होटल टाशकेंट के बाहर चारों तरफ बर्फ फैली हुई थी। सामने के पार्क में मरियल धूप का एक टुकड़ा बर्फ से लड़ने की कोशिश कर रहा था। सुशांत अभी ऊंघ रहा था। तय नहीं कर पा रहा था कि बिस्तर छोड़ा जाए या अभी सोया जाए। तभी रिसेप्शन से काॅल आई कि आपसे कोई मिलने आया है। यहां कौन मिलने आया होगा ? किसी को मिलने भी नहीं बुलाया था। ‘मेरे रूम में भेज दीजिए’ ‘माफ कीजिएगा सर, लेडी गेस्ट हैं, रूम में नहीं भेज सकते है। यदि आप खुद नीचे आएं तो दस डाॅलर की गेस्ट-फी के बाद साथ ले जा सकते हैं।’
Full Novel
सबरीना - 1
होटल टाशकेंट के बाहर चारों तरफ बर्फ फैली हुई थी। सामने के पार्क में मरियल धूप का एक टुकड़ा से लड़ने की कोशिश कर रहा था। सुशांत अभी ऊंघ रहा था। तय नहीं कर पा रहा था कि बिस्तर छोड़ा जाए या अभी सोया जाए। तभी रिसेप्शन से काॅल आई कि आपसे कोई मिलने आया है। यहां कौन मिलने आया होगा ? किसी को मिलने भी नहीं बुलाया था। ‘मेरे रूम में भेज दीजिए’ ‘माफ कीजिएगा सर, लेडी गेस्ट हैं, रूम में नहीं भेज सकते है। यदि आप खुद नीचे आएं तो दस डाॅलर की गेस्ट-फी के बाद साथ ले जा सकते हैं।’ ...Read More
सबरीना - 2
पुलिस अंदर आ गई और सीधे सबरीना से मुखातिब हुई। सबरीना घुटनों के बल बैठ गई और हाथ ऊपर लिए। सुशांत कुछ भी समझने की स्थिति में नहीं था। उसने भी सबरीना को दोहराया और इंतजार करने लगा कि आगे क्या होगा ? दो पुलिस वालों ने सबरीना और सुशांत की तलाशी ली और दीवार की ओर मुंह करके खड़ा होने को कहा। पुलिस टीम को लीड कर रहे अधिकारी ने सबरीना से पूछताछ शुरू की। ऐसा लग रहा था, जैसे रशियन में बात हो रही है। उसे सबरीना, जोदेफ, हंगरी, स्लोवाकिया, मजलिस, उल्फीत्सरोवा जैसे शब्द समझ में आए, लेकिन इन शब्दों से कुछ भी साफ नहीं हुआ। ...Read More
सबरीना - 3
सुशांत हांफता हुआ रिसेप्शन पहुंचा। उसने दूतावास फोन मिलाने को कहा, लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने मना कर दिया। सुशांत ने बात करने की पुरानी ट्रिक का इस्तेमाल किया और ये काम कर गई। क्यांेंकि हंगामे से होटल के दूसरे गेस्ट परेशान हो रहे थे। दूतावास में काफी देर बाद फोन रिसीव हुआ। ‘मैं सुशांत बोल रहा हूं, इंडोलाॅजी का प्रोफेसर हूं और कुछ दिन पहले ही शहरदागी इन्हा यूनिवर्सिटी पहुंचा हूं। मुझे यहां से समरकंद दवलात यूनिवर्सिटी जाना था। लेकिन, सुबह...’ ...Read More
सबरीना - 4
मुसीबतों के हिचकोले खा रहे सुशांत को समझ नहीं आया कि वो अपनी हालत पर रो दे या रेशमी पहनकर बेहद खुशी का इहजार करे। कुछ घंटों में सब कुछ इतनी तेजी से घटित हुआ था कि वो अभी तक सोते वक्त पहने गए कपड़ों में ही घूम रहा था। उसकी उलझने अभी सुलझी नहीं थी। पर, प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी के आने से थोड़ी राहत जरूर महसूस हुई थी। उसके विचार-क्रम को प्रोफेसर तारीकबी ने भंग किया। ...Read More
