आखर चौरासी

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कोयला खदान की गहराई से ऊपर धरती की सतह तक आने में हरनाम सिंह बुरी तरह थक चुके थे। खाखी रंग के हाफ पैंट और शर्ट पर कई जगह कोयले की कलिख लगी थी, जो खदान की गहराई से उनके साथ ही चुपके से निकल आयी थी। हाजरी बाबू के ऑफिस की बगल में बने ओवरमैन के अपने कार्यालय कक्ष में पहुँचकर उन्होंने कमर से अपनी बेल्ट खोली। उस बेल्ट के साथ ही पीठ की ओर कमर पर बंधी, दो-ढाई किलो वज़न वाली, कैप-लैम्प की बैटरी भी उतार कर उन्होंने टेबल पर रख दी। हाथ में थमा डयूटी वाला मज़बूत डंडा वे पहले ही कोने में रख चुके थे। कोयला खदान की काली अँधेरी गहराइयों में बस यही दो चीज़ें सब के साथ होती हैं, उनकी रक्षक भी और उनकी मार्गदर्शक भी।

Full Novel

1

आखर चौरासी - 1

कोयला खदान की गहराई से ऊपर धरती की सतह तक आने में हरनाम सिंह बुरी तरह थक चुके थे। रंग के हाफ पैंट और शर्ट पर कई जगह कोयले की कलिख लगी थी, जो खदान की गहराई से उनके साथ ही चुपके से निकल आयी थी। हाजरी बाबू के ऑफिस की बगल में बने ओवरमैन के अपने कार्यालय कक्ष में पहुँचकर उन्होंने कमर से अपनी बेल्ट खोली। उस बेल्ट के साथ ही पीठ की ओर कमर पर बंधी, दो-ढाई किलो वज़न वाली, कैप-लैम्प की बैटरी भी उतार कर उन्होंने टेबल पर रख दी। हाथ में थमा डयूटी वाला मज़बूत डंडा वे पहले ही कोने में रख चुके थे। कोयला खदान की काली अँधेरी गहराइयों में बस यही दो चीज़ें सब के साथ होती हैं, उनकी रक्षक भी और उनकी मार्गदर्शक भी। ...Read More

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आखर चौरासी - 2

जगदीश, राजकिशोर और विक्रम तीनों हॉस्टल मेस के बरामदे में खम्भों के पीछे खड़े स्टीवेंशन ब्लॉक पर नजर रखे व गुरनाम का कमरा था। बीच-बीच में जगदीश अपनी जगह से झाँकते हुए सामने देख कर कमरा नम्बर-91 की हलचल उन दोनों को धीमी आवाज में बताता जा रहा था। मगर राजकिशोर अपनी उत्सुकता को न दबा पाने के कारण स्वयं देख लेने के उद्देश्य से बार-बार खम्भे की आड़ से बाहर निकल आता। पोलियोग्रस्त दायें पैर के कारण इस प्रयास में उसे अपने पूरे शरीर को ही झटके से आगे-पीछे करना पड़ता। उसकी इसी उछल-कूद के कारण जगदीश बुरी तरह झल्ला चुका था। ...Read More

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आखर चौरासी - 3

हरनाम सिंह दुकान की बगल में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उनका बड़ा लड़का सतनाम दुकान के अन्दर ग्राहकों राशन दे रहा था। यह स्थिति उनकी दूसरा पल्ला वाली रात ड्यूटी में ही नहीं बन पाती थी, जब उन्हें शाम चार बजे से रात बारह बजे तक की शिफ्ट में काम पर जाना होता था। शेष दोनों पल्लों अर्थात् पहला पल्ला, सुबह आठ से शाम चार बजे और तीसरा पल्ला, रात बारह बजे से सुबह आठ बजे तक में वे बिना नागा शाम की चाय पी कर घर से टहलते हुए पाँच-सात मिनट में सतनाम की दुकान की राशन दुकान में जा बैठते। दुकान का नौकर उनकी कुर्सी निकाल कर अखबार दे जाता। शाम ढलने तक वे वहीं अखबार पढ़ते। फिर गुरुद्वारा जा कर मत्था टेकते, रहिरास का पाठ सुनते और रात होते-होते घर लौट आते। ...Read More

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आखर चौरासी - 4

गुरुद्वारे में प्रवेश करते हुये उनके कानों में गुरुबाणी की आवाज़ आई, ग्रंथी ‘रहिरास’ का पाठ आरंभ कर चुका वहाँ बैठी संगत हाथ जोड़े बड़ी श्रद्धा से गुरबाणी श्रवण कर रही थी। गुरुद्वारा परिसर में सबसे पहले हरनाम सिंह ने अपने जूते उतार कर ‘जोड़े घर’ (जूते रखने की जगह) में रखे, फिर हाथ–पैर-धो कर गुरुद्वारे के मुख्य हॉल के अंदर आए। गुरु की गुल्लक में पैसे डाल कर उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब के सामने मत्था टेका और संगत में बैठ गये। गुरुद्वारे में अलौकिक शांति का अहसास था। ...Read More

