दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

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ऋचा पैंसठ की हो चुकी, बच्चों के शादी-ब्याह --सब संपन्न ! तीसरी पीढ़ी भी बड़ी होने लगी पूरे -पूरे दिन लगी रहती सबकी फ़रमाइशें पूरी करने में बहुत आनंद मिलता उसे फिर बहुत सी बातें भी सुनती --

Full Novel

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 1

ऋचा पैंसठ की हो चुकी, बच्चों के शादी-ब्याह --सब संपन्न ! तीसरी पीढ़ी भी बड़ी होने लगी -पूरे दिन लगी रहती सबकी फ़रमाइशें पूरी करने में बहुत आनंद मिलता उसे फिर बहुत सी बातें भी सुनती -- ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 2

दिल किसी का भी हो, कभी खुश होता है, कभी दुखी ! कभी छलनी हो जाता है, कभी उछलने है पता नहीं उसके दिल की ज़मीन पर उसका नाम लिखा गया था या नहीं ? पर जल्दबाज़ी इतनी कि अभी न मिली तो न जाने कहर ही बरप जाएगी ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 3

अचानक उन्हें टी वी पर देखा, संगीत पर कुछ चर्चा चल रही थी।थोड़ा सा समय लगा पृष्ठ पलटने में लगभग तीस वर्ष पूर्व की प्रथम कक्ष की रेलगाड़ी की यात्रा ने उनके दिल के द्वारा पर दस्तक दी और चरर्र करते हुए पट खुल गए ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 4

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 4-बड़ा साहित्यकार कोई बांध देता है दिल को मुट्ठी में रिसने लगता है दिल उसमें से कुछ ऐसा स्त्राव जिसका रंग उसकी समझ में कभी नहीं आया | क्या कलर ब्लाइंड है? पता नहीं लेकिन कुछ तो है जो ब्लाइंड ही है |अब, वह ब्लाइंड है या और लोग, पता नहीं | वह प्रसिद्ध पत्रिका उसके हाथ में थी, बहुत बेचैनी से उस पत्रिका की प्रतीक्षा रहती थी उसे | समय पर आ भी जाती थी | आज जैसे ही कुरियर-ब्वाय उसे पत्रिका पकड़ाकर गया | उसने अंदर जाने की भी ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 5

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 5- फ्रैंड -रिक्वेस्ट बड़ी फूलीं मिसेज़ प्रधान ---उनकी बिटिया ने फेस-बुक एकाउंट खोल दिया था | सबसे पहले तो उसकी बिटिया के दोस्तों से उनकी दोस्ती बनी फिर जैसे समय गुज़रता गया उनके दोस्तों की रफ़्तार इतनी तेज़ी से बढ़ी कि वे चौकने लगीं |बिटिया ने यह तो बताया नहीं था कि सब रिक्वेस्ट स्वीकार मत करना सो वे धड़ल्ले से स्वीकार करती चली गईं | " देखो ! मुझे तो कितने लोग अपना दोस्त बनाना चाहते हैं --" "अच्छी बात है न ! आपका टाइम पास हो जाता है ---" ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 6

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 6-कम्मो बूआ कम्मो बूआ यानि कामिनी ! सच में ही फूल सी कोमल व खूबसूरत ! जीवन जैसे खेल खिलाता है वैसे ही उसे खेलना पड़ता है, हम सब इस तथ्य से वाकिफ़ हैं कम्मो बूआ का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था और माया एक दिल्ली के बहुत नामचीन ब्राह्मण परिवार की कन्या ! किन्तु जिस घर में उसका विवाह हुआ, वह औसत से भी गया -बीता ! वो ज़माना था जब अधिक शिक्षा लड़कियों को तो नहीं ही दी जाती थी भई ! क्या करेंगी पढ़-लिखकर ! फिर ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 7

