कभी यूँ भी तो हो...

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नर्स ने आकर मुझे झकझोरा तो सहसा मैं जैसे एक बहुत गहरे कुऍ से बाहर आई। दो पल को तो समझ ही नहीं आया, मैं हूँ कहाँ...फिर एक झटके से सब साफ़ हो गया...। मैं माँ के साथ थी...इंटेन्सिव केयर यूनिट के एक कमरे में...उनकी देखभाल के लिए...और मैं ही सो गई...कैसे...? मन ग्लानि से भर उठा, पर कुछ पलों को सारे भाव एक किनारे रख मैने प्रश्नवाचक निगाह से पहले नर्स की ओर देखा और फिर एक आशंका-भरी नज़रों से माँ की ओर...। साँस चल रही थी उनकी, सो मेरी साँस में भी साँस आई जैसे...। नर्स ने धीरे से फुसफुसा कर कहा, आपको बुला रही...आपने सुना ही नहीं...। पर सिर्फ़ दो मिनट...ज्यास्ती बात करने का नहीं...।

Full Novel

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कभी यूँ भी तो हो... - 1

नर्स ने आकर मुझे झकझोरा तो सहसा मैं जैसे एक बहुत गहरे कुऍ से बाहर आई। दो पल को समझ ही नहीं आया, मैं हूँ कहाँ...फिर एक झटके से सब साफ़ हो गया...। मैं माँ के साथ थी...इंटेन्सिव केयर यूनिट के एक कमरे में...उनकी देखभाल के लिए...और मैं ही सो गई...कैसे...? मन ग्लानि से भर उठा, पर कुछ पलों को सारे भाव एक किनारे रख मैने प्रश्नवाचक निगाह से पहले नर्स की ओर देखा और फिर एक आशंका-भरी नज़रों से माँ की ओर...। साँस चल रही थी उनकी, सो मेरी साँस में भी साँस आई जैसे...। नर्स ने धीरे से फुसफुसा कर कहा, आपको बुला रही...आपने सुना ही नहीं...। पर सिर्फ़ दो मिनट...ज्यास्ती बात करने का नहीं...। ...Read More

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कभी यूँ भी तो हो... - 2

दो-तीन दिनो तक मेरी हिम्मत ही नहीं हुई थी सागर को फोन करने की...फिर आखिरकार फोन कर ही दिया। फोन उठाया भी...बात भी की...। नाराज़ तो था, पर जाहिर नहीं कर रहा था...। न ही फोन काटने की जल्दी दिखाई...। ये तो मैं मानूँगी पलक...मेरा फोन सागर ने हमेशा उठाया है...चाहे कितना ही बिज़ी क्यों न रहा हो...पर मुझे इग्नोर उसने कभी नहीं महसूस होने दिया। पर उस समय मैं अच्छी तरह महसूस कर रही थी कि अगर सागर की रुचि कहीं ख़त्म हो गई थी तो रुचि का सागर भी कहीं खो गया था जैसे...। ...Read More