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आखर चौरासी - 5

‘‘आज की ताजा खबर .... आज की ताजा खबर, हमारे मेन-हॉस्टल का रैगिंग किंग घोषित...... आज की ताजा खबर, मेन-हॉस्टल रैगिंग किंग घोषित......’’ देवेश ने नाटकीय ढंग से अपना हाथ लहराते हुए कमरे में प्रवेश किया मानों उसके हाथ में सचमुच का अखबार हो। रोज की तरह उस दिन भी वे चारो दोस्त शाम की चाय पी कर हुरहुरु चौक से लौटे थे। वहाँ से लौटने के बाद गुरनाम, संगीत पांडे और प्रकाश तो सीधे कमरे में लौट आए थे, मगर देवेश कॉमन रुम की ओर चला गया था। देवेश यूनिवर्सिटी का टेबल-टेनिस चैम्पियन था, हर शाम उसका एक-डेढ़ घण्टा कॉमन रुम में टेबल-टेनिस खेलते बीतता था। लगता था रैगिंग किंग की चर्चा वह वहीं कॉमन रुम से सुन कर आया था। ...Read More

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आखर चौरासी - 7

उस सुबह भी सूरज आम दिनों-सा निकला था। चिड़ियों ने हर रोज की भाँति ही चहचहाते हुए अपने दिन शुरुआत की थी। रोजाना की तरह ही लोग अपने-अपने घरों से तैयार होकर सड़कों पर आये थे। सब कुछ एक सामान्य दिन और सामान्य शुरुआत की तरह ही था। मगर किसे पता था कि तब तक एक अभूतपूर्व दुर्भाग्य सामान्य से दिखने वाले उस आम दिन को इतिहास के भीषण काले दिन में बदलने को निकल चुका है। अगर पहले से पता चल जाता तो क्या सारी मानवता मिल कर भी काल-चक्र की उस गति को ना मोड़ पाती ? ...Read More

7

आखर चौरासी - 6

बड़े भाई सतनाम की शादी के सिलसिले में गुरनाम अपने कॉलेज और हॉस्टल से छुट्टी लेकर पिछले पखवारे भर घर आया हुआ था। पंजाबी शादी वाले घर का तो माहौल ही निराला होता है। हर सदस्य और घर आये मेहमान अपने-अपने ढंग से खुश और मस्त नज़र आते हैं। पूरे घर पर ही एक उत्साह-सा छाया रहता है। लड़की वाला घर हो तो ‘सुहाग’ और लड़के वाला घर हो तो ‘घोड़ियाँ’ गाती महिलाओं और लड़कियों के उत्साहित स्वरों से सारा वातावरण संगीतमय बना रहता है। सप्ताह भर पहले ही उत्साह और संगीत भरे माहौल मे सारा कुछ बड़ी अच्छी तरह संपन्न हुआ। नई दुल्हन घर आ गयी, दूर–पास के मेहमान भी समयानुसार अपने – अपने घरों को लौट गए थे। ...Read More

8

आखर चौरासी - 8

जिस समय जगदीश से उलझते गुरनाम को खींचते हुए प्रकाश कॉमन रुम से बाहर निकला था, लगभग उसी समय ने कॉमन रुम में प्रवेश किया था। उसने दूर से ही जगदीश को गुरनाम से बातें करते देख लिया था। ‘‘गुरनाम से क्या बातें हो रही थीं ?’’ राजकिशोर ने तेजी से उचक-उचक कर चलते हुए उसके पास आ कर पूछा। ‘‘कोई खास बात नहीं थी ।’’ जगदीश ने एक नज़र उस पर डाली और पुनः अपनी नज़र टी.वी. स्क्रीन पर टिकाते हुए जवाब दिया। ...Read More