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 7-दाल-चावल शुभा को किसी काम से बेटी के साथ कलकत्ता पड़ा बेटी तो अपनी कॉलेज-लाइफ़ में भी कलकत्ता गई थी लेकिन उस समय वह एन. सी. सी के ग्रुप के साथ रेलगाड़ी में गई थी शरारतें करते, शोर मचाते सब युवा लगभग ढाई दिनों में कलकत्ता पहुंचे थे इस बार माँ के साथ वह हवाई-यात्रा कर रही थी टिकिट के साथ लंच इंक्लूड नहीं था भूख लगी थी कुछ तो खाना ही था वैसे ही हवाईजहाज़ का खाना दोनों माँ-बेटी में से किसीको पसंद न था ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 8

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 8-दावत कितना बड़ा जश्न हुआ अनिरुद्ध के बेटा होने पर सभी के मुख पर मुस्कान और देह पर सिल्क के लिबास सजे थे | बहू के साथ कूँआ पूजने पर बाजा-गाजा साथ चला | "बड़ी किस्मत वाली है बहू ---पहले साल में ही बेटा पैदा करके सबके जी में उतर गई --" " यार, ये सब क्या है माँ ?" अनिरुद्ध बहुत असहज था | बेटा हुआ है तो छोटी-मोटी पार्टी कर लो, इतना दिखावा करने की आखिर क्या ज़रुरत?उसकी पत्नी स्मिता के भी विचार अपने पति जैसे ही थे पर परिवार के बुज़ुर्ग सदस्यों ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 9

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 9-बुलबुल पता नहीं कब, कैसे उसने क्यारियों में छिपकर बच्चे दिए वैसे ही परेशान थे सड़क के कुत्तों से ! सड़क पर खड़ी गाड़ियों पर बड़ी शान से वे बैठे रहते, जब उनका मन होता तब खड़ाक से बँगलों के अंदर कूद जाते पता तो तब चलता जब अंदर कहीं गंदा कर जाते या पीछे चौकड़ी में सुबह कामवाली के इंतज़ार में प्रतीक्षा करते बर्तनों से गुफ़्तगू करने पहुँच जाते इनमें से ही कोई होगी जिसने क्यारी में बच्चे दिए और अगली सुबह नौकर के घंटी बजाने पर पूरा दम लगाकर उसने उसे भागने पर ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 10

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 10-मीतल मीतल सामने वाले घर की नई सेविका का नाम | लंबी, उजली, बहुत ख़ूबसूरत! एक्टीवा लेकर आती है | मेहरा साहब के यहाँ कुछ महीनों से काम पर आना शुरू हुआ है उसका |वह किसी को देखे, न देखे, बात करे, न करे, उसे ज़रूर आस-पड़ौस के लोग घूरते थे | "कितनी साफ़ -सुथरी बाई मिली आपको मिसेज़ मेहरा ---!"मिसेज़ राघव ने आँखों में उत्सुकता भरकर पूछा | " हाँ जी, इसका भाई मेहरा साहब का ड्राइवर है न, राजू --उसीकी बहन है ---" उन्होंने मीतल के बारे में बताया | " पूछिए, और ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 11

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 11-छंगी ये उन दिनों की बात है जब दादी माँ को अपने चारों ओर बैठाकर राम और कृष्ण की कहानियाँ सुनातीं | ऊब गए थे बच्चे ! सुनते-सुनते -- "दादी माँ ! आप हर बार वो ही कहानी सुनाती हैं, कुछ ऐसा भी सुनाइए जो हमें पता ही न हो ---" बिट्टू की हाँ में हाँ सबने मिलाई और दादी अपने घर से जुड़े लोगों की कहानी सुनाने लगीं | उन्होंने अपने समय की बातें सुनानी शुरू कीं जिसमें छंगी का ज़िक्र करना वो न भूलतीं | बच्चों को बड़ा मज़ा आता जब ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 12