सबरीना - 5
सुशांत को लग रहा था कि ड्राइवर जरूरत से ज्यादा तेज गाड़ी चला रहा है। ताशंकद की सड़कें काफी और शांत लग रही थीं। सड़क के किनारों पर बर्फ की मोटी तह मौजूद थी। लेकिन सड़क के बीच में गाड़ियों ने बर्फ को रौंदने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। किनारे के भवन काफी ऊंचे थे और वे उदास लग रहे थे। भवनों का डिजाइन एकरसता पैदा कर रहा था। उन्हें देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी भी तरह से उज्बेक कल्चर का कोई संकेत दे रहे हों। सड़क के दोनों ओर के पेड़ बर्फ से लदे थे। फल आने पर झुक जाने का पेड़ों का अनुभव अब उनके काम आ रहा था। भारत में ऐसी सूनी सड़के देखना आमतौर से संभव नहीं होता। सुशांत ने पूछा- ...Read More
सबरीना - 6
सबरीना से सुशांत की आंखें मिली तो उसने मुंह घुमा लिया। जिस आदमी को वो सुबह से बख्तामीर पुलिस ले जाने का डर दिखा रही है, अब आंसुओं से भरी आंख कैसे मिलाए। यूनिवर्सिटी शहर के बाहरी इलाके में बनी है। एक पुरानी मसजिद के पास से गुजरे तो अजान सुनाई देनी लगी। प्रोफेसर तारीकबी ने विषय बदलने की कोशिश की। ...Read More
सबरीना - 7
डाॅ. साकिब मिर्जाएव बेहद उत्साहित और जोशीले आदमी लग रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा लगा कि मां-बाप ने काफी से उनकी परवरिश की थी। चलते हुए उनके पांवों की धमक साफ सुनी जा सकती थी। जब वे आगे रखने के लिए अपना पैर उठाते तो उनका पेट जैसे एक ओर लटक जाता और अगले कदम के साथ दूसरी ओर। मोटापे ने उनकी गर्दन को भी खत्म कर दिया था। मानो सिर को सीधे धड़ पर फिट कर दिया गया हो। खोपड़ी पर पूरा चांद उभर आया था। इक्का-दुक्का बाल कहीं-कहीं दिख रहे थे। लेकिन, कानों पर बालों का गुच्छा मौजूद था। ...Read More
सबरीना - 8
सुशांत ने अपनी बात शुरू करने के लिए स्वामी विवेकानंद से शब्द उधार लिए जो उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन अमेरिकियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किए गए थे। सभागर में शून्य अपने पूरे विस्तार में मौजूद था, लेकिन ज्ञान की आभार और उसे पाने की चाहत की ऊर्जा से हर कोना दीप्त हो रहा था। सभागार का आकार भले ही बहुत बड़ा था, लेकिन उसे इस तरह बनाया गया था कि किसी भी वक्ता को ये अहसास हो कि वो किसी कक्षा में पढ़ा रहा है। उज्बेकी संस्कृति वहां मौजूद रंगों से लेकर चेहरों तक दमक रही थी। सुशांत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ पूरे सभागार को देखा, असल में वो ये मैसेज देना चाह रहा था कि उसके मन में किसी प्रकार की घबराहट और संकोच नहीं है। उसने बात शुरू की- ...Read More
सबरीना - 9