9

आखर चौरासी - 9

हरनाम सिंह जब डॉक्टर जगीर सिंह के दवाखाने के सामने से गुजरे तो उनकी नज़रें स्वतः ही खिड़की की मुड़ गईं। बल्ब की पीली रोशनी में जगीर सिंह अपने टेबल पर झुके कुछ पढ़ रहे थे। दवाखाने में कोई मरीज नहीं था। एक पल को हरनाम सिंह ने कुछ सोचा फिर सीढ़ियाँ चढ़ कर दवाखाने में दाखिल हो गए। ‘‘सतश्रीअकाल डॉक्टर सा’ब !’’ जगीर सिंह का ध्यान भंग हुआ, उन्होंने सर उठाया। हरनाम सिंह को देख कर एक मुस्कान उनके चेहरे पर खिल आई। ‘‘सतश्रीअकाल हरनाम भाई जी, आइए-आइए कैसे हैं। तबीयत तो ठीक है ?’’ जगीर सिंह ने उनका स्वागत किया। ...Read More

10

आखर चौरासी - 10

घर पर हरनाम सिंह की पत्नी काफी चिन्तित थी। जैसे ही वे घर में घुसे, वह रसोई से निकल उनके पास आ गई। ‘‘आज तो आपको जल्दी घर आ जाना चाहिए था। हम सबको बड़ी चिन्ता हो रही थी। मैं तो सतनाम से कह रही थी कि आपको देख आए।’’ सुरजीत कौर चिन्तित स्वर में बोली। ‘‘अरे भलिये लोके, फिकर की कोई बात नहीं थी। मैं ज़रा अपने जगीर सिंह के पास बैठ गया था। आज उनसे बहुत सारी बातें हुईं। बस इसी में ज़रा देर हो गई।’’ हरनाम सिंह ने अपनी पगड़ी उतार कर खूँटी पर टाँगते हुए कहा। ...Read More

11

आखर चौरासी - 11

सन 1469 ई., कार्तिक पूर्णिमा को लाहौर से 15 कोस दूर तलवण्डी में जन्मा वह मुस्काता बालक उम्र के बड़ा हो रहा था। लोग-बाग जहाँ उसके विचित्र कौतुकों को आश्चर्य से देखते, उसके सार्थक तर्कों से चमत्कृत होते। वहीं उसके दुनियादार पिता बड़े परेशान रहते। पिता चाहते थे कि वह घर-बार की चिन्ता करे, परन्तु उसने तो सारे संसार की चिन्ता करनी थी। समाज में चारों ओर अज्ञानता का अंधकार छाया हुआ था। उस समय विभिन्न धर्म अपने-अपने तरीके से स्वर्ग की राह बतला रहे थे। लेकिन सच्ची रोशनी किसी ओर से नज़र नहीं आ रही थी। ...Read More

12

आखर चौरासी - 12

झटके से जगीर सिंह की आँख खुल गई। उसका दिल बुरी तरह धड़क रहा था। सारा बदन पसीने से था। काफी देर तक वे ‘वाहे गुरु... वाहे गुरु’’ का जाप करते रहे। रात आधी बीत चुकी थी। बिस्तर पर बेचैन करवटें बदलते-बदलते न जानें उन्हें कब नींद आ गई। लेकिन इस बार भी वे ज्यादा देर तक नहीं सो सके। आँख लगते ही एक नया दृष्य उनकें अवचेतन पर छाता चल गया था.....। नई दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास में एक ओर को जाती हुई प्रधानमंत्री के सामने उनके ही दो सिक्ख अंगरक्षक तन कर खड़े हो गये। उन दोनों के हाथों में थमे हथियार भी तन चुके थे। पलक झपकने से भी पूर्व वे हथियार आग उगलने लगे। पल भर में प्रधानमंत्री का खून से लथपथ, गोलियों से छलनी शरीर नीचे गिरा पड़ा था। चारों तरफ खून ही खून नज़र आ रहा था। ...Read More

13

आखर चौरासी - 13

हॉस्टल में लड़कों के पढ़ने का समय अलग-अलग था। कुछ लड़के देर रात तक जगते, तो कुछ भोर में कर पढ़ते। गुरनाम देर रात तक जग कर पढ़ाई करने वालों में था, इसलिए अगली सुबह वह देर तक सोता रहता। परीक्षाएं पास होने के कारण, जब से उन्हें अलग-अलग एक बिस्तर वाले कमरे मिले थे, सवेरे उनके एक साथ नाश्ता करने जाने का क्रम कुछ टूट-सा गया था। हॉस्टल की मेस में केवल दो समय का ही खाना दिया जाता था। इसलिए नाश्ता करने उन्हें बाहर हुरहुरु चौक तक जाना पड़ता। ...Read More

