पीताम्बरी

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घर में उत्सव जैसा माहौल था सभी के चेहरों पर उत्साह झलक रहा था बड़की चाची. रामपुर वाली चाची, पचरूखिया वाली चाची, सभी दोगहा में जा कर द्वार पर बैठे युवक को झाँक-झाँक देख कर निहाल हो रहीं थीं “अरे ! पीतो के त भाग जाग गईल, एतना नीक लईका कहाँ मीलित ” सभी की जुबान पर यही वाक्य था

Full Novel

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पीताम्बरी - 1

घर में उत्सव जैसा माहौल था सभी के चेहरों पर उत्साह झलक रहा था बड़की रामपुर वाली चाची, पचरूखिया वाली चाची, सभी दोगहा में जा कर द्वार पर बैठे युवक को झाँक-झाँक देख कर निहाल हो रहीं थीं “अरे ! पीतो के त भाग जाग गईल, एतना नीक लईका कहाँ मीलित ” सभी की जुबान पर यही वाक्य था ...Read More

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पीताम्बरी - 2

जेठ की तपती दुपहरी की गर्म लू शरीर को झुलसा रही थी, सूरज अपने यौवन के चरम पर आग वसुधा को दहका रहा था, सड़क पर इक्का-दुक्का लोग ही आते जाते दिख रहे थे बाकी कभी-कभी जीप फर्राटे भरती हुयी निकल जाती थी ऐसे में गमछा सिर पर बाँधे रामनारायण ओझा सायकिल से चले जा रहे थे पसीने से तर–ब-तर, उन्हें लग रहा था कि ये रिश्ता गया हाथ से ! बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे मन में, वह किसी भी कीमत पर ये रिश्ता चाहते थे ...Read More

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पीताम्बरी - 3

उधर डोली आशुतोष के दरवाजे पहुँचते ही आशुतोष की माँ और बहनें जल्दी से बहू उतारने आयीं, डोली में बेहोश थी किसी तरह उसके मुँह पर पानी के छींटे मार कर परछावन कर उसे भीतर ला कर लिटा दिया गया था शादी की खुशी क्या होती है कुछ भी महसूस ना कर पायी पीतो, बस यंत्रवत ससुराल के सभी रस्म निभाती गई ...Read More

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पीताम्बरी - 4

अचानक हँसने की आवाज से उसकी आँख खुल गई, वह चौंक कर सुनने लगी पुकारा उसने रूपा पर रेडिओ की आवाज और उनके हँसने की आवाज में उसकी आवाज कहीं खो गई वह चुप हो फिर से लेट गई, अपनी बेबसी पर उसकी आँखें से कुछ बूँदे छलक गईं थोड़ी देर बाद आशुतोष कमरे में आए और बैठ कर उसका माथा सहलाते हुए बोले, ...Read More

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पीताम्बरी - 5 - Last Part

आज सुबह से ही पीतो बेटे की प्रतीक्षा कर रही थी, अंशुमन का फोन आ गया था कि वह आ रहा है बाहर जीप रुकने की आवाज सुन कर पीतो बाहर की ओर दौड़ी अंशुमन जीप से उतर कर उसकी तरफ़ बढ़ रहा था उसे वर्षों पहले वाले आशुतोष याद आ गए, बिल्कुल वैसी ही चाल, लम्बाई, रंग-रूप ! बिल्कुल अपने पिता पर गया था अंशुमन पीतो के मन में एक टीस उठती है, ह्रदय वेदना से कराह उठता है ...Read More