पुलिस स्टेशन में घुसे तो मुख्य हिस्से में सुल्तान नजरबाएफ का बड़ा सा पोर्टेट लगा था। उनके बराबर में अब्दुला अरिपोव का फोटो भी था, जिन्होंने उज्बेकिस्तान का राष्ट्रगान लिखा है। पुलिस अफसर की कुर्सी के पीछे उज्बेकिस्तान का राष्ट्र चिह्न मौजूद था, उसके नीचे ही राष्ट्रगान लिखा हुआ था। जिसमें उज्बेक राष्ट्र की महानता का गौरव गाया गया है। ये वही अफसर था जो सुबह होटल आई टीम को लीड कर रहा था। उसने प्रोफेसर तारीकबी के प्रति काफी आदर दिखाया, दोनों ने अपने गालों से एक-दूसरे के गाल छूकर मिलन कार्यक्रम पूरा किया। ...Read More
सबरीना - 10
‘उस पल मेरे लिए दुनिया की सारी नैतिकता, सारे मूल्य और इंसानियत, सब कुछ खत्म हो गया। मेरे भीतर नफरत और कुंठा भर गई। मैं बदला लेना चाहती थी। पर, किससे बदला लूं, पता ही नहीं था। जिंदगी बेहद बोझिल हो गई। हर रात सपने दिखते कि मेरी मां ने हम तीनों को उस आदमी का पता बता दिया जो हमारा असली पिता है। अगली बार नया सपना दिखता कि हम तीनों बहनों का डीएनए हमारे पिता से मैच हो गया और पुरानी रिपोर्ट गलत थी। लेकिन, सपने कभी यथार्थ में नहीं बदल पाए, जो सच था, वो भयावह रूप में सामने था। अब उसी के साथ जीना था या पलायन करना था।’ ...Read More
सबरीना - 11
सबरीना चुप हो गई और सुशांत गाड़ी से बाहर देखने लगा। सूरज ढले हुए काफी देर हो गई थी। चारों तरफ धुंधलका सा छा गया, पता ही नहीं चला। बर्फ फाहों के रूप में बरस रही थी। गाड़ी के बोनट को बर्फ से बचाने के लिए इंजन को भी अतिरिक्त कोशिश करनी पड़ रही थी। जिस रास्ते से गाड़ी होटल की ओर जा रही थी, ये सुबह से अलग रास्ता था। सबरीना ने शीशा नीचे करके बाहर देखने की कोशिश। चुभती हुई ठंडी हवा के झौंके ने सुशांत को सिहरन का अहसास करा दिया। कुछ देर सबरीना बाहर देखती रही। उसने सुशांत का ध्यान खींचा- ...Read More
सबरीना - 12
सुशांत सोफे से उठा और फिर बैठ गया। जैसे सबरीना द्वारा दी गई आधे घंटे की डेडलाइन को चुनौती चाहता हो। पर, क्या फायदा! दरवाजा तो खोलना ही था। न जाने क्या कर बैठे! मरे मन से सुशांत उठा और रूम की तरफ बढ़ गया्र। दरवाजा खोला तो सबरीना तैयार बैठी थी। सुशांत ने पूछा-‘तुम जा रही हो ?’ ...Read More
सबरीना - 13
‘आप चिंता न करो। हमारे प्रोफेसर तारीकबी ने दुनिया देखी है। वे हिन्दुस्तानी रहन-सहन और खाने-पीने को बहुत अच्छी जानते हैं। आपको सब कुछ तैयार मिलेगा। वो माहिर कुक हैं। वे सोवियत राज की आखिरी इंसानी पीढ़ी के नुमाइंदे हैं। हर चीज में परफेक्ट। अब, देखना आप चलकर।’ सबरीना की इन बातों से भूख के अहसास में कोई कमी नहीं आई। पर, सुशांत के दिमाग में जो घूम रहा था, वो उसका जवाब चाहता था। ...Read More
सबरीना - 14
