गद्दार

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राख की उसी ढेर से वह एक आश्चर्य की तरह बाहर निकल आया । खाक आलूदा चेहरा, राख आलूदा सिर । कलिख पुते हुये हाथ पैर वह एक छोटा नन्हा सा मासूम । उसका यूं प्रगट होना किसी आश्चर्य से कम नहीं था । राख के उस ढेर मे उसके माता पिता ढेर हो चुके थे । माता पिता ही क्या आस पड़ोस और पूरा मुहल्ला ही राख की ढेर मे तब्दील हो चुका था । उस आग मे कोई एक भी ऐसा नहीं बचा था जिसे वह जनता हो, या जिस पर विश्वास करता हो । इस बात का पूरा पूरा खयाल रखा गया था कि कोई भी न बचे । इस लिये उसका बच जाना और भी अचरज की बात थी । वह नन्हा, जले हुये मलबे के ढेर मे कुछ तलाश रहा था ।