मेरी राह्गिरी (1) शुरुआत मैंने वक़्त की धार में एक पैर छुआ कर देखा था और मेरा पैर दहक गया था बुरी तरह. ये नदी मेरी ख्वाहिशों ने गढ़ी थी. मैं नींद में डूबा बेखबर ख्वाबों से हार कर सोने और जागने के बीच तैर और डूब रहा था. मेरी ख्वाहिशें दिन पर दिन हाथ पैर चलाती जवान और फिर बूढ़ी होती जा रही थी. मैंने सोच लिया था कि जिन लोगों ने मेरे हाथ पैर बांध कर मुझे लाचार कर छोड़ा है उनकी एक न चलने दूंगा. मैं जानता हूँ मेरे पूरे परिवार की उम्मीदें मुझ पर टिकी हुयी
Full Novel
राहबाज - 1
मेरी राह्गिरी (1) शुरुआत मैंने वक़्त की धार में एक पैर छुआ कर देखा था और मेरा पैर दहक था बुरी तरह. ये नदी मेरी ख्वाहिशों ने गढ़ी थी. मैं नींद में डूबा बेखबर ख्वाबों से हार कर सोने और जागने के बीच तैर और डूब रहा था. मेरी ख्वाहिशें दिन पर दिन हाथ पैर चलाती जवान और फिर बूढ़ी होती जा रही थी. मैंने सोच लिया था कि जिन लोगों ने मेरे हाथ पैर बांध कर मुझे लाचार कर छोड़ा है उनकी एक न चलने दूंगा. मैं जानता हूँ मेरे पूरे परिवार की उम्मीदें मुझ पर टिकी हुयी ...Read More
राहबाज - 2
मेरी राह्गिरी (2) मेरा फ्लिंग उस दिन रोजी आधे घंटे बाद मेरे ऑफिस में थी. मैंने तब तक अपने को निपटा दिया था. जल्दी में डील पूरी करने के चक्कर में उस दिन अपना थोडा सा नुक्सान भी कर लिया था. लेकिन दिल में मलाल नहीं हुआ था. ऐसा होता है मेरे साथ. बिज़नस में बहुत कम समझौता करता हूँ. दिल लगा कर अपनी सारी मेहनत और दिमाग झोंक कर सौदे करता हूँ. यानी बेच और खरीद का कारोबार. लेकिन रोज़ी ने मुझ पर जादू सा कर दिया था. इसकी दो वजहें हो सकती हैं. एक तो ये कि ...Read More
राहबाज - 3
मेरी राहिगिरी (3) फ्लिंग का नतीजा निम्मी सो चुकी थी. बच्चे ज़ाहिर है अपने अपने कमरों में थे. सो चुके थे वे भी. निम्मी ने मेरी हलचल पर एक बार आँख खोल कर मुझे देखा था फिर करवट बदल कर सो गयी थी. उसे मेरे देर से आने की आदत है. कभी काम की वजह से तो कभी देर रात तक होने वाली मेरी बिज़नस पार्टियों की वजह से. आज जैसी मदमस्त वजह पहले कभी हुयी नहीं थी. एक अजीब सी बात मैंने अपने अन्दर उस रात महसूस की थी. पहली बार ऐसा हुआ था कि मैंने निम्मी के ...Read More
राहबाज - 4
रोज़ी की राह्गिरी (4) मेरा नशा दिन के हर पहर की अपनी एक अलग तासीर होती है. रात की अँधेरे से उपजती है और नशे में ढलती है. मैं तो दिन रात एक नशे में रहती हूँ. मेरे होने का नशा. मेरी ज़िन्दगी को पल-पल एक-एक घूँट रस ले कर पीने का मज़ा. मैं जानती हूँ ये ज़िन्दगी मुझे इस बार कई कोशिशों के बाद मिली है. मैं इसे गवाना नहीं चाहती. मैं हर सुबह एक खुमारी के साथ उठती हूँ. दिन चढ़ता जाता है और मैं काम के नशे में चूर होती जाती हूँ. मेरा काम शुरू होता ...Read More
राहबाज - 5