रात ढल रही थी, पर शहर अभी गहरी नींद में सोया हुआ था। ताशकंद ने अपनी धरोहरों को करीने समेटा हुआ था। साम्यवादी ढंग की इमारतों के बीच पुराने दौर के इक्का-दुक्का गुंबद, मदरसों की इमारते और इसलामिक संस्कृति के केंद्र इस शहर में कोई नया रंग भरने में नाकाम दिखते थे। सबरीना ने खुद को सुशांत के कंधे से अलग करने की कोई कोशिश नहीं। शून्य में देखते-देखते सुशांत को कल रात का वाकया याद आ गया, जब वो दिल्ली से उड़कर ताशकंद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा था, पहली निगाह में उसे निराशा हुई थी। ...Read More
सबरीना - 15
ठंड बढ़ गई थी, बर्फ और तेजी से गिर रही थी। गाड़ी को संभाले रखने के लिए ड्राइवर को मेहनत करनी पड़ रही थी। गाड़ी काफी धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। सुशांत भी यही चाह रहा था, गाड़ी धीमी चले। सुशांत नए संदर्भाें के साथ जिंदगी को समझने की कोशिश रहा था। बीते 24 घंटे में उज्बेक धरती पर इतना कुछ देख और सुन लिया था मानो एक पूरी गाथा से होकर गुजरा हो। जीवन के चुनौती भरे और मुश्किल समय में अक्सर सुशांत को अपनी मां की याद आती है। उसके पिता और मां के बीच रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। ...Read More
सबरीना - 16
फ्लैट में रसोई बाहर के कमरे के साथ जुड़ी हुई थी। भीतर के कमरे में बेडरूम था और बाहर कमरे में जो जगह बची थी वहां पर एक बड़ी मेज रखी थी। शायद इस मेज से बहुत सारे काम लिए जाते होंगे, उस पर पड़े हुए निशान इस बात की गवाही दे रहे थे। धूसर रंग के पर्दे गर्द से भरे हुए थे। घर में जहां भी कोई खाली कोना था, वहां किताबें भरी हुई थी। किताबों के बोझ से मेज का एक हिस्सा दबा हुआ था। घर को गर्म रखने के लिए किचन के बराबर की दीवार में गर्म अंगीठी रखने का इंतजाम किया हुआ था। अंगीठी अब भी सुलग रही थी। ...Read More
सबरीना - 17
बर्फ अभी पड़ रही थी। सुशांत को लगा कि सवेरा बहुत जल्दी हो गया। प्रोफेसर तारीकबी मेज पर झुके पढ़ रहे थे। सबरीना अंदर के कमरे में मौजूद पलंग पर सो रही थी। सुशांत को याद आया कि रात में उन्होंने मेज से बर्तन भी नहीं उठाए थे, सुबह प्रोफेसर तारीकबी ने ही बर्तनों को साफ किया था। सुशांत के उठने की आवाज सुनकर प्रोफेसर तारीकबी फिर चहकने लगे। ...Read More
सबरीना - 18
बाहर के तापमान की तुलना में गाड़ी काफी गर्म थी। ड्राइवर के सामने का शीशा जरूरत से ज्यादा बड़ा ऐसा लगता था जैसे हरेक सवारी को पहियों के सामने मौजूद सड़क को दिखाते रहने का इंतजाम किया गया हो। गाड़ी पुरानी थी, लेकिन उसकी आंतरिक सजावट काफी अच्छी थी। जोशीले युवाओं ने कुछ देर आपस में जोर-जोर से बातें की और फिर अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से सीटों की अदला-बदली कर ली। सुशांत ने एक बार पीछे की सीटों का जायजा लिया तो ज्यादातर सीटें युगल-सीटों में बदल गई थी। ...Read More
सबरीना - 19