14

आखर चौरासी - 14

रामप्रसाद ने गुरनाम को आते देखा तो बुरी तरह चौंका, मगर तभी साथ आते जगदीश को देख कर वह आश्वस्त हुआ। जगदीश को वह अच्छी तरह जानता था। अधेड़ उम्र रामप्रसाद के सर के सारे बाल भले ही सफेद हो चुके थे, मगर शरीर से अभी भी वह बड़ा फुर्तीला था। उसने मुस्करा कर दोनों का स्वागत किया। ‘‘प्रसाद जी चाय पिलाइए।’’ जगदीश होटल के अंदर जाने की जगह वहीं भट्ठी के पास खड़ा हो गया। गुरनाम भी होटल के भीतर न जा कर वहीं आ गया। चाय पीते जगदीश ने चौक पर चारों ओर नजरें दौड़ाईं। ...Read More

15

आखर चौरासी - 15

जलती दुकानों से उठता टुकड़ा-टुकड़ा धुंआ इकट्ठा हो कर पूरे आकाश को काला कर रहा था। उस कालिमा को हिरनी सी घबराई सतनाम की पत्नी ने उसे झिंझोड़ कर उठाया। सतनाम ने सूख गये बालों को लपेट कर जूड़ा बांधा और सर पर जल्दी-जल्दी पटका लपेटने लगा। छत के दूसरे कोने पर खड़े हरनाम सिंह और उनकी पत्नी भी बाज़ार की तरफ देख रहे थे। उन्हीं के पास सतनाम की बहन मनजीत कौर अपनी गोद में पांच वर्षीय बेटी डिम्पल को उठाये खड़ी थी। सतनाम के जीजाजी तो उसकी शादी के तुरंत बाद ही वापस लौट गये थे। मगर मनजीत कौर को हरनाम सिंह ने कुछ और दिनों के लिए रोक लिया था। सतनाम भी जा कर उन सब की बगल में खड़ा हो गया। ...Read More

16

आखर चौरासी - 17

अवतार सिंह जिस रफ्तार से कार ड्राइव कर रहे थे, उसमें वे सब सुबह छः बजे तक निश्चय ही पहुँच जाते। मगर उनकी कार अभी ‘नया मोड़’ ही पहुँची थी कि पिछला पहिया पंक्चर हो गया। वहाँ से उनका घर तक का मात्र घंटे भर का सफर और बाकी था। अवतार सिंह ने नियंत्रण बनाये रखा और सावधानी से कार सड़क के बांयी ओर रोक दी। बगल में बैठा करमू बीच-बीच में झपकी ले लेता था, कार रुकते ही सजग हो कर उठ बैठा। अवतार सिंह ने अपनी तरफ का दरवाजा खोल कर उतरते हुए बेटे को संबोधित किया, ‘‘लगता है पिछला पहिया पंक्चर हो गया। करमू उठ जल्दी से जैक निकालकर पहिया बदलो।’’ ...Read More

17

आखर चौरासी - 18

ऐसा ही एक दृष्य विक्की ने दूसरे माले पर स्थित अपने फूफा के फ्लैट की खिड़की से देखा था। पुर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उस दिन उसे बी.आई.टी. सिन्दरी पहुँच जाना था। मगर उसे फूफा जी ने रोक लिया था। विक्की ने जब अपनी आँखों से सरेआम चौराहे पर सिक्खों को जलाये जाते देखा तो बेचैन हो गया। तुरन्त ही उसका ध्यान गुरनाम और उसके परिवार वालों की ओर गया। उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की, ‘हे ईश्वर उनकी रक्षा करना।’ फिर वह अपने फूफा के पास जा कर बोला, ‘‘अंकल, मैं वापस घर जा रहा हूँ ।’’ उसके फूफा चौंके , ‘‘क्या, तुम घर जाओगे ? मगर तुम्हें तो अपने कॉलेज जाना है न !’’ ...Read More

18

आखर चौरासी - 19

फैक्ट्री कैंटीन से जिन्दा बच निकले उन 28 सिक्खों जितने खुशकिस्मत, वे तीन सरदार फैक्ट्री कर्मचारी नहीं थे, जो नवंबर की उस काली सुबह अपनी ड्यूटी पर पहुँचे थे। वे तीनों तो इस भरोसे फैक्ट्री आ गये थे कि बाहर की अपेक्षा फैक्ट्री ही उनके लिए सबसे महफूज जगह होगी। उन्हें कहाँ पता था कि उनका दुर्भाग्य फैक्ट्री के गेट पर ही उन तीनों की प्रतीक्षा कर रहा है। वे तीनों जब भीतर जाने के लिए गेट पर पहुँचे, ठीक उसी समय पिछली रात को भेड़ियों-सी आँखें चमकाने वाले लोग, भीतर से बाहर निकल रहे थे। बीती रात फौज आ जाने के कारण अपना शिकार खो चुके उन लोगों की आँखों में एक साथ तीन सरदार देख, फिर से खूनी चमक कौंध गई। आनन-फानन ही सब कुछ तय हो गया था। ...Read More