रोजी की राह्गिरी (5) मन क्यूँ बहका मुझे नियोग करना था. इसके लिए मुझे किसी देवता का आव्हान करना लेकिन आज के इस युग में कोई देवता मुझे कहाँ मिलेगा? ये कैसे हो सकता था कि मुझे कोई वरदान मिले. मैं उस वरदान के चलते एक कोई मन्त्र पढ़ूं और कोई सूर्य जैसा कान्तिमान देवता आ कर मेरी कोख हरी कर जाए. मुझे तो इस कलियुग में मर्दों के बीच में से एक ऐसा मर्द ढूंढ निकालना था जो परायी स्त्री का उपभोग भी करे लेकिन उसके मन में कोई मलिन भाव न हो. एक ऐसा मर्द जिसके मन ...Read More
राहबाज - 6
रोजी की राह्गिरी (6) कोई मिल गया वो दिन भी और दिनों की ही तरह था. मैं और कार्ल काम में लगे थे और शाम उतर आयी थी. ये वो दिन थे जब हमने साथ घर जाना शुरू कर दिया था. कम से कम हफ्ते में दो बार. आज भी जब दिन में मेरा सामना कार्ल से हुआ था किसी काम के सिलसिले में तो मैंने कहा था कि शाम को वो मेरे साथ ही चले. आज हमें एक पार्टी में जाना था. कुछ कारोबारी दोस्तों की पार्टी थी. बोरिंग और कामकाजी. ऐसी पार्टियों में मैं कार्ल के साथ ...Read More
राहबाज - 7
मेरी राह्गिरी (7) शादी खाना-आबादी निम्मी आज फिर एक बार निम्मी मोड में आ गयी थी. निम्मी के साथ ऐसा होता है. जब भी मैं घर से ज्यादा दूर रहता हूँ, उस पर इस तरह के दौरे पड़ते हैं. वह खुद से निराश हो जाती है. खुद को ही सजा देने लगती है. इसी तरह मुझे भी खुद से छिटका कर सजा देती है. अब कई दिन तक घर का माहौल दमघोटू हो जाएगा. घर चलेगा. सब कुछ रोज़ की तरह होगा. लेकिन निम्मी कोप भवन में रहेगी. रोती बैठी रहेगी. खाना नहीं खायेगी. जब भूख नहीं सही जायेगी ...Read More
राहबाज - 8
निम्मी की राह्गिरी (8) मैं प्यार हूँ मैं ठन्डे पानी से नहाती हूँ हर रोज़. पानी की धार तेज़ी साथ मेरे सामने रखी बाल्टी को भर रही है. मैं मग भर-भर कर खुद पर डालती चली जाती हूँ. बदन भीग गया है. अब मैंने साबुन से खुद को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया है. साबुन का झाग अपनी तमाम रवानगी और खुशबु के साथ मुझे भीतर तक भिगो रहा है. मैं लगातार साबुन लगाये जा रही हूँ. शावर से बहता पानी मुझे भिगोता हुया मेरे बदन से झाग को बहाता मुझे और ठंडा किये जा रहा है. मेरे नथुने ...Read More
राहबाज - 9
निम्मी की राह्गिरी (9) वो छिप छिप कर मिलना दोनों डब्बे उठाये अनुराग के बारे में सोचती मैं घर आयी थी. घर आ कर माँ को मिठाई वाला डब्बा थमा दिया था. दूसरा खुद अपने बक्से में रख लिया. सारी मिठाई भाई, पापा और माँ ने उसी वक़्त खा ली थी. भाइयों ने ये कह कर मजाक उड़ाते हुए कि तू तो वहां खा कर ही आयी है. लेकिन मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा था. न ही इच्छा हुयी थी उस मिठाई को खाने की. मेरा मन और पेट दोनों भरे हुए थे. मैं तो उस रात अनुराग के ...Read More
राहबाज - 10
