बड़ी दीदी

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इस धरती पर एक विशिष्ट प्रकार के लोग भी वसते है। यह फूस की आग की तरह होते हैं। वह झट से जल उठते हैं और फिर चटपट बुझ जाते हैं। व्यक्तियों के पीठे हर समय एक ऐसा व्यक्ति रहना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके लिए फूस जूटा सके। जब गृहस्थ की कन्याएं मिट्टी का दीपक जलाते समय उसमें तेल और बाती डालती हैं, दीपक के साथ सलाई भी रख देती हैं। जब दीपक की लौ मद्धिम होने लगती है, तब उस सलाई की बहुत आवश्यकता होती है। उससे बात्ती उकसानी पड़ती है। यदि वह छोटी-सी सलाई न हो तो तेल और बात्ती के रहते हुए भी दीपक का जलते रहना असंभव हो जाता है।

Full Novel

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बड़ी दीदी - 1

इस धरती पर एक विशिष्ट प्रकार के लोग भी वसते है। यह फूस की आग की तरह होते हैं। झट से जल उठते हैं और फिर चटपट बुझ जाते हैं। व्यक्तियों के पीठे हर समय एक ऐसा व्यक्ति रहना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके लिए फूस जूटा सके। जब गृहस्थ की कन्याएं मिट्टी का दीपक जलाते समय उसमें तेल और बाती डालती हैं, दीपक के साथ सलाई भी रख देती हैं। जब दीपक की लौ मद्धिम होने लगती है, तब उस सलाई की बहुत आवश्यकता होती है। उससे बात्ती उकसानी पड़ती है। यदि वह छोटी-सी सलाई न हो तो तेल और बात्ती के रहते हुए भी दीपक का जलते रहना असंभव हो जाता है। ...Read More

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बड़ी दीदी - 2

कलकत्ता की भीड़ और कोलाहल भरी सड़कों पर पहुंचकर सुरेन्द्र नाथ धबरा गया। वहां न तो कोई डांटने-फटकारने वाला और न कोई रात-दिन शासन करने वाला। मुंह सुख जाता तो कोई न देखता था और मुंह भारी हो जाता तो कोई ध्यान न देता। यहां अपने आप को स्वयं ही देखना पड़ता है। यहां भिक्षा भी मिल जाती है और करूणा के लिए स्थान भी है। आश्रय भी मिल जाता है लेकिन प्रयत्न की आवश्यकता होती है। यहां अपनी इच्छा से तुम्हारे बीच कोई नहीं आएगा। यहां आने पर उसे पहली शिक्षा यहा मिली कि खाने की चेष्टा स्वयं करनी पड़ती है। आश्रय के लिए स्वयं ही स्थान खोजना पड़ता है और नींद तथा भूख में कुछ भेद है। ...Read More

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बड़ी दीदी - 3

लगभग चार वर्ष हुए, ब्रजराज बाबु की पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। बुंढ़ापे के पत्नी वियोग का दुःख ही समझ सकते है, लेकिन इस बात को जाने दीजिए। उनकी लाडली बेटी माधवी इस सोलह वर्ष की उम्र में अपना पति गंवा बैठी है। उससे अपना पति गंवा बैठी है। उससे ब्रजराज बाबू के बदन का आधा लहू सूख गया है। उन्होंने बड़े शौक और धूमधाम से अपनी कन्या का विवाह किया था। वह स्वयं धन सम्पन्न थे, इसलिए उन्होंने धन की ओर बिल्कुल ध्यान नही दिया। लड़के के पास धन-सम्पत्ति हे या नहीं, इसकी खोज नहीं की। केवल यह देखा कि लड़का लिख-पढ़ रहा है, सुन्दर है, सुशील है, सीधा-साधा है। बस यही देखकर उन्होंने माधवी का विवाह कर दिया था। ...Read More