सबरीना (19) जारीना ने सुशंात को खींचा... सबरीना और सुशांत की चुप्पी के बीच में डाॅ. साकिब मिर्जाएव के बार-बार बाधा बन रहे थे। डाॅ. मिर्जाएव मुंह खोलकर सो हुए थे और उनके खर्राटे इंजन की आवाज को टक्कर देते दिख रहे थे। उनकी गर्दन एक ओर झुकी हुई थी और हरेक आती-जाती सांस के साथ उनका मुंह और चैड़ा होता दिखता था। सोते वक्त की बेख्याली में उन्होंने अपनी टांगे इतनी फैला दी थी कि उनके बराबर में बैठे हुए प्रोफेसर तारीकबी के लिए बैठे रहने की जगह ही नहीं बची। वे सीट छोड़कर खड़े हो गए, उन्हें ...Read More
सबरीना - 20
सबरीना (20) सबरीना चीखी, प्रोफेसर तारीकबी... सुशांत को फिसलने से बचाने की कोशिश में जारीना औंधे मुंह जा गिरी केबल कार उसकी पीठ से रगड़ खाती हुई आगे निकल गई। जब तक वो संभल पाती तब तक पीछे सबरीना की केबल कार आ पहुंची और सुरक्षित उतरने की हड़बड़ाहट में वो भी बर्फ पर फिसल गई। सबरीना के साथ बैठा छोटा चारी भी लुढ़क गया। बर्फ पर गिरे हुए चारों लोग चोटी के उस हिस्से तक पहुंच गए जहां लोहे के मजबूत तार लगाकर सुरक्षा दीवार बनाई गई थी। ये दीवार न होती तो इन चारों में से कोई ...Read More
सबरीना - 21
सबरीना (21) बर्फ पर खून की लंबी लकीर खिंच गई सबरीना लगातार चीख रही थी और दौड़कर खाई की जाने की कोशिश करने लगी ताकि नीचे गिर रहे प्रोफेसर तारीकबी को बचा ले, सब लोग बदहवाश थे। सुशांत ने बमुश्किल सबरीना को पकड़ा, वरना वो गहरी खाई में कूद जाती। उसे पकड़कर रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन जारीना ने खुद के नीचे गिरने की परवाह किए बिना सबरीना को प्लेटफार्म की ओर खींचा। सबरीना किसी भी कीमत पर प्रोफेसर तारीकबी को बचाना चाह रही थी, भले ही उसकी जान क्यों न चली जाए। कुछ ही पलों में ...Read More
सबरीना - 22
सबरीना (22) प्रोफेसर तारीकबी चले गए..... प्रोफेसर तारीकबी की हालत काफी खराब थी। उनकी सांसें रुक-रुक कर चल रही दानिश को अभी होश नहीं आया था और डाॅ. मिर्जाएव वैसे तो ठीक थे, लेकिन अभी सदमे से बाहर नहीं आए थे और लगातार शून्य में ताक रहे थे। सबरीना की हालत अच्छी नहीं थी, वो अनाप-शनाप बोले जा रही थी। अब जो भी निर्णय लेना था, वो जारीना और सुशांत को लेना था। आसपास कोई मेडिकल सुविधा उपलब्ध नहीं थीं और यहां तक राहत पहुुंचने में कई घंटे का वक्त लग सकता था। जारीना ने सुशांत की ओर देखा ...Read More
सबरीना - 23
सबरीना (23) ‘सुनो सबरीना! कब्रें खोदने का फितूर ना पालो‘ रात गहरा गई थी। हर रोज से ज्यादा काली डरावनी लग रही थी। हर कोई चुप बैठा था, घड़ी की टिक-टिक रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी। कभी-कभार किसी के सिसकने की आवाज से खामोशी टूट जाती थी। प्रोफेसर तारीकबी मरे कहां थे, वे तो सो रहे थे, जैसे गहरी नदंी में हों, चेहरे पर कोई सिकन नहीं, कोई ऐसा संकेत नहीं कि वे अब यहां नहीं हैं। जारीना ने सारी हिम्मत समेटी और डाॅ. मोरसात से पूछा कि प्रोफेसर तारीकबी को घर तक कैसे ले जाया जाएगा। ...Read More