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 12-प्रेम-पत्र नंदिता ने ऐसे घर में जन्म लिया था जहाँ बात पर, हर काम पर कंट्रोल का ताला लगा रहता | आज के ज़माने में भी इतना कंट्रोल ! न कहीं आना, न जाना ---बस --पापा का राज ! ठीक है, ज़माने को देखते हुए ज़रूरी भी है पर युवास्था में किसी न किसीकी ओर आकर्षण हो ही जाता है | स्वाभाविक भी है, आकर्षण न हो तो अस्वभाविक ! नंदिता भी अपने सहपाठी स्वराज की ओर आकर्षित हो गई | आकर्षण ऐसा बढ़ा कि प्रेम-पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा | नंदिता को वह ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 13

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 13-टच-मी-नॉट अम्मा के घर पर ऊपर छज्जे के बीचों-बीच एक का सुंदर सा गमला बना हुआ था | शायद छज्जा बनाते समय यह गमला बनाया गया था | अम्मा उसमें कुछ न कुछ बोती रहतीं | मौसम के अनुसार उसमें डले बीज उग आते | इस बार अम्मा की किसी सहेली ने उन्हें एक पौधा लाकर दिया | अम्मा ने उस पौधे को छज्जे वाले गमले में लगा दिया जो उस समय ख़ाली था | कुछ ही दिनों में उसमें से प्यारी-प्यारी हरी पत्तियाँ निकल आईं | " अम्मा जी ! इसे क्या कहते हैं ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 14

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 14-बेहिसाब महिमा ने अपनी बहू से इतनी मुहब्बत कर ली अपनी बेटी को भी एक तरफ़ कर दिया | उसका विवाह हो चुका था, महिमा सोचती कि बेटी अपने घर गई और अब बेटी के रूप में वाणी को भगवान ने भेज दिया है | बेटे को पहले ही घर से कोई लेना-देना नहीं था, जो कोई भी बात होती सब वाणी से पूछ लीजिए, उससे पूछकर ही हर बात की जाती | इसका हश्र यह हुआ कि वाणी पूरे घर पर अपनी हुकूमत चलाने लगी | महिमा के पति नवल इस बात से बहुत असहज ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 15

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 15-नंदू "ओय ---देख दीदी आ गईं ---" नंदू ने रिक्शा ही चिल्लाकर अपने नौकर हेमू को आवाज़ दी | "दीदी ! नमस्ते ----" नंदू और हेमू दोनों के चेहरे खुशी के मारे खिल आए | दुकान पर खड़े सारे ग्राहक उस पैडल-रिक्शा की ओर घूमकर देखने लगे जिसे देखते ही दुकान-मालिक और उसका मुँहलगा सेवक फुदकने लगे थे | रात होते ही कुल्हड़ों की सौंधी सुगंध में सराबोर मोटी मलाई वाला दूध हाज़िर !नंदू खुद दूध लेकर आता और जब तक चीं -चपड़ करते बच्चे पी न लेते, वह उन्हें कहानियाँ सुनाता रहता ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 16

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 16-गुड़िया का ब्याह शायद विधाता ने ही लड़कियों में विशिष्टता उन्हें सँवारा है कि वे सदा गुड़ियों के और अपने और साज-श्रृंगार के प्रति आकर्षित व सचेत रहती हैं | आभा जब अपनी बिटिया मीनू को मंहगी गुड़ियों से खेलते देखती है, उसे अपने बचपन के दिन याद आते हैं |एक आम घर में मीनू का जन्म हुआ था, पिता उस छोटे से शहर के पोस्ट-ऑफ़िस के पोस्टमास्टर थे | यूँ तो उनके पास कई लोग थे पोस्टऑफ़िस का काम करने वाले पर बच्चों को अपने काम स्वयं ही करने का आदेश था, ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 17

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 17-पिन ये क्या है? शिवम उठते हुए कुछ पैंट के पीछे कुछ भारी सा महसूस हो रहा था।थोड़ा टटोलने पर उसे पता चला उसकी पैंट में पिन से कुछ लटका दिया गया था तेज़ बंदा था शिवम, तुरंत बुद्धि दौड़ी, पीछे बैठी शरारती लड़कियों पर नज़र डाली, उसकी सालियाँ बैठीं थीं वो बेचारा हाथ पीछे करके पिन खोलने की कोशिश करता लेकिन उसका हाथ ही नहीं पहुँच रहा था पीछे लड़कियों की खी-खी सुनाई दे रही थी वैसे नीरा बहुत शांत व सहमी सी रहने वाली लड़की थी पर उस समय ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 18