19

आखर चौरासी - 20

हरनाम सिंह का पूरा घर अँधेरे में डूबा हुआ था। घर के सभी खिड़की दरवाजे बंद थे। जाड़ों की यूँ भी जल्द खामोश हो जाती हैं। बाहर ठण्ढी हवा साँय-साँय चल रही थी। भीतर हरनाम सिंह, उनकी पत्नी, बेटा-बहू, बेटी तथा पाँच वर्षीय नातिन डिम्पल चुपचाप बैठे थे। केवल उसी कमरे की बत्ती जल रही थी। डिम्पल के लिए तो उन सब चीजों का कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा था। वह शाम से ही बाहर जा कर खेलने को मचल रही थी। पिछले दिनों जब से वह अपने मामा की शादी में नाना-नानी के घर आयी थी, उसकी हर शाम लॉन में आस-पड़ोस के बच्चों के साथ खेलती रही थी। हरनाम सिंह के घर का लॉन काफी खुला था। ...Read More

20

आखर चौरासी - 21

‘‘बाहर बड़ी देर लगा दी ?’’ भीतर घुसते ही उनकी पत्नी ने पूछा। ‘‘हाँ, वो सामने वाले अम्बिका बाबू बातें लग गए थे। नेताजी के बारे में कह रहे थे कि स्साले पहले लूटते हैं फिर सांत्वना देने आते हैं...।’’ हरनाम सिंह की बात को बीच में ही काट कर सतनाम बोला, ‘‘...तो पांण्डे अंकल, क्या गलत कहा रहे थे ? बिल्कुल ठीक बोल रहे थे। नेताजी के नौकर सुखना को अपनी दुकान से भरे बोरे निकाल कर सायकिल पर ढोते तो मैंने स्वयं छत पर से देखा था।’’ वह गुस्से से भरा बैठा था। ...Read More

21

आखर चौरासी - 22

हरनाम सिंह के घर से निकल कर, नेताजी अपने दल-बल सहित घर लौट कर फिर से अपना मजमा सजा बैठ गए। रेडियो पर उन दिनों सर्वाधिक विश्वसनीयता का दर्जा बी.बी.सी. के समाचारों को प्राप्त था। उनका समय हो चुका था। रेडियो चालू करते ही समाचार आने लगे। सब लोग खामोश हो गये। रेडियो पर जब बताया गया कि दिल्ली और कानपुर के साथ-साथ बिहार के शहर बोकारो में भी भयानक दंगे हुए हैं, निर्दयता से सिक्खों का कत्लेआम किया गया है। तब नेताजी ने चहकते हुए कहा, ‘‘अरे देखिए, हमारे राज्य का नाम भी बी.बी.सी. पर आ गया। भई वाह, बोकारो ने अपना नाम बी.बी.सी. तक पहुंचा ही दिया। लगता है वहाँ भी काफी मार-काट हुई। बाकी जगहों पर तो लोग केवल लूट-पाट से ही शान्त हो गए।’’ ...Read More

22

आखर चौरासी - 23

मगर गुरनाम यह देख कर चौंकता है कि उसके मुँह से शेर की गुर्राहट के सिवा और कोई आवाज निकली। उसने दोबारा प्रयास किया लेकिन परिणाम वही था। वह जितनी ही ज़ोर से बोलने की चेष्टा करता उसकी गुर्राहट उतनी ही तेज होती जाती। उसे उस तरह गुर्राता देख राजकिशोर ने सबको ललकारा, ‘‘देखो....देखो, एक तो नरभक्षी है, दूसरे हम लोगों पर गुर्रा रहा है। मारो स्साले को... मारो!’’ ...Read More

23

आखर चौरासी - 24

परस्पर विरोधी विचारों ने उसका चित्त बुरी तरह अस्थिर कर दिया था। वह एक बात सोचता तो दूसरी बात विचारों को मथने लगती....। फिर उसने निर्णय करते हुए स्वयं से कहा, ‘...खैर जो होगा देखा जाएगा। अभी तो वह जगदीश के कथनानुसार ही चलेगा। अगर वह किसी षड़यंत्र में ही फंस चुका है और उसका अंत इसी प्रकार होना तय है तो यही सही। अभी ऐसे ही चलने दो, उसने सोचा। जब जैसी स्थिति आयेगी, तब उसका वैसे ही सामना किया जाएगा।’ निर्णय ले लेने के कारण गुरनाम दुविधा की स्थिति से निकल आया और उसने ज़रा शांति का अनुभव किया। ...Read More