सबरीना - 24
सबरीना (24) ‘हर रोज शराब, हर रोज नए देहखोर, नए ठिकाने।‘ प्रोफेसर तारीकबी हमेशा के लिए विदा हो गए हर कोई उनसे जुड़ी स्मृतियों का जिक्र कर रहा था। डाॅक्टरों ने दानिश को डिस्चार्ज कर दिया था, लेकिन उसे बीच-बीच में स्मृति-लोप के दौरे पड़ रहे थे। डाॅक्टरों का कहना था कि ये सब कुछ दिन में ठीक हो जाएगा। सबरीना, जारीना, डाॅ. मिर्जाएव, छोटा चारी, डाॅ. मोरसात और सुशांत प्रोफेसर तारीकबी के घर पर बैठे थे। वहां सभी खामोश थे और एक-दूसरे से नजरे बचाने की कोशिश करते हुए लग रहे थे। सुशांत ने एक-एक कर सबको देखा, ...Read More
सबरीना - 25
सबरीना (25) मेरे साथ हिन्दुस्तान चलो सबरीना! ’प्रोफेसर तारीकबी मुझे ले तो आए, लेकिन एक दिन मैं वहां से निकली। मुझे लगा, मैं शराब और सैक्स की आदी हो गई थी। उस वक्त मेरी उम्र 18-19 साल थी। मेरे लिए प्रोफेसर तारीकबी की बौद्धिक दुनिया में सर्वाइव करना संभव ही नहीं था। कई महीनों तक सड़कों पर भटकती रही, ग्राहक ढूंढती रही और इसी सब में आजादी तलाशती और महसूस करती रही। प्रोफेसर तारीकबी की एक खूबी थी, वो कभी हार नहीं मानते थे, उन्हांेने मुझे भी यही सबसे बड़ी बात सिखाई। उन्होंने मेरी तलाश जारी रखी। इस मामले ...Read More
सबरीना - 26
सबरीना (26) दानिकोव काफी अदब से मिला जारीना ने डा. मिर्जाएव को गेट की ओर देखने का इशारा किया। अभी तक उनींदे-से लग रहे थे, लेकिन गेट की ओर देखते ही सचेत हो गए। सबरीना ने डाॅ. मिर्जाएव को फुसफुसकार कर कुछ कहा और फिर वो जारीना के साथ होटल से बाहर की ओर निकली। डाॅ. मिर्जाएव ने सुशांत की तरफ देखा, ‘ आज नई भूमिका के लिए तैयार हो जाइये प्रोफेसर!‘ सुशांत कुछ समझ नहीं पा रहा था, लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि कुछ तो असामान्य है। डाॅ. मिर्जाएव ने बैग से कुछ पेपर निकाले और ...Read More
सबरीना - 27
सबरीना (27) ‘दस दिन यहां रहेंगे, बीस से बलात्कार करेंगे’ सबरीना ने लड़कियों को तीन हिस्सों में बांटा। सबसे उन लड़कियों को पहचाना गया जो 18 साल से कम उम्र की थीं। इसके बाद उन्हें अलग किया गया जो विदेशी थीं। हालांकि, सुशांत को सभी उज्बेक लग रही थीं, लेकिन इनमें से कुछ ताजिक, कज्जाक, हजारा, तुर्क, अजरबैजानी, उक्राइनी भी थीं। सबरीना ने इन सभी के बारे में रिपोर्ट तैयार की और उसे पुलिस आॅफिसर दानिकोव के सामने रख दिया। दानिकोव ने रिपोर्ट को पहले नीचे से उपर और फिर उपर से नीचे तक पढ़ा। कई बार उसके चेहरे ...Read More
सबरीना - 28
