक अपने दोनो साथियों को समझा रहा था कि उन्हें इस क्षेत्र से निकलकर किस प्रकार उस खाई को पार करके ऊपर पहाड़ के शिखर पर पहुंचना होगा क्योंकि वह स्थान इस युद्ध से अप्रभावित रहेगा और उस ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 16
अब तक आपने पढ़ा... सहसा प्रकाश की एक किरण नज़र आई। एक लपलपाती हुई अग्नि... फिर उसे धारण किये एक हाथ। एक परछाई ऊपर छत की ओर बढ़ी आरही थी जिसने एक मशाल थाम रखी थी फिर कुछ और मशालें फिर कुछ और लोग। अब मशालों की लपलपाती रौशनी में उन्हें मैं पहचान सकता था। इसमें कुछ सैनिक मत्स्मानव थे, और गेरिक था मेरा मित्र, हमारे जलयान के अभियान सहायक थे और सेनापति... और था उस संकट का प्रमुख कर्ताधर्ता, सेनापति का वह गुप्तचर... मशाल थामें सबसे आगे... अनजाने लक्ष्य की राह पे भाग-16 कथा ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 17
भाग-17 प्रेम का अनावरण ऊपर आते ही इन लोगों ने मुझे घेरे में ले लिया। उस गुप्तचर ने तो बढ़कर मुझे जकड़ लिया और एक खंजर मेरे गले पर टिका दिया। उस खंजर की तेज़ धार मेरी श्वांसनलिका पर दबाव बनाये हुये थी। उस तेज़ धार को मैं महसूस कर रहा था। अब मुझे हिलने-डुलने में क्या बोलने में भी डर लग रहा था कि बोलने से गले की जो मासपेशियां हिलीं तो उस खंजर की तेज़ धार से कट जायेंगी। “तुम इस एकांत और अंधेरे का लाभ उठाकर किसे संदेश भेज रहे थे?” मत्स्य-मानवों का वह सेनापति ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - 18
भाग-18 एक विद्रोह अंधेरी रात। मशालों की लपलपाती रौशनी और भयानक बोझिल सा वातावरण। मेरे ने मेरे साथ साथ मेरे मित्र… मेरे अभिन्न मित्र गेरिक के प्राण भी संकट में डाल दिये थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया। इसमें दोष किसका था? मेरा? मेरे मित्र का? अथवा किसी का नहीं? क्या हम संयोग के किसी भंवर में फंसे हैं और हमारे प्रारब्ध पर हमारा ही नियंत्रण नहीं? मैंने प्रेम किया और प्रेम तो सुख और दुख दोनो का ही कारण बनता है। मेरे साथ जो हुआ और जो होने जा रहा ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग 18
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग-18 एक विद्रोह अंधेरी रात। मशालों की लपलपाती रौशनी और बोझिल सा वातावरण। मेरे प्रेम ने मेरे साथ साथ मेरे मित्र… मेरे अभिन्न मित्र गेरिक के प्राण भी संकट में डाल दिये थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया। इसमें दोष किसका था? मेरा? मेरे मित्र का? अथवा किसी का नहीं? क्या हम संयोग के किसी भंवर में फंसे हैं और हमारे प्रारब्ध पर हमारा ही नियंत्रण नहीं? मैंने प्रेम किया और प्रेम तो सुख और दुख दोनो का ही कारण बनता है। मेरे साथ जो हुआ ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग 19
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे-भाग-19 चलो जान छूटी “तुम्हारी शादी हो गई उस मत्स्यकन्या या से अथवा मरमेंड या जो भी तुम कहो, उससे?” उस नवागंतुक डाकू ने व्यंग पूर्वक मुस्कुराते हुये व्यापारी की ओर देखा। व्यापारी की दृष्टि उसकी आंखों पर पड़ी। वे आंखें जैसे बाण की तरह उसकी आत्मा को बेध रही हैं। ये आंखें व्यापारी के स्मृतिपटल पर कौंध उठती हैं। ये आंखें कहीं देखी हुई हैं। कहाँ और कब, इसका जवाब उसके पास नहीं है। “हाँ।” विचारों में खोये हुये व्यापारी ने उत्तर दिया। “तो, तुम्हारी पत्नि एक मत्स्यकन्या है?” अपनी तीव्र दृष्टि व्यापारी ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग -20
