हाँ नहीं तो - 2

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निवेदन ‘हाँ नहीं तो’ “अगर आपने मेरी पोल खोली तो सच मानिए हम भी चुप नहीं बैठेंगे”, ‘हाँ नहीं तो ’ निवेदन इस वाक्य के साथ प्रारम्भ करने के पीछे मेरी मंशा सिर्फ इतनी सी है कि इस पुस्तक के शीर्षक का अभिप्राय समझ लिया जाए जी हाँ, जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से विदित होता है, इसकी रचनाओं की अवधारणा के केंद्र में मूलतः व्यंग ही है व्यंग के बारे में मेरा मत है कि व्यंग में खरी बात खरे तरीके से ही कही गई हो तभी वह व्यंग है, लाग-लपेट से काम लेने पर वह व्यंग न होकर चाटुकारिता भरा हास्य भर रह जाता है सामाजिक कुरीतियों को उजागर करते समय किसी जाति, वर्ग, स्थान, समाज, पद या व्यक्ति विशेष को धिक्कारने में ही व्यंग का उज्ज्वल पक्ष अपनी मर्यादा का पालन कर पाता है, परंतु जब उसी तरह से दूसरे पक्ष को जरा भी ढिलाइ से पेश किया जाए तो व्यंग अपना मूल चरित्र खो देता है व्यंग दरअसल हास्य का ज्येष्ठ भ्राता ही है इसके माने यह बिलकुल भी नहीं है कि हास्य रस की कविताओं में व्यंग होगा ही, हाँ व्यंग की कविता आपके होठों पर स्मित अवश्य ही बिखेर सकती है श्रेष्ठ व्यंग वही है जो नीट व्हिस्की की तरह किक मारे और लंबे समय तक आपको नशे में बनाए रखे व्यंग में व्यंजना का प्रयोग बहुतायत से होता है व्यंजना के माने है किसी खास जाति, वर्ग, स्थान, समाज, पद या व्यक्ति का सीधे-सीधे नाम न लिया जाये पर पाठक उस जाति, वर्ग, स्थान, समाज, पद या व्यक्ति को, कविता पढ़ते ही पहचान जाए उदाहरण के लिए इसी पुस्तक की एक व्यंगिका है- “डाकू होते थे ऐसा सुना है प्रत्यक्ष देख रहा हूँ, जब से उन्हें चुना है ” आप समझ रहे होंगे कि मैंने इसमें कहीं भी किसी का नाम नहीं लिया है, परंतु आप कविता पढ़ते ही जान गए होंगे कि मैं राजनेताओं बारे में बात कर रहा हूँ और यही व्यंजना रूपी नीट व्हिस्की है जो पाठक के सिर चढ़ कर बोलती है प्रस्तुत पुस्तक में ऐसा नहीं है कि सारी की सारी कवितायें व्यंग की हैं, कहीं कहीं मैंने अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप शब्दों के साथ प्रयोग किए हैं और आशान्वित हूँ, पाठकों को यह प्रयोग भी पसंद आएंगे इतना खुलासा और करता चलूँ कि कुछ कवितायें समसामयिक होने से वे पाठक को अन्यथा महसूस हो सकती हैं, परंतु समसामयिक कविताओं से बचा भी तो नहीं जा सकता है, अर्थात कविता की रचना करते समय उस समय जो कुरीति बहुतायत में फैली हो कवि की कलम उससे परहेज भी नहीं कर पाती है पुस्तक सुधी पाठकों के हाथों में है, और उन्हीं के हाथों में है इसकी विवेचना और व्यंजना कितना और कहाँ सफल हुआ चाहे पाठकवृंद न बताएं परंतु मेरी असफलताओं पर उंगली अवश्य रखें जिससे उनको भविष्य में दूर कर सकूँ छत्र पाल वर्मा