मेरी राह्गिरी (10) नयी दोस्ती मेरा घर अब काफी संभल गया था. निम्मी और मेरे बीच जो दूरी धीरे-धीरे गई थी वो काफी हद तक दूर हो गयी थी. अब सुबह मैं हर रोज़ भाग कर रोशन लाल के छोले भठूरे और समोसे खाने नहीं पहुँच जाता था. घर पर ही वेट करता था कि निम्मी बच्चों के काम से फ्री हो कर कुछ बनाये और हम साथ बैठ कर नाश्ता करें. ज़ाहिर है नियमित तौर पर फलों के जूस और हलके पौष्टिक नाश्ते ने मेरा स्वाथ्य बेहतर कर दिया था. मेरा डॉक्टर मुझ से खुश था. मेरी पत्नी ...Read More
राहबाज - 11
रोजी की राह्गिरी (11) आसमान में छलांग यूँही अनुराग से मिलते उसके प्रेम में भीगते डूबते-उतरते ऐसे ही जीवंत बीत रहे थे कि मुझे अपनी देह में कुछ बदलाव महसूस हुए थे. एक सुबह मुझे कुछ भारी-भारी सा लगा बदन में. उस दिन अनुराग से शाम को उसके होटल के कमरे में मिलना तय था. उसने काम की वजह से ले रखा था. जब उसे पार्टी में या काम में देर हो जाती या शराब ज़्यादा हो जाती तो वह वेस्ट दिल्ली के अपने घर तक ड्राइव कर के जाने की असुविधा से बचने के लिए इस कमरे में ...Read More
राहबाज - 12
रोजी की राह्गिरी (12) नयी ज़िंदगी आजकल अक्सर मैं काम घर पर मंगवा लिया करती हूँ. लगा आज तीनों असिस्टेंट मेनेजर, सीए. और नजफ़ आये होंगे. नजफ़ पैकिंग का काम देखता है. शुरू से ही हमारे साथ है. फैक्ट्री के पहले दिन से ही. बेहद इमानदार और वफादार इंसान. फ़ौज से रिटायर हो कर हमारे साथ ही जुट गया. अब तो दस साल से ऊपर हो चुके हैं. बेटू को रेहाना की निगहबानी में छोड़ कर मैं बाहर लिविंग रूम में आयी तो वे तीनों खड़े हो गए. मैंने चाय के लिए पूछा तो एक स्वर में तीनों ने ...Read More
राहबाज - 13
मेरी राह्गिरी (13) मेरी खाना-आबादी तेईस की उम्र में मेरी शादी हो रही थी उनीस साल की निम्मी के हम दोनों ही ज़िंदगी के खेल में पूरे पूरे अनाडी. लेकिन हमारे परिवार अब मैदान में आ गए थे. और यहीं से शुरू हो गयी थीं मेरी मुश्किलें. जिस दिन मेरे मम्मी-पापा की मुलाक़ात निम्मी के मम्मी-पापा से हुयी उसी दिन से एक शीत युद्ध मेरे घर में शुरू हो गया था. हालाँकि उनसे मिल कर मेरा भी एक तरह से मोह-भंग हुआ तो था. लेकिन मेरे परिवार में यह परिवार एक अच्छी-खासी चिंता का विषय बन गया था. निम्मी ...Read More
राहबाज - 14 - अंतिम भाग
निम्मी की राह्गिरी (14) शादी के बाद खैर! जिस दिन अनुराग ने मुझसे शादी की बात की उसी हफ्ते पर अनुराग ने अपने घर में ये बात कह दी. और ये सुनते ही उसके घर में तो बवाल ही हो गया था. अनुराग की उम्र बहुत कम थी. सिर्फ बीस साल के अनुराग के शादी करने के फैसले से उसके मम्मी पापा को उसकी फ़िक्र होनी ही थी. लेकिन अनुराग ने अपनी परिपक्व बातों और इरादों से बात संभाल भी ली. और जल्दी ही उसने अपनी ज़िन्दगी भी संभाल ली. दो-तीन साल के अंदर वह इतना कमाने लगा था ...Read More