ख्वाबो के पैरहन - 5

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फूफी को ताहिरा के क़दमों की चाप देर तक टकोरती रही ज़ेहन में उस चाप की टकोर से वेदना उठी .....मन अपराधी हो स्वयं से गवाही माँगने लगा- ‘क्यों किया रन्नी तूने ऐसा? क्यों ख़ानदान की बलिदेवी पर बेटी की कुर्बानी दे दी? अँधे न देखें तो ख़ुदा उन्हें माफ़ करता है पर तू तो आँख होते अंधी हो गई थी ’ फूफी की आँखें डबडबा आईं बेशुमार आँसू ओढ़नी पर चू पड़े उनकी ज़िन्दगी हो मानो कुर्बानियों की दास्तान है, आहों का जलजला, उम्मीदों की टूटन है रोते-रोते वे तकिये में मुँह गड़ा कर लेट गईं धीरे-धीरे अतीत दस्तक देने लगा