24

आखर चौरासी - 25

उस समय कविता कॉलेज जाने को तैयार हो रही थी जब माँ ने उससे कहा कि वह कॉलेज न तो अच्छा है। सारे शहर में गड़बड़ हो रही है। वैसी स्थिति में उसका जाना ठीक नहीं होगा। जो पहला बुरा ख्याल कविता के मन में आया, वह गुरनाम के ही संबंध में था और तभी से कविता परकटी चिड़िया की तरह छटपटा रही थी। वह जितना ही सोचती गुरनाम को लेकर उसकी फिक्र बढ़ती ही जा रही थी। ...वह ठीक तो होगा ? ...वह क्या कर रहा होगा ? ...उसे कोई खतरा तो नहीं ? ...Read More

25

आखर चौरासी - 26

हॉस्टल में राजकिशोर ने जब गुरनाम के कमरे पर लगा ताला देखा तो बड़े ज़ोर से चौंका। उसके अनुमान अनुसार उस समय तो गुरनाम को अपने कमरे में ही होना चाहिए था। कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद वह मेस की ओर चल दिया, यह सोच कर कि गुरनाम शायद वहाँ हो। मगर उसे वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। गुरनाम को वहाँ नहीं होना था और न ही वह वहाँ था। तभी उसे टॉयलेट का ख्याल आया। लेकिन वहाँ भी झांक लेने के बाद उसे निराशा ही हाथ लगी। सब तरफ देख लेने के बाद वह एक बार फिर से गुरनाम के कमरे की ओर बढ़ा गया। मगर वहाँ पूर्ववत् लटक रहा ताला उसे एक बार फिर से स्वयं को मुँह चिढ़ता-सा महसूस हुआ। ...Read More

26

आखर चौरासी - 27

नवम्बर की उस ठंडी रात के अंधेरे में पेंसिल टॉर्च की रोशनी में हॉस्टल के पिछवाड़े की तरफ फूलों क्यारियों से होकर अपना रास्ता बनाता जगदीश गुरनाम की खिड़की तक जा पहुंचा। उसने आहिस्ते-से खिड़की पर दस्तक दी। भीतर से गुरनाम ने बड़ी सावधानी से ज़रा-सी खिड़की खोली। ‘‘लाओ पॉलिथिन मुझे पकड़ाओ ।’’ जगदीश फुसफुसाया। गुरनाम ने पॉलिथिन को पुराने अखबार में लपेट कर पैकेट-सा बना दिया था। वह पैकेट जगदीश को थमाते हुए उसकी हिचकी निकल गई। आँसुओ से उसकी आँखें डबडबायी हुई थीं। ...Read More

27

आखर चौरासी - 28

अभी सतनाम बाहर वाले गेट तक ही पहुँचा था कि सामने से ग्वाला आता नज़र आया। सतनाम वहीं रुक ग्वाले ने उसे डोल पकड़े देखा तो सब समझ गया। वैसे भी आज उसे काफी देर हो गयी थी। ‘‘क्या बताएं सतनाम बाबू, आज भैंस ही नहीं लग रही (दूध दे) थी। दूध दुहने में बहुत कुबेर (देर) हुई गवा।’’ ग्वाले ने स्पष्टीकरण दिया। ‘‘अच्छा, अच्छा आ जाओ। मैंने सोचा शायद तुम ना आओ, इसीलिए स्वयं तुम्हारे पास जा रहा था।’’ सतनाम ने बताया। ...Read More

28

आखर चौरासी - 29

वह लगभग दोपहर का समय रहा होगा जब महादेव अपने रात वाले दोस्त के साथ उनके घर आया। ‘‘अंकल जी, से किसी चीज की आवश्यकता हो तो बता दीजिए। मैं ला दूँगा।’’ महादेव ने बैठते हुए कहा। उसकी आवाज़ सुन कर अन्दर से आ कर सतनाम और सुरजीत कौर भी उनके पास बैठ गए। डिम्पल अभी भी अपनी नानी की गोद में ही थी। हरनाम सिंह बोले, ‘‘नहीं बेटा, अभी हमें किसी चीज की जरुरत नहीं है।’’ ...Read More

29

आखर चौरासी - 30

अगली सुबह लगभग आठ बजे का समय रहा होगा, जब महादेव गुरनाम के कमरे पर पहुँचा। उसे हॉस्टल में का कमरा ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई थी। सतनाम ने उसे घर से चलते वक्त गुरनाम का नया कमरा नम्बर बताने के साथ-साथ कॉलेज के ठीक पीछे स्थित हॉस्टल के ‘किंग्स ब्लॉक’ का भूगोल भी अच्छी तरह से समझा दिया था। कई बार खटखटाने और आवाज़ें देने के बाद भी जब गुरनाम के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो वह चिन्तित हो गया। तभी बगल वाले कमरे का दरवाजा खोल कर एक लड़का बाहर आया। उसकी आँखों पर चढ़ी एनक और चेहरे के गम्भीर भाव बतला रहे थे कि वह पढ़ते-पढ़ते उठा है। ...Read More

