कार के साथ चाँद भी सफ़र कर रहा था उस चाँद को एकटक निहारती नंदिनी उसे अपनी बनाई बीरबहूटी सी लाल मखमली साड़ी का घूंघट ओढ़ा कर देख रही थी कि घूंघट में चाँद कैसा लगेगा. सितारों को वह उस साड़ी में टांक रही थी. चांदनी के धागों से आसमान के रेशमी दुपट्टे पर बेल-बूटे उकेर रही थी, शटल के, क्रोशिया के नमूने बुन रही थी. आसमान के काले-नीले पन्ने पर ड्रेस डिजाईन कर रही थी. वो वकील बनना चाहती थी लेकिन बहस करनी उसको नही आती थी अपने हक के लिय लड़ना उसको नही आता जो दुसरो के हक की लडाई लडती . ईश्वर ही नही चाहता था वो वकील बने तो ईश्वर ही शायद यह चाहता था कि वो अपना शौंक पूरा करे ..जो कभी उसका मनपसंद काम था किताबे पढने के बाद लेकिन यह दीपक का उसको धोखे से ब्याहना भी ईश्वर की मर्ज़ी थी ...सोचे थी जो सोचो में से सोच निकाल रही थी ..... कार तेज गति से घर की तरफ से चली जा रही थी और नंदिनी का मन ..........................