टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी

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ढोलक की थापों के साथ बन्ना घोड़ी गाने वाली का सुर भी तार-सप्तक नापने लगता था। बीच-बीच में कहीं सुर धीमा पड़ता तो नसीबन खाला की हाँक...अरे, सुबह कुछ खाया-पीया नहीं क्या लड़कियों...? बिल्कुल ही मरी आवाज़ निकल रही तुम सब की...। भला ऐसे भी गाया जाता है क्या...? अरे, थोड़ा जोश लाओ...जोश...। शादी का घर है भई, लगे भी तो कि जश्न का माहौल है...।

Full Novel

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टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 1

ढोलक की थापों के साथ बन्ना घोड़ी गाने वाली का सुर भी तार-सप्तक नापने लगता था। बीच-बीच में कहीं धीमा पड़ता तो नसीबन खाला की हाँक...अरे, सुबह कुछ खाया-पीया नहीं क्या लड़कियों...? बिल्कुल ही मरी आवाज़ निकल रही तुम सब की...। भला ऐसे भी गाया जाता है क्या...? अरे, थोड़ा जोश लाओ...जोश...। शादी का घर है भई, लगे भी तो कि जश्न का माहौल है...। ...Read More

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टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2

फ़ैज़ान मियाँ एकदम खामोश हो गए। आलिया आखिर कैसा वादा चाह रही थी...बिन जाने कैसे खुदा को हाज़िर-नाज़िर जान वादा कर लें...? आलिया उनकी ख़ामोशी की आवाज़ भी सुन सकती थी, ये शायद वो अब भी नहीं समझे थे। इस लिए उसने ही बात स्पष्ट की...परेशान न होइए...ऐसा कुछ नहीं माँग रही, जिसे आप दे न पाएँ...। आपको आपकी सारा से छीनने का कोई इरादा नहीं हमारा...छीन कर करेंगे भी क्या...? हम तो सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि आपकी और सारा की शादी में आपका सारा काम हम करें...। ...Read More