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बड़ी दीदी - 4

मनोरमा माधवी की सहेली है। बहुत दिनों से उसने मनोरमा को कोई पत्र नहीं लिखा था। अपने पत्र का न पाकर मनोरमा रूठ गई थी। आज दोपहर को कुछ समय निकालकर माधवी उसे पत्र लिखने बैठी थी। तभी प्रमिला ने आकर पुकारा, ‘बड़ी दीदी।’ माधवी ने सिर उठाकर पूछा, ‘क्या है री?’ ‘मास्टर साहब का चश्मा कहीं खो गया है, एक चश्मा दो।’ माधवी हंस पड़ी, बोली, ‘जाकर अपने मास्टर साहब को कह दे कि क्या मैंने चश्मों की कोई दुकान खोल रखी है?’ प्रमिला दौड़कर जडाने लगी तो माधवी ने उसे पुकारा, ‘कहा जा रही है?’ ‘उनसे कहने।’ ‘इसके बजाय गुमाश्ता जी को बुला ला।’ ...Read More

5

बड़ी दीदी - 5

सुरेन्द्र को अपने घर गए हुए छः महिने बीत चुके हैं। इस बीच माधवी ने केवल एक ही बार को पत्र लिखा था। उसके बाद नहीं लिखा। दर्गा पूजा के समय मनोरमा अपने मैके आई और माधवी के पीछे पड़ गई, ‘तू अपना बन्दर दिखा।’ माधवी ने हंसकर कहा, ‘भला मेरे पास बन्दर कहां है?’ मनोरमा उसकी ठोड़ी पर हाथ रखकर कोमल कंठ से बड़े सुर-ताल से गाने लगी, ‘सिख अपना बन्दर दिखला दे, मेरा मन ललचाता है। तेरे इन सुन्दर चरणों में कैसी शोभा पाता है?’ ‘कौन-सा बन्दर?’ ‘वही जो तूने पाला था।’ ‘कब?’ ...Read More

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बड़ी दीदी - 6

लगभग पांच वर्ष बीत चुके हैं। राय महाशय अब इस संसार में नहीं हैं और ब्रजराज लाहिडी भी स्वर्ग चुके हैं। सुरेन्द्र की विमाता अपने पति की जी हुई सारी धन सम्पति लेकर अपने पिता के घर रहने लगी है। आजकाल सुरेन्द्रनाथ की लोग जितनी प्रशंसा करते है, उतनी ही बदनामी भी करते है। कुछ लोगों का कहना ही कि ऐसा उदार, सह्दय, दयालु और कोमल स्वभाव का जमींदार और कोई नहीं है, और कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा अत्याचारी, अन्यायी और उत्पीड़क जमींदार आज तक इस इलाके में कोई पैदा ही नहीं हुआ। ...Read More

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बड़ी दीदी - 7

कलकत्ता के मकान में अब ब्रज बाबूु के स्थान पर शिवचन्द्र मालिक है और माधवी के स्थान परक अब बहू धर की मालिक है। माधवी अब भी वहीं है। भाई शिवचन्द्र स्नेह और आदर करता है लेकिन अब माधवी का वहां रहने को जी नहीं चाहता। घर के दास, दासी, मुंशी, गुमाशते अब भी बड़ी दीदी कहते हैं, लेकिन सभी जानते है कि सन्दूक की चाबी अब किसी और के हाथ में चली गई है, लेकिन यह बात नहीं कि शिवचन्द्र की पत्नी किसी बात में माधवी का निरादर या अवज्ञा करती है, फिर भी वह ऐसा भाव प्रकट करने लगती है जिससे माधवी अच्छी तरह समझ ले कि अब बिंना इस नई स्त्री की अनुमति और परामर्श के उसे कोई काम नहीं करना चाहिए। ...Read More

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बड़ी दीदी - 8 - अंतिम भाग

कार्तिक के महीना समाप्ति पर है। थोड़ी-थोड़ी सर्दी पड़ने लगी है। सुरेन्द्र नाथ के ऊपर बाले कमरे में खिड़की रास्ते प्रातःकाल के सूर्य का जो प्रकाश बिखर रहा है, सुरेन्द्र दिखाई दे रहा है। खिड़की के पास ही ढेर सारे बही-खाते और कागज-पत्र लेकर टेबल पर एक ओर सुरेन्द्र नाथ बैठे हैं। अदायगी-वसूली, बाकी-बकाया, जमा खर्चे-बन्दोबस्त, मामले-मुकदमे, फाइल आदि सब एक-एक करके उलटते और देखते थे। इन सब बातों को देखना-सुनना उसके लिए एक तरह से आवश्यक भी हो गया है। न होने से समय भी नहीं कटता है। ...Read More