अब तक आपने पढ़ा- किस प्रकार षड्यंत्र करके जासूस ने व्यापारी को अपने प्रेम के रास्ते से हटाने के नस्लवादी विचारों के सहारे, सेना का विद्रोह खड़ा करने की कोशिश की जिसे अभियान सहायक महोदय की सूझ-बूझ से विफल कर दिया गया। और व्यापारी ने यह भी देखा कि अभियान सहायक महोदय ने उसे दंड से किस प्रकार बचाया और किस प्रकार वात्सल्य से उस जासूस की पीठ पर हाथ फेरा। आखिर क्या अर्थ था इस सब का? आखिर क्या रहस्य था इस वात्सल्य का?... जानें इस भाग में... अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे... भाग-20 एक षड्यंत्र ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग - 21
अब तक आपने पढ़ा... जासूस की पीठ पर वात्सल्य से हाथ फेरते हुये उसे सजा से बचाने की कोशिश हुये अचानक उसे षड्यंत्र पूर्वक मार दिया गया। व्यापारी यह देख विचलित हुआ। ऐसा दोहरा व्यव्हार क्यों? इस बात का रहस्य क्या था? जानें इस भाग में... अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे... भाग-21 षड्यंत्र पर स्पष्टिकरण के बहाने प्रातः की बेला रक्तरंजित थी। जहाज़ पर हर तरफ क्षत-विक्षत मानव शरीर बिखरे पड़े थे। मानव रक्त की तो जैसे बाढ़ आ गई थी। पैर जहाँ भी रखो खून से सन जाता है। यह तो अपमान है मेरा, तुम्हारा, हर ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग -22
पिछले भाग में आपने पढ़ा- अपने मित्र गेरिक, अभियान सहायक और सेनापति के राजनीतिक षड्यंत्रो से व्यापारी क्षुब्ध है। उसकी शंकाओं का निवारण होता है? आगे कहानी क्या मोड़ लेती है? पढ़िये अगला भाग ------ अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-22 एक कथा और उसमें कई कथायें जैसा कि आप सब जानते हैं; मैंने अपनी बाल्यावस्था में ही यह द्वीप छोड़ दिया था... “आपने? क्यों?” मैंने उत्सुकता वश बात काटकर पूछा। मुझे पता नहीं था। मुझे तो लगता था। ये लोग यहीं पैदा होते और यहीं मर जाते हैं। “बचपना...” वे बोले, “बचपना, उत्सुकता और नई खोजों ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 23
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि व्यापारी ने अपनी कथा में बताया कि अभियान सहायक ने किस तरह अपने की कथाओं द्वारा व्यापारी की शंकाओं का समाधान करने की कोशिश की। किंतु, कथा कहते-कहते व्यापारी ने देखा कि डाकू सो गये हैं। अब आगे... ------ अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे-भाग-23 यात्रा अतीत की ओर “तो फिर तुम्हारी शादी उस मत्स्यकन्या से हो गई न?” एक डाकू ने पूछा। “क्यों तुम लोगों ने रात कथा पूरी सुनी नहीं क्या?” व्यापारी ने पूछा, “सो गये थे क्या?” “नहीं नहीं, हम तो सुन रहे थे। सुनाते सुनाते तुम ही ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 24
अबतक आप ने पढ़ाव्यापारी अपनी पत्नी के साथ अपने परिवार के बीच पहुंचता है। आगे...अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग 24हाँ भी और ना भी अतीत की यात्रा पूरी कर मैं अपने परिवार में वापस लौटा तो एक जलपरी, एक मत्स्यकन्या, पत्नि मेरे के रूप में मेरे साथ थी। मैं रोमांचित था कि मेरी इतनी बड़ी उपलब्धि पर मैं न केवल अपने घर में, अपितु सारे शहर में ही प्रशंसा का पात्र बनूंगा। किंतु... अपने घर पहुंचकर मैं हैरान था। यह मेरा घर है? टूटी फूटी जर्जर सी यह हवेली मेरा घर नहीं हो सकती। मैंने अपने पीछे ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 25
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि व्यापारी की पत्नि को एक रहस्यमय रोग हो गया। क्या वह रोग है नहीं? क्या उसका कोई निदान है? और आगे क्या होता है? जैसे सवालों के जवाब प्रस्तुत हैं... अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-25 डाकू का पत्नि प्रेम यह उत्तर सभी की समझ से परे था। “हाँ भी और ना भी? वह किस प्रकार वैद्यराज?” मैंने पूछा। “आश्चर्य न करो पुत्र, मैं सत्य कह रहा हूँ।” वैद्यराज ने कहा। “आश्चर्य कैसे न करूं वैद्यराज? यह सत्य कैसे हो सकता है? सत्य या तो हाँ हो सकता है अथवा ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 26
