गन्दा ख़ून

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वसीम ग़ुस्से में सामने पड़ी शराब की बोतल को काफ़ी देर से घूर रहा है. उसका जी चाह रहा है कि शराब की बोतल को दाँतों से कूच के थूक दे और फिर शीशे के टुकड़ों को अपने पैरों तले कुचल के मिट्टी में मिला दे. फिर वसीम की नज़र सामने आलमारी में रखी ढेर सारी बोलतों पर जाती है. अब उसका जी चाह रहा है कि सामने पड़ी एक बोतल और आलमारी में पड़ी सभी बोलतों को एक बोरे में भरे और दूर कहीं समुन्दर में जाके फेंक आए और फेंकने से पहले बोरे में भरी सभी बोतलों को ज़मीन पर बोरे सहित पटक-पटक के फोड़ डाले.