सबरीना (28) दानिकोव की लार टपकाती निगाह दानिकोव बार-बार सबरीना की ओर देख रहा था। सुशांत ने एक बार और फिर सबरीना को देखा। सबरीना ने पहले सुशंात और फिर दानिकोव को देखा। इस सिलसिले को सबरीना ने तोड़ा ‘ चलें, आॅफिसर, रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट से वैट करा लें। दानिकोव तुरंत उठ खड़ा हुआ और डाॅ. मिर्जाएव भी उनके साथ हो लिए। जाते-जाते सबरीना ने सुशांत के कान के पास आकर कहा, ‘मुझे अच्छी तरह पता है, दानिकोव जैसे लोगों से कब और किस तरह काम लेना है, चिंता न करो।’ सुशांत ने तीनांे की ओर औपचारिक मुस्कान बिखेरी ...Read More
सबरीना - 29
सबरीना (29) वो खत, जो उन्होंने मेरी मां को लिखे थे।’ सुशांत और सबरीना काफी देर तक ऐसे ही रहे। डाॅ. मिर्जाएव ने सबरीना को टोका, ‘चलो, अब यहां से जल्द निकलना चाहिए। यूनिवर्सिटी ही चलते हैं। वहां पर ठहरने का कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा।‘ जारीना और सबरीना ने सामान समेटा, होटल की बुकिंग कैंसिल कराई और बाहर निकल लिए। अब चारों लड़कियां भी उनके साथ थीं। उनके बाहर निकलने पर होटल स्टाफ ने भी राहत की सांस ली। चूंकि, होटल संचालकों ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था इसलिए डाॅ. मिर्जाएव को वहां से तुरंत निकलना ...Read More
सबरीना - 30
सबरीना (30) ’सच में, वो अभागी औरत थी।’ ‘ आपको हैरत होगी, प्रोफेसर तारीकबी मास्को के बाद कभी मेरी से नहीं मिले। कमांडर ताशीद करीमोव से मेरी मां की शादी के बाद उन्होंने अपने रिश्ते को समेट लिया था। पर, वे उन्हें हमेशा खत लिखते रहे। उन खतों में उन्होंने खुद को उड़ेल कर रख दिया है।’ ‘ आपको इस बारे में कब पता चला, कभी आपकी मां ने नहीं बताया ?’ सुशांत ने पूछा। ‘ अभी कुछ वक्त पहले, मैं प्रोफेसर तारीकबी के घर की सफाई कर रही थी तो ये खत सामने आए। उस दिन पता चला ...Read More
सबरीना - 31
सबरीना (31) कोई ईश्वर मदद नहीं करता! सुशांत को लगा कि शायद यूनिवर्सिटी बिल्डिंग पर लाल रंग के नीचे कोई रंग रहा हो। महज सौ बरस में उज्बेक लोगों को अलग-अलग रंगों में रंगने की कोशिश की गई, लेकिन उन्हें देखकर लगता नहीं कि कोई भी रंग पर उन पर ज्यादा गहरा चढ़ पाया है। यूनिवर्सिटी में कोई रिसीव करने नहीं आया था। यहां सारी भागदौड़ डाॅ. मिर्जाएव और जारीना ने ही की। आखिरकार गेस्ट हाउस में सुशांत के लिए एक कमरा मिल गया और लड़कियों के रहने का इंतजाम हाॅस्टल में किया गया। सबरीना और जारीना भी लड़कियों ...Read More
सबरीना - 32 - अंतिम भाग
सबरीना (32) ‘कभी लौटकर आओगे प्रोफेसर!’ सबरीना, डाॅ. मिर्जाएव, छोटा चारी एयरपोर्ट पर सुशांत को छोड़ने आए थे। जारीना आई थी। दानिश आया था, उसे देखकर सुशांत को अच्छा लगा। अभी वो पूरी तरह ठीक नहीं था, लेकिन तब भी आया था। सुशांत उम्मीद कर रहा था कि डाॅ. मिर्जाएव आज फिर उसी उत्साह से मिलेंगे, जैसे कि यूनिवर्सिटी में पहले दिन मिले थे, लेकिन उन्होंने धीरे से गले लगाया और सुशांत की पीठ पर दोस्तों की तरह थपकी दी। छोटा जारी नमकीन मक्खन लेकर आया था जो उसकी दादी भेड़ों के दूध से बनाती है। छोटा चारी बहुत ...Read More