अब तक आपने पढ़ा... “तुम्हे क्या हुआ है?” व्यापारी ने आश्चर्य से पूछा, “अभी तो कथा में हृदय विदारक आयेंगे। तब तुम क्या करोगे?”“मुझे अपनी पत्नि की याद आ गई। मैं भी उसे बहुत प्रेम करता था, किंतु...”“किंतु” के आगे वह बोल न सका। उसकी रुलाई फूट गई।“किंतु क्या?” व्यापारी ने बेचैन होकर पूछा। अब आगे... अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे भाग-26 राक्षस और राजकुमार “तुम पूछते हो इस किंतु का अर्थ? क्या तुम जानते नहीं हर व्यक्ति अपने अंदर कई किंतु परंतु छिपाये रहता है। तुम तो कथाकार हो, एक कुशल कथाकार। ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 27
पिछले भाग में आपने पढ़ा- “यही कि जो अंतिम चीज़ मनुष्य को चाहिये वह है, प्रेम...” व्यापारी कहा।“तुम सच कह रहे हो कथाकार, किंतु एक चीज़ तुम भूल रहे हो प्रेम न्यायपूर्ण होना चाहिये। यदि प्रेम में सबके साथ न्याय होता तो आज मैं यहाँ न होता...”“किंतु क्या यह सम्भव है?” व्यापारी ने पूछा।“पुनः वही किंतु!! यह किंतु ही सारी समस्याओं की जड़ में होता है,,,” उस डकैत ने कहा और तीनो हंसने लगे।** अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग-27 प्रेम और छल दृष्टि की अंतिम सीमा पर, सागर की परिधि रेखा पर, ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 28
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग-28 कल्पना और यथार्थ बात सच थी और चिंतनीय भी। उसने अब तक अपनी कथा से ही इन्हें एक सीमा तक बांधे रखा था। कथा का यूं समाप्त होना तो ऐसे था मानो भूखे शेरों का अचानक उठ खड़े होना। अब इन्हे कैसे नियंत्रित किया जाये? इस बात से अधिक अभी उसे इस बात की चिंता थी कि इनके चंगुल से निकलकर भागा कैसे जाये? “उसने अपना वचन तोड़ा था। और यह न भूलो कि मुझे छोड़कर वह गई थी, मैं उसे छोड़कर नहीं गया था।” व्यापारी को अपने स्पष्टीकरण ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 29
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पेभाग-29मत्स्यमानव की गिरफ्त में“जैसे ही मुझे आपका पता मिला और यह पता चला कि आप डाकुओं के चंगुल में फंसे हुये हैं, मैं तुरंत दल-बल सहित यहाँ पहुंच गया।” उसने कहा।“दल-बल सहित?...” व्यापारी ने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।“हाँ।” उसने कहा और दूर लंगर डाले जहाज़ की ओर इशारा किया, “वह मेरा जलपोत है, चलिये मैं आपको इनके चंगुल से निकालने आया हूँ।”कहते हुये उसने बिजली की सी तेज़ी के साथ समीप खड़े दोनो डाकुओं के कांधों से उनके धनुष खींचे और एक ही झटके में तोड़कर उन्हे पानी में फेंक दिये। यह सब ...Read More
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - भाग 30 - अंतिम भाग
इस कथा के लम्बे सफर में आपने पढ़ा- उल्कानगर के एक बड़े व्यापारी की मुलाकात एक खजाना खोजने वाले बूढ़े से होती है, जिसके पास एक कुत्ता है। वह बूढ़ा बताता है, कि यह कुत्ता सूंघकर गड़ा हुआ खजाना खोज निकालता है। व्यापारी उस कुत्ते के लिये अपना व्यापार और सारी सम्पत्ति और पुश्तैनी मकान सबकुछ उस बूढ़े के हवाले कर देता है और कुत्ते को लेकर खजाने की खोज में निकल पड़ता है। उस कुत्ते के कारण डाकुओं का एक गिरोह उसे वही कुत्ते वाला बूढ़ा समझकर पकड़ लेते हैं, जो भेस बदलकर घूम रहा है। यहाँ व्यापारी ...Read More