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 18-शैली "मम्मा ! हमें भी एक डॉगी पालना है ---" वाले सूद साहब के यहाँ एल्सेशियन को देखकर सोना अपनी माँ से हर रोज़ एक बार तो कहती ही | "बेटा ! इतना आसान है क्या --मालूम है, कितना काम होता है इसका ?" "सूद आँटी के घर भी तो है, देखो न ---" सोना यानि सोनाली अक्सर ठुमक जाती | प्रज्ञा के कान पर जूँ न रेंगती, भली प्रकार जानती थी कि ले आएँगे पर करेगा कौन ? सूद साहब बड़े व्यापारी ! उनके घर पर कर्मचारियों की आवाजावी लगी रहती ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 19

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 19-चंदन अपने छोटे शहर के एकमात्र डिग्री कॉलेज में जब ने प्रवेश लिया तो आसपास के लोगों की आँखों में सवालिया प्रश्न तैरने लगे | तीस वर्ष पुरानी बात आज भी यदाकदा उसे झंझोड़ देती है, खिलखिलाने पर मज़बूर कर देती है | जाटों का शहर था जिसमें अधिकतर लोग छोटे काम-धंधे वाले, अध्यापक, पंडित लोगों के साथ एक बड़ा तबका किसानों के परिवारों का निवास करता था जिनके घरों में खूब ज़मीनें होती थीं, खेती से खूब पैसा आता उन घरों के बच्चों को बहुधा पास के शहरों में पढ़ने के लिए भेजा ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 20

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 20--आप क्या पीती हैं ? चिराग नामके एक लड़के की पर मालिनी ने बहुत दिनों तक कोई ध्यान नहीं दिया | कोई 25/26 वर्ष का लड़का दिखाई दे रहा था उस तस्वीर में जो एफ़ बी पर चिपकी थी | पता नहीं उसके पास नं कहाँ से आ गया | कभी मैसेंजर पर तो कभी वॉट्सैप पर मैसेज आए | 'आप मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट क्यों एक्सेप्ट नहीं कर रही हैं ?' रागिनी खीज उठी, उसके प्रोफ़ाइल पर गई | उसके प्रोफ़ाइल पर केवल फ्रैंड के नाम में चिराग ही लिखा था | ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 21

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 21-इत्तफ़ाकन आरती के जीवन में ऐसे बहुत से रिश्ते बने इत्तिफ़ाक़न बने लेकिन ताउम्र उनसे वैसी ही मुहब्बत, स्नेह व ट्यूनिंग बनी रही |इनमें से ही एक जापानी लड़का शीनोदा भी है -तकाशी शिनोदा ! यह अंतर्राष्ट्रीय मुहब्बत, विश्वास व स्नेह-बंधन की ऎसी मिसाल है जो चालीसियों बरसों से एक कोमल डोर से बंधी हुई है | उन दिनों आरती पी. एच. डी कर रही थी जब इस लंबे, गोरे लड़के से उसका परिचय हुआ था | अपने पूरे ग्रुप में आरती सबसे बड़ी थी, विवाहिता थी, माँ थी, सो सबके साथ उसका एक ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 22

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 22--मोहभंग बड़ा हँसता-खेलता परिवार था वो !आइडियल सिचुएशन वाला पति-पत्नी, बच्चे बड़े हुए, शादी-ब्याह हो गए, उनकी अपनी पसंद से ! बिटिया अपने घर, बहू अपने परिवार में।सब कहते, इस परिवार से बड़ी पाॅज़िटिव वाइब्रेशन्स आती हैं।खूब आना-जाना लगा रहता यानि लोगों की रौनक ! बेटे की दो प्यारी सी बेटियों की मुस्कान से घर चहकता रहता। अधेड़ दादा-दादी को पोतियाँ मिलीं तो जैसे कारूँ का खज़ाना मिल गया | खज़ाना जैसे खनकता रहता, न जाने कितना है इस परिवार के पास ! भौतिक रूप में कुछ इतना था भी नहीं कि श्रेष्ठी ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 23