30

आखर चौरासी - 31

गुरनाम के तर्क का महादेव को कोई जवाब न सूझा। लेकिन यह भी सच था कि गुरनाम के केश जरुरी थे। अगर चलते वक्त सतनाम ने उसे कुछ भी बताने से मना न किया होता तो सम्भवतः गुरनाम को वह सारी बातें बता देता कि सतनाम की दुकान और साथ में बने घर पर काफी लूट-पाट हुई है। मगर सतनाम ने उसे सख्त हिदायत दी थी, गुरनाम के इम्तिहान सर पर हैं। वे सब बातें सुन कर वह निश्चय ही परेशान हो जाएगा और फिर सम्भवतः उसके इम्तिहान खराब हो जाएँ। ...Read More

31

आखर चौरासी - 32

जिस समय विक्की अपना सफर पूरा कर बस से उतरा, दोपहर ढल चुकी थी। वैसे भी ठंढ के मौसम दिन छोटे होते हैं। शाम गर्मियों कि अपेक्षा जल्द उतर आती है। बस स्टैंड से पहले अपने घर जाने के बजाय वह सीधे गुरनाम के घर की ओर बढ़ गया। रास्ते में जब उसने सतनाम भैया की जली दुकान देखी तो ठिठक कर रुक गया। दुकान की दीवारें और छत्त पूरी तरह जल कर काली हो चुकी थीं। दुकान के सामने वाला छज्जा तोड़ डाला गया था। दरवाजे खिड़कियाँ पूरी तरह जल कर ख़ाक हो गए थे। दरवाजे खिड़कियाँ नहीं होने के कारण सड़क से ही भीतर के खाली-खाली कमरे साफ नजर आ रहे थे। ...Read More

32

आखर चौरासी - 33

गुरनाम उस दिन जब क्लास करने कॉलेज पहुँचा, उसे कोई भी पहचान नहीं सका। ठीक वैसे ही जैसे उस सुबह जब वह जगदीश के साथ रामप्रसाद के होटल में चाय पी रहा था, तब मनोज भी उसे नहीं पहचान पाया था। जगदीश के दोस्त मनोज से गुरनाम पहले भी कई बार मिल चुका था। ‘‘कहो जगदीश क्या हाल-चाल है ?’’ उन्हें होटल में घुसते देख, पहले से वहां चाय पी रहे मनोज ने टोका था। ‘हलो-हाय’ के आदान-प्रदान के बाद मनोज ने हंसते हुए पूछ लिया था, ‘‘इस मार-काट में वो तुम्हारे हॉस्टल वाले सरदार का क्या हाल-चाल है ? बचा या गया ?’’ ...Read More

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आखर चौरासी - 34

गुरनाम और विक्की जब भी घर पर होते हैं, उनकी शामें बस स्टैण्ड पर बने यात्री पड़ाव वाली सीमेंट बेंच पर शुरु होती हैं। उस शाम भी वे दोनों वहीं बैठे बातें कर रहे थे। उनकी बातें विक्की के इंजीनियरिंग कॉलेज और नये दोस्तों के बारे में थीं। विक्की बड़े उत्साह से बताए जा रहा था, ‘‘हमारे कॉलेज में नये छात्रों को मुर्गा और छात्राओं को मुर्गी कहा जाता है। जब तक मुर्गे-मुर्गियों के स्वागत में होने वाला कॉलेज का समारोह यानि कि ‘फ्रेशर्स नाईट’ नहीं हो जाता, वे सम्बोधन तब तक लागू रहते हैं। ’’ ...Read More

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आखर चौरासी - 35

गुरनाम और विक्की जब भी घर पर होते हैं, उनकी शामें बस स्टैण्ड पर बने यात्री पड़ाव वाली सीमेंट बेंच पर शुरु होती हैं। उस शाम भी वे दोनों वहीं बैठे बातें कर रहे थे। उनकी बातें विक्की के इंजीनियरिंग कॉलेज और नये दोस्तों के बारे में थीं। विक्की बड़े उत्साह से बताए जा रहा था, ‘‘हमारे कॉलेज में नये छात्रों को मुर्गा और छात्राओं को मुर्गी कहा जाता है। जब तक मुर्गे-मुर्गियों के स्वागत में होने वाला कॉलेज का समारोह यानि कि ‘फ्रेशर्स नाईट’ नहीं हो जाता, वे सम्बोधन तब तक लागू रहते हैं। ’’ ...Read More

