कावेरी लुप्त नहीं हुई थी

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सुहानी, तुम्हारी दादी दो दिन से मुंह फुलाए बैठी हैं. आखीर क्या फायदा हुआ इतना लंबा चौड़ा प्रोग्राम बनाकर, इतनी दूर तुम्हारे पास आने का? तुम्हे सामने पाकर तो इन्हें निहाल हो जाना चाहिए था. पर देखो भला, क्या शकल बना रखी है?’ उमेश मुखातिब तो थे अपनी पौत्री सुहानी से, लेकिन असली इरादा था अपनी पैंतालीस साल से सहचरी रही छाया को गुदगुदा कर हंसा देने का. पिछले दो दिनों से उनकी नाराज़गी झेलने के बाद अब और देर तक छाया का रूठना उन्हें गवारा नहीं था.