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 23-बीट वाला मंजन अन्नी यानि अणिमा को अपने मामा की की शादी में बीरखेड़ा गाँव में जाना पड़ा | दिल्ली में पलने वाली अन्नी को उसके तीनों मामा बहुत प्यार करते| जब भी दिल्ली आते बुलंदशहर आने का न्योता ज़रूर देते | अन्नी छुट्टियों में माँ के साथ चली भी जाती, वहां दो मां रहते थे | खूब बड़ी-बड़ी कोठियाँ बनाई हुईं थीं उन्होंने | रक सिंचाई विभाग में इंजीनियर तो दूसरे की अपनी मेडिकल क्लीनक ! तीसरे मां गाँव में रहकर पैतृक संपत्ति की देखभाल कर रहे थे | बहुत सारे बगीचों के मालिक थे ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 24

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 24-मैं क्यों झुकूँ ? जागृति की सात वर्षीय पोती सलोनी प्यारी है | उसे उस नन्ही सी बच्ची में सभी गुण दिखाई देते हैं | खाना खाने की चोर सलोनी को उसकी माँ बहुत बहला-फुसलाकर खाना खिलाती | कभी कोई कहानी सुनाती तो कभी अपने साथ हुई घटना को चटखारे लेकर सुनाती | वह अपना इतना रौब मारती कि बच्ची को अपनी माँ की हर बात सही लगने लगी थी | सलोनी की माँ हर बात में अपना हाथ ऊपर रखना चाहती इसलिए सलोनी के स्वभाव में भी वही अकड़ होती जा ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 25

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 25--स्वाभिमान? अपने परिवार के हर सदस्य के लिए गर्व से रहने वाली सुमेधा महाजन का अपने पति के जाते ही गर्व का गुब्बारा पिचककर हवा में झूलने लगा | जीवन की आपाधापी से बड़े ही स्वाभाविक स्वर में झूमने वाली सुमेधा हतप्रभ हो पुत्रवधू का चेहरा ताकती रह गई । बेटे-बहू के बीच ख़लिश है, ये तो काफ़ी दिन पूर्व आभास हो चुका था किंतु बच्चों पर माँ-बाप के संबंधों का ख़राब प्रभाव पड़ रहा था जो स्वाभाविक ही था ! बच्चे नहीं कहते उन्हें जन्म दो, अपने को गौरवान्वित महसूस करने के लिए तुम ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 26

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 26-लिखती क्यों हूँ ? ऋचा के भाई -भाभी के बीच सी समस्याएँ चल रही थीं | पिता के जाते ही उसकी माँ का जीवन अस्त-व्यस्त हो उठा | माँ की दशा ऋचा से सही नहीं जाती थी | पिता के घर के थोड़ी दूरी पर ही ऋचा का घर था | काफ़ी दिन तक तो वह माँ की केयर करती रही किन्तु फिर उसके अपने घर का काम-काज सफ़र करने लगा |वह माँ को लेकर आ गई | ऋचा के पति बहुत आदर करते थे माँ का !उनके माता-पिता को गए हुए कई वर्ष हो चुके थे |उन्हें ...Read More

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 27 - अंतिम भाग

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें (लघु कथा-संग्रह ) 27-बड़ी मम्मी बच्चों की बड़ी मम्मी यानि नानी माँ | में संस्कृत की लेक्चरर थीं | अवकाश प्राप्ति के बाद कविता उन्हें अपने पास बंबई ले आई थी | पापा पहले ही नहीं रहे थे और बच्चों के नाम पर वह एकमात्र संतान थी | ...Read More