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आखर चौरासी - 36

विक्की के चले जाने से उस शाम गुरनाम अकेला था। वह अपने घर के गेट पर खड़ा यूँ ही पर आने-जाने वालों को देख रहा था। तभी उसने देखा बाजार से लौट रहे अम्बिका पाण्डे के हाथ में सब्जी से भरा थैला था। न जाने क्यों उन्हें देख कर गुरनाम को खुशी सी अनुभव हुई। गेट खोल कर उसने उनका अभिवादन किया और बोला, ‘‘लाइये अंकल, मैं पहुँचा देता हूँ।’’ ‘‘अरे, अरे कोई बात नहीं। अब तो घर आ गया।’’ अम्बिका पाण्डे ने मुस्करा कर कहा। परन्तु फिर भी जिद करके गुरनाम ने उनके हाथों से थैला ले लिया। आगे-आगे अम्बिका पाण्डे और पीछे-पीछे थैला पकड़े गुरनाम ने उनके घर में प्रवेश किया। ...Read More

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आखर चौरासी - 38

इम्तिहान भले ही किसी भी स्तर का हो, उसका असर विद्यार्थियों पर किसी भूत सा ही होता है। यह सच है कि उसका असर वहाँ भी एका-एक नहीं धीरे-धीरे पूरे कैम्पस पर उतरता था। सबसे पहले कॉलेज कैंटीन में ऊंची आवाजों वाले जमावड़े मधुमक्खियों की भिनभिनाहट वाले झुंडों में कायांतरित हो जाते हैं, जिनमे कुछ ऐसे वाक्य सुनायी देते हैं – “तुम्हारे पास नोट्स हैं ?” “कुछ हैं सब नहीं ! मुझे भी मुश्किल होगी!” “चलो फिर भी तुम्हारी कुछ तैयारी तो है ! मेरा तो बुरा हाल है ...” “कहीं से पक्का गेस पेपर मिल जाये तो बात बने..... “अब तो गेस पेपर का ही सहारा है .... “हे ईश्वर अब तुम्‍हीं बचाना ....” ...Read More

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आखर चौरासी - 39 - Last Part

हरनाम सिंह ने पत्र खोल कर पढ़ना शुरु किया। आदरणीय पापा जी, बी’जी पैरीं पैना ! भला कौन जानता था कि कभी इस तरह भी आपको पत्र लिखना पड़ेगा ? ...और इस तरह आप लोगों को परेशानियों में छोड़, मुझे यूँ चल देना होगा या यूँ कहें कि आप लोगों की कुछ और परेशानियों की वजह मुझे बनना पड़ेगा। ...Read More

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आखर चौरासी - 16

आगे को गयी उस भीड़ का जिधर को मुँह था, उधर थोड़ी दूर पर ही वहाँ का छोटा-सा गुरुद्वारा था। वही गुरुद्वारा जहाँ हरनाम सिंह बिना नागा रोज ‘रहिरास’ का पाठ सुनने आते थे। भीड़ वहाँ पहुँच कर रुक गयी। गुरुद्वारे में उस वक्त केवल ग्रंथी था, जिसने कुछ देर पहले छत पर खड़े-खड़े जगीर सिंह के दवाखाने पर घट रही घटनाओं को अपनी आपनी भयभीत आँखों से देखा था। ग्रंथी ने तत्काल नीचे उतर कर सबसे पहला काम गुरुद्वारे का मुख्य द्वार बंद करने का किया था। फिर वह भीतर ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के सामने मत्था टेक कर बैठ गया। उसका दिल घबरा रहा था। अकेला होने के कारण भी वह काफी भयभीत था। उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं। उसके हिलते होंठ ‘वाहे गुरु, वाहे गुरु’ का जाप करने लगे। अभी-अभी देखा जगीर सिंह का हश्र चलचित्र की भाँति बार-बार उसके मस्तिष्क में उभर आता था। ...Read More

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आखर चौरासी - 37

सतनाम बताए जा रहा था, ‘‘वैसे हालात में आस-पडोस के बाकी लोग तो तमाशबीन बने चुपचाप रहे, लेकिन पड़ोस रहने वाला वह गबरु नौजवान लड़का अपने घर से निकल आया। उसके हाथ में लोहे का एक रॉड था। बताने वाले तो कहते हैं कि अन्याय का विरोध करने की, वही उस नौजवान की भूल थी। उसे भी और लोगों की तरह ही चुपचाप अपने घर पर बैठे रहना चाहिए था या फिर लूटने वालों के साथ मिल कर शोक का जश्न मानना चाहिए था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है....! ...Read More